बुधवार, 26 नवंबर 2014

‘एजुकेशन स्टेट’ का गोरखधंधा

मानकों को ताक पर रख कर संचालित हो रहे हैं राजधानी में कई इंस्टीट्यूट
‘एजुकेशन स्टेट’ का गोरखधंधा

मानकों की अनदेखी

कालेज के नाम पर खेला जाता है खेल, नाम कालेज और चल रही है कोचिंग
एमडीडी के मानकों का नहीं किया जाता पालन, कोई नहीं पूछनहार
एनआईसीटी की गाईड लाइन का नहीं किया जाता है कभी भी पालन
बच्चों को दिए जा रहे प्रमाण पत्र भी होते हैं फर्जी और नाम दिया जाता है डिप्लोमा
कालेज में क्षमता से अधिक बच्चों को दिया जाता है एडमिशन, जगह की रहती है कमी
एडमिशन के नाम पर ली जाती है मोटी फीस, उसका नहीं रहता कहीं हिसाब
कालेज के नाम पर जो नक्शा पास किया जाता है उस पर बन रही आवासीय इमारत
संचालित हो रहे कोर्स के नाम पर भी किया जा रहा है युवाओं के साथ धोखा
उत्तराखंड राज्य में एजुकेशन स्टेट बनाने के नाम पर प्रदेश के नौकरशाहों और नेताओं ने गोरखधंधा शुरू किया और राज्य बनने से लेकर आज दिन तक चल रहा है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान राज्य के युवाओं का हो रहा है। युवा कालेजों की चकाचैंध में यह भूल जाते हैं कि वह कालेज मानकों पर चल रहा है या फिर बिना मानक के। यही नहीं अपने बच्चों को बिना मानकों के चल रहे कालेजों में भर्ती करने से पहले अभिभावक भी इस बात पर कोई चर्चा नहीं करते हैं कि कालेज मानकों को पूरा करता है या नहीं? वह सिर्फ देखा-देखी और अपने को अपनों के सामने दिखावा करने के चक्कर में रहते हैं और अपने बच्चे के भविष्य के साथ खुद खिलवाड़ करते हैं। प्रदेश के नौकरशाह और नेताओं का तो कालेज चलाने वालो के साथ गठजोड़ है और उसमें वह चाॅदी काट रहे हैं तो वह क्यों कुछ करेंगे। इसी पर केंद्रित स्टोरी...।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में कुकुरमुत्तों की तरह खुले इंस्ट्यूट राज्य के युवाओं के भविष्य के साथ खुलेआम खिलवाड़ कर रहे हैं और प्रदेश की सरकार इन्हें संरक्षण दे रही हैं। अगर ऐसा नहीं है तो सरकार क्यों इनसे मानक पूरा नहीं करने के लिए कहती है। वह ऐसा इसलिए नहीं कहती है क्योंकि दून में जितने भी शिक्षा की प्राईवेट दुकाने खुली हैं सभी का संबंध सीधे नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी राजनेता से है और वह नहीं चाहते कि बात उन पर आये।
बात की जा रही है उत्तराखंड की राजधानी में खुले इंस्ट्यूटों की। राजधानी में सब चलता  है इस बात की सत्यता कई बार सामने आ गई है। यहां बात करेंगे, राजधानी के नदां की चैकी इलाके में बने एल्पाइन ग्रुप आफ इस्टट्युट की। यह इंस्टयूट तो दून का नामी गिरामी है, लेकिन इसकी बुनियाद तो झूठ के बलबूते रखी गई है और यहां प्रदेश के युवाओं के साथ छलावा किया जा रहा है। इस बात की जानकारी शासन-प्रशासन को भी है, लेकिन कोई भी इस पर कार्यवाहीं नहीं कर पा रहा है। इसके पीछे पहुंच मानी जा रही है। यहां के मानकों पर अगर नजर दौढ़ाए तो यहां शुरूआत में तो सबकुछ सामान्य लगेेगा। लेकिन यहां से जुडे़ सभी दस्तावेज बिना मानकों के हैं और यह दुकान खुलेआम बिना मानकों के चल रही है। इस्टीट्यूट में एक नहीं कई अनियमियता हैं। इसके बाद भी इस ओर किसी का ध्यान नहीं गया और न ही किसी ने यहां हो रहे युवाओं के साथ खिलवाड़ पर नजर दौढ़ाई। यह पूरा कालेज तो अनियमितताओं की बुनियाद पर खड़ा किया गया हैं। एल्पाइन इस्टीटयुट के कर्ताभर्ता अनिल सैनी ने मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण से उक्त जमीन पर छात्रावास और कार्यालय के लिए इजाजत ली, लेकिन उन्होंने वहा पुरा कालेज ही खड़ा कर दिया। इस कालेज के लिए स्वीकृत नक्शे में मानकों को दरकिनार करते हुए अपनी मनमर्जी से कार्यालय और छात्रावास के नाम पर कालेज खड़ा कर खुलेआम चुनौति दे डाली। इस चुनौति के बाद देहरादून-मसूरी विकास प्राधिकरण और प्रदेश की सरकार शायद डर गई और चुपचाप बैठ गई। अकेले नक्शे की बात करें तो यहां जाने के बाद स्पष्ट दिखती है कि गैर कानूनी तरीके से यहां सभी निर्माण किए गए हैं। कालेज का भवन और यहां के लिए आवश्यक चीजों को दरकिनार करते हुए अपनी मर्जी से बनाया गया है। कालेज के लिए बनी प्रयोगशाला में कैंटीन चल रही है। इस बात के बाद सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि अन्य निर्माण में क्या किया होगा स्पष्ट हो जाएगा। राष्टीय राजमार्ग संख्या 75 एकड भूमि और होटल मैनेजमैट के 01 एकड जमीन की जरूरत मानकों के आधार पर है पर यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। यहां का पूरा मामला ही गोलमाल का है। जिस जमीन पर कालेज खड़ा किया गया है वह मात्र 1.18 एकड में बना हुआ है।
सिर्फ यही नहीं कालेज से डिप्लोमा या डिग्री ले रहे युवाओं को भी जानवरों की तरह ठूस कर पढाई के नाम पर खानापूर्ति की जा रही हैं। एल्पाइन इस्टीट्यूट के संथापक अनिल सैनी न केवल एआईसीटीई के नियमों का उल्लंघन कर कालेज चला रहें हैं। बल्कि मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के नियमों को भी तार-तार कर रहे हैं। शिक्षा के नाम पर चल रहे सैनी के इस खेल में एआईसीटीई के अधिकारी और एमडीडीए के कर्मचारियों की सदिन्ध भूमिका से इकार नहीं किया जा सकता। यह सब तो जो दिख रहा है वह है। इससे अलग बात यहां प्रवेश के लिए युवाओं को जो लूटा जाता है उसका जिक्र तो कोई नहीं करता। क्योंकि सभी अपने भविष्य को लेकर डरते हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं है कि जिस कालेज में वह पढ़ रहे हैं वहां तो खुलेआम गोरखधंधा चल रहा है। वहीं पूरे मामले में कालेज के संचालक अनिल सैनी का कहना है कि कालेज में पाठ्यक्रमों की स्वीकृति नहीं मिली है। उनकी कालेज में कोचिंग दी जाती है और यह प्रवेश के समय स्पष्ट कर दिया जाता है। उसकी की फीस ली जाती है। इसमें कुछ भी फर्जीवाड़ा नहीं किया जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं: