शनिवार, 6 दिसंबर 2014

उठाणों वक्त ऐगो...

उठा जागा उत्तराखंडियो, सौं उठाणों वक्त ऐगो...


उत्तराखंड राज्य के लिए यह गौरव की बात है कि उत्तराखण्डी लोकगीतों के सर्वशिरोमणि श्री नरेन्द्र सिंह नेगी पद्म पुरस्कार के लिए चयनित नहीं हुआ यह क्यों आज कोई बता दे क्या उनकी साधना में कोई कमी रह गई यहा फिर कुछ ओर?
उत्तराखंड के लिए उनके योगदान को आज भूला नहीं जा सकता है क्योंकि उन्होंने सामाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे शराब, भ्रष्टाचार, बलिप्रथा, अंधविश्वास जैसे मुद्दों पर कई गीत लिखे और इनको समाज से समूल उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया। पर्वतीय प्रदेश होने के नाते उत्तराखण्ड में प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन और जल, जंगल और जमीन की रक्षा हेतु नेगी जी ने अपने विभिन्न गीतों के माध्यम से समय समय पर लोगों तक सदेंश पहुंचाया। उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी समस्या ष्पलायनष् और उससे होने वाले दर्द को नेगी जी ने जिस आत्मीयता और भावों से अपने गीतों के माध्यम से उकेरा और लोगों तक पहुंचाया उसे कोई विरला ही कर सकता है। अलग प्रांत उत्तराखण्ड की मांग में उठा उत्तराखण्ड आंदोलन भी नेगी जी के गीतों से अछूता नहीं रहा.. क्यों भूल गये क्या ष्उठा जागा उत्तराखंडियो, सौं उठाणों वक्त ऐगो...ष् और ष्भैजी कख जाणा छा तुम लोग, उत्तराखंड आंदोलन मा...ष् गीतों को जो उस दौरान बच्चों बच्चों की जुबान पर रहते थे। इतना ही नहीं उस समय उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा आदोंलनकारियों के दमन और बर्बरता के विरोध में नेगी जी ने हर उत्तराखण्डी की भावनाओं और दुख को ष्तेरा जुल्मों कौ हिसाब चुकौंल एक दिन...ष् गीत के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया।
बता दें कि उत्तराखण्डी लोकगीतों के सर्वशिरोमणि नरेन्द्र सिंह नेगी जिनका नाम लिये बिना आज उत्तराखण्डी गीत और संगीत का परिचय अधूरा है, ने सन् 1974 में गढ़वाली लोकगीत और स्वरचित गीत गायन प्रारंभ किया था। वर्ष 1978 में उनकी गीतयात्रा आगे बढ़कर आकाशवाणी लखनऊ और आकाशवाणी नजीबाबाद के माध्यम से लोगों के दिलों तक पहुंचने लगी। ये वो समय था जब रेडियो ट्रांजिस्टर का प्रयोग अपने चरम पर था और उत्तरप्रदेश का यह पर्वतीय क्षेत्र अपनी कई समस्याओं से जूझ रहा था। ऐसे में श्री नेगी जी ही थे जिन्होने सामाजिक मुद्दों को उठाकर हम पहाड़ी लोगों के अन्दर सोये हुये उदासीनता के पहाड़ को जगाना शुरु किया।
नेगी जी ने सामाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे शराब, भ्रष्टाचार, बलिप्रथा, अंधविश्वास जैसे मुद्दों पर कई गीत लिखे और इनको समाज से समूल उखाड़ फेंकने का प्रयत्न किया। पर्वतीय प्रदेश होने के नाते उत्तराखण्ड में प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन और जल, जंगल और जमीन की रक्षा हेतु नेगी जी ने अपने विभिन्न गीतों के माध्यम से समय समय पर लोगों तक सदेंश पहुंचाया। उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी समस्या ष्पलायनष् और उससे होने वाले दर्द को नेगी जी ने जिस आत्मीयता और भावों से अपने गीतों के माध्यम से उकेरा और लोगों तक पहुंचाया उसे कोई विरला ही कर सकता है। अलग प्रांत उत्तराखण्ड की मांग में उठा उत्तराखण्ड आंदोलन भी नेगी जी के गीतों से अछूता नहीं रहा.. क्यों भूल गये क्या ष्उठा जागा उत्तराखंडियो, सौं उठाणों वक्त ऐगो...ष् और ष्भैजी कख जाणा छा तुम लोग, उत्तराखंड आंदोलन मा...ष् गीतों को जो उस दौरान बच्चों बच्चों की जुबान पर रहते थे। इतना ही नहीं उस समय उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा आदोंलनकारियों के दमन और बर्बरता के विरोध में नेगी जी ने हर उत्तराखण्डी की भावनाओं और दुख को ष्तेरा जुल्मों कौ हिसाब चुकौंल एक दिन...ष् गीत के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया। होते करते उत्तराखण्ड बना, नये राज्य के निर्माण के बाद नेगी जी ने पुनरू उत्तराखण्डियों को जागृत किया और अपने गीतों के माध्यम से सभी पहाड़ी भाई-बन्धुओं को मिलजुल कर भाईचारे और एकता से रहने का संदेश दिया।
नेगी जी ने जब देखा कि विकास के जिन स्वर्णिम स्वप्नों के साथ नये राज्य का सृजन किया गया था वे भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद के पाटों के बीच पिसती जा रहें हैं, तो उन्होने अपने गीतों के माध्यम से हमें सत्ता और राजनैतिक गलियारों के अन्दर की वास्तविकता और कई अपसंस्कृतियों से अवगत कराया.. और फिर उसके बाद पर्वतीय क्षेत्रों की उपेक्षा ष्सब्बि धाणि देहरादूण..ष्, चुनाव के समय मतदाताओं से सचेत रहने की अपील ष्हाथन हुसकी पिलाई, फूलन पिलाई रम..ष्, नेताओं की महत्वाकांक्षांयें ष्नेता बणि दिखोलू रे.. ष् और उसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री पर व्यंग्य ष्कलजुगी औतारी रे नौछमी नारैणा...ष्, योजनाओं में भ्रष्टाचार और कमीशन का खेल ष्अब कतगा खैल्योष् जैसे गीतों से कई बार जनता-जनार्दन को कुंभकरणी नींद से जगाने का प्रयास किया.लेकिन उनके प्रयासों में कमी रह गई.. हमने उनके गीतों पर सीटियां और तालियां तो बहुत बजायी.. डांस भी बहुत किया... लेकिन हम उत्तराखण्डी ना तो उनके गीतों का मर्म समझ सके और ना उन गीतों की वेदना.. ना तो पलायन रूका ना गलियों मुहल्लों मे पनपती राजनीति और उससे होने वाले आपसी द्वेष... ना शराबखोरी, ना भ्रष्टाचार, ना लोगों में प्रेम भाईचारा स्थापित हो पाया और ना हक-हकूक की लड़ाई के लिये आवाज बुलंद करने की हिम्मत..
26 जनवरी पर दिये जाने वाले पद्म सम्मान के लिये इस बार जो सात नाम भारत सरकार को भेजे गये हैं, उनमें पहाड़ के सबसे बड़े गायक नरेंद्र सिंह नेगी जी का नाम नहीं है। इस सूची में ऐसे-ऐसे नाम हैं जिनकी संस्तुति पहले भी कई-कई बार की जा चुकी है। अब पद्म पुरस्कार की बात चली है तो एक बात और बता दूं की वर्ष 1970 में जन्मे नवाब साहब उस समय ए, बी, सी, डी सीख रहे थे जब नेगी जी ने सन् 1974 में गढ़वाली लोकगीत गाना प्रारंभ किया था... जब नवाब साहब की कई फिल्में एक के बाद एक करके पिट रही थी उस समय श्री नेगी जी अपने गीतों से लोगों को जागृत कर रहे थे... बात केवल नवाब साहब की नहीं है फेहरिस्त बहुत लम्बी है.. नेगी जी के व्यक्तित्व और उनकी पहचान के आगे सभी पुरस्कार बहुत छोटे हैं और ऐसा नहीं है कि पद्म पुरस्कार से नेगी जी का कद बहुत ऊंचा हो जायेगा, लेकिन नेगी जी उन लोगों में से हैं जिनके हाथों में पहुंचने के लिये पद्मश्री, पद्मभूषण एवं पद्म विभूषण जैसे पुरस्कार बनाये जाते हैं।
हालांकि नरेंद्र सिंह नेगी जी ने पहाड़ की संस्कृति के लिये इतना काम किया है ।
Vinay KD, Dehradun
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चित्र साभार : श्री कुम्मी घिल्डियाल जी, नई टिहरी
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