बुधवार, 29 अप्रैल 2015

खौफ के आंसू और न टूटे सात वचन


 हिमालय की गोद में जिंदगी बर्फ की तरह चमक रही थी। अचानक, यह क्या हो गया। मौत पल-पल सामने थी। काठमांडू में धरती डोल रही थी। झटके पर झटके लग रहे थे। हर शख्स जान हथेली पर लेकर दौड़े रहा था। एक युवा जोड़ा ऐसा भी था, जिसको मुश्किल की इस घड़ी में भी सात फेरों के सात वचन याद रहे। इन्हें निभाने के लिए दोनों ने जान की बाजी लगा दी। जलजले में दरकती दीवाल और पैरों तले सरकती जमीन भी उनके हौसलों को मात नहीं दे पाई। हमसफर ने साथ दिया तो वह मौत के इरादों को दफन कर नई जिंदगी पाने में कामयाब रहा।यह कहानी है धनौली निवासी 25 वर्षीय संजू की। वह नेपाल, काठमांडू के काली माटी जूता फैक्ट्री में काम करते थे। आठ महीने पहले उनकी शादी यहीं की आरती से हुई। शादी के बाद से संजू पत्‌नी के साथ काठमांडू स्थित फैक्ट्री के एक कमरे में रहते थे। 25 अप्रैल करीब 11.45 बजे वह फैक्ट्री में ही थे कि अचानक धरती हिलने लगी। सब लोग बाहर की तरफ भागे, तो वह भी दौड़ लिए। बाहर आते ही दिमाग चकरा गया, आखिर पत्‌नी आरती तो अंदर ही फंसी रह गई थीं। अगले ही पल उन्होंने बिना कुछ सोचे फैक्ट्री की ओर दौड़ लगी दी। साथियों ने रोकने की कोशिश की पर वो रुकने को तैयार न हुए।संजू ने बताया अंदर आठ कमरे थे, भूकंप के झटकों से वह एक बार तो भूल ही गए कि उनका कमरा कौन सा है। किसी तरह वह अपने कमरे में पहुंचे तो आरती वहां नहीं थीं, इस बीच कंपन और तेज हो गए। वह बताते हैं कि स्थिति ऐसी हो गई थी कि पैरों तले से जमीन खिसकी हुई सी लगने लगी थी। ऐस लग रहा था कि किसी भी पल अंदर समा जाएंगे। दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई थीं। फैक्ट्री कभी भी धराशाई हो सकती थी। गिरते संभालते वह दूसरे कमरे में पहुंचे लेकिन वहां भी पत्‌नी नहीं मिलीं। तीसरे कमरे में जाते समय आरती सामने से आती दिखाई दीं। संजू ने आरती का हाथ थामा, इस बीच सामने एक दीवाल गिर गई, जिसने रास्ता रोक दिया। अब तो मन कांप रहा था। दोनों बचने के लिए बाहर जाने की बजाए अंदर ही एक टीनशेड के नीचे खड़े हो गए। भगवान और घरवालों को याद करते हुए दोनों एक कोने में खड़े रहे। पांच मिनट बाद भूकंप के पहले दौर के झटके थमे, तभी बाहर निकले। वह कहते हैं कि अब भी इन झटकों की सोचकर दिल कांप जाता है। रात को नहीं नहीं आती।आरती तलाश रही थीं पति को : आरती ने बताया कि जब भूकंप आया तो वह अपने कमरे में थीं। जमीन हिलने पर बहुत कांप गईं। बाहर जाने की बजाए वह पति को देखने फैक्ट्री के अंदर जा घुसीं। संजू के न मिलने पर वह उन्हें तलाश रही थीं। आरती ने बताया कि उन्होंने सोच लिया था कि अकेले जीने से बेहतर साथ मरना है, इसलिए वह बाहर नहीं निकलीं। संजू ने कहा कि मौत का मंजर देखने के बाद अब दोबारा नेपाल वापस नहीं जाएंगे। उनकी आंखों के सामने से वह दृश्य नहीं जा रहा है।नेपाल में आए भूकंप ने हजारों लोगों को अपने आगोश में समेट लिया। काठमांडू के रत्‌ना पार्क के आसपास सैकड़ों गगनचुंबी इमारतें देखते ही देखते जमींदोज हो गईं। नेपाल के काठमांडू में लापता हुए अब्दुल्लापुर निवासी पिता-पुत्र जावेद व समीर व नदीम जैदी ने बुधवार को घर लौटकर प्राकृतिक आपदा के दौरान हुई त्रासदी के मौके की हकीकत बयां की। नेपाल में कपड़े की फेरी लगाने वाले पिता-पुत्र का शनिवार को आए भूकंप के बाद परिवार से संपर्क टूट गया था। बुधवार को दोनों लोग सकुशल घर लौट आए। समीर ने बताया कि भूकंप के बाद हालत इस कदर बिगड़ गए कि खाद्य पदार्थो की लूट शुरू हो गई। दुकानदारों ने पानी की बोतल के बदले तीन सौ रुपये व बिस्कुट के सौ रुपये तक वसूले। पानी व बिस्कुट खाकर काम चलाना पड़ा। भूकंप त्रासदी में फंसे भारतीयों से बस वालों ने काठमांडू से बार्डर तक की दूरी के लिए प्रति व्यक्ति दो हजार रुपये वसूल किए, जिसका किराया आमतौर पर पांच सौ से आठ सौ रूपये के बीच होता है। इस तरह से एक बस मालिक चालीस सवारियों को लेकर रवाना हुआ, जिसने विपरीत परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए कुल 80 हजार रुपये वसूल किए। सीमा पर पहुंचने पर उन्होंने राहत की सांस ली।उगते सूर्य की लालिमा के साथ गोरखपुर डिपो की बस लेकर विश्वविद्यालय परिसर में पहुंचे चालक शैलेंद्र तिवारी और परिचालक अमित कुमार ने राहत की सांस ली। हाल और हालात पूछने पर उनकी सांसें गहरी हो गई। बताया, सपने में भी नहीं सोचा था कि इस हाल में काठमांडू जाएंगे। अचानक नेपाल जाने का निर्देश मिला। पहाड़ तो देखा, लेकिन वादियों में शरीर को कंपाने वाली सिहरन थी। जो पानी की बूंदे कभी मन को सुकून देती थीं, वही काल बनकर बरस रही थीं। ऊंची और सुंदर दिख रही पहाडि़यां डरावनी लग रही थी। संकरी सड़कों पर सिर्फ मौत का नाच था। फिर भी हिम्मत नहीं हारी, लोगों को लेकर पहुंच गए। मन को इसी से सुकून पहुंच रहा है। लग रहा है कि किसी के काम तो आए।शैलेंद्र और अमित ही नहीं नेपाल की पहाड़ी और फिसलन भरी सड़कों पर जान जोखिम में डालकर बसों को महफूज गोरखपुर तक पहुंचाने वाले दर्जनों चालकों और परिचालकों का सीना और चौड़ा हो रहा है। वे पिछले दो दिन पीडि़तों के लिए देवदूत बने हैं। बाराबंकी निवासी एवं फैजाबाद डिपो के संविदा चालक संजय कुमार मिश्र बताते हैं कि 55 यात्रियों की जिम्मेदारी उनके कंधे पर थी। कभी पहाड़ों पर बस नहीं चलाया था। सड़क के किनारे खाई देख पसीना छूट जाता था, लेकिन ऊपर वाले को याद करते हुए सबको सकुशल ले आया। परिचालक बदलू प्रसाद ने बताया कि रात में बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। कहीं कुछ खाने को नहीं मिला, लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और बिस्किट-पानी पर काम चला लिया। गोरखपुर परिक्षेत्र से 200 बसें काठमांडू भेजी जा चुकी हैं। उनमें से बुधवार देर शाम तक 80 बसें वापस आ गईं। काठमांडू से लौटे चालक और परिचालकों का कहना है कि भूकंप के बाद नेपाल की सरकारी व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। जो कुछ भी है वह भारत सरकार का है।काठमांडू से तीन किलोमीटर दूर रामेछाप गांव में सहेली की बिटिया की शादी में शामिल होने गईं कोलकाता की गीता देवी को देखकर उस खौफ को महसूस किया जा सकता है। विदाई के कुछ देर बाद आए भूकंप से वह क्षेत्र कराह उठा। गीता दो साथियों के साथ अनजानी राहों पर खुद को बचाने के लिए दौड़ पड़ी। उनकी आंखों ने इमारतों को रेत बनते और मदद की गुहार लगाते लोगों को सदा के लिए सो जाते देखा। वह तीन दिन बाद उस ठिकाने पर पहुंची, जहां के माहौल ने यह भरोसा दिलाया कि अब वह सुरक्षित हैं।दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में बने भूकंप राहत शिविर में उत्तर प्रदेश रोडवेज की बस से पहुंचीं गीता 'जागरण' से वह मंजर याद कर फफक पड़ीं। दहशत का यह आलम था कि बोलते वक्त उसकी सांसें फूल रही थी। वह बार बार आसमान की ओर देखकर ईश्र्वर को धन्यवाद दे रही थी और जल्द से जल्द मां व पिता के पास पहुंचना चाहती हैं। गीता बताती हैं कि 23 अप्रैल को सहेली के घर शादी के बाद योजना थी काठमांडू घूमने की। यही सोचकर सुबह सहेली के घर से जल्दी निकली। सुंदर वादियों के बीच खुशनुमा मौसम ने यात्रा को सुहावना बना दिया। अभी आधा रास्ता भी तय नहीं किया था कि अचानक बस हिलने लगी। ड्राइवर ने बस रोक दी। सभी यात्री नीचे उतरे और सड़क पर बैठ गए। तभी पहाड़ी पर बने एक मकान की खिड़की से पांच लोग मदद की गुहार लगाते दिखे। देखते ही देखते वह इमारत रेत की तरह पहाड़ों से टकराते हुए नीचे जा गिरी। दिल में इस बात की टीस है कि जिस सहेली के यहां गई थी दुख की घड़ी में मैं उसके साथ नहीं रह सकी। भूकंप में सहेली की मां व उसके पिता मलबे में दब गए।गोरखपुर काठमांडू से तीन किलोमीटर दूर रामेछाप गांव में सहेली की बिटिया की शादी में शामिल होने गईं कोलकाता की गीता देवी को देखकर भूकंप के खौफ को महसूस किया जा सकता है। विदाई के कुछ देर बाद आए भूकंप से वह क्षेत्र कराह उठा। गीता दो साथियों के साथ अनजानी राहों पर खुद को बचाने के लिए दौड़ पड़ी। उनकी आंखों ने इमारतों को रेत बनते और मदद की गुहार लगाते लोगों को सदा के लिए सो जाते देखा। वह तीन दिन बाद उस ठिकाने पर पहुंची, जहां के माहौल ने यह भरोसा दिलाया कि अब वह सुरक्षित हैं।दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में बने भूकंप राहत शिविर में उत्तर प्रदेश रोडवेज की बस से पहुंचीं गीता 'जागरण' से वह मंजर याद कर फफक पड़ीं। दहशत का यह आलम था कि बोलते वक्त उसकी सांसें फूल रही थी। वह बार बार आसमान की ओर देखकर ईश्र्वर को धन्यवाद दे रही थी और जल्द से जल्द मां व पिता के पास पहुंचना चाहती हैं। गीता बताती हैं कि 23 अप्रैल को सहेली के घर शादी के बाद योजना थी काठमांडू घूमने की। यही सोचकर सुबह सहेली के घर से जल्दी निकली। सुंदर वादियों के बीच खुशनुमा मौसम ने यात्रा को सुहावना बना दिया। अभी आधा रास्ता भी तय नहीं किया था कि अचानक बस हिलने लगी। ड्राइवर ने बस रोक दी। सभी यात्री नीचे उतरे और सड़क पर बैठ गए। तभी पहाड़ी पर बने एक मकान की खिड़की से पांच लोग मदद की गुहार लगाते दिखे। देखते ही देखते वह इमारत रेत की तरह पहाड़ों से टकराते हुए नीचे जा गिरी। दिल में इस बात की टीस है कि जिस सहेली के यहां गई थी दुख की घड़ी में मैं उसके साथ नहीं रह सकी। भूकंप में सहेली की मां व पिता मलबे में दब गए।

by [प्रेम नारायण द्विवेदी]। 

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