शनिवार, 18 अक्तूबर 2014

शुभ समृ(ि की अभीप्सा पूर्ति का त्यौहार है, दीपावली

शुभ समृ(ि की अभीप्सा पूर्ति का त्यौहार है, दीपावली

बड़ी दिव्या दीपावली होगी इस वर्ष की। ईष मास की १ गते अर्थात शरद सम्पात अर्थात ठीक आश्विन संक्रान्ति के दिन अर्थात २३ सितम्बर २0१४, मंगलवार को इस संवत की दीपावली का त्यौहार बनता है। इसी दिन ठीक ८ बजे सूर्य की तुलार्क संज्ञक संक्रान्ति भी हो रही है। अस्तु, यह एक दिव्य संयोग है कि ठीक शरद सम्पात के दिन दीपावली का भी त्यौहार होगा।
चैत्र शुक्लपक्षारम्भ में ये दीपावली का त्यौहार होता है। शुक्लादि मास गणना क्रम में यह दिन आश्विन अमावश की रात्रि का किन्तु कृकृष्णादि के मास क्रम में कार्तिक की अमावस की रात्रि का होता है। निशीथ  व्यापिनी अमावश्या वाली रात्रि वाली तिथि ही दीपावली का त्यौहार होता है। मित्रो! वेद और पुराणों के अनुसार सम्पात युक्त इस दीपावली का माहात्म्य उजागर करने के उद्देश्य से कुछ विशेष कहने का मन है। ध्यान पूर्वक समझ कर कृतार्थ कीजियेगा।
शिव महापुराण में भगवान शिव का एक लोकोपकारी कथन इस प्रकार है -
तस्माद् दश गुण गेयं रवि संक्रमणे बुधाः। विषुवे तद् दशगुणमने तद् दशस्मृतम्।।
तात्पर्य है कि आम दिनों में पुण्य कार्य, यज्ञ, दान उपासनादि का जो लाभ होता है वही कार्य जब संक्रांति के दिन अर्थात् सामान्य संक्रांति ;क्रांतिवृत्त के समविभाजित द्वादश खण्डों में सूर्य जब वर्तमान से अगले खण्ड, जिसे कि राशि कहकर व्यक्त किया जाता है, में जाता है तो वह दिन संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।द्ध में किया जाता है तो उसका फल डेढ गुणा अधिक होता है। वही कार्य जब संपात या विषुव ;यहाँ विषुव शब्द पर सभी लोग खास ध्यान दें क्योंकि विषुव शब्द से हट जाएंगे तो वैसाखी का अर्थ १४ अप्रैल की निरर्थक तिथि से भी जोड़ा जा सकेगा। लोग ऐसा न समझें अर्थात किसी को भी भ्रम न रह जाये, यही व्यवस्था इस श्लोक में विषुव या अयन शब्द से है।द्ध यहाँ कहा गया है कि सामान्य संक्रांति से भी विषुव और पुनः विषुव संक्रांतियों ;वसंत और शरद सम्पात की दो संक्रांतियांद्ध से भी श्ष्अयन संक्रांतियां ;दक्षिण और उत्तर अयन की दो संक्रांतियांद्धअधिक पुण्य प्रदायी होती हैं। शायद इसी लिए उत्तरायण या मकर संक्रान्ति सनातन वैदिक धर्मियों का सबसे बड़ा त्यौहार है। मैं स्वयं इस एक त्यौहार को बहुत खासतौर पर मनाता हूँ। मोटे तौर पर आप ये समझ लें कि सामान्य दिन की एक आहुति का मतलब एक ही आहुति किन्तु संक्रांति के दिन की इसी एक आहुति का मतलब, सम्पात वाली संक्रांति के दिन की एक आहुति का मतलब और अयन संक्रांति के दिन की इसी एक आहुति का मतलब १000 आहुतियों के बराबर हुवा।
अब अगर आप पञ्चाङ्ग को नहीं जानते हैं तो-
आप इतनी प्रभावी सन्धि बेलाओं ;संक्रांति स्वयं में एक सन्धि बेला होती है और ’’’’वेद में इन सभी संधि बेलाओंद्ध प्रातः, सायं, पूर्णिमा, अमावस, मास संक्रांति, )तु संक्रान्ति ;जिस दिन )तु बदलती है द्ध अयन संक्रांति। जिस दिन अयन बदलता है और अंततः वर्ष अर्थात संवत की सन्धि जिस दिन नव संवत्सर शुरू होता है को नहीं जान पाएंगे और अगर आप पंचांग के बारे में गलत जानकारी रखते है या आजकल उपलब्ध तमाम गलत ;सत्य से भटके हुएद्ध पंचांगों पर चलते है तो इन दोनों ही स्तिथियों में आपको इन महत्वपूर्ण संधिबेलाओं की जानकारी भी या तो गलत होगी या होगी ही नहीं। इस से क्या हुआ? हुवा ये कि आप अपने पुण्य के बहुत बड़े कदम से, एक बार के लिए नहीं, हमेशा हमेशा के लिए वंचित रह जाते हैं। क्या ऐसा होना चाहिए? भाइयो और बहिनो ! हमारे नित्य कर्मों में संध्या का सर्वोपरि महत्व है। जिस तरह श्र(ा की कार्मिक अभिव्यक्ति को श्रा( कहते हैं उसी तरह सन्धि की लिए जो कार्य हम करते हैं उसको सन्ध्या कहते हैं। संधि बेला को जानना चाहिए और संध्या को करना चाहिए।
आप सभी को इस महा पुण्य काल के महापर्व की मैं अग्रिम शुभ कामनाएं देता हूँ। स्मरण रखें कि श्री सूक्त के मन्त्रों से सविधि यज्ञ पूर्वक इस त्यौहार को सश्र(ा मनौती प्रदान करनी है। वैदिक पंचांग के अनुसार यही दिन वास्तविक दीपावली का दिन है। यथा सामर्थ्य शु( सरसों के तेल से या घृत से दीप प्रज्ज्वलित करें। मैंने स्वयं इस दिन पर विशु( स्वदेशी अर्थात दीपक-प्रकाश व्यवस्था की ही जगमगाहट से अपना घर प्रकाशित रखने का निश्चय किया है।
विधाता ने जो ज्ञान मुझे दिया है उसका सदुपयोग करते हुए मैंने बड़े परिश्रम और लगाव से आप के और अपने भले के लिए या अनुस्मारक ;रिमाइंडरद्ध लेख आप ही को अर्पित किया है। अब हम स्वयं अपना भला चाहते हैं या नहीं ये तो हम पर ही निर्भर करता है।
संपादक
श्री मोहनकृति आर्ष तिथि पत्रक

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