गुरुवार, 28 जून 2018

हेमकुंड साहब , लक्ष्मण मंदिर है दो धर्मों का अद्भुत और सुखद तीर्थ और युग्म !

क्रांति भटृ
शायद इन पंक्तियों का रचनाकार उत्तराखंड आया नहीं आया जब उसने कश्मीर की फिंजाओंं को देखकर लिखा था ” कि पृथ्वी अगर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है यहां है । अगर शायर के कदम और कलम उत्तराखंड की जमीन पर पडते तो शायद उसकी धारणा और कलम की हर्फ ( शब्दों ) में होता कि ” अगर पृथ्वी पर कहीं स्वर्ग है तो

सिख धर्म में दसवें गुरु , गुरु गोविंद साहब जी की पूर्व जन्म की हिमालयी तप स्थली ” हेमकुंड साहब ” के शीतकाल के बाद द्वार खुलते ही प्रतिदिन हजारों की संख्या में तीर्थ यात्री यहां पंहुच रहे हैं । सात सुन्दर पहाडियों से घिरे , पवित्र पुष्पावती नदी के तीर और शीतल शान्त और पवित्र हिम जल से परिपूर्ण कुंड ” हिमकुंड ” या ” हेमकुंड ” न सिर्फ धर्म के धर्म को ; वरन आध्यात्म की गहराई और प्रकृति में , नैसर्गिक सौंदर्य में ईश्वर पा लेने वालों को भी अपने हिस्से का भगवान के दर्शन करा लेता है ।



 क्या है मान्यता सिख धर्म में?
पवित्र गुरु ग्रंथ साहब के बाद एक पुस्तक है ” विचित्र नाटक”!  इसमें सिख धर्म के दसवें गुरु सच्चे बादशाह ” गुरु गोंविद साहब ” के बारे में लिखा है कि ” गुरु गोविंद सिंह साहब ने पूर्व जन्म में यहीं इस स्थान पर तप किया था ।
विचित्र नाटक की पंक्तियां “” सप्त श्रृंग



 कब ढूंढा गया यह तीर्थ !
600 वर्षों तक अध्ययन और खोज होती रही कि आखिर वह पवित्र स्थान है कहां ! जिसका जिक्र स्वयं गुरु महाराज ने विचित्र नाटक पुस्तक में किया है । निरंतर खोज होती रही । आखिर में 1932 में सरदार सोहन सिंह , मोदन सिंह जी ने यह स्थान खोजा ।





 पहले ग्रंथी हिन्दू थे ।
जब हेमकुंड साहब की खोज हुयी तो यहीं के पुलना गांव के श्री नन्दा सिंह जी को हेमकुंड साहब का ग्रंथी बनाया गया । वे एक लम्बे समय तक हेमकुंड साहिब के ग्रंथी रहे । यह गुरु कृपा ही रही के केवल 2 कक्षा पास नन्दा सिंह जी ने पहली बार गुरमुखी पढी और सुखमनी पाठ के सिद्ध हस्त हो गये ।





यहीं पर तो है लक्ष्मण मंदिर ।
यह है सुखद संयोग । हेमकुंड साहब के निकट ही भगवान श्री राम के भाई और शक्ति के प्रतीक भगवान लक्ष्मण जी का मंदिर भी है । मान्यता के अनुसार यहां पर लक्ष्मण जी ने तप किया था ।







 क्या है मान्यता !
मान्यता है कि जब भगवान श्री राम 14 वर्षो के वनवास और रावण को मारने के बाद वापस अयोध्या लौटे और राजकाज सम्भालने लगे तो एक दिन राजा राम अपने राज मंत्रणा कक्ष में गुरु वशिष्ठ के साथ गुप्त मंत्रणा ठर रहे थे । आदेश था कि वार्ता के दौरान कोई तीसरा ब्यक्ति न आये ।





इस बीच दुर्वासा ऋषि पहुंचे । कहा अभी राजा राम से मिलना है । द्वार पर भगवान लक्ष्मण थे । एक ओर राजा की आदेश कि इस अवधि में कोई मंत्रणा में न आयें और ना ही कोई ब्यवाधान किया जाय । लक्ष्मण धर्म संकट में आ गये । विचार किया कि यदि ऋषि को कक्ष में नही जाने देता हूं तो ये क्रोधित हो शाप दे देंगे । और जाने देता हूं तो राजाज्ञा का उल्लंघन होता है । विचारने के बाद मन में आया किसी के क्रोध से उसे भी कष्ट होगा ।



दुखी होगा । अतः निर्मल से राजा को बता ही दूं कि दुर्वासा ऋषि अभी मिलना चाहते हैन । कक्ष के अंदर गये । बात बताई । पर आत्म ग्लानि हुयी कि मै ने जाने अनजाने में राजाज्ञा का उल्लंघन कर दिया । और चुपचाप इसी हिमालय में साधना में बैठ गये जिसे लक्ष्मण मंदिर नाम कहा गया । मान्यता है भगवान यहां आज भी है ।



 कैसे बनी फूलों की घाटी !
जिसे आज फूलों की घाटी ” वैली आफ फ्लावर्स ” कहते हैं जिसे दुनिया के फलक पर अंग्रेज पर्यटक फ्रैंक स्माइथ ने ढूंढा । उसे शास्त्रों मेन ” नन्द कानन वन ” कहा जाता है ।

मान्यता है कि जब लक्ष्मण जी यहां पर कर रहे थे तब स्वर्ग से देवताओं ने जो फूल बिखरे वही फूल यहां फूलो की घाटी बन गये । विचित्र नाटक में भी लिखा है कि गुरु गोविंद सिंह जी के तप से प्रसन्न हो , देवताओं ने आसमान से फूल बिखरे । वही तो फूलों की घाटी है ।

 तो क्या लक्ष्मण जी ही गुरु गोविंद सिंह जी है।
गुरु का एक नाम रिपुदमन भी है । लक्ष्मण जी भी दुष्टों का ( रिपु ) दमन करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लेना बताया गया है । गुरु गोविंद सिंह जी ने भी रिपुओं का नाश किया । धारणा , कथा एक जैसी है । इसलिये लोग गुरु गोविंद सिंह जी को भगवान लक्ष्मण का अवतार मानते हैं ।

कोई टिप्पणी नहीं: