शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

उत्तराखंड के सूचना निदेशालय में करोड़ों का घोटाला, सरकार खामोश

जांच हुई तो जेल जा सकते हैं चंदोला, राजेश और चैहान की तिकड़ी- उत्तराखंड सरकार का सूचना महकमा अपने कुकर्मो को लेकर कुख्यात है। मुख्यमंत्री के अधीन आने वाले इस महकमें के अफसर विज्ञापनरूपी अस्त्र का प्रयोग कर अपने काले-कारनामों को सार्वजनिक होने से रोकने में अकसर कामयाब होते रहे है। इनकी कुख्याती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ये इमानदार अफसरों को भी निदेशालय में टिकने नहीं देते हैं। मिसाल के तौर पर सूचना महानिदेशक बनकर आए दिलीप जावलकर का नाम लिया जा सकता है। निदेशालय में बैठे अनिल चंदोला, राजेश कुमार और चैहान जैसे अफसरों के भ्रष्ट गठजोड़ की दबंगई का आलम यह है कि जब जावलकर ने इनके काले कारनामों की जांच कराने के बाद कार्रवाई की तैयारी शुरू की तो जावलकर को ही डीजी के पद से चलता कर दिया गया। नजीजन जावलकर के हटने के बाद करोड़ों के घोटाले की आडिट रिपोर्ट धूंल फांक रही है।
वाॅचडाॅग पत्रिका के प्रबन्ध संपादक विमल दीक्षित को आरटीआई से हासिल हुई आडिट रिपोर्ट के ब्यौरे चैंकाने वाले हैं। आडिट रिपोर्ट में इन भ्रष्ट अफसरों के कुकर्मों का सिल-सिलेवार खुलासा हुआ है। इन भ्रष्ट अफसरों ने विज्ञापन के नाम पर तो भारी घोटाला किया ही, पत्रकारों की आवभगत की आड़ में भी माल काटने मे कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। एक वित्तीय वर्ष 2011-12 में ही 45 लाख रूपये पत्रकारों की आवाभगत पर ही फूंक दिए गए। यह आवाभगत कुछ इस तरह की गई कि पत्रकारों को मैनेज करने के नाम पर महंगी घड़ियां तक खरीदी तो र्गइं, लेकिन बांटी नहीं गई। लाखों रूपयों में खरीदी गई घडियों को भी ये भ्रष्ट अफसरान खा गए। आडिट रिपोर्ट में करीब चार करोड का गोलमाल सामने आया है। यह वह गोलमाल है जो सीधे अफसरों के पेट में गया है, विज्ञापन के नाम पर कमीशन का मोटा खेल इसमें शामिल नहीं है।
अपर निदेशक अनिल चंदोला, संयुक्त निदेशक राजेश कुमार, सहायक निदेशक केएस चैहान और वित अधिकारी ओपी पंत की भ्रष्ट चैकड़ी ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में पत्रकारों की आवाभगत के नाम पर मोटा खेल खेला। आडिट रिपोर्ट के मुताबिक 14 लाख रूपये पत्रकारों को प्राइवेट गाडियां उपलब्ध कराने, 3 लाख रूपये होटलों में ठहरने और 29 लाख रूपये खाने और 12 लाख रूपये गिफट देने के नाम पर खर्च किए गए। करीब तीन लाख की कीमत से पत्रकारों के लिए तीन सौ रिस्ट वाॅच की खरीद की गई, लेकिन ये घडिया केवल कागजों में खरीदी गईं। देहरादून में कई होटलों को पत्रकारों की आवाभगत के नाम पर लाखों रूपयों का भुगतान किया गया। पैकड फूड के नाम पर कुमार वेजिटेरियन को 80 हजार रूप्ये बिल के अतिरिक्त भुगतान किए गए। पैकेड की संख्या के नाम पर जो खेल खेला गया वह अलग है। अफसरों की मनमानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि निदेशालय के स्टाफ की चाय के नाम पर ही साढे चार लाख रूपये और लंच व डिनर के नार पर 24 हजार रूपये खर्च किए गए, जबकि नियमानुसार मुफत चाय व लंच-डिनर का कोई प्रावधान नहीं है।
होर्डिग्स व विज्ञापनों की आड में भी मोटा गोलमाल किया गया। एक विज्ञापन एजेंसी को तो सर्विस टैक्स के नाम पर दस लाख रूपये का अधिक भुगतान कर दिया गया। ऐसी ही सरकारी बसों में विज्ञापन के नाम पर एक अन्य विज्ञापन एजेंसी को एक लाख चैदह हजार रूप्ये का अधिक भुगतान किया गया। परिवहन निगम की बसों में विज्ञापन लगाने के नाम पर तो दो माह के अंतराल में ही करीब 50 लाख रूप्ये का ठेका प्रभातम विज्ञापन एजेंसी को दिया गया। इसमें किस हदतक घोटाला किया गया, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि निगम की बसों में विज्ञापन लगाने के नाम पर पहले 24 लाख का ठेका दिया गया और फिर उन्हीं बसों पर सरकारी विज्ञापन चस्पा करवाने के लिए एक महीने बाद ही 26 लाख रूप्ये का ठेका दे दिया  गया। यह सीधे-सीधे सरकारी धन को ठिकाने लगाने का मामला है। यही नहीं सूचना निदेशालय के भ्रष्ट अफसरों ने विज्ञापन एजेंसी कलर चैकर्स के साथ सांठगांठ कर उसे एक ही बिल का दो बार भुगतान कर सरकारी खजाने को 9 लाख का चूना लगा दिया। कुछ ऐसा ही मोटा खेल सूचना विभाग के इन भ्रष्ट अफसरों द्वारा समय-समय पर प्रकाशित होने वाली विकास पुस्तिकाओं, मासिक पत्रिका, कलेंडर और टेलीफोन डायरी के नाम पर भी किया गया। ऐसा नहीं है कि भ्रष्ट अफसर ही सरकारी खजाने को चट कर मजे लूट रहे हैं, बल्कि पत्रकारों की भी एक जमात भी सैर सपाटे के लिए सूचना विभाग का जमकर दोहन कर रहे हैं। आॅडिट रिपोर्ट में करीब साढे पांच लाख रूपये पत्रकारों ने अपने निजी कार्यो के नाम पर सैर-सपाटे पर ही उडा दिए। जून 2011 में औली सैफ गेम्स में गए पत्रकारों को लंच पैकेड खिलाने के नाम पर अफसरों ने सीधे-सीधे 9 हजार रूपये का गोलमाल कर दिया। इसी तरह कई चैनलों ने विज्ञापन के नाम पर भुगतान तो लिया लेकिन चैनल पर विज्ञापन दिखाया भी गया, इसका सबूत अधिकारी आडिटर्स को नहीं दिखा पाए। गीत एवं नाटय प्रभाग के तहत भी लाखों रूपयों का घोटाला किया गया। अगर इस आडिट रिपोर्ट पर ईमानदारी से कार्रवाई हुई तो कई प्रिंटर्स और विज्ञापन एजेंसियों के संचालक को भी इन भ्रष्ट अफसरों के साथ जेल की रोटी खानी पड़ सकती है। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पास सूचना विभाग भी है। मुख्य सचिव से लेकर सूचना सचिव तक को सूचना विभाग के घोटालों की जानकारी है, मगर विभाग मुख्यमंत्री के पास होने के कारण वह कुख्यात अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने से घबरा रहे हैं। यही नहीं मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेताओं ने भी इस पर खामोशी ओढ़ रखी है। बात-बात पर उत्तराखंड के हितों की दुहाई देने वाला उकेडी भी जनता की गाढ़ी कमाई की लूट पर चुप है। कहते हैं कि राज्य गठन के बाद से सीबीआई जैसी संस्था सूचना विभाग के लेखे-जोखे की जांच करे तो तमाम छोटे से लेकर बड़े अफसर जेल की चक्की पीस रहे होंगे।


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