मंगलवार, 11 नवंबर 2014

’’ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत्’’

                             ’’ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत्’’



 चंपा के लिए आज का दिन सचमुच किसी बडे तीज-त्यौहार से कम नहीं, ’ताराकुंड महौत्सव’ नाम से विख्यात इस मेले में मनोरंजन और मौज-मस्ती के लिएइस पहाडी गाॅव की विवाहिता के सब कुछ है,स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता और जन हितैसियों का चैला ओडे पार्टी और नेताओं के कुछ’’खास लोगों’’ के योगदान से सजा यह मंदिर परिसर, इस पहाडी इलाके केखासो-आम से गुलजार है,अचानक चर्चा में आया यह छोटा सा पौराणिक मंदिर आज हर किसी की जुबान पर था, इसीलिए कुछ बुद्विजीवी-टाईप लोग आदतन बाल की खाल खिचनें पर तुले है, मंदिर का इतिहास, भूगोल,गणित और दर्शन शास्त्र क्या है ? क्यों है ? कहाॅ से इतना पैसा आया है ? बडे-बडे स्टारों पर पानी की तरह पैसा कौेंन और क्यों बहाया जा रहा है ?बच्चों को नौकरी नहीं,मंहगाई संुरसा की तरह रात-दिन बढ रही हैबगैरहा-बगैरहा, पर अपनी चंपा और उसकी कुछ खास सहेलियों को क्या ? उन्हेे तो चारों ओर ओंर आनंद ही आनंद विखरा पडा दिख रहा था। विगत कई वर्षों से पहाड के कई हिस्सों से पौराणिक मठ-मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर पर्व-विशेष मनानें की श्रंृखला ही चल पडी है, इस बहानें हजारों-लाखों की इकट्ठी भीड का राजनीतिक फायदा कैसे लिया जाय ? ये हमारे राजनीतिज्ञों से ज्यादा भला कौंन जानता है ? लोंगों की आस्था और विश्वास का राजनीतिकरण अपनें पक्ष में कैसे किया जाता है ? ये उत्तराखण्ड के राजनीतिज्ञों से सीखें। दिसबंर की कडकडाती ठंड मेंखिली धुप वाकई इस पहाडी पर चाॅदनी विखेर रहीं थी,कौथिग में पहाड के नामी-गिरामी गीतारों से सजे मंच पर चल रहे मन-पंसद पहाडी गीत-संगीत की स्वर लहरियों का आनंद, आसपास के गाॅवों और मायके से पहॅुचें लोंगों का लाव-लस्कर, दुकानों में सजी गरमा-गरम जलेबी, पकोडी चाय-पानी का नाश्ता का अपना ही रसास्वादन  था। कौथिग में सैर-सपाटा चल ही रहा था, तभी संगीत रूका और मंच पर प्रकट हुए नेतानुमा सज्जन नें कहा की उद्घाट्न के लिए राज्य के मुख्यमंत्री श्री़.... श्री.. जी पहुॅच चुके हैं, और’‘जिंदाबाद-जिंदाबाद, जय हो,जय हो’’ के नारों और गर्जनाओं से सारा का सारा मेला स्थल, आस-पास की झाडियाॅ, जंगल और जंगल से सटे गाॅवों की सीमाऐं गुॅज उठी, जो जहाॅ था वही अवाक् सा खडा होता दिखाई दिया, हर कोई उस सख्स को देखनें-सुननें के लिए आतुर था,जिसे मुख्यमंत्री कहा जा रहा है, इन सबसे चंपा और उसकी सहेलियों वाकई बिल्कुल अनजान थीं, कौंन मुख्यमंत्री, कैसा मुख्यमंत्री ? गाॅव की इन अनजान लडकियों को ये भी नहीं मालूम था कि राज्य की सरकार का एक मुखिया होता है और उसे ’मुख्यमंत्री’ कहा जाता है,जिसके इर्द-गिर्द सरकार काम करती है, उसी के नेतृत्व, निर्देशन-संचालन में राज्य का विकास  होता है। हालांकि वे कुछ समय से चुनावों में ’वोट’ करती आईं हैं,पर किसको वोट कर रहीं हैं ? उन्हे बिल्कूल नहीं मालूम ं, यह सब उनके गाॅव के मुखिया या कुछ सयानों के कहनें पर ही होता है ? एक डिग्री कालेज के प्रांगण में धुप सेक रहे कुछ छात्र-छात्राओं से जब यह पुछा गया कि कालेज का ’प्रेसीडेंट’ कौंन है ? जिसे आपनें चुना है ? तो जबाब मेंस्थानीय ’विधायक’ का नाम बता कर छात्र-छात्राओं नें उस व्यक्ति को हैरत में डाल दिया। आज के युग की ये भी कितनीं बडी बिडंम्बना है कि पहाडी क्षेत्र की इन लडकियों का सामान्य ज्ञान कितना और विकास कहाॅ है ?नया राज्य बना तो जनता की माॅग पर कई जगहों पर स्कूल-काॅलेज खुब स्वीकृत हुए हैं, पर ये शिक्षा के मंदिर धरातल पर कम आसमान पर टिके ज्यादा प्रतीत होतें हैं, हालात ये हैं कि दुर्गम इलाकों में स्वीकृत या पहले से स्थित विद्यालयों के ठीक-ठाक भवन की कल्पना तो नहीं की जा सकती पर पर जिन के पास थोडा-बहुतं भवन और आवश्यक साजो-सामान है भी, वहाॅ गुरूजी के दर्शन नहीं हो पाते किसी ’नये’ को वहाॅ नियुक्ति मिल भी गई तो भी अपनी ’उॅची पहुॅच’ के कारण जल्दी ही रफूचक्कर हो जाते हैं। तब गुरूजी विहीन शिक्षार्थी का ज्ञान क्या होगा इसका अंदाजा सहज ही लग जायेगा ? पर खैर आसमान से हैलीकाॅफ्टर जमीन पर उतरा और मुख्यमंत्री के रूप में एक सज्जन के दर्शन हो ही गये, चीकनी- चुपडी त्वचा के इस महामानव की सही उम्र का पता लगानें में भी कोई गच्चा खा जाय, सफेद रंग के कुर्ता-पैजामा औरजवाहर कट पहनें फिल्मी हीरो सा दिखनें वाले, इस सज्जन को इन भोले-भाले ग्रामीणका मुख्य सेवक कहीं भी नहीं कहा जा सकता है ? चारों ओंर से ब्लैंक-कंैट कंमाडो से घिरे सैकडों पुलिस कर्मी के साथ जनता के बीच दिख रहे इस सज्जन में वैसे तो बडी आत्मीयता और सहजता दिख रही थी, पर चारों ओंर से लगा तंत्र उस व्यक्ति की भयावहता और खौफनाक दृश्य की तस्वीर पेश कर दे रहा था, भला इस पहाडी क्षेत्र के सहज और भोले-भाले मनुष्यों से किसी को भी किस तरह का खतरा कैंसे हो सकता है ? ये बात राजनीतिज्ञ भी भली प्रकार जानते हैं और प्रशासन भी। यह महज सयोंग ही था कि मुख्यमंत्री जी जब जनता के बीच पहुॅचे तो सीधे चंपा और उसकी सहेलियों के झूंड के आ फटके चंपा की ओंर देखते ही’बेटा’ संबोधन से पुंछनें लगे,तो चंपा भी फट पडी पति नौकरी नहीं करते, बच्चों की संख्या भी इसी उम्र में दो हैं, मायके की परिस्थितियों भी इससे जुदा नहीं हैं। माॅ और पिताजी नें गरीबी और फटेहाल में जींदगी बसर की तो भाईयों की तरक्की भी बीस नहीं है। इस पर राज्य के सुबेदार नें उसे समझाया की आनें वाले दिनों में ये सब मुश्किलात ठीक हो जायेंगें, ’चिंता मत करो’चंपा के लिए यह आश्वासन सोंनें पे सुहागा था, एक तो राज्य के मुख्यमंत्री नें सीधे उससे बात की तो दूसरा इस दरिद्रता से मुक्ति का वादा भी’ यह घटना जंगल में आग की तरह फैल गई, जहाॅ इससे खुशी मिली तो, सहेलियों के बीच ं ईष्र्या की पात्र बन गई। 
अब जब यह राज्य अपना चैदहवाॅ वर्ष गाॅठ मना रहा है तो चंपा सैंतीस की हो जायेगी, महज इसी उम्र में गोद में पाॅच बच्चें और नानी तक का सफर ?पर मुख्यमंत्री जी के ’वादे का साल दर साल इंतजार खत्म नहीं हुआ ?जिन बातों को लेकर राज्य का गठन हुआ था वे धरातल में कहीं नहीं हैं, जिस सपनें के लिए पहाड के लोंगों नें सडकों पर भूखे रह कर कई-कई सालों तक संघर्ष किया था वे कहीं वजूद में ही नहीं दिख रहीं है,नतीजन पहाड में वही बेचारगी, गरीबी और संसाधनों की कमी का रोंना बदस्तुर जारी है,पहाड की जरूरतों के मुताबिक यहांॅ न तो बुनियादी सुविधाओं को जुटाया गया है न हीं उपलब्ध संसाधनों से रोजगार उत्पन्न करनें की संभावनाओं पर सोचा गया, नतीजन पहाड में पलायन राज्य बननें के बाद ज्यादा हुआ, लेकिन जो समर्थ नहीं हैं वे यही गाॅवों में कष्ट के साथ जीवन यापन करनें को मजबूर हैं ? जिन खेत-खलियानों में कभी हमारे पूर्वजों नें सोंना उगला था, आज जंगली जानवरों के निशानें पर हैं, पलायन के कारण गाॅव की आबादी कम हुई तो अधिकाॅश खेती भी बंजर हो गई इन खाली पडे खेतों के कारण भी, आबाद हो रही खेती को नुकसान पहुॅचा है, पिछले कुंभ में हरिद्वार और अन्य मैदानी क्षेत्र के बंदरों को पहाड के जंगलों में छोडा गया था, तत्कालीन सरकार नें इसकी सफलता ढोल खुब पींटे हों, पर पहाडों में इन बंदरों के आतंक नें यहाॅ की आबाद खेती और घरों को बर्बाद करके रख दिया है, हालात ये हैं ये बंदर लोग पर आक्रमण से लेकर घरों में पका-पकाया भोजन चट कर जा रहें हैं घरों में रखी और संभाली फसल और वस्तुओं को भी ये आयातित बंदर भारी नुकसान पहुॅचा रहे हैं।वहीं खेती किसानी करनें वाले लोंगों का मनोबल लगातार गिरता जा रहा है, जिन स्थानों पर नकदी फसलों को उत्पादित किया जा सकता है उनके विपणन और रख-रखाव के लिए उपयुक्त व्यवस्था और कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था केवल कागजों तक सीमित है। कुछ क्षेत्रों में पाये जानें वाले आलू से यहाॅ की अर्थ व्यवस्था को पंख लग सकते हैं, लेकिन उपयुक्त प्रोत्त्साहन और सुविधा के अभाव में किसानों का मनोबल लगातार गिरा है, इस संदर्भ में सरकार का कृर्षि महकमा चिंतित हो ऐसा कभी नहीं लगा। इस संबंध में पहाडी क्षेत्रों के विभिन्न स्थानों की मृदा और भूमि पर कभी शोध-अनुसंधान हुआ ही नहीं,लापरवाह हुक्मरानों नें खेती किसानी से लेकर पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जानें वाली दुर्लभतम् जडी-बुटियों के संरक्षण, उत्पादन के लिए भी कोई खास कार्य-योजना तैयार नहीं की, जबकि ये जडी-बुटियाॅ राज्य की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ असाध्य रोंगों  के लिए भी वरदान साबित हो सकतीं हैं, हालांकि वन तस्करों से पकडे जानें के कारण इन विलक्षण जडी-बूटियों की चर्चाऐं मीडिया कीं खबरें तो बनती है, पर उनकें संरक्षण के लिए कुछ  नहीं किया गया।
राज्य की भौगोलिक बनावट और नैसर्गिक सौंदर्य की चर्चाऐ ंतो खुब होतीं हैं, पर उनके विकास और प्रचार-प्रसार को लेकर धरातल पर योजना कर नितांत अभाव है,  देव भूमि के नाम से विख्यात यह राज्य अनेक पौराणिक और धार्मिक महत्व की विशेषताओं से अलंकृत और विभूषित है,पर ऐसे कुछ स्थानों को छोड, शेष प्राचीन मंदिरों व स्थान विशेष की जानकारी आम लोंगों तक नहीं,यहाॅ तक की स्थानीय लोंगों को भी इनके महत्व और विशेषताओं का ज्ञान नहीं है। या महत्वपूर्ण विषय पर जानकारों से कोई मशविरा लिया गया है, जनपद गढवाल के पैठाणी कस्बे में स्थित राहु मंदिर देश का एक मात्र राहु मंदिर है,लेकिन दुर्भाग्यवश  इस राज्य के अनेक मुख्यमंत्रियों नें यहाॅ आ कर पूजा-अर्चना की हो, पर इसके महत्व और प्रचार-प्रसार पर मौंन साध लिया,यहाॅ यह तथ्य भी विशेष ध्यान देंने वाला है कि राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके, अब हरिद्वार सांसद डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक का यह लम्बे समय तक कर्मभूमि रहा है,लिहाजा विधान सभा क्षेत्र होंनें के कारण वे कई मर्तबा यहाॅ आते जाते रहे हैं, जनपद पौडी गढवाल के जिला मुख्यालय से महज 47 किमी0 की दूरी पर थैलीसैंण के पैठाणी कस्बे में आज भी मुलभूत संविधाऐं नहीं जुटाई गईं है, उचित सुविधाओं के अभाव में दर्शनार्थियों और आस्थावानों के लाख चाहनें के बाद भी यह उनके सुलभ नहीं हो पाता,ऐसे ही राज्य में अनेक धार्मिक और पौराणिक किस्म के अनेक मंदिर और  धर्मस्थल हैं, जिनको विकसित किये जानें से यहाॅ नौजवान को आजीविका तो मिलती, साथ ही क्षेत्र विशेष के सर्वोंगिण विकास की ओंर भी ध्यान जाता।तीर्थाटन के साथ-साथ पर्यटनके लिए भी यह पहाडी राज्य मशहुर है,पर यहाॅ भी राज्य सरकार में बैठे निट्ठल्ले हुक्मरानें की उदासीनता दृष्टिगोचर होती है।
इस संबंध में आज तक की सरकारांे के कामकाज पर गौर करें तो एक उदासीन तस्वीर उभर आती है, इस छोटे से राज्य पर इसी छोटे से कार्यकाल में सात लोंगों नें अपनें मुख्यमंत्री बननें हसीन सपनें को साकार कर दिखाया। कैबिनेट मंत्री,राज्य मंत्री, दर्जा धारियों की तो लम्बी फौज है, आखिर उन्होंनें भी किसी का क्या बिगाडा है ? किसी की किस्मत अगर अच्छी है ? तो भला पहाड की इन अधिसंख्यक जनता जर्नाजन को कैसी जलन ? अगर उन्हें पहाड की इन दुर्गम परिस्थितियों में जन्म मिला है तो मंत्री, मुख्यमंत्री अगर तमाम दर्जाधारी महानुभावों की क्या गलती ?इसीलिए जनता के वोट से जीते हमारे महानुभाव सबसे पहले  अपनें रहनें के लिए शानदार आशिंया बना लेते हैं। सरकार पता नहीं कब जाये-आये, फिर जीत आयें इसकी भी क्या गरांटी ? जनता तो जनता है, उनके लिए अच्छे काम करना-न-करना बराबर है। पिछले 13 सालों का इतिहास तो कम से कम यही कह रहा है, येन-केन प्रकारेंण सत्ता हथियायी जाय, बस । हमारे कर्मचारीगणों को भी अच्छी तरह से मालूम है कि राज्य सरकार की कमजोर कडी क्या है, वे अच्छी तरह से जानते हैं।  आये दिन हडताल से जनता हलकान रहती है, आखिर उनकी भी जायज माॅगें है। राज्य जिन उद्देश्यों के लिए बना था उसके बारे में बाद में भी सोचा जा सकता है, फिलहाल तो बस  ़’’ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत्’’। ( घीं पीते रहो चाहे कर्ज करके लाना पडे, और देंने की बारी आई मर जाओ, अपना क्या, कर्ज जिसको चुकाना होगा, चुकायेगा)

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