शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

मैं सिर्फ पत्थर नहीं हूॅ, साक्षात शिव हूॅ और मैं कैलाश पर युगों-युगांे से जगत कल्याण के लिए तपस्यारत हूॅ, लेकिन कुछ सालों में मेरी तपस्या को भंग करने के लिए हे मानव! तूने कोई कसर नहीं छोड़ी। आखिर मैं तेरे इस पाप को कब तक सहन करना। इसीलिए मैंने तांडव मचाया है। अगर अभी भी अगर तू नहीं संभला तो मैं...। अगर हम अपने मन की आॅखों से शिव आराधना करें तो शिव यही कहेंगे। क्योंकि आज हमने हिमालय को अपने मौज-मस्ती और अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर शिव की तपस्या में खलल डाल दिया है। इससे शिव का नाराज होकर अपनी तीसरी नेत्र खोलना तो स्वाभाविक था। सो शिव ने अपनी तीसरी नेत्र खोलकर हमें यह थोड़ा से दण्ड दिया है । अगर हम ऐसे ही करते रहे तो शिव तांडव मचा देंगे। जिस देश में करोड़ों देवता वास करते हैं और उनके स्थलों को हम तीर्थ स्थलों के रूप मंे पूजते हैं। हम अपनी आस्था और अपने ईष्ट के प्रति कितने आस्थावान है यह हमसे बेहतर कौन जान सकता है। हमारेे देव हमें सजा दें तो हमें अपने किये पर पछतावा होता है। लेकिन आज हमने अपने तीर्थस्थलों को हनीमून, शराब, शबाब और मंास के स्पाट बना दिए है। तीर्थ स्थलों को पर्यटन से जोड़कर कमाई कर जरिया ढूंढ लिया, लेकिन यह भूल गए कि यहां तो साक्षात देव वास करते हैं। यह हमारा कसूर नहीं बल्कि हमारी सरकारों का भी कसूर है।  धार्मिक भावनाओं का उल्लंघन करना प्रकृृति के प्रकोप झेलना जैसा ही है। चार धामों के यात्रा कालांतर में मोक्ष प्राप्ति के लिए हुआ करती थी। लेकिन वर्तमान में बिना नियम धर्म और कर्म के ये धार्मिक यात्रांए मनो-विनोद और विलासिता का साधन बना दी गई है। इसमें आम जनता जितनी दोषी है उससे कई गुना दोषी प्रदेश सरकार की वर्तमान नीतियां है। प्रदेश के जन्म लेते ही यहां नौकरशाह और राजनेता जैसे बु(िजीवियों ने आय के संसाधनों में वृ(ि के उपाय ढूंढन में लगे रहे और एक दिन वह भी आया जब धार्मिक स्थलों को भी पर्यटन से जोड़कर प्रदेश की आय में वृृ(ि हेते इसे मंजूरी भी दी गई। नतीजन आए दिन इन धार्मिक स्थलों की सुचिता पर दाग लगते रहे। जिस )षिकेश हरिद्वार में मांस मदिरा पूर्णतः वर्जित थी वहां इसका प्रचालन शुरू हो गया। पर्यटकों की बढ़ती डिमांड और फलते-फूलते व्यवसाय ने अपने पांव फैलाने शुरू कर दिए। देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली, गोपेश्वर, जोशीमठ से बदरीनाथ और उत्तरकाशी के अलावा सोनप्रयाग, ऊखीमठ केदारनाथ तक। बड़कोट से यमुनोत्री तक शराब और मांस की मंडियां सजनी शुरू हो गई। देखते ही देखते धर्मिक स्थल पिकनिक स्थल और हनीमून पांईट बनने शुरू हो गए। सबसे ज्यादा धर्म और आस्था से जुड़ा बाबा केदारनाथ में इसका प्रचालन शुरू हो गया। मंदिर के पंडे सुचिता बनाने की जगह सपरिवार वहां रहना शुरू कर दिए यही नहीं पर्यटक ठंड का बहाना कर चोरी छुपे शराब का इस्तेमाल करने लगे। शिव को विष धरण करने वाले साधू कहकर उठती लपटों से आदि कैलाश की उतंुग शिखरें भी धुंधलाने लगी। जो धर्म कर्म से जुदा मोक्ष का रास्ता था वह ऐशगाह में तब्दील हो गया। आखिर त्रिनेत्रा ने विवश होकर अपनी तीसरी आंख खोल ही दी जिसका नतीजा सबने भुगता। भगवान भोले नाथ सिर्फ एक पत्थर नहीं वह तो साक्षात शिव हैं यह हमे समझना होगा हमारी सरकार को समझना होगा। ताकी ...        

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