हिमालयी सुनामीः सरकारी तंत्र की विफलता बनीं ‘रसूखदारों के लिए वरदान’
केदारघाटी बनीं ‘दर्द’ की घाटी
केदारनाथ आपदा के जख्मों पर मुआवजे की लूट
मुआवजा राशि के वितरण में करोड़ों का फर्जीवाड़ा
प्रभावितों की दुकानों के मूल्यांकन में हुआ बड़ा खेल
जून 2013 में आई हिमालयी सुनामी के कारण जो त्रासदी हुई, उसकी याद एक दर्द की तरह सालती रहेगी सालों साल! उन सबको जिन्होंने अपनों को खोया, उन औरतों को जिनके पति व बच्चे वापस नहीं आये, उनको जो किस्मत से खुद तो बच गये लेकिन पानी के उफान में जिन्होंने मौत का मंजर देखा। देखा है- सैकड़ों इंसानों को बहते, टूटते-फूटते मिट्टी पत्थरों के साथ, उनको जो भूख प्यास से तड़पते हुए अंतिम श्वांस तक जिंदगी के लिए लड़ते रहे मौत से। याद रहेगा उनको भी जिनकी जिंदगी भर की कमाई, घर, दुकान, गाड़ी, मवेशी, साजो-सामान कुछ ही घंटों में मिट्टी में मिल गया। रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ मंदिर सहित ऊखीमठ व अगस्त्यमुनि क्षेत्र के गांवों व कस्बों में जो तबाही हुई, वह अकल्पनीय है और उसकी भरपाई करना असंभव है। घर-बार बर्बाद हो गया, आंखों में आँसू है और सामने अंधेरा। रोज कोई नेता आता है, सपने दिखाने के लिए। शायद याद रहे उन भ्रष्टाचारी व मक्कार शासक वर्ग व उनके नुमाइंदों, मठाधीशों, धन्नासेठों को भी जिन्होंने धर्म व पर्यटन के लूटतंत्र को बढ़ावा दिया। बांधों के निर्माण व मुनाफा कमाने के लिए पहाड़, जंगल, नदियों के साथ खिलवाड़ किया। याद तो उनको भी रहेगा जिन दलालों, नेताओं, अधिकारियों व कर्मचारियों ने आपदा राहत सामग्री को जरूरतमंदों तक पहुंचाने के बजाय उसका दुरुपयोग किया, रास्तों में फेंक दिया, इस आपदा के लिए इकट्ठी की गई करोड़ों की धनराशि के बंदरबांट में इंसानियत व मानवता को दांव पर लगाकर अपने हित साधते रहे। आपदा के जख्म, मुआवजे की लूट, केदारघाटी में मुआवजा राशि के वितरण में करोड़ों का फर्जीवाड़ा, दुकानों में क्षतिग्रस्त हुई सामग्री के मूल्यांकन में हुआ बड़ा खेल। इसी पर केंद्रित यह उदय दिनमान टीम का यह खास आलेख। संपादक
जून 2013 में आई हिमालयी सुनामी के बाद समय बीतता जा रहा है, जिंदगी ने किसी भी तरह सही गति पकड़ ली है। वैसे भी वक्त हर मरहम की दवा है। जीवन रुकता नहीं, चलता रहता है। हिमालयी सुनामी के कारण जो त्रासदी हुई, उसकी याद एक दर्द की तरह सालती रहेगी सालों साल! फिलवक्त यह कहा जाए कि केदारघाटी दर्द की घाटी बनी हुई है तो इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि आपदा के समय राहत सामग्री और उसके बाद आपदा राहत के नाम पर जो घोटाला हुआ वह किसी से छुपा नहीं पर कोई बोल नहीं रहा है। क्योंकि आपदा का दर्द आज भी सभी के दिलों में है। वैसे सरकार की लुटेरी, मुनाफा कमाने वाली, भ्रष्ट जनविरोधी नीतियों व जंगलों, पहाड़ों व नदियों के साथ की जा रही ज्यादती के भयंकर नतीजे होने की संभावना तो पिछले कुछ वर्षों से की जा रही थी। लेकिन घोटालों व भ्रष्टाचार में डूबी सरकारें इस तरफ ध्यान देने के बजाय दलालों, माफिया, पूंजीपतियों की सेवा में मशगूल है। यही कारण है कि घाटी का पूरा इनफ्रास्ट्रक्चर ध्वस्त हो गया। ऐसे हजारों परिवार जिनकी आजीविका केदारनाथ यात्रा पर निर्भर थी, वे आज भी दो जून की रोटी के लिये मोहजात हैं। आपदा के इन जख्मों को भरने के लिये देश और दुनिया के लोगों ने दिल खोलकर राशि दान दी। केन्द्र सरकार से भी करोड़ों की इमदाद राज्य सरकार को मिली। लेकिन, आज भी सैकड़ों पर ऐसे लोग हैं जिन्हें अब तक मुआवजा राशि तक नहीं मिल पाई है। दूसरी ओर, यही मुआवजा राशि गिने-चुने रसूखदार लोगों के लिये वरदान साबित हो रही है। जिन लोगों को मुआवजा राशि का सही आंकलन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वही फर्जीवाड़ा करके इसे हड़पने में लगे हुये हैं। खुलेआम मुआवजा बजट की बंदरबांट की जा रही है। या यूं कहें पैसों की लूट मची हुई है। इस प्रकरण में स्थानीय विधायक और जिला प्रशासन की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है।
दरअसल, जलप्रलय के बाद केदारघाटी में जब रेस्क्यू आपरेशन पूरा हो गया तो राज्य सरकार ने आपदा पीड़ितों को मुआवजा राशि बांटने की प्रक्रिया शुरू की। व्यक्ति की मौत, व्यक्ति के लापता होने, मुकान के क्षतिग्रस्त होने, व्यावसायिक भवन के ध्वस्त होने आदि अधिकांश मामलों में राज्य सरकार ने मानक निर्धारित कर मुआवजा राशि बांटने के निर्देश दिये। लेकिन, सबसे बड़ी समस्या यह सामने आयी कि आपदा में ध्वस्त हुये व्यावसायिक भवनों, दुकान आदि के भीतर नष्ट हुये सामान का आंकलन व मूल्यांकन कैसे किया जाये। इसकी जिम्मेदारी व्यापारियों को ही सौंप दी गई। तिलवाड़ा से केदारनाथ तक के जितने भी स्थानीय व्यापारी संगठन थे, उन्होंने सामूहिक रूप से ”संयुक्त व्यापार संघ केदारघाटी” नाम का एक संगठन बनाया, जिसे प्रत्येक व्यापारिक प्रतिष्ठान अथवा दुकान में नष्ट हुई सामग्री के आंकलन के साथ ही मूल्यांकन की जिम्मेदारी सौंप दी गई। हुआ यह कि ‘संयुक्त व्यापार संघ’ के पदाधिकारी ही मुआवजा राशि की बंदरबांट में जुट गये। छोटे व मझले दरजे के व्यापारियों ने अपनी दुकान में हुये नुकसान के लिये शपथ पत्र समेत अनिवार्य दस्तावेज प्रस्तुत किये लेकिन उनमें से कई को मुआवजा देना तो दूर आपदा पीड़ितों की सूची में तक उनका नाम शामिल नहीं किया गया। ऐसे व्यापारी दर-दर भटकते रहे लेकिन कहीं उनकी सुनवाई नहीं हुई। विधायक व जिला प्रशासन से की गई गुहार का भी कोई असर नहीं हुआ है। इससे इतर, आइये समझते हैं कि ‘संयुक्त व्यापार संघ’ के पदाधिकारियों ने कैसे आपस में अथवा अपने चहेतों के बीच मुआवजा राशि की बंदरबांट की।
पिछले साल केदारघाटी में आई भीषण आपदा ने यहां के वाशिंदों को ऐसा दर्द दिया कि जो उम्रभर उन्हें सालता रहेगा। यहां के लोगों के अपनी मेहनत से जीवन जीने के लिए तैयार किया गया मूलभूत ढंाचा एक ही झटके में ध्वस्त हो गया था। हजारों जिंदगियों को दो जून की रोटी मयस्सर करवाने वाली केदारनाथ धाम की यात्रा के ठहरने से लोग आज भी सकते में हैं। इस आपदा के बाद सरकार और गैर सरकारी संगठनों ने इनके जीवन को ढर्रे पर लाने के लिए दिल खोलकर अपनी थैलियां खोली। हर बार की तरह भ्रष्ट और अमानवीय सिस्टम ने इन प्रयासों को पहले ही पग पर ध्वस्त कर दिया।
सरकारी तंत्र की विफलता ने पीड़ितों की राहत को रसूखदारों के लिए वरदान बना दिया। अगर उस वक्त क्षेत्र के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने जरा भी तत्परता और मानवीय दृष्टिकोण दिखाया होता तो आज जिस तरह मुआवजा के वितरण में धांधली के गंभीर आरोप लग रहे हैं, और राहत के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वालों के नित नये नाम सामने आने पर साबित भी हो रहे हैं, उससे बचा जा सकता था।
इसी प्रकरण में एक बात यह भी उठ रही है कि आपदा राहत कार्यों को कराने वाले कई ठेकेदारों को कार्य पूर्ण करने के बाद भी भुगतान नहीं मिल पाया है। सूत्र बताते हैं कि इन कार्यों में जमकर कमीशनबाजी का खेल खेला गया है।
केदारघाटी बनीं ‘दर्द’ की घाटी
केदारनाथ आपदा के जख्मों पर मुआवजे की लूट
मुआवजा राशि के वितरण में करोड़ों का फर्जीवाड़ा
प्रभावितों की दुकानों के मूल्यांकन में हुआ बड़ा खेल
जून 2013 में आई हिमालयी सुनामी के कारण जो त्रासदी हुई, उसकी याद एक दर्द की तरह सालती रहेगी सालों साल! उन सबको जिन्होंने अपनों को खोया, उन औरतों को जिनके पति व बच्चे वापस नहीं आये, उनको जो किस्मत से खुद तो बच गये लेकिन पानी के उफान में जिन्होंने मौत का मंजर देखा। देखा है- सैकड़ों इंसानों को बहते, टूटते-फूटते मिट्टी पत्थरों के साथ, उनको जो भूख प्यास से तड़पते हुए अंतिम श्वांस तक जिंदगी के लिए लड़ते रहे मौत से। याद रहेगा उनको भी जिनकी जिंदगी भर की कमाई, घर, दुकान, गाड़ी, मवेशी, साजो-सामान कुछ ही घंटों में मिट्टी में मिल गया। रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ मंदिर सहित ऊखीमठ व अगस्त्यमुनि क्षेत्र के गांवों व कस्बों में जो तबाही हुई, वह अकल्पनीय है और उसकी भरपाई करना असंभव है। घर-बार बर्बाद हो गया, आंखों में आँसू है और सामने अंधेरा। रोज कोई नेता आता है, सपने दिखाने के लिए। शायद याद रहे उन भ्रष्टाचारी व मक्कार शासक वर्ग व उनके नुमाइंदों, मठाधीशों, धन्नासेठों को भी जिन्होंने धर्म व पर्यटन के लूटतंत्र को बढ़ावा दिया। बांधों के निर्माण व मुनाफा कमाने के लिए पहाड़, जंगल, नदियों के साथ खिलवाड़ किया। याद तो उनको भी रहेगा जिन दलालों, नेताओं, अधिकारियों व कर्मचारियों ने आपदा राहत सामग्री को जरूरतमंदों तक पहुंचाने के बजाय उसका दुरुपयोग किया, रास्तों में फेंक दिया, इस आपदा के लिए इकट्ठी की गई करोड़ों की धनराशि के बंदरबांट में इंसानियत व मानवता को दांव पर लगाकर अपने हित साधते रहे। आपदा के जख्म, मुआवजे की लूट, केदारघाटी में मुआवजा राशि के वितरण में करोड़ों का फर्जीवाड़ा, दुकानों में क्षतिग्रस्त हुई सामग्री के मूल्यांकन में हुआ बड़ा खेल। इसी पर केंद्रित यह उदय दिनमान टीम का यह खास आलेख। संपादक
जून 2013 में आई हिमालयी सुनामी के बाद समय बीतता जा रहा है, जिंदगी ने किसी भी तरह सही गति पकड़ ली है। वैसे भी वक्त हर मरहम की दवा है। जीवन रुकता नहीं, चलता रहता है। हिमालयी सुनामी के कारण जो त्रासदी हुई, उसकी याद एक दर्द की तरह सालती रहेगी सालों साल! फिलवक्त यह कहा जाए कि केदारघाटी दर्द की घाटी बनी हुई है तो इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि आपदा के समय राहत सामग्री और उसके बाद आपदा राहत के नाम पर जो घोटाला हुआ वह किसी से छुपा नहीं पर कोई बोल नहीं रहा है। क्योंकि आपदा का दर्द आज भी सभी के दिलों में है। वैसे सरकार की लुटेरी, मुनाफा कमाने वाली, भ्रष्ट जनविरोधी नीतियों व जंगलों, पहाड़ों व नदियों के साथ की जा रही ज्यादती के भयंकर नतीजे होने की संभावना तो पिछले कुछ वर्षों से की जा रही थी। लेकिन घोटालों व भ्रष्टाचार में डूबी सरकारें इस तरफ ध्यान देने के बजाय दलालों, माफिया, पूंजीपतियों की सेवा में मशगूल है। यही कारण है कि घाटी का पूरा इनफ्रास्ट्रक्चर ध्वस्त हो गया। ऐसे हजारों परिवार जिनकी आजीविका केदारनाथ यात्रा पर निर्भर थी, वे आज भी दो जून की रोटी के लिये मोहजात हैं। आपदा के इन जख्मों को भरने के लिये देश और दुनिया के लोगों ने दिल खोलकर राशि दान दी। केन्द्र सरकार से भी करोड़ों की इमदाद राज्य सरकार को मिली। लेकिन, आज भी सैकड़ों पर ऐसे लोग हैं जिन्हें अब तक मुआवजा राशि तक नहीं मिल पाई है। दूसरी ओर, यही मुआवजा राशि गिने-चुने रसूखदार लोगों के लिये वरदान साबित हो रही है। जिन लोगों को मुआवजा राशि का सही आंकलन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है, वही फर्जीवाड़ा करके इसे हड़पने में लगे हुये हैं। खुलेआम मुआवजा बजट की बंदरबांट की जा रही है। या यूं कहें पैसों की लूट मची हुई है। इस प्रकरण में स्थानीय विधायक और जिला प्रशासन की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है।
दरअसल, जलप्रलय के बाद केदारघाटी में जब रेस्क्यू आपरेशन पूरा हो गया तो राज्य सरकार ने आपदा पीड़ितों को मुआवजा राशि बांटने की प्रक्रिया शुरू की। व्यक्ति की मौत, व्यक्ति के लापता होने, मुकान के क्षतिग्रस्त होने, व्यावसायिक भवन के ध्वस्त होने आदि अधिकांश मामलों में राज्य सरकार ने मानक निर्धारित कर मुआवजा राशि बांटने के निर्देश दिये। लेकिन, सबसे बड़ी समस्या यह सामने आयी कि आपदा में ध्वस्त हुये व्यावसायिक भवनों, दुकान आदि के भीतर नष्ट हुये सामान का आंकलन व मूल्यांकन कैसे किया जाये। इसकी जिम्मेदारी व्यापारियों को ही सौंप दी गई। तिलवाड़ा से केदारनाथ तक के जितने भी स्थानीय व्यापारी संगठन थे, उन्होंने सामूहिक रूप से ”संयुक्त व्यापार संघ केदारघाटी” नाम का एक संगठन बनाया, जिसे प्रत्येक व्यापारिक प्रतिष्ठान अथवा दुकान में नष्ट हुई सामग्री के आंकलन के साथ ही मूल्यांकन की जिम्मेदारी सौंप दी गई। हुआ यह कि ‘संयुक्त व्यापार संघ’ के पदाधिकारी ही मुआवजा राशि की बंदरबांट में जुट गये। छोटे व मझले दरजे के व्यापारियों ने अपनी दुकान में हुये नुकसान के लिये शपथ पत्र समेत अनिवार्य दस्तावेज प्रस्तुत किये लेकिन उनमें से कई को मुआवजा देना तो दूर आपदा पीड़ितों की सूची में तक उनका नाम शामिल नहीं किया गया। ऐसे व्यापारी दर-दर भटकते रहे लेकिन कहीं उनकी सुनवाई नहीं हुई। विधायक व जिला प्रशासन से की गई गुहार का भी कोई असर नहीं हुआ है। इससे इतर, आइये समझते हैं कि ‘संयुक्त व्यापार संघ’ के पदाधिकारियों ने कैसे आपस में अथवा अपने चहेतों के बीच मुआवजा राशि की बंदरबांट की।
पिछले साल केदारघाटी में आई भीषण आपदा ने यहां के वाशिंदों को ऐसा दर्द दिया कि जो उम्रभर उन्हें सालता रहेगा। यहां के लोगों के अपनी मेहनत से जीवन जीने के लिए तैयार किया गया मूलभूत ढंाचा एक ही झटके में ध्वस्त हो गया था। हजारों जिंदगियों को दो जून की रोटी मयस्सर करवाने वाली केदारनाथ धाम की यात्रा के ठहरने से लोग आज भी सकते में हैं। इस आपदा के बाद सरकार और गैर सरकारी संगठनों ने इनके जीवन को ढर्रे पर लाने के लिए दिल खोलकर अपनी थैलियां खोली। हर बार की तरह भ्रष्ट और अमानवीय सिस्टम ने इन प्रयासों को पहले ही पग पर ध्वस्त कर दिया।
सरकारी तंत्र की विफलता ने पीड़ितों की राहत को रसूखदारों के लिए वरदान बना दिया। अगर उस वक्त क्षेत्र के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने जरा भी तत्परता और मानवीय दृष्टिकोण दिखाया होता तो आज जिस तरह मुआवजा के वितरण में धांधली के गंभीर आरोप लग रहे हैं, और राहत के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वालों के नित नये नाम सामने आने पर साबित भी हो रहे हैं, उससे बचा जा सकता था।
इसी प्रकरण में एक बात यह भी उठ रही है कि आपदा राहत कार्यों को कराने वाले कई ठेकेदारों को कार्य पूर्ण करने के बाद भी भुगतान नहीं मिल पाया है। सूत्र बताते हैं कि इन कार्यों में जमकर कमीशनबाजी का खेल खेला गया है।
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