गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

चारधम यात्राी यात्रा करेंगे, भगवान भरोसे

‘जनसैलाब’ पर ‘प्रतिबंध्’
उकेदारनाथ यात्रा के पहले दिन हजारों श्र(ालु होंगे निराश
उपन्द्रह सौ से अध्कि यात्राी नहीं जा सकेंगे केदारनाथ धम
उधम में एक रात में पांच हजार के ठहरने की व्यवस्था
उचारधम मार्ग आज भी हैं बदहाल, प्रदेश सरकार सुस्त
उकरोड़ों रूपये खर्चने के बाद भी व्यवस्था अभ शून्य
उप्रदेश सरकार का दावा, सभी तैयारियां हो गई है पूर्ण
चारधम यात्राी यात्रा करेंगे, भगवान भरोसे






संतोष बेंजवाल
वर्ष 2013 के बाद उत्तराखंड के चारधम में जहां भारी जन-ध्न की हानि हुई वहीं उत्तराखंड  के लोगों की आर्थिकी भी खत्म हुई। प्रदेश सरकार ने दो साल तक भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाएं और जनता को छोड़ दिया भगवान भरोसे। अकेले केदारनाथ की बात करें तो सबसे अध्कि नुकसान केदारघाटी को हुआ यहां  भारी जनध्न की हानि के साथ इस घाटी के लोग बेरोजगार हो गये। इस साल लोगों को उम्मीद है कि भोले बाबा इस धम में अपने भक्तों को बुलाएंगे और घाटी के लोगों की अर्थव्यवस्था में सुधर होगा।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में आयी हिमालयी सुनामी के बाद स्थानीय लोग तो बेरोजगार हो गए  और सरकार में बैठे अपफसर और राजनेताओं को रोजगार मिला और वह यह भूल गए कि किसके पीछे वह रोजगार पाने में सपफल हुए। दो साल तक केदारघाटी के लोगों के घरों में चूल्हा कैसे जला इस बात की पिफक्र किसी को नहीं और कैसे लोगों ने जीवन जीया इस बार यहां के लोगों को उम्मीद तो है पर सरकार की दखल से लोगों के मन में डर बैठा हुआ है।
ज्ञात हो कि वर्ष 2013 में केदारनाथ में आयी हिमालयी सुनामी से पहले सरकार जाग जाती तो शायद उस जलजले में हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ नहीं धेना पड़ता, लेकिन तत्काली प्रदेश सरकार के मुखिया का ध्यान तो सिपर्फ अपनी जेबों को भरने में लगा था।  उस जलजले के बाद पूरे विश्व में सरकार की थू-थू हुई। दो साल तक केदानाथ का दर्द झेलने वाले भोले नाथ के भक्तों और केदारनाथ यात्रा पर अपनी आर्थिकी को चलाने वालों को इस बाद उम्मीद है कि यात्रा अपने चरम पर रहेगी। इसके लिए वर्तमान सरकार भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। पिछली गलती से सबक लेते हुए इस बार प्रदेश सरकार जाग गयी है।
इस बार केदारनाथ धम के कपाट खुलने के दिन हजारों श्र(ालु जहां निराश होंगे। वहीं व्यवस्थाओं की पहल लोगों को राहत देगी। सरकार ने इस बार कुछ अहम निर्णय लिये हैं। केदारनाथ धम में इस बार पहले दिन केवल 15 सौ यात्राी ही भगवान केदार के दर्शन कर सकेंगे। इस मौके पर राष्ट्रपति भी धम पहुंच रहे हैं। पहले दिन से लेकर माह के अंतिम दिन तक यात्रियों की सीमिति संख्या को धम में पहुंचाने का निर्णय लिया गया है। मई से इस संख्या में ध्ीरे-ध्ीरे बढ़ोत्तरी की जाएगी। जून 2013 की आपदा के बाद पुनर्निर्माण से गुजर रहे केदारनाथ में हालात सामान्य हो रहे हैं। हालांकि अभी वहां इतनी व्यवस्था नहीं हो पाई है कि एक रात में 5 हजार लोगों को ठहराया जा सके। आज की तिथि में यहां एमआई-26 हेलीपैड के किनारों पर नाली निर्माण किया जा रहा है। धम में नव निर्मित 12 काटेज हैं। 13 का निर्माण होना बाकी है। गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग पर गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्किांश हट्स बपर्फबारी से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। ऐसे हालात में निगम भी अप्रैल माह में प्रतिदिन 250 यात्रियों की बुकिंग करेगा। जरूरी व्यवस्थाओं को पूरा होने पर प्रशासन और निगम यात्रियों की संख्या में इजाफा करेंगे। दिसंबर से लेकर 2 अप्रैल तक केदारनाथ में मौसम की मार ने पुनर्निर्माण कार्यों को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। तीन से पांच दिन के अंतराल में बिगड़ रहे मौसम के कारण धम में बर्फबारी हो रही है। इससे तैयारियों पर भी असर पड़ रहा है। रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी डा. राघव लंगर ने बताया कि केदारनाथ धम में अब भी 8 पफीट से अध्कि बपर्फ जमा है। साढ़े तीन माह में 15 से अध्कि बार धम में बपर्फ गिर चुकी है। केदारनाथ के कपाट खुलने पर राष्ट्रपति धम पहुंच रहे हैं। धम में भारी सुरक्षा बल तैनात रहेगा। पुजारी लोगों के साथ मीडिया व कापफी संख्या में स्थानीय लोग भी होंगे। सीमित संसाधन और जगह की कमी को देखते हुए पहले दिन 15 सौ यात्रियों को भी केदारनाथ जाने की अनुमति दी जाएगी। प्रदेश सरकार केदारनाथ धम यात्रा के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च कर वाह-वाही लूट रही है, लेकिन स्थिति कुछ अलग है जहां करोड़ों रूपये केदारनाथ में खर्च हो चुके है वहीं सरकार जमीन पर कुछ नहीं कर पा रही है।
अकेले उत्तराखंड के चारधम में सड़कों की स्थिति को देखे तो सड़के दयनीय हाल में हैं। सरकार ने सड़कों के नाम पर करोड़ों रूपये अभी तक खर्च कर दिये हैं और सड़कों की स्थिति अभी भी दयनीय है। इस बार भी यात्रियों को हिचकोले खाकर ही चारधम यात्रा पर जाना पडे़गा। वहीं अन्य व्यवस्थाओं के नाम पर भी अभी तक सिपर्फ घोषणाएं ही हो रही हैं। जमीन पर तो आज भी वही हाल है जो पिछले दो साल पहले आपदा के बाद थे। सिपर्फ कागजों में सब काम हो रहे हैं।
 केदारनाथ में एक बार में 5000 यात्राी ही जा सकेंगे, इस बार आनलाइन रजिस्ट्रेशन भी सरकार एक ओर कह रही है केदारनाथ में सारी व्यवस्थाएं चुस्त दुरूस्त है। लेकिन धरातल पर कुछ नहीं दिख रहा है। प्रदेश में सड़कों कि स्थिति देहरादून में अच्छी नहीं है, तो पहाड में कैसी होगी इस सवाल पर लोकनिर्माण विभाग के मुख्य अभियंता ए.के. उप्रेती अपना सवाल का जवाब नहीं दे पाई, जबकि केदारनाथ में भी स्थिति अच्छी नहीं है। देखना यह है कि इन 20-25 दिनों में सरकार क्या कुछ करती है यह देखना बाकी है। केदारधम में जून 2013 में आई आपदा से सरकार ने अब सबक लिया है। उत्तराखंड शासन ने ऐसी व्यवस्था की है कि अब धम में जनसैलाब नहीं उमड़ेगा। इसी माह अप्रैल शुरू हो रही यात्रा में अब एक बार में केदारधम में 5000 यात्रियों से ज्यादा लोगों को जाने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा चार धम के सभी यात्रियों का पंजीकरण भी आवश्यक रूप से किया जाएगा। इसके लिए 18 केंद्र बनाए गए हैं। लेकिन यात्रियों को बायोमेट्रिक्स रजिस्ट्रेशन ;मशीन से पंजीकरणद्ध से छूट दी गई है। उनके लिए सिपर्फ पफोटो पहचानपत्रा जारी होंगे। केदारनाथ यात्रा के लिए राज्यों की ओर से जारी स्वास्थ्य प्रमाणपत्रा भी                     मान्य होंगे। केदारनाथ में तीन हजार लोगों के रहने की व्यवस्था कर ली गई है। दो हजार लोग सोनप्रयाग से लेकर केदारनाथ के बीच के पड़ावों में भी ठहर सकते हैं।
केदारनाथ मंदिर में संरक्षण कार्य में सौ दिक्कतें सामने आ रही हैं। आलम यह है कि केदारनाथ मंदिर में इस्तेमाल को मंगाई गई तकरीबन 30 लाख की लकड़ी डंप है। वजह, मंदिर समिति फर्श में इसके इस्तेमाल को तैयार नहीं थी, जबकि एएसआई ;भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षणद्ध पहले ही इसे मंगा चुका था। कुछ लकड़ियां धाम तो कुछ दून डिपो में रखवा दी गई हैं। इनकी अब अन्य मंदिरों में इस्तेमाल की तैयारी है। मसलन अब जागेश्वर धाम स्थित मंदिर की कैनोपी तैयार करने समेत कई कार्यों में इसका प्रयोग होगा। कार्य में देरी का जिम्मेदार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान ;आईआईटीद्ध चेन्नई भी है। केदारनाथ में संरक्षण के कार्य के लिए की सर्वे रिपोर्ट का इंतजार हो रहा है। एएसआई ने रिपोर्ट मंगाने के लिए आईआईटी चेन्नई को पत्र लिखा है, लेकिन पखवाड़ा भर बीतने के बावजूद वहां से कोई जवाब नहीं आया है। ऐसे में वहां काम तो जरूर होगा, लेकिन तकनीकी सुझावों के बगैर कार्य की प्राथमिकता तय करना एएसआई के लिए मुश्किल होगा। तीसरी दिक्कत जरूरी समय सीमा की है। एएसआई को अपने काम को अंजाम देने के लिए 100 कार्य दिवस की जरूरत होगी ही। आने वाली 24 अप्रैल को मंदिर के कपाट खुलेंगे। 15 जून से अमूमन मानसून की आमद मानी जाती है। ऐसे में आवश्यक समय संस्थान के विशेषज्ञों को मिल सकेगा या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। लकड़ी अब अन्य कार्यों में प्रयोग होगी। कपाट खुलने के साथ वहां एएसआई की टीम जाएगी। आईआईटी चेन्नई की टीम की सर्वे रिपोर्ट मिल जाती तो अच्छा होता। तकनीकी तरीके से हुए सर्वे के आधार पर कार्य की प्राथमिकता तय हो सकती थी। वहीं श्री बदरीनाथ-केदानाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष गणेश गोदियाल का कहना है कि लकड़ी किसने, कहां भेजी, हमें नहीं पता। हमने फर्श में लकड़ी लगाने को मना नहीं किया, बल्कि लिखित में यह सुझाव दिया था कि लकड़ी का फर्श लगाने से पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि वह आग न पकड़े।

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