शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

उत्तराखंड सूचना विभाग के संरक्षण में फल-फूल रही दलाल-फर्जी पत्रकारों की फौज


उत्तराखंड के सत्ता-सिस्टम में दलालों की एक बड़ी जमात है, जो आए दिन अपनी करतूतों-कारनामों को लेकर चर्चाओं के केन्द्र में रहती है। पत्रकारिता की आड़ लेकर काॅर्ल गल्र्स सप्लाई से लेकर सत्ता की दलाली करने वालों की भी इस राज्य में अच्छी-खासी तादात है। पत्रकारों और पत्रकारिता का जिस हदतक पतन इस नवोदित राज्य में हुआ है, वह बेहद ही शर्मनाक है। हाल में मीडिया की सुर्खियां बने सेक्स स्कैंडल में भी ऐसे दलाल पत्रकारों की भूमिका सामने आई है। बकायदा एक न्यूज चैनल से जुडे़ दो ऐसे कथित पत्रकार पुलिस के शिकंजे में भी आ चुके हैं। इस सेक्स स्कैंडल में कई और ऐसे चेहरों के शामिल होने की भी चर्चाएं हैं, जिन पर पुलिस भी अभी तक हाथ नहीं डाल सकी है। उत्तराखंड की पत्रकारिता में लड़कियों को पत्रकारिता का ग्लैमर दिखाकर पत्रकार बनाने का झांसा देकर उन्हें अपने फायदे के लिए धंधेबाज किसी भी नीचता की हदतक गिर-गिरा सकते हैं। पिछले कई सालों से पत्रकारिता का चोला ओढ़कर इस किस्म के दलालों का एक बड़ा नेटवर्क सक्रिय है। इन धंधेबाजों के फलने-फूलने की एक सबसे बड़ी वजह इन्हें सरकारी संरक्षण मिलना है। उत्तराखंड में ऐसे दलालों को पालने-पोसने में सबसे बड़ी भूमिका सूचना विभाग की है। सूचना निदेशालय में बैठे अफसरों की आंखों पर ऐसा पर्दा पड़ा है कि उन्हें यहां दलाल ही ज्यादा भाते हैं। ऐसे धंधेबाजों को पालने-पोसने में सूचना विभाग की भूमिका को सही-सही खंगालना हो तो सूचना के टैगधारियों पर नजर दौडा़ई जा सकती है, इसमें कई ऐसे चेहरे मिल जाएंगे जो पत्रकारिता जगत में ही छंटे हुए दलाल के तौर पर कुख्यात हैं, जिनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक का कोई सरोकार नहीं है और दलाली ही उनका परम सत्य है।




क्या बहुगुणा के घोटालों की जांच कराने का साहस जुटाएंगे सीएम इन वेटिंग हरीश रावत ?

दीपक आजाद

सीएम विजय बहुगुणा और घपले-घोटालों के लिए जमीन तैयार करने को लेकर कुख्यात उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा एक बार फिर अपनी कारगुजारियों को लेकर चर्चा में हैं। इसकी वजह हाल ही में देहरादून के पर्वतीय क्षेत्र त्यूनी और अल्मोड़ा की सोमेश्वर घाटी में सीमेंट कारखाना लगाने को लेकर कंपनियों के साथ किए गए एमओयू है। सामेश्वर जैसी खूबसूरत घाटी में पर्यावरण के लिए खतरनाक माने जाने वाले सीमेंट कारखाना लगाने को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसको लेकर विरोध के स्वर उठ रहे हैं। लेकिन बहुगुणा पर इसका कोई कसर होता नहीं दिख रहा है। सीमेंट कारखाने से पर्यावरण को होने वाले प्रभावों का अघ्ययन किए बगैर इस तरह के उद्योग लगाना अपने में सवाल खड़ा करता है। सीएम विजय बहुगुणा और उनके पुत्र साकेत बहुगुणा के साथ सांठगांठ कर एक के बाद एक घोटालों को अंजाम दे रहे शर्मा पूरी बेशर्मी पर उतर आये हैं। शर्मा इससे पहले छरबा में कोकाकोला को भी तमाम विरोध के बावजूद फैक्टी स्थापित करने को ग्राम समाज की जमीन दिलवा चुका है। सिडकुल की जमीनों को कौड़ियों के भाव जिस तरह से एक के बाद एक बिल्डर्स को सौंपा जा रहा है, वह तो और भी आश्चर्यजनक है। पहले सीतारगंज, फिर हरिद्वार और अब देहरादून में बेशकीमती जमीन रियल स्टेट माफिया के हाथों लुटाई जा चुकी है। भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा में सिडकुल जमीन घोटालों को लेकर रस्मअदायिगी के तौर पर हंगामा तो किया, लेकिन उसके बाद उसने भी अपना मुंह बंद कर लिया। जिस तरह बहुगुणा और शर्मा की जोड़ी एक के बाद एक घोटाले को अंजाम दे रही है, उसकी अगर ईमानदारी से जांच हुई तो इन दोनों को जेल की हवा खाने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन अहम सवाल यह है कि आखिर जांच कौन कराएगा, वह भाजपा जो विरोध भी केवल रस्मअदायगी के लिए ही करती है, या फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए पिछले कई सालों से विलाम कर रहे हरीश रावत ? यह सवाल इसलिए भी अहम है कि जब इन दिनों सियासी गलियारों में बहुगुणा को बदले जाने की हवा तेज हो रही है और हरीश रावत खुदको अगला सीएम बनता देखना चाहते हैं तो यह सवाल भी उतना ही वाजिब है कि अगर वे सीएम बनते हैं तो क्या वे बहुगुणा के घोटालों की जांच कराने का साहस दिखा पाएंगे? जाहिर है इस सवाल का जवाब ना ही हो सकता है, तो फिर यह मुखौटे बदलने जैसा ही होगा। इससे हरीश रावत की इच्छापूर्ति तो हो सकती है, लेकिन उत्तराखंड का कोई भला नहीं हो सकता।















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