सोमवार, 19 जनवरी 2015

दो वक्त की रोटी के पड़े हैं लाले

पैरों पर खड़े नहीं हो पाते माता-पिता, बच्चे मजदूरी करने को मजबूरउपचार पर लाखों रुपए खर्च के बावजूद स्थिति नहीं हुई सामान्यदो वक्त की रोटी के पड़े हैं लाले


 जिला मुख्यालय से सटे तिलणी गांव के गजेन्द्र सिंह का परिवार दुखों के पहाड़ के तले दबा हुआ है। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन उसका परिवार अनाज के एक-एक दाने के लिए मोहताज होगा। अस्थमा की बीमारी घर कर जाने के बाद पत्नी आशा देवी के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक दुर्घटना में पत्नी की रीढ़ की हड्डी टूट गई। हालिया स्थिति यह है कि पति-पत्नी चल-फिर नहीं सकते हैं। परिवार के खातिर बच्चों ने स्कूल छोड़कर मजदूरी शुरू कर दी है।
रुद्रप्रयाग शहर से महज तीन किमी दूर तिलणी गांव में आज से कुछ वर्ष पूर्व गजेन्द्र सिंह (48) का परिवार खुशहाल था। हंसते-खेलते परिवार चल रहा था। गजेन्द्र एक छोटी सी दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। अचानक गजेन्द्र की तबीयत बिगड़ गई। डाॅक्टरों ने बताया कि उसे अस्थमा हो गया है। रुद्रप्रयाग और श्रीनगर में उपचार के बावजूद उसकी स्थिति में सुधार नहीं हो पाया। आज गजेन्द्र जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहा है। अब परिवार का पूरा भार पत्नी आशा देवी ने ऊपर आ गया। खेती-बाड़ी और दूध बेचकर वह किसी तरह परिवार को पटरी पर लाई। पति तो बीमार थे, लेकिन परिवार का गुजारा चल रहा था। लेकिन एक घटना ने इस परिवार की खुशियां पूरी तरह काफूर कर दी। पिछले वर्ष फरवरी माह में आशा देवी (44) छत से नीचे गिर गई और उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई।
इस घटना से पूरा परिवार स्तब्ध रह गया। ग्रामीणों ने चंदा कर आशा को उपचार के लिए देहरादून के इंद्रेश हास्पिटल में भर्ती कराया गया। जहां उनका लंबा उपचार चला। डाॅक्टरों ने आशा को हास्पिटल में बेड रेस्ट की सलाह दी। आर्थिक तंगी के कारण तीमारदार उन्हें घर ले आए। लेकिन घर में देखरेख और समय-समय पर जांच न होने के कारण उनके पिछले हिस्से में घाव (बेड शोर) हो गए। स्किन गल गई। एक बार फिर ग्रामीणों ने पैसा एकत्रित कर उसे हास्पिटल में भर्ती कराया। डाॅक्टरों ने उसकी प्लास्टिक सर्जरी की। लेकिन हालत में सुधार नहीं हुआ। अब स्थिति यह है कि उनके शरीर के निचले हिस्से में पैरालाइज हो गया है। आशा के उपचार पर परिजन ग्रामीणों की सहायता से सात लाख रुपए से अधिक खर्च कर चुके हैं। अब तो उपचार के लिए उनके पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। दोनों पति-पत्नी अपने पैरों के बल खड़े भी नहीं हो पाते हैं।
गजेन्द्र और आशा की दो बेटी और दो बेटे हैं। अपने माता-पिता की देखभाल और परिवार चलाने के लिए दो बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है। सबसे बड़ी बेटी 24 वर्षीय पिंकी की शादी हो चुकी है। दूसरी बेटी ऋचा 18 वर्ष की है। ऋचा 12वीं पास कर चुकी है। परिवार की जिम्मेदारी उसके कंधे पर आने के बाद वह ग्रेजुएशन नहीं कर पा रही है। ऐसी ही स्थिति 16 वर्षीय योगेन्द्र की है। हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद उसकी पढ़ाई छूट गई है। सबसे छोटा बेटा 13 वर्षीय योगेश अभी कक्षा नौ में पढ़ रहा है। दोनों भाई-बहिन मजदूरी और दूध बेचकर अपने भाई को पढ़ाने के साथ ही अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी की व्यवस्था कर रहे हैं। ऋचा और योगेन्द्र बताते हैं कि कई बार घर में अनाज का एक भी दाना नहीं रहता। गांव वाले मदद कर रहे हैं। मां के उपचार में भी गांव के लोगों ने काफी मदद की। गांव वाले भी कब तक मदद करेंगे। आशा देवी के चेहरे पर भविष्य की चिंता साफ देखी जा सकती है। रूंधे गले से वह कहती हैं कि उनके परिवार पर न जाने किसकी नजर लग गई। बच्चे पढ़ाई करने के बजाय मजदूरी कर रहे हैं। हम पति-पत्नी अपने बच्चों पर बोझ बन गए हैं। गजेन्द्र के भाई रघुवीर कठैत का कहना है कि ग्रामीणों और हम लोगों से जो कुछ भी संभव था, हमने किया। उन्होंने स्वयं सेवी संस्थाओं से मदद की गुहार लगाई है।
रुद्रप्रयाग शहर से महज तीन किमी दूर तिलणी गांव में आज से कुछ वर्ष पूर्व गजेन्द्र सिंह (48) का परिवार खुशहाल था। हंसते-खेलते परिवार चल रहा था। गजेन्द्र एक छोटी सी दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। अचानक गजेन्द्र की तबीयत बिगड़ गई। डाॅक्टरों ने बताया कि उसे अस्थमा हो गया है। रुद्रप्रयाग और श्रीनगर में उपचार के बावजूद उसकी स्थिति में सुधार नहीं हो पाया। आज गजेन्द्र जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहा है। अब परिवार का पूरा भार पत्नी आशा देवी ने ऊपर आ गया। खेती-बाड़ी और दूध बेचकर वह किसी तरह परिवार को पटरी पर लाई। पति तो बीमार थे, लेकिन परिवार का गुजारा चल रहा था। लेकिन एक घटना ने इस परिवार की खुशियां पूरी तरह काफूर कर दी। पिछले वर्ष फरवरी माह में आशा देवी (44) छत से नीचे गिर गई और उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। इस घटना से पूरा परिवार स्तब्ध रह गया। ग्रामीणों ने चंदा कर आशा को उपचार के लिए देहरादून के इंद्रेश हास्पिटल में भर्ती कराया गया। जहां उनका लंबा उपचार चला। डाॅक्टरों ने आशा को हास्पिटल में बेड रेस्ट की सलाह दी। आर्थिक तंगी के कारण तीमारदार उन्हें घर ले आए। लेकिन घर में देखरेख और समय-समय पर जांच न होने के कारण उनके पिछले हिस्से में घाव (बेड शोर) हो गए। स्किन गल गई। एक बार फिर ग्रामीणों ने पैसा एकत्रित कर उसे हास्पिटल में भर्ती कराया। डाॅक्टरों ने उसकी प्लास्टिक सर्जरी की। लेकिन हालत में सुधार नहीं हुआ। अब स्थिति यह है कि उनके शरीर के निचले हिस्से में पैरालाइज हो गया है। आशा के उपचार पर परिजन ग्रामीणों की सहायता से सात लाख रुपए से अधिक खर्च कर चुके हैं। अब तो उपचार के लिए उनके पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। दोनों पति-पत्नी अपने पैरों के बल खड़े भी नहीं हो पाते हैं। गजेन्द्र और आशा की दो बेटी और दो बेटे हैं। अपने माता-पिता की देखभाल और परिवार चलाने के लिए दो बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है। सबसे बड़ी बेटी 24 वर्षीय पिंकी की शादी हो चुकी है। दूसरी बेटी ऋचा 18 वर्ष की है। ऋचा 12वीं पास कर चुकी है। परिवार की जिम्मेदारी उसके कंधे पर आने के बाद वह ग्रेजुएशन नहीं कर पा रही है। ऐसी ही स्थिति 16 वर्षीय योगेन्द्र की है। हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद उसकी पढ़ाई छूट गई है। सबसे छोटा बेटा 13 वर्षीय योगेश अभी कक्षा नौ में पढ़ रहा है। दोनों भाई-बहिन मजदूरी और दूध बेचकर अपने भाई को पढ़ाने के साथ ही अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी की व्यवस्था कर रहे हैं। ऋचा और योगेन्द्र बताते हैं कि कई बार घर में अनाज का एक भी दाना नहीं रहता। गांव वाले मदद कर रहे हैं। मां के उपचार में भी गांव के लोगों ने काफी मदद की। गांव वाले भी कब तक मदद करेंगे। आशा देवी के चेहरे पर भविष्य की चिंता साफ देखी जा सकती है। रूंधे गले से वह कहती हैं कि उनके परिवार पर न जाने किसकी नजर लग गई। बच्चे पढ़ाई करने के बजाय मजदूरी कर रहे हैं। हम पति-पत्नी अपने बच्चों पर बोझ बन गए हैं। गजेन्द्र के भाई रघुवीर कठैत का कहना है कि ग्रामीणों और हम लोगों से जो कुछ भी संभव था, हमने किया। उन्होंने स्वयं सेवी संस्थाओं से मदद की गुहार लगाई है।

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