बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

मीडिया से जुड़े खोजी टाईप के भाई


साधो, जैसा कि नित्य-प्रत्य खबरों से आपको भी आभास हो रहा होगा कि छेड़खानी, छींटाकशी व दुष्कर्म आदि उ.प्र. का नैत्यिक लोकपर्व का रूप ले चुका है। मीडिया से जुडे खोजी टाईप के भाईयों के कारण स्थिति ऐसी बन गयी है कि अखबार हाथ में लगते ही सबसे पहले तलाश ऐसी खबरों की ही रहती है जिससे हमारी 21वीं सदी की इस महान परंपरा का निर्वाह होता रहे! अभी कल ही गोल्डी पा जी के पुत्तर विक्की ने कपूर साहब की सुकन्या को देखकर चांद के जमीन पर उतरने का रहस्योद्घाटन क्या किया उधर अखबार की सुर्खी बन गयी और जमा उठालिया लाला खूबी ने। दीपावली तक का मोमबत्ती का सारा कोटा निकाल लिया। रातो-रात मोहल्ले की महिलाओं का आज्ञाकारी विक्की,पतियों के कान भरने वाला विक्की सट्टे के नंबर बताना वाला विक्की...फंासी का पात्र हो गया। मोहल्ले में दो फाड हो गये, विक्की समर्थक व विक्की विरोधी।
हद तो तब हो गयी तब छेडखानी को लेकर हुई विचार गोष्ठी में मिसेज जोशी सुबह पड़ी। पूछने पर जानकारी मिली की पिछले पन्द्रह मिनट से पूज्यनीय भाउ जी उन्हें ही ताड रहे थे। भाउ जी से शिकायत की तो उनकी पुत्रबधू भडक गयी। कल ही तो पिताजी का मोतिया का आपरेशन हुआ है दिख तो रहा नहीं, ताड रहे है उस कलमुही को। थोडी देर बाद गोष्ठी अध्यक्ष स्वंय सुबकती मिसेज जोशी को कंधे का सहारा देते हुये घर छोड़ने क्या गये फिर अगले दिन गार्डन में अनुलोम-विलोम करते ही दृष्टिगोचर हुये। याद भी सुझाव आया कि क्यो न प्रत्येक घर के बाहर एक पुलिसकर्मी बिठा दिया जाये जो दस-पन्द्रह मिनट पश्चात घरों में तांक-झांक के अलावा अबलाओं की कुशल लेता रहे। मोहल्ले में सीसीटीवी कैमरों का सुझाव आया तो युवा वर्ग मरने-मारने पर उतारू हो गया। परमपूज्य धर्मपाल जी ने यह आग में पानी डाला-बच्चे तो ये सब करते ही रहते है तो क्या उन्हें फांसी पर चढवा दे। तभी हाजी सरताज कान में फुसफुसाये अरे मियां, दिल पर हाथ रखकर बताओ, हममे से किसने लडकियों का पीछा नहीं किया। मि.सरीन उबल पडे-अबे हम यहां छेडखानी का हल निकालने बैठे है या गडे मुर्दे उखाडने। जागरूकता की प्रचंड लहर उठते-उठते बिखर गयी। शाम को विचार मंथन से निकले अमृत को छकने के लिए दारोगा जी का फोन आया। लेकिन वही निल वटा सन्नाटा। फिर पता चला महिला पुलिसकर्मी ही जीन्स टी शर्ट में घूम रही है। मानो कप्तान सहाब ने ही कह दिया हो-हम भी कहां पीछे।लो भई छोडों इन्हें आ गयी चन्द्रमुखी। साधो पूर्ण तन्मयता के साथ उ.प्र.में छेडखानी का लोकपर्व मनाया जा रहा है। थाना, पुलिस, नेता, साधु-असाधु लडके-लडकियां, मोबाईल, नेट, वीडियो क्लिप, माल, कालिज मदरसे...कहने का तात्पर्य यह है कि प्रतिदिन, प्रतिपल अपने उ.प्र. के इस लोकपर्व की छटा बनी रहे।
धर्मात्माआंे की दया
साधो शास्त्रों  में वर्णित  हैं कि शेषनाग के फन पर टिकी हुई है लेकिन अपना अभिमत है कि दुनिया ऐसे धर्मात्माआंे की दया पर टिकी हुई जो दिन रात सिर्फ मानव कल्याण मेें ही डुबे हुये है! यदि ऐसा नही है तो आप किसी भी पत्र पत्रिका में वर्गीकृत        विज्ञापन पर द्रष्टि कीजिये आपको लगेगा चचा मोदी ने तो चार छ महीने पहले अच्छे दिनों की आमद की बानगी छेड़ी लेकिन विज्ञापन पाठक सदैव अच्छे दिनो से लबालब रहे! आप इन विज्ञापन की एक बानगी देखिये 24 घंटे में लोन बिना कागजी कार्यवाही बिना गांरटर कोई पे स्लिप नही कहने का तात्पर्य यह कि इधर फोन करो छप्पर फाड के पैसा हाजिर! ऐसे धर्मात्माआंे के रहते महामना चावार्क के सत्यवचन है कर्ज लो और घी खाओ! इन्ही धर्मात्माओं की फेहरिस्त में शामिल कई धर्मात्मा ऐसे है जिनके दावेनुसार उनके काले इल्म को कोई काट नही सकता और दया दयावान की तरह पहले काम फिर पैसा !मक्ने ऐसे ही एक सिद्वपुरूष को फोन किया तो उधर से कोई गुर्राया धबरा मत मनोकमाना बता! मैने हिचकते हुये की दिया वो सोनाक्षी सिन्हा पर दिल आ गया है जी! उधर से आकशवाणी सी हुई  काम हो जायगा! दिनभर सोनाक्षी के साथ डिनर का ख्वाब संजोये जब शाम को द्वार पर दस्तक हुई तो मै बदहवाश सा भागा! दृश्य चैकाने वाला था द्वार पर थाने का दरोगा हथकडी में एक नशेडी बाबा को लिये खडा था मुझे बाद में पता चला कि बाबा का फोन र्सिवसलांस पर लगा हुआ था साधो बडी मुशिकल से ले देकर पीछा छुडाया और मौहल्ले में फजीहत अलग से हुई! साधे जिस शिक्षा को लेकर आज पेरेन्टस सूख रहे है उस शिक्षा को लेकर मैने कभी चिन्ता नही की! अकसर पिता जब भी मेरा रिपोर्ट कार्ड लेकर उत्तेजित होते! मै उनके सामने अखबार से काटकर एक कटिग रख देता हाई स्कूल फेल सीधे बी.ए.करें तत्पश्चात एम.ए. कर उस्मानिया विश्वविद्यालय से पी.एच.डी.करें। हजारांे छात्र जाब पर! पिता संतुष्ट नही होते तो उन्हे प्रत्येक डिग्री पर लगा स्टार भी दिखा देता जिसका तात्पर्य होता परीक्षा का केन्द्र उनका सेन्टर ही होगा! ऐसे ऐसे धर्मात्माओ के रहते मैंने जीवन मंे कभी कोई चिन्ता नहीं की! यहां आलू की खेती से लेकर मशरूम तक बिना किसी प्रोसेसिंग के लोन इतने सस्ते प्लाट कि आप अपने बजट के एक प्लाट की कीमत पर चार प्लाट खरीद ले! अशिक्षितांे को 20-20 हजार की नौकरियां कैन्सर जैसी बीमारी का इलाज चंद घटांे मंे तो डायबिटीज व रक्तचाप की बीमारियां जड़ से समाप्त किडनी व पित्त की थैली की पत्थरियां कुछ दिनांे में हाथ से निकालने वाले इन धर्मात्माओं के कारण ही अवश्य ही एक दिवस ऐसा आयेगा जब एम्स वैम्स जैसे चिकित्सा शोध संस्थान बद हो जायंेगे व इन धर्मात्माओं को राजकीय सम्मान से भारत रत्न से नवाजा जायेगा! विज्ञापन की इस दुनिया मंे हर मर्ज का इलाज है यदि आपके सिर पर बाल नही है तो मात्र चंद घंटों में इम्पलांटेशन के जरिये आप केश परा बन सकते है! एक से एक शक्तिवद्र्वक अषौधियां सिरप तेल कैप्सूल और न जाने क्या-क्या कहने का तात्पर्य यह है कि आपकी सलमान टाईप जापानी देखकर पूरा मौहल्ला ही चैक पडे़! क्षेत्रीय विधायक विधानसभा में प्रश्न उठा दे कि आखिर भाउ इतना जोश लाते कहां से है? साधो सत्यवचन विज्ञापन का युग है जो बिकता है वो दिखता नहीं और जो दिखता है वो बिकता नहीं! राहुल दिखे पर बिके नहीं तो मोदी बिके पर दिखे नही अंतोगत्वा अच्छे दिनांे की आमद संसद तक ही रह गयी! हालांकि धर्म के समस्त कार्य परदे के पीछे समस्त कार्य परदे के पीछे ही होते है यही कारण है कि ऐसे धर्मात्मा कभी सार्वजनिक नही हुये! गुमनामी की जिन्दगी जीते रहे! अखबार वालों को मजबूरन पीछा छुडाने के लिये पाठकों को अपना जोखिम पर विज्ञापन पर विश्वास करने के लिये विवश किया गया! लेकिन ऐसे धर्मात्मा ईश्वर की भांति ही बने रहे जिन्हंे सुना सब ने लेकिन देखा किसी ने भी नहीं! अभी कल ही कार्यस्थय से लौटकर बालकनी मे बैठा ही था कि धर्मपत्नी ने किसी अखबार की कटिंग सामने रखकर बौरायेपन से पूछा सुनो जी जरा देखकर पहचानना किसकी आंखे है जानू प्रथम पुरूस्कार स्विफट का है! साधों खून तो बेहद खौला लालची औरत न चाय न काफी वही रोज का किस्सा कभी आंखे पहचानो कभी चेहरे पहचानो कभी आमिर खान की पहली पिक्चर बताओ तो कभी राजा नटपरलाल मे इमरान हाशमी का किरदार बताओ! मैने टकासा जबाब दे दिया जब मैं बीस साल से तुझे ही नहीं पहचान पाया तो अब जब आंखों की बिनाई कमजोर हो गयी है तो किसकी ओखे व चेहरा पहचानू! क्यो मुझे नयी नयी टेन्शन देती है! वह फुफकारी व लहराती हुयी किचन मे प्रविष्ट  हो गयी और मैं सामने पार्क मे बैठे जोड़ांे को ताडने मे मशगूल हो गया।
मनोज पोखरियाल

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