क्वे सुण दु म्येरि खैरि...
उत्तराखंड राज्य बने इतना लंबा समय हो गया, लेकिन राज्य की दशा आज भी नहीं बदली। यही कारण है कि राज्य के लेखकों, पत्रकारों, कवियों और गीतकारों के लिए राज्य पर लिखने गाने के लिए हर बार नया अंदाज होता है। राज्य के उभरते हुए लेखक अश्विनी लक्की भी इन्हीं में शामिल हैं। अपनी लेखनी के लिए इन्होंने गढ़वाली को चुना और गढ़वाली में वह अपने मन की पीड़ा और राज्य के वर्तमान हालात को इसी पर केंद्रित कर लिखते हैं। राज्य की वर्तमान हालात पर केंद्रित अश्विनी गौड़ की गढ़वाली में यह टिप्पणी। संपादकसन द्वी हजार मा अपडा आस्तित्व की लडै लणी आखिरकार मैंते अपणि पछाण मिलिग्ये छे, अब लगणू छो कि क्वे म्येरी आॅख्यू का आँसु बि पोन्दी द्यूलू। किले कि अब म्येरा अपडे़ यखा नीति निर्धारक बण्या छा। म्येरा हक हकूक, बौण, पाणी, माटी का नौ पर, अर बोली भाषा का नौ पर कै ल्वोखुन धै लगै छै, अर सैरु जू परांण लगै अपडा खून की तक छ्रवोलि लगै छे, म्येरा बाना, म्येरा जन्म मा तौं शहीदूं कू योगदान तें मे कबि बिसिरी नी सकदु। आज मेंतें पन्द्रू साल लगण वोलू च पर जु स्वीणा मैन बालापन मा दयेख्या, जु गांण्यू का कुट्यारा गंठ्येन सबि बांध्या गे रै गिन। शहीदों का नौं पर खूब हो हल्ला होणू, जु कबि कखि नि छा सी स्याणा बण्या छिन, कितला छा जु यखा सि सर्प बण्या छिन। विकाश का नौं पर यख छोटी बडी के परियोजना बण्नी छिन, म्येरी जिकुडि दिन रात बिकाश का नौ पर क्वोर्योण लग्या छिन, पर मैं बि आखिर यी पिरथ्वी कु ही तत्व छू, म्येरी बि क्वे फिक्स आयतन च, धारिता च, नियम छिन, कानून छिन, पारिस्थ्तिक मजबूरी छिन, जौंका बारा मा यखे सरकार शासन बिल्कुल बि नि स्वोचणी च, बस भरदी जाणा छन मैमा बिकाश की ईट बजरी सीमेंट अर सरिया का जंगल? अप़ड़ा स्वारथ का भारा म्येरी पीठी मा घरदी जांणा छिन। मै बि बिकाश कु पक्षधर छू, अपडूं कु बिकाश चान्दू मुल्क कू विकाश चान्दू, पर कन विकाश चान्दू? ये बारा क्वे नि स्वोचणू च, म्येरी पिडा खैरी यू सबु से ऐच, यख आज यु स्वार्थी मनखी अपड़ा ही स्वार्थ का बारा मा रम्यू च, कखि म्येरा हैरि मखमलि लत्ती कपड़यू कि हैर्यालि उतारी म्येरु बदन नांगू कनू च त कखि गाड गदन्यू कु जु गुलबंद म्येरु पैर्यू, तैकि लड्यू तैं तोडणू च। म्येरु मन अर तन का छाल पवित्र मठ मन्दिरु का बिचारुंमा छकण्या दारु का ठैका ख्वोनू च। म्येरा सीदा-सादा, मुल्क्या मैत्यू सणि यख वोट अर चुनौं का नौ पर लूछणू च, यूंकि सच्चैं अर आस तैं पैसौं मा मुल्यौंणू च? बण जंगल जमीन तै सैर का नौं पर खाली करौणू च।रैणा सैंणा पुंगणा पट्टयू भंगुलू जामणू च, गौं तिबार छज्जा गुठ्यार मनख्यं तें सांेचणी च, जागणी च। स्योंन्दा खांदा पुगया पट्टाळा बाॅजा अर यख मनखि सौ पचास रुपया मनरेगा पर मनू च, मैना खान बी पी एले किड्या राशन तै जागणू च?यु चैदह सालू मा यखै राजनीति का बि बन बन्या रंग द्येखिन, एक हक्को सुलार खेंचणों अर नांगू कनौं खेल यख खूब फौबि, फली, परम्परा बणि, अर सुलार थामण का चक्करु मा अक्सर आचार संहिता का रिकार्ड बणिन। बीजेपी अर का्रगेस पहाड का नौ पर केंद्र बटि खूब दूघ ल्येन अर द्वियुन खूब मलै चाटी, बचि खुचि यूकेडी अर होरुतें बि बंट्ये गै। राजधानी का मुद्दा पर बि मैं दगडी खूब लुका छुपि खिल्ये गे, म्येरु शरील जू परांण डांड़ी कांठ्यू मा ही बसदू, जु अजु तलक राजधानी गेरसैंण का बाना फफडाणू च। आज पन्द्रह साल मा बि म्येरी बुळाण, संस्कुति, रौण-खाण, लाण का ढंग तैं ये देश का संविधान मा मान्यता नि मिलि। खेर देश त छ्वोडा अपड़े घौर मुल्क मा पछाण नि मिलि। गढ़वालि कुमाऊँनि बत्यांण वोलु तैं गंवार अनपढ समझ्ये जांदू, बाॅंज बुराश कोदू झांगोरु कि बात कन वौलु तें विकाश कु विरोधी सम्झये जांदू?म्येरा विकाश तैं दिल्ली अर देरादून मा योजना बणाये जांदी पर डाडि कांठ्यू कि उकाळ पौंछिदि पौछिदि तौं तें खलों लगी जान्दू। अर जलागम स्वजल पुनर्विस्थापन, हर्यालि योजना, मनरेगा, जन कति योजनौं कि चार यि द्वी दीन मा ही ट्वडगी पौड़ि जांदिनं यख न्येतू तैं उकाळ उन्द्यार हिटण मा छाति थामण पड़दि, पितर कूड़ि याद ए जांदी। जंै जनता का नौ पर सारा भरोंसा पर, सि बोटा मांग्ण्यां बण्दा, चुनौं जीतण पर बुसपट्ट बिसरी जांदन, बस अपडि सुख सुविधांें की ही मांग कर्दा, हेलिकाप्टरु मा बिटि हाथ हलौंदा? यि हाल बालापन मा छिन म्येरा त फ्येर ज्वानी मा क्या होला । तबे त ब्वनू, क्वे सुण दु म्येरी खैरी, क्वे गण दु म्येरा दुख
क्ख होलु सु ख्न दगड्या कख् मिललू यनु गैल्या---------- ;दानकोट- बसुकेदार, अगस्तमुनि, रूद्रप्रयागद्ध
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