जनता की आॅंखों में धूल आखिर कब तक?
विकास योजनाओं पर विकासपुत्र ही लगा रहे हैं सेंघ। आजाद भारत के इतिहास के पन्नों को खोले तो देश के विकास के लिए अभी तक की सरकारों ने कई योजनाएं बनायी और इन योजनाओं पर अभी तक करोड़ों-करोड़ खर्च हो गए, लेकिन जनता आज भी विकास के लिए छटपटाहट है। प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों? उल्लेखनीय है कि देश के विकास के लिए हर साल अरबों खरबों रूपये विकास के नाम पर हर क्षेत्र में लगाये जा रहे हैं। इसके बाद भी आम जनता को विकास नाम की कोई चीज नहीं दिखाई देती। यह हकीकत है या नहीं इस पर चर्चा करना उचित है कि नहीं फिलहाल यह चर्चा का विषय नहीं है। विषय है कि आखिर इतना पैसा खर्च होने के बाद भी विकास की गंगा क्यों नहीं बहती। देश में सांसद, विधायक व पंचायती जनप्रतिनिधी के साथ-साथ इस विकास की गंगा को जमीन पर उतारने वाले नौकरशाह ही चंद सालों में खगपति से लखपति व अरबपति बन जाते हैं यह यक्ष प्रश्न आज शायद सभी के मन में कौंध रहा होगा और आने वाली सभी सरकारों से जनता सीधे संवाद कर इस बारे में पूछ सकता है, लेकिन कोई नहीं पूछता आखिर क्यों? देश के इतिहास के पन्नों को पलटे तो यह साफ है कि जनता की गलती और लापरवाही के कारण ही हमारे भाग्यविधाता अरबपति बन जाते हैं और जनता कंगाल। आज देश का अरबों खरबों रूपया विकास के नाम पर खर्च न हो कर जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों व ठेकेदारों की तिजोरियांें में दम तोड रहा है। इसका खुलाशा खुद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी किया था परन्तु अब उन्हीं के पार्टी की उत्तराखण्ड प्रदेश की सरकार के कबीना मंत्री हरक सिंह रावत ने दो टूक आरोप लगा दिया है कि विधायक निधि में 30 प्रतिशत कमीशनखोरी हो रही है। यह आरोप प्रदेश के कबीना मंत्री हरक सिंह रावत ने तब लगाया जब प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की छवि सुधारने व फिजूलखर्ची में अंकुश लगाने के लिए मंत्रियों व नौकरशाहांे के विदेश दौरे पर रोक लगा दी। जनता हैरान है कि मुख्यमंत्री व कबीना मंत्री दोनों यह स्वीकार कर रहे हैं कि विधायक निधि व सांसद निधि में खुला भ्रष्टाचार हो रहा है। परन्तु ये दोनों विपक्षी नेता की तरह केवल आरोप लगा कर अपनी छवि पाक साफ करने का नाटक कर रहे है। जनता का इन नेताओं से एक ही सवाल है कि जब विधायक निधि व सांसद निधि में कमीशनखोरी हो रही है तो मुख्यमंत्री व सरकार के मंत्री है तो वे क्यों इस कमीशनखोरी पर अंकुश नहीं लगा रहे है। उनका दायित्व आरोप लगाने का नहीं अपितु समस्या का समाधान करने का। ऐसा नहीं कि यह समस्या केवल ये दोनों नेता जानते हैं और अन्य नेता नहीं जानते। यह केवल उत्तराखण्ड प्रदेश की बात नहीं अपितु पूरे देश की यही समस्या है। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक सब इस कमीशनखोरी को जानते है। इस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बनायी गयी सरकार की हर संस्था का अदना सा कर्मचारी से लेकर प्रमुख तक इस मामले को जानता है। परन्तु जानने के बाबजूद इन सबकी इस समस्या पर अंकुश लगाने का कोई इरादा नहीं है। भ्रष्टाचारी रूपी कमीशनखोरी के गटर में पूरे देश को डूबोने के लिए इन सबकी सहमति ही नहीं सरक्षण भी है। अब क्या मोदी सरकार के पाले में गेंद है। वह इस समस्या के निदान के लिए कुछ ठोस पहल करेगी या हरीश रावत व हरक सिंह रावत की तरह घडियाली आंसू बहा कर जनता के आंखों में धूल झोंकेगे? उ
विकास योजनाओं पर विकासपुत्र ही लगा रहे हैं सेंघ। आजाद भारत के इतिहास के पन्नों को खोले तो देश के विकास के लिए अभी तक की सरकारों ने कई योजनाएं बनायी और इन योजनाओं पर अभी तक करोड़ों-करोड़ खर्च हो गए, लेकिन जनता आज भी विकास के लिए छटपटाहट है। प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसा क्यों? उल्लेखनीय है कि देश के विकास के लिए हर साल अरबों खरबों रूपये विकास के नाम पर हर क्षेत्र में लगाये जा रहे हैं। इसके बाद भी आम जनता को विकास नाम की कोई चीज नहीं दिखाई देती। यह हकीकत है या नहीं इस पर चर्चा करना उचित है कि नहीं फिलहाल यह चर्चा का विषय नहीं है। विषय है कि आखिर इतना पैसा खर्च होने के बाद भी विकास की गंगा क्यों नहीं बहती। देश में सांसद, विधायक व पंचायती जनप्रतिनिधी के साथ-साथ इस विकास की गंगा को जमीन पर उतारने वाले नौकरशाह ही चंद सालों में खगपति से लखपति व अरबपति बन जाते हैं यह यक्ष प्रश्न आज शायद सभी के मन में कौंध रहा होगा और आने वाली सभी सरकारों से जनता सीधे संवाद कर इस बारे में पूछ सकता है, लेकिन कोई नहीं पूछता आखिर क्यों? देश के इतिहास के पन्नों को पलटे तो यह साफ है कि जनता की गलती और लापरवाही के कारण ही हमारे भाग्यविधाता अरबपति बन जाते हैं और जनता कंगाल। आज देश का अरबों खरबों रूपया विकास के नाम पर खर्च न हो कर जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों व ठेकेदारों की तिजोरियांें में दम तोड रहा है। इसका खुलाशा खुद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी किया था परन्तु अब उन्हीं के पार्टी की उत्तराखण्ड प्रदेश की सरकार के कबीना मंत्री हरक सिंह रावत ने दो टूक आरोप लगा दिया है कि विधायक निधि में 30 प्रतिशत कमीशनखोरी हो रही है। यह आरोप प्रदेश के कबीना मंत्री हरक सिंह रावत ने तब लगाया जब प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की छवि सुधारने व फिजूलखर्ची में अंकुश लगाने के लिए मंत्रियों व नौकरशाहांे के विदेश दौरे पर रोक लगा दी। जनता हैरान है कि मुख्यमंत्री व कबीना मंत्री दोनों यह स्वीकार कर रहे हैं कि विधायक निधि व सांसद निधि में खुला भ्रष्टाचार हो रहा है। परन्तु ये दोनों विपक्षी नेता की तरह केवल आरोप लगा कर अपनी छवि पाक साफ करने का नाटक कर रहे है। जनता का इन नेताओं से एक ही सवाल है कि जब विधायक निधि व सांसद निधि में कमीशनखोरी हो रही है तो मुख्यमंत्री व सरकार के मंत्री है तो वे क्यों इस कमीशनखोरी पर अंकुश नहीं लगा रहे है। उनका दायित्व आरोप लगाने का नहीं अपितु समस्या का समाधान करने का। ऐसा नहीं कि यह समस्या केवल ये दोनों नेता जानते हैं और अन्य नेता नहीं जानते। यह केवल उत्तराखण्ड प्रदेश की बात नहीं अपितु पूरे देश की यही समस्या है। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक सब इस कमीशनखोरी को जानते है। इस भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बनायी गयी सरकार की हर संस्था का अदना सा कर्मचारी से लेकर प्रमुख तक इस मामले को जानता है। परन्तु जानने के बाबजूद इन सबकी इस समस्या पर अंकुश लगाने का कोई इरादा नहीं है। भ्रष्टाचारी रूपी कमीशनखोरी के गटर में पूरे देश को डूबोने के लिए इन सबकी सहमति ही नहीं सरक्षण भी है। अब क्या मोदी सरकार के पाले में गेंद है। वह इस समस्या के निदान के लिए कुछ ठोस पहल करेगी या हरीश रावत व हरक सिंह रावत की तरह घडियाली आंसू बहा कर जनता के आंखों में धूल झोंकेगे? उ
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