बिना नाखून का शेर बना खुफिया विभाग
उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद से लगातार मिल रही आतंकी धमकियांे के बावजूद भी सरकारांे ने लाखों लोगों की जानमाल की सुरक्षा व्यवस्था को भगवान भरोसे रख छोड़ा है। उत्तराखण्ड प्रदेश में जहां एक ओर जल विद्युत परियोजनायें, रक्षा आदि सामरिक महत्व से जुड़े उपक्रम जैसे अति संवेदनशील क्षेत्र है वहीं ऐसे भी धार्मिक-पर्यटक स्थल है जहां प्रतिदिन हजारांे-लाखों लोगों का आवागमन होता है। इसके इतर नागरिकों की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले सरकारी खुफिया तंत्रों के इंतजामात को लेकर सरकार के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। अभी हाल ही में आतंकी संगठन अलकायदा द्वारा राज्य को दी गई एक धमकी के बाद जहां पूरे प्रदेश में अलर्ट जारी तो कर दिया गया लेकिन आतंकियों की गतिविधियां और उसके मंसूबों की भनक तक खुफिया तंत्र और पुलिस को नहीं लगी। 19 सितम्बर को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में सिमी ;आतंकवादी संगठनद्ध के छहः आतंकी किराये के एक घर में रह रहे थे। अचानक उस घर में हुए विस्फोट और इस घटना से भयभीत लोगों ने इसकी जानकारी पुलिस को दी। पुलिस जांच के बाद पता चला कि ये आतंकवादी काफी समय से उसी मकान में रहकर बडे़ पैमाने पर विस्फोटक सामग्री प्रयुक्त कर बम बना रहे थे। इस घटना के बाद से फरार हुए छहः आतंकवादी 20 सितम्बर को स्वीफ्ट डिजायर कार में नजीबाबाद होते हुए कोटद्वार की ओर रवाना हुए। जाफरा के समीप पुलिस चैकिंग के दौरान कार में सवार आतंकवादी जाफरा के निकट कार छोड़ जंगल की ओर भाग निकले। 22 सितम्बर को कोटद्वार पहंुची एटीएस मेरठ की टीम ने खुलासा किया कि फरार हुए सभी आतंकवादी सिमी संगठन से जुड़े हंै। आतंकवादियों की कोटद्वार में आमद का अंदेशा होने पर स्थानीय पुलिस और खुफिया विभाग में हडकंप मच गया।आनन-फानन में यूपी पुलिस के साथ स्थानीय पुलिस ने पीएसी की मदद से लैंसडौन वन प्रभाग, सनेह, भाबर के जंगलों में डंडांे के सहारे काम्बिंग शुरू कर दी। आतंकवादियों के लैंसडौन वन प्रभाग के जंगल में छिपे होने की घटना से वन महकमे के भी पसीने छूट गये। पहले ही वन विभाग के लिये सिरदर्द बने बावरिया, कत्था और भीमा गिरोह के बाद आतंकवादियों के जंगल में पनाह लेने की घटना ने वन विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियांे की परेशानियांे को और बढ़ा दिया है। सिमी के आतंकवादियों के कोटद्वार में होने की सूचना के बाद उत्तर प्रदेश मेरठ की एटीएस व उत्तराखण्ड की खुफिया टीम ने कोटद्वार में डेरा डालकर संवेदनशील और अतिसंवेदनशील में काम्बिंग की लेकिन अभी तक खुफिया विभाग और पुलिस के हाथ कोई ठोस सुबूत नहीं लगे। अलबत्ता पुलिस ने कार्यवाही के नाम पर इन इनामी आतंकवादियों की पहचान सार्वजनिक कर इन्हें पकडवाने की जन अपील जारी की। वर्ष 2004-05 में कोटद्वार के एक दुग्ध व्यवसाय से एक आतंकवादी के तार जुड़े पाये गये थे। आतंकवादी द्वारा एक विवाह समारोह में शिरकत होने के बाद वापस जाने के बाद मीडिया में इस बात का खुलासा होने के बाद खुफिया विभाग को घटना का पता चला। वर्ष 2010-11 में काफी समय से लकडी पडाव क्षेत्र में रह रहे अपराधियों द्वारा लकड़ी पडाव में एक दपंत्ति के दोहरा हत्याकांड को अंजाम देने के बाद पुलिस जांच में यूपी क्षेत्र में आपराधिक रिकार्ड दर्ज होने की बात सामने आई हो या फिर वर्ष 2012 में हरिद्वार में आयोजित कंुभ मेला में आतंकवादियों द्वारा मिली धमकी, हरिद्वार रेलवे स्टेशन को बम से उडाये जाने की धमकी। हर बार ऐसे मामले में प्रदेश के खुफिया विभाग के पास संसाधनों के अभाव और पुलिस विभाग की कार्यशैली के चलते उनके हाथ खाली ही रहे हैं।जिला पौड़ी के संवेदनशीलता की बात करें तो उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश की सीमा से जुड़े कोटद्वार पौड़ी गढवाल के अंतर्गत सैन्य क्षेत्र, रक्षा उपक्रम, प्रसिद्व धार्मिक स्थल, आरक्षित वन क्षेत्र, रामगंगा कालागढ बांध, रेलवे स्टेशन, व अति संवदेनशील क्षेत्र। रेलवे सेवा के जरिये यहां प्रतिदिन विभिन्न प्रांतों से हजारों की संख्या में लोग कोटद्वार पहंुचते हैं। अन्य प्रांतों के कई लोग यहां व्यापार और मजदूरी करने के नाम पर लकड़ी पडाव, काशीरामपुर, आमपडाव, जशोधरपुर भाबर में काफी समय से रह रहे हैं, लेकिन उच्चाधिकारियों के आदेशों के बाद भी पुलिस और संबंधित विभाग ने उनका आज तक सत्यापन नहीं हो सका। जिला पौड़ी के कोटद्वार क्षेत्र के खुफिया तंत्र की बात की जाये तो सूचना क्रांति के इस दौर में खुफिया विभाग आज भी अपने कार्यालय भवन, बेसिक टेलीफोन, वायरलैंस, टीवी, कम्प्यूटर, फैक्स, इंटरनेट और वाहन जैसी बुनियादी जरूरतों से जूझ रहा है। इतना ही नहीं जहां एक ओर सरकार और उसके मंत्रियों पर क्षेत्र भ्रमण और जनता की समस्याओं को दूर करने के नाम पर भरपूर सुविधायें दिये जाने के साथ पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर पूरे प्रदेश की सुरक्षा का जिम्मा उठाये खुफिया तंत्र की बुनियादी जरूरतों की ओर ध्यान तक नहीं दिया जाता।
इतने महत्वपूर्ण खुफिया विभाग की हालत बिना नाखून के उस शेर की तरह है जिसके पास जिम्मेदारी, पद, कर्तव्य, अधिकार रूपी रूतबा तो है लेकिन अपने कर्तव्यों की पूर्ति करने के लिये मूलभूत सुविधायें तक नहीं है। कोटद्वार के सिद्वबली मंदिर, बीईएल, रेलवे स्टेशन और झंडाचैक पहले ही आतंकवादियों की निगाहों में है ऐसे में राजाजी नेशनल पार्क और जिम कार्बेट नेशनल पार्क के मध्य स्थित लैंसडौन वन प्रभाग कोटद्वार, कालागढ़ डैम और गढ़वाल राइफल लैंसडौन सैन्य क्षेत्र जैसे अति-संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा व्यवस्था को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। एहतियात के तौर पर भले ही कुछ जगह सीसीटीवी कैमरे लगाये जा चुके हो लेकिन संवेदनशील जगहों में अभी भी चैकिंग और सत्यापन कार्य तीव्र गति से होता नहीं दिखाई दे रहा है। बहरहाल आतंकवादियों की गतिविधियों ने पूरे उत्तराखण्ड समेत उत्तर प्रदेश की पुलिस को हिला कर रख दिया है। आतंकवादियों द्वारा कोटद्वार में पनाह लेने की संभावना के चलते यहां की खुफिया विभाग और पुलिस के लिये आतंकवादी एक बड़ी चुनौती बने हुए है। पुलिस अधीक्षक अजय जोशी का कहना है कि आतंकवादियों की कोटद्वार में छिपे होने की आशंका के चलते पुलिस को रेलवे स्टेशन, कौड़िया, सनेह आदि सीमा से लगे चैक पोस्ट पर सघन चैकिंग अभियान चलाये जाने के कडे निर्देश दिये जा चुके हैं साथ ही बाहरी प्रांतों से कोटद्वार की सीमा में प्रवेश करने वाले संदिग्धों पर भी नजर रखी जा रही है।
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