शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

क्रौंच पर्वत पर तपस्यारत है 33 करोड देवी देवता


33करोड़ देवी-देवता क्रौंच पर्वत पर आकर पाषण रूप में  है तपस्यारत कार्तिक स्वामी हैं 360 गांवों के कुल ईष्ट

लक्ष्मण सिंह नेगी(udaydinmaan)
ऊखीमठ-चमोली जिले के विकासखण्ड़ पोखरी में आयोजित 9वें खादी पर्यटन औघोगिक किसान विकास मेले में प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने क्रौच पर्वत पर विराजमान भगवान कार्तिक स्वामी मंदिर को पर्यटन के मानचित्र पर लाने की घोषणा करते हुए सीएम ने कहा कि इस दिशा में भी भरसक प्रयास किये जाएंगे। इससे पर्यटकों का रूख कार्तिक स्वामी की ओर बढे़गा। जिससे क्षेत्र की आर्थिकी सुदृढ होने के साथ-साथ अन्य तीर्थ व पर्यटक स्थलों का समुचित विकास होने के अलावा स्थानीय बेरोजगारो को स्वरोजगार के अवसर प्राप्त होंगे आठ हजार पांच सौ तीस फीट की ऊंचाई व पट्टी तल्लानागपुर, दशज्यूला, चन्द्रशिला, तल्ला कालीफाट के शीर्ष पर विराजमान भगवान कार्तिक स्वामी 360 गांवों के कुल ईष्ट एवं भूम्याल देवता के रूप में पूजे जाते है।
 इस तीर्थ में प्रतिवर्ष जून माह में महायज्ञ व पुराण वाचन होता है, साथ ही बैकुंठ चतुर्दशी व कार्तिक पुर्णिमां को यहां लगने वाले मेले में सैकड़ों श्र(ालु पहुंचकर पुण्य अर्जित करते हंै। शिवपुराण के केदारखण्ड के कुमार अध्याय में वर्णित है कि जब शिव-पार्वती ने गणेश को प्रथम स्थान दिया था तो भगवान कार्तिकेय माता-पिता से रूष्ट हो गये और अपने शरीर का खून पिता व मांस माता को सौंपकर निर्वाण रूप लेकर क्रौंच पर्वत पर तपस्या में लीन हो गए थे। कई वर्ष व्यतीत होने के बाद पुत्र विरह में पार्वती ने भगवान शिव से कार्तिकेय से मिलने की बात कहीं। पार्वती को साथ लेकर भगवान शिव कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी को कार्तिकेय से मिलने क्रौंच पर्वत पहुंचे, जब कार्तिक स्वामी ने माता-पिता को क्रौच तीर्थ में आते हुए देखा तो वे हिमालय की ओर कार्तिक स्वामी मंदिर से चार कोस आगे अग्रसर हो गए। पुराणों में वर्णित है कि जब भगवान कार्तिकेय माता-पिता से रूष्ट होकर क्रौच पर्वत आए तो देवताओं के सेनापति होने कारण 33करोड़ देवी-देवता भी क्रौंच पर्वत पर आकर पाषण रूप में तपस्यारत हो गए। क्रौच पर्वत पर 33 करोड़ देवी-देवताओं ने शिव पार्वती की रात भर पूजा-अर्चना की थी।
 कार्तिक पूर्णिमां के पर्व पर भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश के लिए रवाना हुए। उनके कैलाश रवाना होने के बाद भगवान कार्तिकय अपने तीर्थ पर पुनः तपस्यारत हो गए, तब से लेकर वर्तमान समय तक स्थानीय श्र(ालु बैकुंठ चतुर्दशी व कार्तिक पूर्णिमां के दिन दो दिवसीय मेले का आयोजन करते हैं। तीर्थटन व पर्यटन की अपार संभावाओं को अपने आंचल में समेटे कार्तिक स्वामी तीर्थ के दिन निकट भविष्य में बहुर सकते है। इस तीर्थ को पर्यटन मानचित्र पर लाने की कवायद की जा रही है। यदि ऐसा हुआ तो यहां पर्यटन को गति मिलेगी। स्थानीय व्यावसायियों का मानना है कि इस तीर्थ के विकसित होने से क्षेत्र के अन्य तीर्थ एवं पर्यटन स्थालों का समुचित विकास होने के साथ क्षेत्र की आर्थिकी मजबूत होगी और स्थानीय बेरोजगारों को स्वरोजगार के अवसर प्राप्त होगें कार्तिक स्वामी तीर्थ में सबसे पहले 1942 में महायज्ञ व पुराण वाचन का आयोजन किया गया जो कि हर तीसरे वर्ष आयोजित होता था। 1996 में क्षेत्रीय जनता द्वारा मंदिर समिति का गठन कर जून माह में प्रतिवर्ष महायज्ञ व पुराण वाचन का आयोजन किया जाता है। क्रौच पर्वत से निकलने वाली नीलगंगा में 360 कुंड माने जाते हैं। कहा गया है कि जो भी श्र(ालु इन 360 कंुडों का दर्शन करता हैं, उसके जन्म-जन्मांतरों से लेकर कल्प-कल्पांतरों के पापों का हरण होता है। लोक मान्यता है कि कार्तिक स्वामी देवताओं के सेनापति होने के कारण कार्तिक स्वामी निर्वाण रुप लेकर क्रौंच पर्वत पर तपस्यारत हुए तो 33 करोड़ देवी-देवता क्रौच पहुंचे और पाषण रुप में तपस्यारत हो गये, इसलिए क्रौच के हर पत्थर को किसी न किसी आकृति में देखा जा सकता है। यहां से चैखम्बा का विहंगम दृश्य, अखंख्य पर्वत श्रंृखलाएं एवं हिमालय की श्वेत चादर, अलकनंदा-मंदाकिनी नदियों को एक साथ देखा  जा सकता है। स्थानीय जनता का कहना है। कि कार्तिक स्वामी तीर्थ के पर्यटन मानचित्र पर आते ही तल्लानागपुर, दशज्यूला, चन्द्रशिला व तल्ला कालीफाट के पर्यटक एंव तीर्थ स्थलों का भी सर्वांगीण विकास होगा।
udaydinmaan@gmail.com

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