गुरुवार, 21 जुलाई 2016

पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही भाजपा


deepak azad,watchdogpatrika
उत्तराखंड और अरूणांचल में कांग्रेसी सरकार को बर्खास्त कर सुप्रीम कोर्ट में मुंहकी खा चुकी भारतीय जनता पार्टी ने कोई सबक सीखा हो, उसके व्यवहार से ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता। जनता के जीवन से जुड़े सवालों को उठाने के बचाय उत्तराखंड में भाजपा जिस तरह की राजनीति कर रही है उससे वह खुदके पैरों पर ही कुल्हाड़ी चला रही है। अस्थायी राजधानी, देहरादून में उत्तराखंड विधानसभा के दो दिनी विशेष सत्र की शुरूआत भाजपा के हंगामे, शोर-शराबे के साथ हुई। भाजपा ने यह कहते हुए विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल और उपाध्यक्ष अनुसूया प्रसाद मैखुरी का विरोध किया कि उनके खिलाफ उस दिन ही अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया था जब इस संकट की शुरूआत हुई थी। भाजपा के विरोध को भांपते हुए स्पीकर ने खुदको पीठ से अलग करते हुए सबसे सीनियर  सदस्य नवप्रभात को पीठासीन अधिकारी का दायित्व सौंप दिया। भाजपा इससे भी सहमत नहीं हुई और संवैधानिक नियमों का हवाला देते हुए पीठासीन अधिकारी का चयन सदन द्वारा किए जाने पर जोर दिया। भाजपा की इस दलील से सहमत हुआ जा सकता है। लेकिन नियम-कानूनों की यह उलझाहट से आखिर भ्रष्टाचार, कुशासन और आपदा के कहर से जूझ रही उत्तराखंड की जनता को क्या हासिल होने वाला है? बेहतर होता भाजपा भ्रष्टाचार, कुशासन, और आपदा जैसे सवालों पर सरकार की घेराबंदी करती तो राजनीतिक तौर पर उसे भी और उत्तराखंड की जनता को भी कुछ फायदा होता। अगर सीएम हरीश रावत की घेराबंदी के लिए भाजपा लोकायुक्त को ही मुददा बनाती तो बेहतर होता। राज्य पिछले चार साल से बिना लोकायुक्त के ही चल रहा है, लेकिन वह असल मुददों की बजाय इस तरह हंगामा कर सीएम हरीश रावत के लिए ही आगे ही राह आसान बना रही है!

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