देवभूमि में आंदोलन-आंदोलन
संतोष बेंजवाल
पुराणों-वेदों में उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। देवभूमि शब्द का अर्थ देवताओं का वास है। कहते है कि देवभूमि के कण-कण में भगवान शंकर का वास है इसलिए भगवान शंकर के साथ असंख्य देवता भी यहां वास करते है। जहां भगवान शंकर के वास के बात आती है तो वहां स्वाभाविक रूप से राक्षसों का रहना भी स्वाभाविक है। यही कारण है कि यहां दंतकथाओं में कई कथाएं प्रचलित है। उत्तराखंड राज्य बनने से पहले यह भू-भाग उ.प्र. राज्य का अंग था, लेकिन यहां की हमेशा से ही उपेक्षा होती थी। यही कारण रहा कि इस भू-भाग के लोगों ने पृथक राज्य के लिए एक लंबा आंदोलन किया। उसी आंदोलन का परिणाम था कि 2000 में इसे पृथक राज्य का दर्जा मिला। आंदोलनों के इतिहास में राज्यवासियों को दुःख-दर्द और जो वेदनाएं सहनी पड़ी उसका दर्द वह आज भी महसूस कर रहे हैं।
यहां इस बात का जिक्र इसलिए किया जा रहा है कि राज्य गठन से लेकर अब तक देश के इतिहास में शायद ऐसा कहीं नहीं होता है कि जहां आंदोलनों का दौर नहीं थमा। आखिर इसके पीछे क्या कारण है। इन पर चर्चा करने के लिए ही उक्त पक्ंितयों को लिखने पर मजबूर हुआ। उत्तराखंड राज्य निर्माण से लेकर इससे पहले से राज्य के हालातों पर नजर रखने के बाद यह बात स्पष्ट होती है कि राज्य के नीति-निर्माता राज्य के निर्माण की मूल भावना को समझ ही नहीं पाए। यही कारण है कि आंदोलनों का दौर आज दिन तक नहीं थमा। आंदोलनों का दौर तो देश के विभिन्न राज्य में या तो किसी बड़ी समस्या के समय उत्पन्न होते हैं या फिर राज्यों के विधानसभा सत्र के दौरान। वहीं उत्तराखंड राज्य में तो नित्य ही आंदोलनों का दौर रहता है। इसके पीछे असल कारण क्या है यह एक यक्ष प्रश्न है और इस पर सोचने विचारने की आवश्यकता है। इस मामले में जब कई लोगों से वार्ता की गई तो लोगों का कहना था कि देश के अन्य राज्यों में भी आंदोलन होते हैं पर वह उत्तराखंड राज्य जैसे नहीं यहां तो नित्य आंदोलन होते हैं और हमारे भाग्यविधाता सोये रहते है। हमारे भाग्यविधाताओं को तो सिफ अपनी जेबे भरने और एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड लगी रहती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण राज्य में अभी तक के मुख्यमंत्रियों का बदलना है। जानकारों की माने तो राज्य के भाग्यविधाता चाहे तो राज्य में हो रहे आंदोलनों को एक दिन में समाप्त करवा सकते हें लेकिन वह ऐसा जनबूझकर नहीं करवाना चाहते है। उन्हे तो राज्य की जनता को परेशानी में दिखना अच्छा लगता है। इस विषय पर आपकी क्या राय है अपनी राय उदय दिनमान की मेल आई पर भेज सकते है।
udaydinmaan@gmail.com
santoshbanjwal@gmail.com
संतोष बेंजवाल
संपादक
हिंदी मासिक उदय दिनमान
देहरादून उत्तराखंड भारत
9410982252,9897094986
संतोष बेंजवाल
पुराणों-वेदों में उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। देवभूमि शब्द का अर्थ देवताओं का वास है। कहते है कि देवभूमि के कण-कण में भगवान शंकर का वास है इसलिए भगवान शंकर के साथ असंख्य देवता भी यहां वास करते है। जहां भगवान शंकर के वास के बात आती है तो वहां स्वाभाविक रूप से राक्षसों का रहना भी स्वाभाविक है। यही कारण है कि यहां दंतकथाओं में कई कथाएं प्रचलित है। उत्तराखंड राज्य बनने से पहले यह भू-भाग उ.प्र. राज्य का अंग था, लेकिन यहां की हमेशा से ही उपेक्षा होती थी। यही कारण रहा कि इस भू-भाग के लोगों ने पृथक राज्य के लिए एक लंबा आंदोलन किया। उसी आंदोलन का परिणाम था कि 2000 में इसे पृथक राज्य का दर्जा मिला। आंदोलनों के इतिहास में राज्यवासियों को दुःख-दर्द और जो वेदनाएं सहनी पड़ी उसका दर्द वह आज भी महसूस कर रहे हैं।
यहां इस बात का जिक्र इसलिए किया जा रहा है कि राज्य गठन से लेकर अब तक देश के इतिहास में शायद ऐसा कहीं नहीं होता है कि जहां आंदोलनों का दौर नहीं थमा। आखिर इसके पीछे क्या कारण है। इन पर चर्चा करने के लिए ही उक्त पक्ंितयों को लिखने पर मजबूर हुआ। उत्तराखंड राज्य निर्माण से लेकर इससे पहले से राज्य के हालातों पर नजर रखने के बाद यह बात स्पष्ट होती है कि राज्य के नीति-निर्माता राज्य के निर्माण की मूल भावना को समझ ही नहीं पाए। यही कारण है कि आंदोलनों का दौर आज दिन तक नहीं थमा। आंदोलनों का दौर तो देश के विभिन्न राज्य में या तो किसी बड़ी समस्या के समय उत्पन्न होते हैं या फिर राज्यों के विधानसभा सत्र के दौरान। वहीं उत्तराखंड राज्य में तो नित्य ही आंदोलनों का दौर रहता है। इसके पीछे असल कारण क्या है यह एक यक्ष प्रश्न है और इस पर सोचने विचारने की आवश्यकता है। इस मामले में जब कई लोगों से वार्ता की गई तो लोगों का कहना था कि देश के अन्य राज्यों में भी आंदोलन होते हैं पर वह उत्तराखंड राज्य जैसे नहीं यहां तो नित्य आंदोलन होते हैं और हमारे भाग्यविधाता सोये रहते है। हमारे भाग्यविधाताओं को तो सिफ अपनी जेबे भरने और एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड लगी रहती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण राज्य में अभी तक के मुख्यमंत्रियों का बदलना है। जानकारों की माने तो राज्य के भाग्यविधाता चाहे तो राज्य में हो रहे आंदोलनों को एक दिन में समाप्त करवा सकते हें लेकिन वह ऐसा जनबूझकर नहीं करवाना चाहते है। उन्हे तो राज्य की जनता को परेशानी में दिखना अच्छा लगता है। इस विषय पर आपकी क्या राय है अपनी राय उदय दिनमान की मेल आई पर भेज सकते है।
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