सोमवार, 6 अप्रैल 2015

‘निशंक’ के साहित्य ने दक्षिण में जगाई अलख




सुप्रसि( साहित्यकार डाॅ0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के उपन्यास ‘भागोंवाली’ के तमिल अनुवाद तथा कहानी संग्रह ‘अंतहीन’ के कन्नड़ अनुवाद का विमोचन तेलंगाना के मुख्यमंत्राी के0चन्द्रशेखर राव द्वारा इस माह किया जायेगा। डाॅ0 निशंक का साहित्य दक्षिण भारत के अनेक राज्यों में विस्तारित होता जा रहा है। एक ओर उनके साहित्य पर वहाँ शोध् कार्य चल रहा है तो दूसरी ओर उनकी अनेक पुस्तकों का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में किया जा रहा है। यह उनके साहित्य सृजन में एक नये अध्याय के रूप में जुड़ गया है। विगत दिवस दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा हैदराबाद के स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय हिन्दी संगोष्ठी के दूसरे दिन सुप्रसि( साहित्यकार एवं उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्राी डाॅ0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की कहानी संग्रह ‘टूटते दायरे’ के तेलगु अनुवाद ‘अन्ध्कारम् पई सम्मैटा डेब्बा’ का विमोचन विश्वविख्यात कला संग्राहक पद्मश्री श्री जगदीश मित्तल द्वारा किया गया। वहीं दूसरी ओर उनके साहित्य पर अलग-अलग विश्वविद्यालयों में षोध कार्य भी किये जा रहे हैं। राष्ट्र पिता महात्मा गाँध्ी द्वारा स्थापित की गयी दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में डाॅ0 निशंक के एक कहानी संग्रह ‘टूटते दायरे’ के तेलगु अनुवाद के विमोचन के साथ ही डाॅ0 निशंक के साहित्य पर भरपूर चर्चा हुई। विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि विश्व प्रसि( कला संग्राहक एवं कला समीक्षक पद्मश्री जगदीश मित्तल ने कहा कि हिन्दी में लिखी हुई डाॅ0 निशंक की इन उत्कृष्ट कहानियों को दक्षिण भारत में निश्चित रूप से पसन्द किया जा रहा है और वह लोकप्रिय हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि कहानियाँ सजीव हैं और किसी के भी अन्तस को छूने वाली हैं। ऐसी कहानियाँ समाज में जागरूकता के साथ-साथ संवेदनाओं को जिंदा रखती हैं। महात्मा गाँध्ी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्ध ;महाराष्ट्रद्ध के अधिष्ठाता प्रो0 देवराज ने कहा कि किसी राजनैतिक व्यक्ति के अन्दर हिन्दी के प्रति पहली बार उन्होंने इतनी आग देखी है। उन्होंने कहा कि राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ निशंक एक साहित्यकार होने के नाते अत्यंत संवेदनशील हैं यही उनके साहित्य का प्रबल पक्ष भी है। उनकी रचनाएं व्यावहारिक और समाज में बदलाव की अगुवाई भी करती हैं। दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा चैन्नई की कुलसचिव प्रो0 निर्मला एस. मौर्य, आन्ध्र की लोकप्रिय पत्रिका भास्वर भारत के सम्पादक डाॅ0 राध्ेश्याम शुक्ल, बी.जे.आर. डिग्री काॅलेज हैदराबाद के विभागाध्यक्ष डाॅ0 घनश्याम, इफ्रलू हैदराबाद के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ0 एम. बैंकटेश्वर, त्रिपुरा विश्वविद्यालय अगरतला के हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ0 मिलन जमातिया, मणिपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की सहायक आचार्य डाॅ0 विजयलक्ष्मी, मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 शकीला खानम एवं केन्द्रिय हिन्दी अकादमी के पूर्व सदस्य डाॅ0 योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने निशंक के साहित्य पर चर्चा करते हुए कहा कि राजनीति के टेढ़े-मेढे़े रास्तों से गुजरने और तमाम व्यवस्तताओं के बीच निशंक ने अपनी-रचनाध्र्मिता को बुझने नहीं दिया, बल्कि वे अनवरत अपनी कहानियों, कविताओं और उपन्यास के माध्यम से अपने रचना संसार को विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रखे हुए हैं। डाॅ0 निशंक के साहित्य पर हैदराबाद विश्वविद्यालय एवं दो शोधर्थियों द्वारा शोध् कार्य भी किये जा रहे हैं, जबकि डाॅ0 निशंक के साहित्य की तमाम विधओं पर दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम निदेशक प्रो0 )षभदेव शर्मा के निर्देशन में सुप्रसि( साहित्यकार एवं अनेकों भाषाओं की विदुषी डाॅ0 गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा डी0लिट् किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त डाॅ0 निशंक की कवितायें आन्ध्र प्रदेश के हाईस्कूल के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाई जा रही हैं। ज्ञातव्य हो कि डाॅ0 निशंक के साहित्य का अनुवाद इससे भी पूर्व तेलगु, तमिल एवं मराठी में हो चुका है। मद्रास विश्वविद्यालय चेन्नई द्वारा कहानी संग्रह ‘खड़े हुए प्रश्न’ का तमिल अनुवाद ‘एन केलविक्कु एन्नाबाथिल’ एवं मराठी अनुवाद ‘प्रश्नांकित’ वर्श 2008 में हो चुका था। इसके अतिरिक्त कहानी संग्रह ‘क्या नहीं हो सकता’ का मराठी अनुवाद ‘संगले शक्य आहे’ तथा ‘ए वतन तेरे लिए’ देशभक्ति काव्य संग्रह का तमिल अनुवाद ‘तायनाडे उनक्काड एवं तेलगु अनुवाद ‘जन्मभूमि’ वर्ष 2009 में हो चुका है, जिन्हें वहाँ खूब लोकप्रियता प्राप्त हुई है। उनके गीत विभिन्न भाषाओं में गाये जाते हैं और उनकी कहानियाँ का दक्षिण भारत की भाषाओं में नाट्य रूपान्तरण भी हुआ है।

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