सोमवार, 25 नवंबर 2013

उत्‍तराखण्‍ड दिवस समारोह- दिल्‍ली में समारोह

उत्‍तराखण्‍ड दिवस समारोह- दिल्‍ली में समारोह
व्‍यापार मेले में उत्‍तराखण्‍ड के इस रूप की भी झलक दिखायी जानी चाहिए-
25 नव0 को सांय 5;30 बजे लाल चौक थियेटर पगति मैदान, नई दिल्‍ली में भारत अन्‍तर्राष्‍टीय व्‍यापार मेला 2013 उत्‍तराखण्‍ड दिवस समारोह के अवसर पर सांस्‍क़तिक संध्‍या का उदघाटन उत्‍तराखण्‍ड के सीएम व लघु उद्योग, खादी, श्रम एवं दुग्‍ध विकास मंत्री करेगें, इस व्‍यापार मेले में उत्‍तराखण्‍ड की झलक दिखायी जाएगी, तो उत्‍तराखण्‍ड में तो इस समय भ्रष्‍टाचार खूब फल फूल रहा है, उसकी झलक दिखानी चाहिए,दिल्‍ली में उत्‍तराखण्‍ड की झलक दिखाने के लिए नौकरशाह व सत्‍तानशीं सांस्‍क़तिक संध्‍या का उदघाटन करने का लाखों रूपये का विज्ञापन बांट दिया गया, जबकि उसी दिन नेता प्रतिपक्ष अजय भटट मुख्‍यमंत्री के सामने चुनौती रखते हैं कि यदि केदारनाथ के भवनों में शव नही मिले तो सक्रिय राजनीति से संयास ले लेगें, परन्‍तु केदारनाथ की लाशों को 6 माह बाद भी निकालना छोड दिल्‍ली में सांस्‍क़तिक संध्‍या का लुत्‍फ उठाने के लिए हजारों करोडों रूपये फूंके जा रहे हैं, शायद तभी अजय भटट कहते हैं कि सीएम के इस कदम की हर जगह थू थू हो रही है,

उत्तराखंड के सूचना निदेशालय में करोड़ों का घोटाला, सरकार खामो

उत्तराखंड के सूचना निदेशालय में करोड़ों का घोटाला, सरकार खामोश

दीपक आजाद/watchdog
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जांच हुई तो जेल जा सकते हैं चंदोला, राजेश और चैहान की तिकड़ी- उत्तराखंड सरकार का सूचना महकमा अपने कुकर्मो को लेकर कुख्यात है। मुख्यमंत्री के अधीन आने वाले इस महकमें के अफसर विज्ञापनरूपी अस्त्र का प्रयोग कर अपने काले-कारनामों को सार्वजनिक होने से रोकने में अकसर कामयाब होते रहे है। इनकी कुख्याती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये इमानदार अफसरों को भी निदेशालय में टिकने नहीं देते हैं। मिसाल के तौर पर सूचना महानिदेशक बनकर आए दिलीप जावलकर का नाम लिया जा सकता है। निदेशालय में बैठे अनिल चंदोला, राजेश कुमार और चैहान जैसे अफसरों के भ्रष्ट गठजोड़ की दबंगई का आलम यह है कि जब जावलकर ने इनके काले कारनामों की जांच कराने के बाद कार्रवाई की तैयारी शुरू की तो जावलकर को ही डीजी के पद से चलता कर दिया गया। नजीजन जावलकर के हटने के बाद करोड़ों के घोटाले की आडिट रिपोर्ट धूंल फांक रही है।
वाॅचडाॅग पत्रिका के प्रबन्ध संपादक विमल दीक्षित को आरटीआई से हासिल हुई आडिट रिपोर्ट के ब्यौरे चैंकाने वाले हैं। आडिट रिपोर्ट में इन भ्रष्ट अफसरों के कुकर्मों का सिल-सिलेवार खुलासा हुआ है। इन भ्रष्ट अफसरों ने विज्ञापन के नाम पर तो भारी घोटाला किया ही, पत्रकारों की आवभगत की आड़ में भी माल काटने मे कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। एक वित्तीय वर्ष 2011-12 में ही 45 लाख रूपये पत्रकारों की आवाभगत पर ही फूंक दिए गए। यह आवाभगत कुछ इस तरह की गई कि पत्रकारों को मैनेज करने के नाम पर महंगी घडि़यां तक खरीदी तो र्गइं, लेकिन बांटी नहीं गई। लाखों रूपयों में खरीदी गई घडियों को भी ये भ्रष्ट अफसरान खा गए। आडिट रिपोर्ट में करीब चार करोड का गोलमाल सामने आया है। यह वह गोलमाल है जो सीधे अफसरों के पेट में गया है, विज्ञापन के नाम पर कमीशन का मोटा खेल इसमें शामिल नहीं है।
अपर निदेशक अनिल चंदोला, संयुक्त निदेशक राजेश कुमार, सहायक निदेशक केएस चैहान और वित अधिकारी ओपी पंत की भ्रष्ट चैकड़ी ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में पत्रकारों की आवाभगत के नाम पर मोटा खेल खेला। आडिट रिपोर्ट के मुताबिक 14 लाख रूपये पत्रकारों को प्राइवेट गाडियां उपलब्ध कराने, 3 लाख रूपये होटलों में ठहरने और 29 लाख रूपये खाने और 12 लाख रूपये गिफट देने के नाम पर खर्च किए गए। करीब तीन लाख की कीमत से पत्रकारों के लिए तीन सौ रिस्ट वाॅच की खरीद की गई, लेकिन ये घडिया केवल कागजों में खरीदी गईं। देहरादून में कई होटलों को पत्रकारों की आवाभगत के नाम पर लाखों रूपयों का भुगतान किया गया। पैकड फूड के नाम पर कुमार वेजिटेरियन को 80 हजार रूप्ये बिल के अतिरिक्त भुगतान किए गए। पैकेड की संख्या के नाम पर जो खेल खेला गया वह अलग है। अफसरों की मनमानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि निदेशालय के स्टाफ की चाय के नाम पर ही साढे चार लाख रूपये और लंच व डिनर के नार पर 24 हजार रूपये खर्च किए गए, जबकि नियमानुसार मुफत चाय व लंच-डिनर का कोई प्रावधान नहीं है।
होर्डिग्स व विज्ञापनों की आड में भी मोटा गोलमाल किया गया। एक विज्ञापन एजेंसी को तो सर्विस टैक्स के नाम पर दस लाख रूपये का अधिक भुगतान कर दिया गया। ऐसी ही सरकारी बसों में विज्ञापन के नाम पर एक अन्य विज्ञापन एजेंसी को एक लाख चैदह हजार रूप्ये का अधिक भुगतान किया गया। परिवहन निगम की बसों में विज्ञापन लगाने के नाम पर तो दो माह के अंतराल में ही करीब 50 लाख रूप्ये का ठेका प्रभातम विज्ञापन एजेंसी को दिया गया। इसमें किस हदतक घोटाला किया गया, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि निगम की बसों में विज्ञापन लगाने के नाम पर पहले 24 लाख का ठेका दिया गया और फिर उन्हीं बसों पर सरकारी विज्ञापन चस्पा करवाने के लिए एक महीने बाद ही 26 लाख रूप्ये का ठेका दे दिया  गया। यह सीधे-सीधे सरकारी धन को ठिकाने लगाने का मामला है। यही नहीं सूचना निदेशालय के भ्रष्ट अफसरों ने विज्ञापन एजेंसी कलर चैकर्स के साथ सांठगांठ कर उसे एक ही बिल का दो बार भुगतान कर सरकारी खजाने को 9 लाख का चूना लगा दिया। कुछ ऐसा ही मोटा खेल सूचना विभाग के इन भ्रष्ट अफसरों द्वारा समय-समय पर प्रकाशित होने वाली विकास पुस्तिकाओं, मासिक पत्रिका, कलेंडर और टेलीफोन डायरी के नाम पर भी किया गया। ऐसा नहीं है कि भ्रष्ट अफसर ही सरकारी खजाने को चट कर मजे लूट रहे हैं, बल्कि पत्रकारों की भी एक जमात भी सैर सपाटे के लिए सूचना विभाग का जमकर दोहन कर रहे हैं। आॅडिट रिपोर्ट में करीब साढे पांच लाख रूपये पत्रकारों ने अपने निजी कार्यो के नाम पर सैर-सपाटे पर ही उडा दिए। जून 2011 में औली सैफ गेम्स में गए पत्रकारों को लंच पैकेड खिलाने के नाम पर अफसरों ने सीधे-सीधे 9 हजार रूपये का गोलमाल कर दिया। इसी तरह कई चैनलों ने विज्ञापन के नाम पर भुगतान तो लिया लेकिन चैनल पर विज्ञापन दिखाया भी गया, इसका सबूत अधिकारी आडिटर्स को नहीं दिखा पाए। गीत एवं नाटय प्रभाग के तहत भी लाखों रूपयों का घोटाला किया गया। अगर इस आडिट रिपोर्ट पर ईमानदारी से कार्रवाई हुई तो कई प्रिंटर्स और विज्ञापन एजेंसियों के संचालक को भी इन भ्रष्ट अफसरों के साथ जेल की रोटी खानी पड़ सकती है। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पास सूचना विभाग भी है। मुख्य सचिव से लेकर सूचना सचिव तक को सूचना विभाग के घोटालों की जानकारी है, मगर विभाग मुख्यमंत्री के पास होने के कारण वह कुख्यात अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने से घबरा रहे हैं। यही नहीं मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेताओं ने भी इस पर खामोशी ओढ़ रखी है। बात-बात पर उत्तराखंड के हितों की दुहाई देने वाला उकेडी भी जनता की गाढ़ी कमाई की लूट पर चुप है। कहते हैं कि राज्य गठन के बाद से सीबीआई जैसी संस्था सूचना विभाग के लेखे-जोखे की जांच करे तो तमाम छोटे से लेकर बड़े अफसर जेल की चक्की पीस रहे होंगे।

देहरादून का रंडीबाज संपादक


देहरादून का रंडीबाज संपादक


By Deepak Azad/Watchdog
मीडिया संस्थानों में काली भेडि़यों का एक फलता-फूलता संसार है। दिल्ली से देहरादून तक महिला देह पर गिद्व दृष्टि गड़ाये रखने वाले संपादकों की एक लम्बी फेहरिस्त है। अक्सर ऐसे मामले संस्थानों की चारदिवारी से बाहर नहीं आ पाते। ऐसे काले संपादकों की चर्चाएं तभी होती हैं जब किसी पत्रकार और संपादक में भिड़ंत हो जाए। या फिर उत्पीड़न की शिकार कोई महिला मुखर होकर सामने आ जाय। लाखों रूपये सैलरी और दूसरे घपले-घोटालों में मस्त मैनेजरनुमा संपादक-पत्रकार अपनी उर्जा को ऐसे ही औरतबाजी में खफा रहे हैं। जब पत्रकारिता बाजार की गुलाम हो गई हो और संपादकों के जन सरोकार महीने की मोटी सैलरी बटोरने तक सिमट गए हों, तब यही सबकुछ होना है। खैर खबर यह है कि देहरादून के एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र के संपादक इन दिनों रंडीबाजी को लेकर चर्चा का विषय बने हुए हैं। देहरादून में कदम रखते ही इनकी अयाशियां परवान चढ़ने लगीं। इस संपादक को भारी-भरकम सैलरी मिलती है। इस पैसे का दुरूपयोग वे अपनी रंगीन मिजाजी के लिए कर रहे हैं। रंगीन मिजाजी की खबरें इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई हैं। ये अपनी लम्बी गाड़ी में अक्सर बाजारू लड़कियों को देहरादून के आउटर में ले जाते हैं। ये अपने चापलूस दोस्तों से प्रशिक्षु महिला पत्रकारों को भर्ती कराने के लिए जब-तब कहते रहते हैं। इन महाशय ने देहराूदन में पर्दापर्ण करते ही एक महिला पत्रकार को नाकाबिल घोषित करते हुए  संस्थान से बाहर का रास्ता दिखा दिया, लेकिन दूसरी ओर एक प्रशिक्षु पत्रकार के साथ खुदकी बाइलाइन खबरें छापकर उसे स्टाफर का दर्जा तक दिलवा डाला। इस महिला पत्रकार की काबिलियत भी किसी से छुपी नहीं है। ये रंडीबाजी को लेकर पिछले दिनों तब चर्चा में आए जब इनकी अपने ही एक सहयोगी से ठन गई। हुआ कुछ यूं कि इन संपादक महोदय कि देहरादून आगमन के वक्त से ही यहां सालों से जमे-जमाये बैठे एक पत्रकार के साथ ठन गई थी। मामला यहां तक पहुंचा कि पत्रकार को उत्तराखंड से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, नजीजन पहाड़ी बनाम मैदानी मानसिकता पर जमकर गरमागरम विमर्श होने लगा। उत्तराखंड के एक तेजस्वी पत्रकार, जो अब स्वर्गीय हो चुके, ने देहरादून में इन संपादक के खिलाफ गाजे-बाजे के साथ विरोध-प्रदर्शन तक का ऐलान कर दिया था। हालांकि यह अनोखा प्रदर्शन हो न सका। इस तनातनी के बीच पिछले दिनों संपादक को फूटी आंख न सुहाने वाले से पत्रकार अपने घर देहरादून आए हुए थे। इसी दौरान वे अपने एक साथी के दुख में शरीक होने के लिए देहरादून स्थित अपने अखबार के कार्यालय में उनसे मिलने जा पहुंचे। बताते हैं कि संपादक ने सुरक्षा गार्ड से पत्रकार को बाहर धकियाने को कहा। इसी बात को लेकर अपने गरममिजाज तेवरों को लेकर पहचाने वाले पत्रकार को खुदकी बेइज्जती सहन नहीं हो सकी और उन्होंने संपादक के खिलाफ पूरी भड़ास निकाल डाली। मामला इतना बढ़ गया कि पत्रकार ने संपादक को सरेआम रंडीबाज तक कह डाला। काफी देर तक दोनों के मध्य वाद-विवाद होने के बाद पत्रकार अखबार के कार्यालय से बाहर निकल गए। इसके बाद पत्रकार ने अखबार के नोयडा स्थित कार्यालय में मैनेजमैंट से संपादक की कारगुजारियों की शिकायत कर संस्थान से इस्तीफा दे दिया। अब उन्होंने देहरादून में ही एक नया अखबार ज्वाइन कर लिया है। संपादक की रंडीबाज के किस्से रोज मीडिया में इन दिनों चर्चा का विषय बने हुए हैं।