शनिवार, 11 सितंबर 2021

मच्छरों की फैक्ट्री: यहां हर हफ्ते हो रहे हैं 02 करोड़ मच्छर पैदा !

चीन: चीन (China) में एक फैक्ट्री है जो हर हफ्ते 02 करोड़ अच्छे मच्छरों (Good Mosquito) का उत्पादन करती है. ये मच्छर फिर जंगलों और दूसरी जगहों पर छोड़े जाते हैं, इन मच्छरों का काम दूसरे मच्छरों से लड़कर बीमारियां रोकना होता है. मच्छरों की वजह से ना जाने कितनी ही जानलेवा बीमारियां दुनियाभर में हर साल होती हैं और इससे करोड़ों लोगों की जान जाती है. इन दिनों मच्छरों के ही चलते डेंगू की बीमारी देशभर में लोगों की जान ले रही है. चीन ने मच्छरों को खत्म करने के लिए एक नायाब काम किया है. उसने ऐसे अच्छे मच्छरों का उत्पादन अपनी फैक्ट्री में शुरू किया है, जो बीमारी फैलाने वाले मच्छरों का नाश कर देते हैं. आप भी हैरान होंगे कि ये अच्छे मच्छर क्या होते हैं. दरअसर अच्छा मच्छर उन्हें इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वो बीमारी फैलाने वाले मच्छरों की ग्रोथ को अपने तरीके से रोक देते हैं. ये काम चीन ने एक रिसर्च के बाद शुरू किया है.चीन के दक्षिणी इलाके गुआंगझोऊ में एक फैक्ट्री है, जो इन अच्छे मच्छरों का उत्पादन करती है. हर हफ्ते करीब 02 करोड़ मच्छरों का उत्पादन होता है. ये मच्छर दरअसल वोलबेचिया बैक्टीरिया से संक्रमित होते हैं, इसका भी एक फायदा है. चीन में पहले सुन येत सेत यूनिवर्सिटी और मिशिगन यूनिवर्सिटी में एक रिसर्च में पता लगा कि अगर वोलबेचिया बैक्टीरिया के संक्रमित मच्छर तैयार किए जाएं तो वो बीमारी फैलाने के लिए बड़े पैमाने पर मच्छर पैदा करने वाले मादा मच्छरों को बांझ बना सकते हैं. बन इसी बिना पर इन मच्छरों का उत्पादन शुरू हुआ. इन अच्छे मच्छरों को वोलबेचिया मास्किटो भी कहा जाता है. पहले इन्हें गुआंगझोऊ की फैक्ट्री में ब्रीड किया जाता है. फिर जंगलों और मच्छरों की बहुतायत वाली जगह में छोड़ दिया जाता है. फैक्ट्री में पैदा मच्छर मादा मच्छरों से मिलकर उनकी प्रजनन क्षमता खत्म कर देते हैं. फिर उस एरिया में मच्छर कम होने लगते हैं और इससे बीमारियों पर रोकथाम लगने लगती है. मच्छरों को पैदा करने वाली चीन की ये फैक्ट्री दुनिया में सबसे बड़ी अपने तरह की फैक्ट्री है. ये 3500 वर्ग मीटर में फैली हुई है. इसमें 04 बड़ी वर्कशाप हैं. हर वर्कशाप हर हफ्ते करीब 50 लाख मच्छरों का उत्पादन करती है.मच्छरों को पैदा करने वाली चीन की ये फैक्ट्री दुनिया में सबसे बड़ी अपने तरह की फैक्ट्री है. ये 3500 वर्ग मीटर में फैली हुई है. इसमें 04 बड़ी वर्कशाप हैं. हर वर्कशाप हर हफ्ते करीब 50 लाख मच्छरों का उत्पादन करती है. चीन आज से नहीं बल्कि वर्ष 2015 से ही ऐसा कर रहा है. पहले तो ये मच्छर केवल गुआंगझोऊ के लिए तैयार किए जाते थे, क्योंकि यहां हर साल डेंगू फैलता है. अब यहां मच्छरों को काफी नियंत्रित किया जा चुका है लिहाजा बीमारियां भी नियंत्रित हो चुकी हैं. अब इस फैक्ट्री से मच्छरों का उत्पादन करके उन्हे चीन के दूसरे इलाकों में भी भेजा जाने लगा है. फैक्ट्री में पैदा हुए ये मच्छर आवाज तो बहुत करते हैं लेकिन एक खास समय के बाद खत्म हो जाते हैं. इनसे किसी तरह बीमारियां फैलने का कोई खतरा भी नहीं रहता. फैक्ट्री में पैदा हुए सभी मच्छर नर होते हैं. लैब में इन मच्छरों के जीन में बदलाव कर दिया जाता है चीन का ये प्रोजेक्ट इतना सफल रहा है कि ब्राजील में भी चीन ऐसी ही फैक्ट्री खोलने जा रहा है. चीन के इस तरीके ने अपने पहले ही ट्रायल में इसने ज़बरदस्त कामयाबी पायी. जिस इलाके में इन मच्छरों को छोड़ा गया, वहां कुछ ही समय में 96 फीसदी मच्छर कम हो गए. जिसके बाद चीन ने इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर करना शुरू कर दिया.

पितृ पक्ष: पितरों की आत्म तृप्ति का समय!

पितृ पक्ष: पितरों की आत्म तृप्ति का समय!

बुधवार, 8 सितंबर 2021

देश की सुरक्षा, पारिस्थितिकी तथा संस्कृति का प्रतीक है पर्वतराज हिमालय

देश की सुरक्षा, पारिस्थितिकी तथा संस्कृति का प्रतीक है पर्वतराज हिमालय September 9, 2021 Santosh Benjwal 0 Comments आज से करीब पांच करोड़ साल पहले जब यूरेशियाई प्लेट और ग्रेटर इंडिया आपस में टकराए तो इस देश की सबसे सुंदर आकृति ने जन्म लिया, वो था हिमालय। वैसे भी जब भी भारत का विवरण आता है, इस महान पर्वत को नकारा नहीं जा सकता। जब हिमालय का निर्माण हुआ, तब टेथीज सागर बन चुका था। इस सागर की गोद में ही हिमालय पनपा। आज देश के परिदृश्य को सबसे बेहतर और सुंदर हिमालय ही बनाता है। इस देश के लिए हिमालय के योगदान में हवा, मिट्टी, पानी, जंगल ही नहीं आते बल्कि ये दुनिया में देश की पहचान को अलग-थलग बनाकर रखता है। हिमालय को देश के मुकुट का दर्जा भी दिया जाता है। वैसे हिमालय के कई नाम हैं, लेकिन अभी जब दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दे खड़े हो रहे हैं, उस दृष्टि से हिमालय को क्लाइमेट गर्वनर का दर्जा भी प्राप्त है और होना भी चाहिए क्योंकि जब हिमालय नहीं था तब पैनिनसुलर इंडिया या उससे जुड़े देश के अन्य हिस्से एक बड़ी शीत लहर की चपेट में थे और यह भी कहा जा सकता है कि ये एक ठंडे रेगिस्तान के रूप में जाने जाते थे। जैसे ही हिमालय खड़ा हुआ, ये स्थान जीवन के लिए बेहतर साबित हो गए। जीवन और ज्ञान का केंद्र भारत की सीमा से खड़ा हिमालय मात्र इसकी रक्षा के लिए पहचान नहीं बनाता बल्कि इस देश को पनपाने में हिमालय की एक बहुत बड़ी भूमिका रही है। वैसे भी दुनिया में ये ढेर सारी जीव प्रजातियों का घर है। भारत के इतिहास की दो सबसे पुरानी व बड़ी नदियां ब्रह्मपुत्र व सिंधु कैलास पर्वत के उद्गम के साथ ही जन्मीं। ये नदियां हिमालय के पूर्वी व पश्चिमी छोर से यात्रा कर सागर में विलीन हो जाती हैं। इस बीच ये हिमालय के जनजीवन, मिट्टी व वनों को तर करती हैं। बात वनों की हुई है तो जानना जरूरी है कि देश के एक तिहाई वन यहां मौजूद हैं। करीब 41 फीसद भूमि यहां वनों को समर्पित है। इतना ही नहीं, दुनिया मे कई तरह की संस्कृतियां और संस्कार इसी से पनपे हैं। साधु-संतों की तपस्या का गढ़ भी हिमालय ही रहा। सभी तरह के मतों-पंथों के महान साधकों ने हिमालय में ही वास किया है। वन्य संस्कृति यहीं पनपी है। ज्ञान-विज्ञान का स्रोत भी यहां रहा और मोक्ष प्राप्ति के रास्ते भी यही से निकलते हैं। भारत देश को दुनिया की दृष्टि में आध्यात्मिक गुरू बनाने के पीछे हिमालय का भी योगदान है। सदियों से सेवा में तत्पर हिमालय की परिस्थितियां आज अगर अनुकूल न भी हों, फिर भी इस देश की लाइफलाइन के रूप में हिमालय ही जाना जाता है। स्वस्थ हो या बीमार, सदियों से खड़ा हिमालय तबसे जनसेवा में तत्पर रहा है और आने वाले हजारों वर्ष तक सतत रहेगा। यह हमेशा इस देश की सीमाओं के साथ ही सभी तरह के जीवन को पनपाने में भी सबसे बड़ा योगदान देता आ रहा है। देखा जाए तो हिमालय से जुड़े राज्य व देश की राजधानी सब इसकी कृपादृष्टि से ही फल-फूल रहे हैं। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल या दूसरी तरफ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, सब के सब हिमालय के ही संरक्षण में ही बढ़ते आए हैं। इसके अतिरिक्त हिमालय व समुद्र के बीच पनपा रिश्ता, देश के उत्तर-दक्षिण के बीच की बसावट की भी सेवा करता है। यहां की हरित व श्वेत क्रांति उस मानसून के बलबूते पर ही है जो हिमालय व समुद्र के मेल-मिलाप का ही उत्पाद है। यहां का महफूज जीवन हिमालय की ही देन है। इतना सब होने के बाद भी देश के इस महान सेवाखंड को समझने में हम चुके हुए हैं, चूक गए हैं। भारत के मस्तक का मुकुट आज देश स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाने में जुटा है पर जहां से देश को सबसे ज्यादा जीवन के अमृत प्राप्त होते हों अगर उसके हालात खराब हों तो चिंतित होना स्वाभाविक है। साथ ही इसके प्रति गंभीरता भी होनी चाहिए क्योंकि सवाल उस मुकुट का है जो देश का सम्मान तय करता है। अगर मुकुट ही तटस्थ व स्थिर नहीं होगा तो देश की अस्थिरता पर सवाल खड़े तो होंगे ही। अगर हिमालय की परिस्थितियां बेहतर नहीं रहीं तो स्वतंत्रता के मायने भटके हुए होंगे। हिमालय के उस योगदान को तो हमें बार-बार याद करना ही होगा जिसने इसे स्वतंत्र व हमें सुरक्षित रखने में बड़ी भूमिका निभाई है। हिमालय न होने का मतलब अन्य देशों की घुसपैठ के रास्तों को निमंत्रण देना है। इस देश की सीमाओं में हिमालय ही दुश्मनों को अनवरत ललकारता रहता है। हिमालय से स्वावलंबन की परिभाषा भी इसलिए खरी उतरती है क्योंकि इसी से देश में बाग-बगीचे, खेत-खलिहान पनपे हैं। किसी भी देश के जनजीवन की प्राथमिक आवश्यकताओं में हवा, मिट्टी, जंगल, पानी सीधे बड़े योगदान के रूप में जाने जाते हैं और भारत को यह स्वाभिमान, स्वतंत्रता, स्वावलंबन हिमालय ने ही दिया है। जल रूपी जीवन के लिए देश का 65 फीसद हिस्सा हिमालय पर ही निर्भर है। इस देश के बड़े हिस्से में हर क्षण ली जाने वाली प्राणवायु की आपूर्ति भी इसके वनों से ही होती है। देश की पारिस्थितिकी व आर्थिक स्वतंत्रता हिमालय के हवा-पानी से ही पनपी है। मानव ही पहुंचा रहे नुकसान आज हिमालय को लेकर तमाम मुद्दे भी खड़े हो चुके हैं। इस बरसात को ही देखिए, देशभर में जहां एक तरफ मानसून ने कई कहर ढाए हैं, लेकिन हिमालय इससे सबसे ज्यादा व्यथित रहा है। अब अगर आने वाले कल में हिमालय पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से उस तरह तटस्थ खड़ा नहीं हो पाता है, जैसा यह सदियों से रहा है तो इसके लिए सबसे बड़ा दोष मानव और उसकी गतिविधियों के कारण ही है। आज हिमालय से संदर्भित योगदानों को परोसे जाने का समय है। ऐसे तौर-तरीके भी जुटाने की आवश्यकता है ताकि हिमालय के प्रति सबकी समझ बने। हिमालय के प्रति देश का सामूहिक योगदान और दायित्व बनता है कि हम इसके संरक्षण के लिए एकजुट होकर आगे आएं। डॉ. अनिल प्रकाश जोशी (लेखक पद्म भूषण से सम्मानित प्रख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता हैं)

मंगलवार, 7 सितंबर 2021

बारिश के लिए टोटके: मेंढक की शादी, जिंदा आदमी की शवयात्रा, इंद्रदेव को सजा!

बारिश के लिए टोटके: मेंढक की शादी, जिंदा आदमी की शवयात्रा, इंद्रदेव को सजा! September 7, 2021 Santosh Benjwal 0 Comments मुखिया को गधे पर घुमाना… बारिश के लिए होते हैं एमपी में ऐसे टोटके उदय दिनमान डेस्कः मध्यप्रदेश के दमोह जिले में बारिश के नाम पर लोगों ने अजीबोगरीब टोटका किया गया है। मासूम बच्चियों को बिना कपड़े के गांव में घुमाया है। तस्वीर वायरल होने के बाद प्रदेश में हड़कंप मच गया है। राष्ट्रीय बाल आयोग ने इसे लेकर दमोह कलेक्टर को नोटिस भेजा है। इसके बाद मामले की जांच शुरू हो गई है। मगर एमपी में अच्छी बारिश के लिए अलग-अलग टोटके किए जाते हैं। कहीं मेढ़क की शादी, कहीं इंद्रदेव को सजा, कहीं गधे पर बैठाकर मुखिया को घुमाना तो कहीं पर जीवित व्यक्ति की शवयात्रा निकाली जाती है। बाढ़ के बाद एमपी के कई जिले सूखे की चपेट में हैं। ग्रामीण इलाकों में हर साल अच्छी बारिश के लिए ग्रामीण टोटके करते हैं। मालवा निमाड़ के कुछ ग्रामीण इलाकों मेंढक और मेंढकी की शादी कराई जाती है। इसी साल जुलाई महीने में इंदौर के राजवाड़ा क्षेत्र में दो युवकों को सांकेतिक रूप से मेंढक और मेंढकी बनाया गया। इसके बाद दोनों की शादी कराई गई। इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ खूब उमड़ी थी। मान्यता है कि मेंढक और मेंढकी की शादी से इंद्रदेव प्रसन्न होते हैं और अच्छी बारिश होती है। वहीं, बैतूल के आदिवासी इलाकों में बारिश के लिए अनोखे टोटके अपनाए जाते हैं। इसी साल जुलाई महीने में बैतूल जिले असाडी गांव में टोटका किया गया था। गांव के अदिवासी भगवान इंद्र की प्रतिमा को मिट्टी में लपेट देते हैं। ग्रामीणों में मान्यता है कि इससे भगवान इंद्र को सांस लेने में दिक्कत होती है। इसकी वजह से वह बारिश कराएंगे। वहीं, गांव के अर्द्धनग्न बच्चे उनकी परिक्रमा करते हैं। ग्रामीणों को पूरा भरोसा रहता है कि इससे बारिश होती है। जुलाई की शुरुआत में इसी साल बारिश नहीं होने की वजह से गांव में मुखिया को गधे पर बिठाकर घुमाया गया था। रतलाम के धराड़ गांव में ग्रामीणों ने मुखिया को गधे पर बैठाकर घुमाया था। मान्यता है कि ऐसा करने से इंद्रदेव प्रसन्न हो जाते हैं। इस दौरान गांव साथ में ढोल और नगाड़े बजाता है। बड़ी संख्या में गांव के लोग साथ-साथ घुमते हैं। मुखिया के गधे पर बैठाकर गांव के लोग देवी-देवताओं की पूजा भी करते हैं। एमपी के धार जिले में अच्छी बारिश के लिए जिंदा आदमी की शवयात्रा निकाली जाती है। इसी साल जून के आखिरी में धार जिले के सरदारपुर में बारिश के लिए एक जीवित व्यक्ति की शवयात्रा निकाली गई थी। गांव के लोगों ने मुकेश भाबर नाम के शख्स को अर्थी पर लिटाया और पूरे इलाके में उसकी शवयात्रा लेकर घूमे। इस शवयात्रा के दौरान ढोल नगाड़ों की आवाज भी सुनाई देती है। इस दौरान ग्रामीणों ने अच्छी बारिश की कामाना की थी। ग्रामीणों ने कहा था कि पिछले कुछ सालों में जब-जब बारिश नहीं हुई, तब-तब यह टोटका अजमाया है। वहीं, एमपी के दमोह जिले में तो टोटका के नाम पर अश्लीलता फैलाई गई है। यहां आदिवासी समाज के लोगों ने बारिश के लिए टोटका किया है। मासूम बच्चियों को गांव में नंगा घुमाया गया है। यह घटना बनिया गांव की है। गांव की बच्चियां बिना कपड़े के घुमते हुए खेर माता मंदिर तक पहुंची हैं। यहां पर खेर माता की प्रतिमा को गोबर का लेप किया है। गांव के लोगों की मान्यता है कि बारिश इतनी होगी कि प्रतिमा पर लगा हुआ गोबर खुद ही धुल जाएगा।

आप वरिष्ठ नेता कर्नल (सेनि) अजय कोठियाल की डोनेशन देकर लगी चौकीदार की नौकरी!

कर्नल कोठियाल, 25,000 रुपये लेकर सरकार ने कर्नल कोठियाल को दे दिया है चौकीदार का नियुक्ति पत्र आउटसोर्स कंपनी द्वारा बेरोजगारों के साथ छलावा पर बेरोजगारों के साथ पहुंचे उत्तराखंड सचिवालय बेरोजगारों के साथ मजाक किया जा रहा है,उनके हक से उनको महरूम किया जा रहा:कोठियाल आउटसोर्स कंपनी ने कर्नल कोठियाल को भी भेजा चंपावत में गार्ड की नौकरी का अपॉइंटमेंट लेटर बेरोजगारों के साथ नौकरी के नाम पर कमीशन खोरी और अवैध पैसा वसूला जा रहा है:कोठियाल उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी स्कैम के बाद आप ने बीजेपी सरकार में आउटसोर्सिंग कंपनी द्वारा अवैध वसूली का किया पर्दाफाश हाथ में लंच बाक्स लेकर सचिवालय में नौकरी ज्‍वाइन करने पहुंचे कर्नल अजय कोठियाल देहरादून। मंगलवार को आप वरिष्ठ नेता कर्नल (सेनि) अजय कोठियाल हाथ में लंच बाक्स लेकर सचिवालय में नौकरी ज्‍वाइन करने पहुंचे। कर्नल अजय कोठियाल ने नौकरी के नाम पर डोनेशन का धंधा खोलने का आरोप लगाया। इस दौरान कर्नल कोठियाल ने बताया कि उन्हें महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग में चंपावत में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिली है। जिसके लिए उनसे 25 हजार रुपये की डोनेशन ली गई है। सरकार की नाक के नीचे इस तरह के कृत्य हो रहे हैं। इस संबंध में वार्ता के लिए कर्नल सचिवालय में सचिव स्तर के अधिकारियों से बातचीत करने गए हैं। https://fb.watch/7SYlKr3fPF/ https://fb.watch/7SVDW_EKaH/

सोमवार, 6 सितंबर 2021

बीजेपी के लिए मुसीबत बन रहे असंतोष के सुर

Latest Udaydinmaan उत्तराखंड राजनीति बीजेपी के लिए मुसीबत बन रहे असंतोष के सुर September 6, 2021 Santosh Benjwal 0 Comments देहरादून: उत्तराखंड में बीजेपी के लिए असंतोष के सुर मुसीबत बन रहे हैं। भाजपा के अंदर हो रहे विरोध से हाईकमान भी अपडेट है। रायपुर विधायक उमेश शर्मा काऊ और भाजपा कार्यकर्ताओं के एक गुट का विवाद हाईकमान तक पहुंच गया है। काऊ ने उत्तराखंड प्रभारी और भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत कुमार गौतम से मिलकर शिकायत की है। शनिवार को रायपुर राजकीय महाविद्यालय के एक कार्यक्रम से पहले विधायक काऊ और भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं के बीच बवाल हुआ था। इससे पहले भी पार्टी के एक गुट के कार्यकर्ता काऊ की खिलाफत करते रहे हैं। सूत्रों के अनुसार रविवार को विधायक काऊ दिल्ली दरबार पहुंच गए और हाईकमना को पूरी स्थिति बताई। सूत्रों ने बताया कि पिछले चुनाव से लेकर अब तक कुछ कार्यकर्ताओं के उनकी खिलाफत में किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी। कहा कि विरोधियों के सार्वजनिक बैठकें करने से पार्टी की छवि को भी नुकसान पहुंच रहा है। चुनावी साल में भाजपा में अन्य कई विधानसभा क्षेत्रों में विधायकों के खिलाफ विरोध के सुर शुरू हो गए हैं। इससे पहले दून में ही राजपुर विधायक खजान दास के खिलाफ अंबेडकरनगर मंडल के कुछ पदाधिकारी भी अपनी नाराजगी जता चुके हैं। पौड़ी के विधायक मुकेश कोली के खिलाफ भी पार्टी के कुछ युवा कार्यकर्ता बगावती तेवर अपना चुके हैं, रुद्रप्रयाग विधायक भरत चौधरी के विरुद्ध हाल ही में एक गांव की महिलाएं उतर आई थी। मेरे से विधायक उमेश शर्मा काऊ ने कोई शिकायत नहीं की है। विधानसभा चुनाव जब नजदीक आता है तो ऐसे छिटपुट विवाद सामने आते हैं। दुष्यंत कुमार गौतम, भाजपा, उत्तराखंड प्रभारी

शनिवार, 4 सितंबर 2021

PM Narendra Modi: दुनिया के सबसे पॉपुलर लीडर बने

PM Narendra Modi: दुनिया के सबसे पॉपुलर लीडर बने

कोरोना :हर 55 सेकंड में एक की मौत, प्रत्‍येक 60 सेकंड में 111 लोग संक्रमित

कोरोना :हर 55 सेकंड में एक की मौत, प्रत्‍येक 60 सेकंड में 111 लोग संक्रमित

ज्योतिषः 36 दिनों तक शनि रहेंगे वक्री!

https://www.udaydinmaan.com/astrology-saturn-will-be-retrograde-for-36-days/