माथे पर कलंक8सरकार और राजनैतिक दल सत्ता की दौड में इस राज्य को ले जाने को है आतुर8अपराधियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बनता जा रहा है उत्तराखंड8सरकार और अपराधियों को सम्मान जेलों से छोडेगी तो बदमाशों का तो बढ़ेगा ही मन्नोबल 8राजनीति और नौकरशाही दे रही है राज्य में अपराधियों को संरक्षण8पुलिसवालों की पोस्टिंग में दलाली खाने के काम में जुटे हैं राजनेता और नौकरशाह8सीएम ने विवेकहीन तरीके से खजाने का मुंह खोलकर पीड़ित परिवार को किया दस लाख देने का एलान8मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक डीएम नैनीताल में भी दरंदिगी का शिकार हुई बच्ची के नाम पर पिथौरागढ़ में स्कूल का नामकरण और हल्द्वानी में स्मारक बनाने का किया एलान8क्या बच्चों को ऐसे नामकरणों या स्मारकों के निर्माण से न्याय मिल सकता है?8उत्तराखंड में पिछले कुछ सालों से महिलाों और बच्चियों के खिलाफ हिंसा ने तेजी से पसारे अपने पांव
उत्तराखंड में घोटालों व भ्रष्टाचार में डूबी अभी तक की सरकारों का ध्यान उत्तराखंड के विकास की ओर कभी नहीं गया। अभी तक की सरकारों का ध्यान सिर्फ दलालों, माफिया, पूंजीपतियों की सेवा में मशगूल रहने पर गया। यही कारण है कि उत्तराखंड में दिन-प्रतिदिन ऐसी घटनाएं घट रही है जो समाज में विकृति पैदा कर रही है। यह कहा जाए कि वर्तमान समय में उत्तराखंड में सत्ता के शिखर पर दलाली का खेल चला रहा है और हमारे राजनेता से लेकर नौकरशाह इस कार्य का बखूबी अंजाम देकर अपनी जेबों को भरने में लगे हैं राज्य के विकास की ओर कोई सोच भी नहीं रहा है तो इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। फिर इस बात की कि राज्य में ईमानदारी और जिम्मेदारी की उम्मीद किससे की जा सकती है। सत्ता के गलियारे से लेकर आम जन की जुबा पर यह बात की हमारे प्रदेश के वर्तमान सीएम बेदम है। इस बात को सुनकर कोई भी अचंभित हो सकता है। हाल ही में हल्द्वानी कांड के बाद सीएम की घोषणा के बाद उपजे विवाद और उस पर आमजन की प्रतिक्रिया पर आधारित उदय दिनमान टीम का यह विशेष आलेख। संपादकहल्द्वानी से बच्ची गायब होती है। उसकी तलाश में परिजन बदहवास भटकते हैं। पुलिस के सामने गिड़गिड़ाते हैं। मगर जब सच्चाई खुलती है तो दरिंदगी की हदें पार हो जाती हैं। साथ ही संवेदनहीन पुलिस तंत्र को भी बेनकाब करती है, जिसके मात्र 500 मीटर के दायरे में बच्ची का शव बरामद होता है। इस हादसे पर बच्चा, बूढ़ा जवान हर कोई सड़कों पर उतर आता है। संवेदनहीनता की पराकाष्ठा तो तब पार हो जाती है जब इस निर्मम हत्याकांड का मुआवजा तय कर दिया जाता है। उसके नाम पर स्मारक बनाने की मुनआदी हो जाती है। हर किसी की जुबान पर ये सवाल तैर रहा है कि आखिर विभित्स घटनाओं को सबक के तौर पर स्मृतियों में विद्यमान रखने की ये कौन सी परिपाटी है? दुर्भाग्य से सरकार मां का र्मम और पिता की पीड़ा नहीं पकड़ पा रही है। बच्ची के शोक में अचेत हो गई मां और पिता के दर्द की दवा अभी मुआवजा देने या शिलापट बना देना नहीं है। अगर होता तो उसके पिता इसे यह कहकर नहीं ठुकरा देते कि उन्हें मुआवजा नहीं अपराधियों की दरकार है।
विजय बहुगुणा के कुशासन का ढोल पीटते हुए सीएम की कुर्सी तक पहुंचे हरीश रावत जिस विवेकहीनता का परिचय दे रहे हैं वह उनके जमीनी नेता होने पर ही सवाल उठाता है। हल्द्वानी में बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में जिस तरह सड़कों पर उतरी जनता के गुस्से को शांत करने के लिए हरीश रावत ने पीड़ित परिवार की मजबूत सामाजिक-आर्थिक हालात की अनदेखी कर पीड़ित परिवार को दस लाख रूपये की सरकारी सहायता देने का एलान किया और उस पर जिस तरह की प्रतिक्रिया सामने आई, उसने इस जमीनी मुख्यमंत्री को हकीकत में जमीन सुंघा दी। राज्य में बढ़ते अपराधों और कानून व्यवस्था की बिगड़ती हालात को काबू में लाने के बजाय मुख्यमंत्री द्वारा इस तरह पीड़ित परिवार के लिए मुआवजे का ऐलान करना उस विवेकहीनता का ही विस्तार है जो कभी सीएम रहते हुए विजय बहुगुणा द्वारा आपदा पीड़ितों को भजन-कीर्तन करने की सलाह के रूप में सामने आया था। शांत फिजाओं के लिए जाने जाना वाला यह राज्य अब अपराधियों का गढ़ बनता जा रहा है। राजधानी देहरादून से लेकर राज्य के दूसरे हिस्सों में आए दिन हत्या, बलात्कार की घटनाएं आम हो गई हैं, लेकिन बिगड़ती कानून-व्यवस्था के सवाल पर जिस तरह हमारे नेता और नौकरशाही पेश आ रही है, वह सबसे गंभीर चिंता का विषय है। हल्द्वानी में बच्ची के बलात्कार और हत्या के बाद जिस तरह से नेताओं और नौकरशाहों ने अपनी विवेकहीनता का परिचय कराया, वह हैरान करने वाला है। कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने के बजाय जिस तरह सीएम हरीश रावत द्वारा पीड़ित के परिजनों को दस लाख रूपया मुआवजा देने का ऐलान किया और फिर रस्म अदायगी के तौर पर अपने औद्यौगिक सलाहकार रंजीत रावत के बेटे की शादी में शामिल होने के बाद पीड़ित के परिजनों से मिलने के लिए हल्द्वानी की ओर रूख किया, वह बताता हैं कि एक मुख्यमंत्री क तौर पर ऐसी घटनाओं के वक्त जो संवेदनशीलता की दरकार होती है, हरीश रावत में वह सिरे से नदारद है।
हल्द्वानी में एक बच्ची जो अपने माता-पिता के साथ पिथौरागढ़ से शादी समारोह में आई थी, उसका शादी समारोह स्थल से अपहरण और फिर दुराचार के बाद हत्या कर दी गई। करीब एक सप्ताह तक रिपोर्ट दर्ज होने के बाद तक पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। पिछले साल दिल्ली गैंग रेप के बाद महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुददे पर देश भर में आये उबाल से लगा था कि शायद अब इस तरह की वीभत्स घटनाएँ पर अंकुश लगेगा, लेकिन ऐसे आपराधिक वारदातें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। राज्य में जिस तरह से अपराध बढ़ रहे हैं वह नई बेचैनी पैदा कर रही है। पिछले कुछ सालों से महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ हिंसा ने तेजी से अपने पांव पसारे हैं। सरकार में बैठे नेताओं की विवेकहीनता और पुलिस के कामकाज में हस्तक्षेप इस राज्य में अपराधियों को खाद पानी मुहैया करा रहा है। हत्द्वानी हत्याकांड़ में पुलिस की कार्यशैली जिस रूप में सामने आई वह पुलिस के निकम्मेपन और सरकार की संवेदनहीनता को ही दर्शाता है। हल्द्वानी में बच्ची की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज होने के एक सप्ताह तब तक निष्क्रिय बैठी रही, जब तक कि लोग सड़कों पर नहीं उतर आये। जब एक खच्चर वाले की सूचना पर पुलिस बच्ची की लाश मिली और पूरे क्षेत्र में जगह-जगह हत्यारों की गिरफतारी की मांग को लेकर प्रदर्शन होने लगे तो पुलिस ने अप्रत्याशित तेजी दिखाते हुए अगले ही दिन एक संदिग्ध लोडर चालक समेत तीन को गिरफतार कर हत्याकांड को सुलझाने का दावा कर लिया। सवाल यह उठता है कि पुलिस ने जिस आरोपी को लुधियाना से गिरफतार किया उसे हल्द्वानी से बाहर निकलने का मौका ही क्यों दिया, वह भी तब जबकि पुलिस बच्ची की लाश मिलने से पहले ही आरोपी से एक बार पूछताछ कर चुकी थी। बच्ची के साथ नृशंसता करने वाले जितने दोषी हैं, अपराधियों को अपराध करने से रोकने में नाकाम तंत्र भी उतना ही गुनाहगार है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें