फिर खतरे में केदारनाथ !
बारिश ने केदारपुरी की सुरक्षा को लेकर सोचने पर किया मजबूर
जियोलाॅजिस्टों ने दिया है नदियों के चैनलाईज का सुझाव
केदारपुरी के प्रोटेक्शन के लिए सरकार को दिखानी होगी गंभीरता
मोहित डिमरी
केदारनाथ। मानसून की पहली बारिश ने ही केदारपुरी सहित पूरी घाटी की सुरक्षा को लेकर सोचने पर मजबूर कर दिया है। केदारपुरी में लगातार 36 घंटे हुई बारिश के कारण मंदाकिनी नदी सहित उसकी सहायक नदियों ने रौद्र रूप धारण कर दिया। ऐसे में हालात बिगड़ गए और तीर्थयात्रियों को हेलीकाॅप्टर और पैदल मार्ग से रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर पहंुचाना पड़ा। इस घटना ने मानसून काल में होने वाली बारिश को लेकर चिंता में डाल दिया है। जियोलाॅजिस्ट केदारपुरी में भारी-भरकम निर्माण को लेकर लगातार चेता रहे हैं और नदियों के चैनलाईज कर उसके मुहानों को सुदृढ़ किए जाने का सुझाव भी दे रहे हैं। लेकिन सरकार इस पर अभी गंभीर नहीं दिखाई दे रही।
केदारनाथ में बीते 25-26 जून को हुई भारी बारिश ने दो वर्ष पूर्व आई त्रासदी की कड़वी यादों को ताजा कर दिया। यात्रियों और वहां रह रहे लोगों ने बरसात की पूरी रात भय के साए में काटी। दरअसल, केदारपुरी में सरस्वती, स्वर्गद्वारी, मधु गंगा, दूध गंगा और छीर गंगा मिलकर मंदाकिनी नदी का रूप धारण करती हैं। बारिश के कारण मंदाकिनी और सहायक नदियां उफान पर आ गई। ऐसे में केदारनाथ मंदिर के पिछले हिस्से के साथ ही दाएं और बाएं हिस्से में भूस्खलन होने लगा। केदारपुरी के आस-पास की पहाडि़यों से जलधाराएं फूटने लगी। बारिश के कारण अचानक नदियों के जलस्तर और पहाडि़यों से फूटे जलस्रोतों में वृद्धि होने से केदारपुरी पर खतरा मंडराने लगा। गनीमत यह रही कि 36 घंटे बाद सुबह के समय बारिश थम गई और इसके बाद नदियों का जलस्तर तेजी से गिरकर सामान्य स्थिति में आ गया।
इस घटना को किसी भी सूरत में नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। इसे संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए। क्योंकि आने वाले समय में मौसम विभाग ने भारी बारिश की चेतावनी दी है। चिंता की बात यह है कि केदारनाथ मंदिर के पीछे विशालकाय बोल्डर और मलबा बिखरा हुआ है। मंदाकिनी नदी के किनारे लगातार भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। केदारपुरी की जमीन दलदली होने से बारिश होते हुए कटाव शुरू हो जाता है। हालांकि नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) मंदिर के पीछे मंदाकिनी नदी को मूल स्वरूप में लाने के काम मे जुटा है। इसके साथ ही तीन लेयर प्रोटेक्शन दीवाल का भी निर्माण मंदिर के पीछे होना है।
जीएसआई (जियोलाॅजिकल सर्वे आॅफ इंडिया) अस्सी के दशक से ही केदारपुरी के भूगर्भीय अध्ययन में जुटा था। जीएसआई ने तत्कालीन यूपी सरकार को रिपोर्ट दी थी कि केदारनाथ धाम के ऊपर पहाड़ पर स्थित चैराबाड़ी झील और ग्लेशियर भयानक तबाही की वजह बन सकते हैं। लेकिन इसे नजरअंदाज किया गया और इसका दुष्परिणाम वर्ष 2013 की त्रासदी में सामने आ चुका है। इसके साथ ही जीएसआई ने केदारनाथ त्रासदी के बाद एक रिपोर्ट में साफ कहा था कि केदारनाथ की आपदा प्राकृतिक नहीं थी, बल्कि यह मानव जनित थी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में केदारपुरी को दक्षिण की ओर पुनर्वासित करने संबंधी सुझाव भी सरकार को दिए हैं। क्योंकि वर्तमान केदारपुरी भारी भरकम मलबे के कारण असुरक्षित हो गई है। रिपोर्ट में मंदाकिनी नदी के दोनों ओर तटबंध बनाने के साथ-साथ मंदाकिनी नदी के रूख को मोड़े जाने का भी प्रस्ताव सरकार को दिया गया है। मंदिर के पिछली हिस्से में पानी से बहकर आई शिला के साथ ही मंदिर को बचाने के लिए रिटेनिंग वाॅल बनाने का सुझाव सरकार को दिया गया है। रिपोर्ट में मंदाकिनी घाटी सहित केदारनाथ मंदिर और उसके आस-पास के क्षेत्रों की शीघ्र सुरक्षा करने के लिए कहा गया है।
केदारपुरी में मंदाकिनी सहित उसकी सहायक नदियों की धारा को चैनलाईज किया जाना बेहद जरूरी है। तभी केदारपुरी सुरक्षित रह सकती है। क्योंकि केदारपुरी से गौरीकुंड तक तीव्र पहाड़ी ढलान है। ऐसे में मंदाकिनी का पानी तेजी से नीचे की ओर बहता है। जिससे नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है। मंदाकिनी नदी का रूख भी बदलना जरूरी है। क्योंकि जून 2013 में आई आपदा के बाद से नदी की तलहटी जमीन से भी ऊंची हो गई है। इसके साथ ही केदारपुरी की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए ही निर्माण कार्य होने चाहिए। भारी-भरकम निर्माण सामग्री का उपयोग नहीं होना चाहिए।
वाईएस सुंदरियाल, जियोलाॅजिस्ट
केदारपुरी को पुराने स्थान पर ही बसाया जाना चाहिए। बेस कैंप सुरक्षित नहीं है। एकमात्र सुरक्षित स्थान केदारपुरी ही है। यहां पर सालों पूर्व भवनों का निर्माण हुआ है। जिनमें से कई भवन आपदा के बावजूद सुरक्षित हैं। केदारपुरी के चारों ओर तेजी से प्रोटेक्शन के काम होने चाहिए।
उमेश पोस्ती, तीर्थ पुरोहित
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