शुक्रवार, 29 मई 2015

Gulab Jamuns Supervising 2013 Uttarakhand | udaydinmaan.in

Gulab Jamuns Supervising 2013 Uttarakhand | udaydinmaan.in

…और चिकन, मटन में मस्त थे अफसर

…और चिकन, मटन में मस्त थे अफसर

124066910069Uttarkashi
Srinagar : A view of damaged houses after rains and flood in Srinagar, Uttrakhand on Tuesday. PTI Photo by Manvender Vashist (PTI6_25_2013_000038B)
2013 उत्तराखंड त्रासदीः चिकन, मटन और गुलाबजामुन उड़ा रहे थे राहत कार्य में जुटे अधिकारी
उत्तराखंड में साल 2013 में आई विनाशकारी बाढ़ में फंसे लाखों लोगों को जहां पीने के लिए पानी तक नहीं मिल रहा था वहीं बाढ़ राहत कार्यों की निगरानी में लगे राज्य सरकार के अधिकारियों ने रोजाना हजारों रुपये का चिकन, मटन, दूध, पनीर और गुलाब जामुन उड़ाए.बाढ़ पीड़ित दाने दाने को मोहताज थे और ये अधिकारी होटलों में बैठकर मटन चाप, चिकन, दूध, पनीर और गुलाम जामुन खाते हुए राहत और बचाव कार्यों की निगरानी में व्यस्त थे. आधा लीटर दूध के लिए 194 रुपये और दोपहिया वाहनों के लिए डीजल की आपूर्ति, होटल में रहने के लिए रोज 7000 रुपये का क्लेम करने, एक ही व्यक्ति को दो बार राहत का भुगतान, लगातार तीन दिन तक एक ही दुकान से 1800 रेनकोट की खरीद और ईंधन खरीद के लिए एक हेलिकॉप्टर कंपनी को 98 लाख रुपये का भुगतान करने जैसी बड़ी बड़ी वित्तीय गड़बड़ियों का खुलासा एक आरटीआई आवेदन के जरिए हुआ है.उत्तराखंड के भीषण प्राकृतिक आपदा की चपेट में रहने के दौरान हुई इन कथित अनियमितताओं का संज्ञान लेते हुए राज्य के सूचना आयुक्त अनिल शर्मा ने सीबीआई जांच की सिफारिश की है. शिकायतकर्ता और नेशनल एक्शन फोरम फॉर सोशल जस्टिस के सदस्य भूपेंद्र कुमार की शिकायत पर सुनवाई करते हुए जारी 12 पन्नों के आदेश में शर्मा ने आरटीआई आवेदनों के जवाब में विभिन्न जिलों द्वारा उपलब्ध कराए गए बिलों का संज्ञान लिया है. इन आरटीआई आवेदनों में प्राकृतिक आपदा के दौरान राहत कार्यो में खर्च किए गए धन का ब्यौरा मांगा गया था. भीषण बाढ़ में तीन हजार लोग मारे गए थे और बहुत से अभी भी लापता हैं.अधिकारियों द्वारा उपलब्ध करवाए गए रिकॉर्ड के मुताबिक कुछ राहत कार्य 28 दिंसबर, 2013 को शुरू होकर 16 नवंबर, 2013 को समाप्त हो गए. पिथौरागढ़ में कुछ राहत कार्य 22 जनवरी, 2013 को शुरू हुए थे यानी बाढ़ आने से छह माह पहले ही. बाढ़ 16 जून, 2013 को आयी थी. शर्मा ने अपने आदेश में कहा, ‘अपीलकर्ता द्वारा पेश रिकॉर्ड्स से आयोग प्रथम दृष्टया मानता है कि शिकायतकर्ता की अपील और अन्य दस्तावेज उत्तराखंड के मुख्य सचिव के पास इस निर्देश के साथ भेजे जाएं कि ये बातें मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाई जाएं जिससे वह इन आरोपों पर सीबीआई जांच शुरू करने पर निर्णय ले सकें.’अपनी आरटीआई याचिकाओं पर जवाब में अधिकारियों से मिले 200 से अधिक पृष्ठों के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कुमार ने एसआईसी में सुनवाई के दौरान दावा किया कि एक ओर जहां लोग खुले आसमान के नीचे भूख से बिलबिला रहे थे तो वहीं बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित रूद्रप्रयाग जिले में अधिकारियों ने नाश्ते के लिए 250 रुपये, लंच के लिए 300 रुपये और डिनर के लिए 350 रुपये के क्लेम पेश किए. यानी रोजाना 900 रुपये केवल खाने पर.इन अधिकारियों ने राहत कार्यों की निगरानी के लिए होटल प्रवास के दौरान प्रति रात्रि 6750 रुपये के दावे भी पेश किए. कुमार ने इस ‘बेहिसाब खर्च’ पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि प्रति अधिकारी प्रति दिन करीब 7000 रुपए का खर्च आया. उन्होंने सुनवाई के दौरान रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि उन वाहनों के लिए 30 लीटर और 15 लीटर डीजल के बिल दिए गए हैं जिन पर स्कूटर, मोटरसाइकिल और तिपहिए वाहनों के नंबर थे जबकि ये वाहन पेट्रोल से चलते हैं और इनके ईंधन के टैंक इतने बड़े नहीं होते जितनी मात्रा बिलों में दर्शाई गई.कुमार ने यह दर्शाने के लिए भी रिकॉर्ड पेश किए कि चार दिनों के लिए 98 लाख रुपये का ईंधन बिल हेलीकॉप्टर कंपनी के लिए मंजूर किया गया. उन्होंने कहा, ‘ऐसे भी उदाहरण हैं जब अधिकारियों के होटल में ठहरने की अवधि 16 जून, 2013 को बाढ़ आने से पहले के रूप में दर्शाई गई है. आधा लीटर दूध की कीमत 194 रुपये दिखाई गई है जबकि बकरे का गोश्त, मुर्गी का मांस, अंडे, गुलाब जामुन जैसी चीजें भी बाजार दाम से बहुत ऊंची दरों पर खरीदी दिखाई गई हैं.’

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

गुरुवार, 28 मई 2015

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

अंतत: मिली ‘मुक्ति’ | udaydinmaan.in

अंतत: मिली ‘मुक्ति’ | udaydinmaan.in

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

बुधवार, 27 मई 2015

बदरी-केदारः बढे़ तीर्थयात्राी, खुले ‘रोजगार के द्वार’ | udaydinmaan.in

बदरी-केदारः बढे़ तीर्थयात्राी, खुले ‘रोजगार के द्वार’ | udaydinmaan.in

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

आयुर्वेदिक औषधी है काफल | udaydinmaan.in

आयुर्वेदिक औषधी है काफल | udaydinmaan.in

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

मंगलवार, 26 मई 2015

start air services from Chandigarh and Amritsar to Dehradun on urgent


harish rawat copy
New Delhi/Dehradun,Chief Minister Harish Rawat requested Union Minister for Civil aviation P. Ashok Gajapati Raju to start air services  from Chandigarh and Amritsar to Dehradun on urgent basis considering the Hemkund Sahib Yatra which is to start on 1st through a letter. He submitted proposal regarding developing the Pantnagar airport as a cargo hub for export of perishable goods. Restricted service of air India from Delhi to Pantnagar to be restored  . Chief Minister informed that Civil Aviation authority has adequate land for developing the jollygrant airport into MRO. More parking bays and new terminal building may be constructed for international flights at Jollygrant airport as it would income would increase  the income of Airport Authority of India. CM asserted in the letter that Uttarakhand, for its beautiful tourism and pilgrimage destinations, is positioned in the international tourism map. several thousand tourists pilgrims visit the state round the year and this is one of the prominent sectors which contribute in promoting economic activities thereby creating local employment and revenue for the state. Because of the limited revenue resources, state has been categorized as special category state by the government of India. For promoting its tourism and other related activities the state government has established a civil aviation development authority and under its wings it has three airfields in the hilly region and about sixty helipads being constructed. Augmentation of air services in Uttarakhand state is need of the hour and Union government’s kind cooperation is solicited on priority basis. State government is ready to provide necessary land for the airports expansion. CM requested that 24 hours operation of Jollygrant airport is necessary, especially night parking facilities which will facilitate a morning flights from Dehradun to Delhi and other places, that is not available presently. Under the air navigation service, two airports in the state namely Dehradun and Pantnagar need up gradation to CAT-2 and CAT-I ILS facilities to ensure uninterrupted air services to these destination. The three VFR air fields in the mountain region of the state should be exempted from the licensing requirements by the DGCA to undertake commuter air line operation. The reason being limited land availability to meet the ICAO’s licensing norms.  To promote the air connectivity in the state, 9-20 seater aircraft should be allowed to the unlicensed airports , the state government will extend all the infrastructural and services support for this. On the lines of Chhattisgarh government , night landing facilities at the helipads under the centeral aid to be extended to the state on the airports/helipads which are close to Indo-Tebetan and Indo-Nepal borders.

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

पारा 50 के पार,750 मरे | udaydinmaan.in

पारा 50 के पार,750 मरे | udaydinmaan.in

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

udaydinmaan.in | आपकी अपनी आवाज

बुधवार, 20 मई 2015

चारधम यात्रा ने पकड़ी ‘रफ्रतार’



अब तक एक लाख से अध्कि श्र(ालुओं ने किए बदरी-केदार के दर्शन, पर्यटक स्थलों में उमड़े सैलानी
आशुतोष डिमरी
देहरादून। वर्ष 2013 की हिमालयी त्रासदी के बाद उत्तराखंड के चारधमों में तीर्थयात्रियों और पर्यटकों रफ्रतार थम सी गई थी। लेकिन इस साल उत्तराखंड के चारोंधमों के कपाट खुलते ही यह रफ्रतार ध्ीरे-ध्ीरे बढ़ने लगी और अब रफ्रतार अपनी असली रूप में दिखने लग गयी है। श्री बदरीनाथ धम, श्री केदारनाथ, गंगोत्राी और यमुनोत्राी में श्र(ालुओं और पर्यटकों का जमावड़ा लगने लगा है। इससे जहां स्थानीय लोगों को पफायदा मिल रहा है वही राज्य में पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की बढ़ती आमद से सभी के चेहरों पर रौनक लौट आयी है।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 को आयी प्राकृतिक आपदा के बाद उत्तराखंड के चारधमों में जो जन और ध्न की हानि हुई थी और उत्तराखंड के चारधमों में आने के लिए तीर्थयात्राी और पर्यटक घबरा रहे थे। प्रदेश सरकार और मंदिर समिति के अथक प्रयासों से इस बार तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को उत्तराखंड के चारधमों और यहां के पर्यटक स्थलों को सुरक्षित बताने में सपफल रहे। यही कारण है कि इस साल तीर्थयात्रियों और पर्यटकों ने उत्तराखंड का रूख किया। इस साल श्री केदारनाथ के कपाट 24 अप्रैल और श्री बदरीनाथ के कपाट 26 अप्रैल और गंगोत्राी-यमुनोत्राी के कपाट अक्षय तृतीया को खोले गए थे। कपाट खुलते समय ही यहां तीर्थयात्रियों का हुजुम उमड़ गया था, जो उस समय से अभी तक जारी है। नित्य श्री केदारनाथ और श्री बदरीनाथ धम में तीर्थयात्रियों का भारी संख्या में आना लगातार जारी है। श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याध्किारी बीडी सिंह ने बताया कि श्री बदरीनाथ धम में अभी तक अस्सी हजार से अध्कि तीर्थयात्रियों और श्री केदारनाथ में चालीस हजार से अध्कि तीर्थयात्रियों ने भगवान विष्णु और भगवान भोलेनाथ के दर्शनों का पुण्य लाभ अर्जित किया है।
ज्ञात हो कि श्री बदरीनाथ धम में अभी तक 80 हजार से अध्कि श्र(ालु बदरीनाथ धम पहुंचकर भगवान के दर्शन कर चुके हैं। चमोली के जिलाध्किारी अशोक कुमार ने बताया कि तीर्थयात्रियों की संख्या में दिनप्रतिदिन इजापफा हो रहा है और तीर्थयात्राी जिले के पर्यटक स्थलों की भी सैर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्रशासन पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की सुरक्षा को लेकर सर्तक है और संबंध्ति विभागों को आवश्यक दिशा निर्देश जारी कर दिए गए हैं। केदारनाथ मंदिर समिति के कार्याध्किारी अनिल शर्मा ने बताया कि दिन प्रतिदिन केदारनाथ में तीर्थयात्राी की संख्या बढ़ रही है और जून में और अध्कि बढ़ने की उम्मीद है। केदारनाथ आपदा के बाद यात्रा व्यवस्था को पुराने ढर्रे पर लाना सरकार व प्रशासन के लिए चुनौती बनी हुई थी। सरकार ने 2014 में प्रतिदिन 500 यात्रियों को ही सोनप्रयाग से केदारनाथ रवाना करने का निर्णय लिया था। केदारनाथ में पांच सौ यात्रियों के रहने व खाने की व्यवस्था की गई थी, हालांकि यह संख्या कई बार 700 तक भी पहुंची। लेकिन, इस बार प्रशासन ने यात्रियों की संख्या बढ़ाते हुए प्रतिदिन 1500 यात्रियों को सोनप्रयाग से आगे रवाना करने का निर्णय लिया। यात्रियों की संख्या प्रशासन के अनुमान से कहीं अध्कि है। इन दिनों प्रतिदिन दो हजार से लेकर 2500 यात्राी बाबा के दर्शनों को पहुंच रहे हैं। इस मामले में रूद्रप्रयाग के जिलाध्किारी डा. राघव लंघर से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यात्रियों की बढ़ रही संख्या को लेकर प्रशासन पूरी तरह सतर्क है। केदारनाथ, लिनचोली व अन्य पड़ाव स्थालों पर यात्रियों के रहने व खाने की व्यवस्था बढ़ाई जा रही है।

चारधम यात्रा ने पकड़ी ‘रफ्रतार’

शनिवार, 16 मई 2015

dinmaan

http://udaydinmaan.in/

बीजिंग : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चीन दौरे का आज आखिरी दिन है। पीएम ने आज सुबह शंघाई में उद्योग जगत की हस्तियों के साथ बैठक की। चीन की 20 बड़ी कंपनियों के सीईओ से भी मिले। पीएम मोदी वर्ल्ड एक्सपो सेंटर में भारतीयों को संबोधित...
UDAYDINMAAN.IN

शुक्रवार, 15 मई 2015

आज भी दिलों में कसक


सीमाओं पर पहरे लगे तो मानो हिमालय में जमी बर्फ की तरह रिश्ते भी जम गए। आर्थिक तौर पर उबरने में इन्हें लंबा समय लगा, लेकिन भावनात्मक तौर पर आज भी दिलों में कसक मौजूद है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन पहुंचे तो चमोली जिले की नीति और माणा घाटी के 20 से ज्यादा गांवों में भी उम्मीद की लौ रोशन होने लगी। 55 साल पहले व्यापार के सिलसिले में बेरोकटोक तिब्बत तक आवाजाही करने वाले घाटी के लोगों के लिए भारत-चीन युद्ध के बाद सबकुछ खत्म हो गया।
सरहद के अंतिम गांव नीती में 85 साल के बुजुर्ग रणजीत राणा के लिए तिब्बत भावना से जुड़ा मुद्दा है। वह याद करते हैं कि 'वर्ष 1957 से पहले पिता के साथ वह व्यापार के लिए कई बार तिब्बत गए।' वह कहते हैं तिब्बत हमारे लिए दूसरे घर जैसा ही है। राणा को उम्मीद है कि दोनों देशों के रिश्ते सुधरे तो शायद उनके भी अच्छे दिन लौट आएं।
जोशीमठ से मलारी मार्ग पर है नीती घाटी और बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर है माणा घाटी। दोनों घाटियों के 20 से ज्यादा गांवों में भोटिया जनजाति के लोग रहते हैं। वर्ष 1959 तक घाटी के अधिकतर परिवार तिब्बत जाकर व्यापार करते थे। इसके लिए दो रास्ते थे एक माणा पास और दूसरा नीती पास। माणा पास से मूसा पानी और ग्यालढुंग होते हुए पैदल तीन दिन में तिब्बत पहुंचा जाता था, जबकि नीती पास से बाड़ाहोती और तुनजनला कस्बों को पार कर दो दिन की यात्रा थी। घाटी के लोग मिश्री, भेली (गुड़ का ही एक रूप), कपड़े, राशन, दाल और मिठाई इत्यादि ले जाते थे और वहां से नमक, ऊन, घी और सोने चांदी के आभूषण लाते थे। वर्ष 1959 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया तो आना जाना कम हो गया व 62 के युद्ध के बाद आवागमन पूरी तरह से बंद हो गया।
नीती घाटी में गमशाली गांव के निवासी उत्तराखंड के पूर्व पर्यटन मंत्री केदार सिंह फोनिया के पिता स्व.माधो सिंह फोनिया भी इलाके व्यवसायियों में शामिल थे। केदार सिंह फोनिया याद करते हैं कि 'वर्ष 1948 में हाइस्कूल की परीक्षा के बाद मैं भी पिता के साथ तिब्बत की जाफा मंडी गया था।' वह बताते हैं कि यहां के व्यापारियों की तिब्बत के जाफा, गरतोक, बुंबा शहरों में दुकानें और मकान भी थे। फोनिया कहते हैं दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध रहेंगे तो व्यापार को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
तिब्बत की चर्चा होते ही गमशाली गांव के 98 वर्षीय बाल ंिसह चौहान के चेहरे पर आज भी चमक आ जाती है। कभी व्यापार के सिलसिले में तिब्बत जा चुके बाल सिंह कहते हैं उस दौर में हम इतने सुखी थे कि हमारे गांव के लोग सरकारी सेवा में जाना ही पसंद नहीं करते थे। नीती घाटी के बांपा गांव निवासी 95 साल के लखन ंिसह पाल को इतना सुकून है कि दोनों देशों के बीच रिश्तों की बेहतर पहल हुई है। वह कहते हैं 'मालूम नहीं पुराने दिनों की वापसी देखने के लिए मैं जीवित रहूंगा या नहीं, लेकिन इतना विश्वास है कि अच्छे दिन अवश्य लौटैंगे।'


देवेंद्र रावत

शनिवार, 9 मई 2015

maa

माँ वेदों की मूल चेतना
माँ गीता की वाणी-सी
माँ त्रिपिटिक के सिद्ध सुक्त-सी
लोकोक्तर कल्याणी-सी
माँ द्वारे की तुलसी जैसी
माँ बरगद की छाया-सी
माँ कविता की सहज वेदना
महाकाव्य की काया-सी
माँ अषाढ़ की पहली वर्षा
सावन की पुरवाई-सी
माँ बसन्त की सुरभि सरीखी
बगिया की अमराई-सी
माँ यमुना की स्याम लहर-सी
रेवा की गहराई-सी
माँ गंगा की निर्मल धारा
गोमुख की ऊँचाई-सी
माँ ममता का मानसरोवर
हिमगिरि-सा विश्वास है
माँ श्रृद्धा की आदि शक्ति-सी
कावा है कैलाश है
माँ धरती की हरी दूब-सी
माँ केशर की क्यारी है
पूरी सृष्टि निछावर जिस पर
माँ की छवि ही न्यारी है
माँ धरती के धैर्य सरीखी
माँ ममता की खान है
माँ की उपमा केवल है
माँ सचमुच भगवान है।

शुक्रवार, 8 मई 2015

फिर ‘डोलेगी’ धरती

भूकंप के मुहाने पर भारत की महानगरीय आबादीउनेपाल में आया 7.9 तीव्रता का भूकंप, जानमाल का भारी नुकसान, पोखरा रहा भूकंप का केंद्रउजनकपुर के जानकी मंदिर को भारी नुकसान, नेपाल का प्रसि( धरहरा टावर भी ढहा हिमालय के हिमखंड पिघलकर समुद्र का जलस्तर बढ़ा रहे है। आशंका है कि दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले बांग्लादेश के कई भंखड समुद्र में जल-समाधि ले लेंगे। लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि नष्ट हो जाएगी। वर्षा चक्र प्रभावित होगा। नतीजतन जनता को बाढ़ और सूखा दोनों तरह के अभिशाप झेलने होंगे। इस साल भारत के बहुत बड़े भूभाग में यही हश्र देखने में आया है। हालांकि इस बद्तर स्थिति में कुदरत का यह करिश्मा भी देखने में आ सकता है कि कनाडा और रूस की हिमशिलाओं के नीचे दबी लाखों बीघा जमीन बाहर निकल आएगी। बावजूद विनाश की आंशकाएं कहीं ज्यादा हैं,लिहाजा बेहतर यह होगा कि इंद्रिय-सुख पहुंचाने वाली भोग-विलस की संस्कृति पर लगाम लगे? इसी पर केंद्रित यह खास स्टोरी।








संतोष बेंजवाल

एशिया के हिमालयी प्रायद्वीपीय इलाकों में बीते सौ वर्षों से धरती के खोल की विभिन्न दरारों में हलचल मची है। अमेरिका की प्रसि( साइंस पत्रिका ने कुछ वर्ष पहले भविष्यवाणी की थी कि हिमालयी क्षेत्र में एक भयानक भूकंप आना शेष है। यह भूकंप आया तो 5 करोड़ से भी ज्यादा लोग प्रभावित होंगे। इस त्रासदी में करीब 2 लाख लोग मारे भी जाएंगे? हालांकि पत्रिका ने इस पुर्वानुमानित भूकंप के क्षेत्र,समय और तीव्रता सुनिश्चित नहीं किए हैं। लेकिन नेपाल के साथ भारत, चीन, बांग्लादेश, तिब्बत, भूटान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में एक साथ भूकंप के प्रकोप से डोली धरती ने एहसास करा दिया है कि वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी महज अटकल नहीं है। अमेरिका की भूगर्भीय संस्था यूएसजीएस ने माना है कि यह ताजा भूकंप भारतीय और अरेबियन परतों में हुए तीव्र घर्षण की वजह है। 81 साल के भीतर नेपाल में आया यह सबसे भयंकर भूकंप था। भूकंप का केंद्र काठमांडू से 40 मील दूर पश्चिम इलाके में लामजुंग था,जो कि ज्यादा जनसंख्या वाले क्षेत्र में आता है। नतीजतन मरने वालों की तादात 10 हजार तक पहुंच सकती है।

दुनिया के नामचीन विशेषज्ञों व पर्यावरणविदों की मानें तो सभी भूकंप प्राकृतिक नहीं होते,बल्कि इन्हें विकराल बनाने में हमारा भी हाथ होता है। प्राकृतिक संसाधनों के अकूत दोहन से छोटे स्तर के भूकंपों की पृष्ठभूमि तैयार हाती है। भविष्य में इन्हीं भूकंपों की व्यापकता और विकरालता बढ़ जाती है। यही कारण है कि भूकंपों की आवृत्ति बढ़ रही है। पहले 13 साल में एक बार भूकंप आने की आशंका बनी रहती थी,लेकिन यह अब घटकर 4 साल हो गई है। अमेरिका में 1973 से 2008 के बीच प्रति वर्ष औसतन 21 भूकंप आए,वहीं 2009 से 2013 के बीच यह संख्या बढ़ कर 99 प्रति वर्ष हो गई। यही नहीं भूकंपीय विस्फोट के साथ निकलने वाली ऊर्जा भी अपेक्षाकृत ज्यादा शक्तिशाली हुई है। नेपाल में 25 अप्रैल 2015 को आए भूकंप से 20 थर्मोन्यूक्लियर हाइड्रोजन बमों के बराबर ऊर्जा निकली है। इनमें से प्रत्येक विस्फोट हिरोशिमा-नागाशाकी में गिराए गए परमाणु बम से भी कई गुना शक्तिशाली था। जाहिर है, धरती के गर्भ में अंगड़ाई ले रही भूकंपीय हलचलें महानगरीय आधुनिक विकास और आबादी के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती हैं? वैसे हमारे यहां भूकंपीय दृदृष्टि से जो भयावह संवेदनशील क्षेत्र हैं,उनमें अनियंत्रित शहरीकरण और आबादी का घनत्व सबसे ज्यादा है। भारत की यही वह धरती है,जिसका 57 प्रतिशत हिस्सा उच्च भूकंपीय क्षेत्र में आता है। इसी पूरे क्षेत्र में 25 अप्रैल शनिवार को धरा डोल चुकी है। बावजूद सौ स्मार्ट सिटी बसाने के बहाने शहरी विकास को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
दुनियाभर के भूकंप व भूगर्भीय बदलावों की विश्वसनीय जानकारी देने वाले यूएसजीएस का कहना है कि भारतीय व अरेबियन परतों के बीच होने वाली टक्कर का सबसे ज्यादा असर हिमालय पर्वतमाला में बसे क्षेत्रों में पड़ेगा। इसे दुनिया के सबसे सक्रिय भूगर्भीय गतिविधियों के तौर पर भी देखा जाता है। इन परतों के बीच लगातार घर्षण बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप केदारनाथ में भूस्खलन, जम्मू-कश्मीर में बाढ़, नेपाल एवं भारत में भूकंप और तिब्बत में भूकंप, हिमपात व भूस्खलन की घटनाएं एक साथ देखने में आई हैं। तिब्बत के टिंगरी काउंटी के रॉग्जर कस्बों में 95 फीसदी से ज्यादा घर जमींदोज हो गए हैं। भारतीय और अरेबियन परतों की यह खतरनाक श्रृखंला जम्मू-कश्मीर से शुरू होकर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, तिब्बत, नेपाल, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम व भूटान होती हुई अंडमान निकोबार द्वीप समूह तक फैली है। सक्रिय भूगर्भीय गतिविधियों के निरंतर चलते रहने के कारण ही हिमालय पर्वत श्रृखंला में कच्चे पहाड़ अस्तित्व में आए हैं।
प्राकृतिक आपदाएं अब व्यापक विनाशकारी इसलिए साबित हो रही हैं,क्योंकि धरती के बढ़ते तापमान के कारण वायुमंडल भी परिवार्तित हो रहा है। अमेरिका व ब्रिटेन समेत यूरोपीय देशों में दो शताब्दियों के भीतर बढ़ी अमीरी इसकी प्रमुख वजहों में से एक है। औद्योगिक क्रांति और शहरीकरण इसी की उपज हैं। यह कथित क्रांति कुछ और नहीं प्राकृतिक संपदा का अंधाधुंध दोहन करके पृथ्वी को खोखला करने के ऐसे उपाय हैं,जो ब्रहाण्ड में फैले अवयवों में असंतुलन बढ़ा रहे है। नतीजतन जो कार्बन गैसें बेहद न्यूनतम मात्रा में बनती थीं,वे अधिकतम मात्रा में बनने लगीं और वायुमंडल में उनका इकतरफा दबाव बढ़ गया। फलतः धरती पर पड़ने वाली सूरज की गर्मी प्रत्यावर्तित होने की बजाय,धरती में ही समाने लगी,गोया धरती का तापमान बढ़ने लगा,जो जलवायु परिवर्तन का कारण बन रहा है। चूंकि प्रकृति अमीरी-गरीबी में भेद नहीं करती है,इसलिए इसकी कीमत गरीब देश,मसलन विकासशील देशों को भी चुकानी पड़ रही है।
भारत का 57 फीसदी भू-क्षेत्र धरती की कोख में अठखेलियां कर रही उच्च भूकंपीय तरंगों से प्रभावित है। इसे भारतीय मानक ब्यूरो ने 5 खतरनाक क्षेत्रों में बांटा है। यह विभाजन अंतरराष्ट्रीय मानक 1893 के मानदंडों के अनुसार किया गया है। क्षेत्र एक में पश्चिमी मध्य-प्रदेश,पूर्वी महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और ओड़ीसा के भू-भाग आते हैं। इस क्षेत्र में सबसे कम भूकंप का खतरा है। दूसरे क्षेत्र में तमिलनाडू, राजस्थान, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और हरियाणा हैं। यहां भूकंप की शंका बनी रहती है। तीसरे क्षेत्र में केरल, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिमी राजस्थान,पूर्वी गुजरात,उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं। इसमें भूकंप के झटके के आते रहते हैं। चैथे में मुबंई,दिल्ली जैसे महानगर,जम्मू-कश्मीर,हिमाचल प्रदेश,पश्चिमी गुजरात,उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ बिहार-नेपाल सीमा के इलाके शामिल हैं। यहां भूकंप का खतरा निरंतर है। यहां 8 की तीव्रता वाला भूकंप आ सकता है। इससे भी खतरनाक पांचवा क्षेत्र माना गया है। इसमें गुजरात का कच्छ व भुज क्षेत्र,उत्तराखंड का हिमालयी क्षेत्र और पूर्वोत्तर के सातों राज्य आते हैं। यहां भूकंप 9 की तीव्रता का आकर तबाही का आलम रच सकता है। हैरानी की बात यह है कि खतरनाक भूकंपीय क्षेत्रों की जानकारी हमारे पास है। बावजूद हम इन संवेदनशील क्षेत्रों में नगरों का विकास भूकंप-रोधी मानदण्डों के अनुरूप नहीं कर रहे हैं। भवन निर्माण तो छोड़िए,उत्तराखंड में टिहरी जैसे बड़े बांघ का निर्माण करके हमने खुद भविष्य की तबाही को न्यौता दिया है। हमारी बढ़ी व सधन घनत्व वाली बसाहटें भी उन संवेदनशील क्षेत्रों में हैं,जहां खतरनाक भूकंपों की आशकाएं सबसे ज्यादा हैं। इन बसाहटों में दिल्ली,मुबंई,कोलकत्ता समेत 38 महानगर हैं,जो भूकंप के मुहाने पर खड़े हैं। शहरीकरण से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की जुलाई 2014 में आई रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली 2.5 करोड़ की आबादी के साथ 3.80 करोड़ अबादी वाले टोक्यो के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर बन गया है। 2030 तक दिल्ली की आबादी 3.60 करोड़  हो जाएगी। फिलहाल मुबंई में 2.10 करोड़ और कोलकात्ता में 1.5 करोड़ जनसंख्या है। जाहिर है,आबादी के दबाव से इन नगरों का भूकंप रोधी नियोजित बुनियादी विकास असंभव है। तय है,इन नगरों में यदि कालांतर में भूकंप आया तो उसकी भयावहता का अंदाजा लगाना मुश्किल है ? क्योंकि जापान तो आए दिन आने वाले भूकंपों से अभ्यस्त हो गया है। इसलिए जब जापान के फृकिशियामा में 2011 में 8.5 तीव्रता वाला भूकंप आया था तो वहां बमुश्किल सौ लोगों की जानें गई थीं,जबकि भारत जैसी मानसिकता वाले नेपाल में 7.9 की तीव्रता का भूकंप आया तो 5000 से भी ज्यादा मौतें हो गईं। इसलिए अनियंत्रित शहरीकरण से भारत को खतरा इसलिए ज्यादा है,क्योंकि यहां किसी भी नगर की नगरीय योजना भूकंप-रोधी बुनियाद पर खड़ी ही नहीं की गई है ? जबकि दिल्ली,मुबंई और कोलकात्ता भूकंपीय ऊर्जा के मुहानों पर बसे हैं। लिहाजा समय रहते सचेत होने की जरूरत है। सरकार को सौ स्मार्ट शहर बसाने की बजाय,विकास की ऐसी नीति को क्रियान्वित करने की जरूरत है,जो गांव और छोटे कस्बों में रहते हुए लोगों को रोजगार, आवास,शिक्षा, स्वास्थ्य, विघुत संचार,और परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराएं। इससे एक साथ दो लक्ष्यों की पूर्ति होगी। ग्रामों से पलायन रूकेगा और शहर बेतरतीन विकास से बचेंगे और बाईदवे भूकंप का संकट आया भी तो जनहानि भी कम से कम होगी।
भूकंप समुद्री, तूफान, चक्रवती हवाएं और जलवायु परिवर्तन का भय दिखाकर अकसर यह कहा जाता है कि कार्बन का उत्सर्जन कम करके पृथ्वी को बचालो,अन्यथा पृथ्वी नष्ट हो जाएगी। यहां गौरतलब है कि पृथ्वी करीब 450 करोड़ वर्ष पहले वजूद में आई,जबकि मनुष्य की उत्त्पत्ति दो लाख साल पहले अफ्रीका में हुई मानी जाती हैं। हमें ख्याल रखने की जरूरत है कि जब-जब प्राकृतिक आपदा के रूप में प्रलय आई है, तब-तब पृथ्वी का बाल भी बांका नहीं हुआ है? महज कुछ क्षेत्रों में उसका स्वरूप परिवर्तन हुआ है। लेकिन बदलाव के इस संक्रमण काल में डाइनोसोर और मैमथ जैसे विशालकाय थलीय प्राणी जरूर हमेशा के लिए नष्ट हो गए? गोया खंड-खंड आ रही प्रलय की इन चेतावनियों से मनुष्य को सावधान होने की जरूरत है।
भूकंप की भविष्यवाणी का क्या है सच?
क्या भूकंप का पूर्वानुमान लगाना संभव है? क्या वैज्ञानिकों को ये मालूम हो सकता है कि कब और कहां भूकंप आ सकता है? विज्ञान की तमाम आधुनिकताओं के बाद भी ये संभव नहीं है। लेकिन भूकंप आने के बाद उसके असर के दायरे में, ये बताना संभव है कि भकूंप के झटके कहाँ, कुछ सेकेंड बाद आ रहे हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि सोशल मीडिया में भूकंप आने के बारे में लगाए जा रहे कयास और टिप्पणियां बेबुनियाद और वैज्ञानिक तौर पर अतार्किक हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के प्रोफेसर चंदन घोष बताते हैं, भूकंप के केंद्र में तो नहीं, लेकिन उसके दायरे में आने वाले इलाकों में कुछ सेकेंड पहले वैज्ञानिक तौर पर ये बताया जा सकता है कि वहां भूकंप आने वाला है। हालांकि कुछ सेकेंड का समय बेहद कम होता है। यही वजह है कि इसको लेकर पहले कोई भविष्यवाणी नहीं की जाती है। चंदन घोष कहते हैं, भारत परिपेक्ष्य में तो ये संभव भी नहीं है। लेकिन जापान में कुछ सेकेंड पहले भूकंप का पता लग जाता है। लेकिन वहां भी सार्वजनिक तौर पर इसकी मुनादी नहीं की जाती है। लेकिन इसकी मदद से बुलेट ट्रेन और परमाणु संयंत्रों को आटोमेटिक ढंग से रोक दिया जाता है। प्रोफेसर चंदन घोष बताते हैं, जब कोई भूकंप आता है तो दो तरह के वेव निकलते हैं, एक को प्राइमरी वेव कहते हैं और दूसरे को सेकेंडरी या सीयर्स वेव। प्राइमरी वेव औसतन 6 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से चलती है जबकि सेकेंडरी वेव औसतन 4 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से। इस अंतर के चलते प्रत्येक 100 किलोमीटर में 8 सेकेंड का अंतर हो जाता है। यानी भूकंप केंद्र से 100 किलोमीटर दूरी पर 8 सेकेंड पहले पता चल सकता है कि भूकंप आने वाला है। इस लिहाज से देखें तो मौजूदा वैज्ञानिक क्षमताओं को देखते हुए भूकंप के बारे में भविष्यवाणी करना नामुमकिन है। लेकिन सेंकेड के अंतर से जान माल के नुकसान को कुछ कम किया जा सकता है। चंदन घोष के मुताबिक जापान और ताइवान जैसे देशों में इस तकनीक के इस्तेमाल से नुकसान काफी कम हो सकता है। हालाँकि सोशल मीडिया में भकूंप के आने को लेकर कयासबाजी की जा रही है जो निर्रथक है। ये माना जाता रहा है कि भूकंप आने की जानकारी चूहे, सांप और कुत्ते को पहले हो जाती है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर आनंद कुमार कहते हैं, चूहे और सांप तो पृथ्वी के अंदर ही रहते हैं तो उन्हें निश्चित तौर पर पहले पता चल सकता है। कुत्तों में भी भांपने की क्षमता होती है। ये मानना काफी हद तक सच हो सकता है, लेकिन इस दिशा में वैज्ञानिकों ने अब तक ज्यादा शोध नहीं किया है।
इससे भी बड़ा भूकंप आ सकता है?
भूकंप के बाद नेपाल की राजधानी काठमांडू से आनेवाली तस्वीरें दिल दहला देने वाली हैं। यूनेस्को विश्व धरोहर की सूची में शामिल दरबार स्क्वायर मलबे में तब्दील हो गया। नेपाल में अक्सर भूकंप आते रहते हैं। यह दुनिया के सबसे सक्रिय भूकंप क्षेत्र में आता है। इसे समझने के लिए हिमालय की संरचना और पृथ्वी के अंदर की हलचल पर नजर दौड़ानी पड़ेगी। दरअसल भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के यूरेशिनय टेक्टोनिक प्लेट ;मध्य एशियाईद्ध के नीचे दबते जाने के कारण हिमालय बना है। पृथ्वी की सतह की ये दो बड़ी प्लेटें कघ्रीब चार से पांच सेंटीमीटर प्रति वर्ष की गति से एक दूसरे की ओर आ रही हैं। इन प्लेटों की गति के कारण पैदा होने वाले भूकंप की वजह से ही एवरेस्ट और इसके साथ के पहाड़ ऊंचे होते गए। विज्ञान मामलों के जानकार पल्लव बागला के अनुसार, हिमालय के पहाड़ हर साल करीब पांच मिलीमीटर ऊपर उठते जा रहे हैं। इंग्लैंड में ओपन यूनीवर्सिटी में प्लेनेटरी जियोसाइंसेज के प्रोफेसर डेविड रोथरी का कहना है, भारतीय प्लेट के ऊपर हिमालय का दबाव बढ़ रहा है, मुख्यतः इस तरह के दो या तीन फॉल्ट हैं. इन्हीं में किसी प्लेट के खिसकने से यह ताजा भूकंप आया होगा। बड़े से बड़े भूकंप में भी नुकसान के शुरुआती आंकड़े बहुत कम होते हैं और बाद में ये बढ़ता जाता है। आशंका इस बात की है कि इस भूकंप के मामले में भी मरने वालों की संख्या बहुत ज्यादा होगी। यह सिर्फ इसलिए नहीं है कि भूकंप की तीव्रता बड़ी थी- रिक्टर स्केल पर 7.8 की तीव्रता। बल्कि चिंता इस बात की है कि इस भूकंप का केंद्र बहुत उथला था-लगभग 10 से 15 किलोमीटर नीचे। इसके कारण सतह पर कंपन और गंभीर महसूस होता है। विनाशकारी भूकंप के बाद कम से कम 14 हल्के झटके आए थे। इनमें से अधिकांश चार से पांच की तीव्रता के थे। इसमें एक 6.6 तीव्रता का भी झटका शामिल है। याद रहे कि रिक्टर स्केल पर तीव्रता में हरेक अंक की कमी का मतलब है, बड़े भूकंप से 30 फीसदी कम उर्जा का मुक्त होना। लेकिन जब इमारतें पहले से ही जर्जर होती हैं तो एक छोटे से छोटा झटका भी किसी ढांचे को जमीदोज करने के लिए पर्याप्त होता है। अनुमान यह है कि इस इलाके की अधिकांश आबादी ऐसे घरों में रह रही है, जो किसी भी भूकंप के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हैं।पहले के अनुभवों को देखते हुए सबसे बड़ी चिंता होगी भूस्खलन की आशंका।हो सकता है कि इस पहाड़ी क्षेत्र में कोई गांव मुख्य आबादी से कट गया हो या ऊपर से गिरने वाले पत्थरों या कीचड़ में दफन हो गया हो।
आपातकालीन घटना से निपटने में व्यस्त प्रशासन के लिए यह एक और चुनौती होगी और इसका मतलब होगा कि सूचना धीरे-धीरे सामने आएगी और आपस में विरोधाभासी होगी। हिमालयी क्षेत्र पर नजर डालें तो पता चलता है कि, 1934 में बिहार में 8.1 तीव्रता का भूकंप आया था। वर्ष 1905 में 7.5 तीव्रता का भूकंप कांगड़ा में आया और वर्ष 2005 में 7.6 तीव्रता का भूकंप कश्मीर में आया था।

बचा रहा देवी का निवास

नेपाल में सदियों से एक बच्ची को देवी की तरह पूजने की परम्परा चली आ रही है। कुमारी के नाम से मशहूर इस बाल-देवी को काठमांडू और नेपाल की रक्षक के तौर पर पूजा जाता है और इनका संबंध शाक्य समुदाय से होता है। गौतम शाक्य का परिवार उन दर्जन भर परिवारों में से है जिनके जिम्मे देवी की सुरक्षा का काम है। उन्होंने बताया, जब भूकंप आया तब हम लोग पहली मंजिल पर थे और तुरंत उतर कर ग्राउंड फ्लोर पर आ गए। लेकिन देवी घर में ही रहीं और उन्हीं की कृपा से इस घर में सब सकुशल रहा। हालांकि यह भी हकीकत है कि कुमारी के घर के सामने काठमांडू का प्रसि( दरबार स्क्वेयर था जो अब मलबे में तब्दील हो चुका है। इसमें करीब चार सौ वर्ष पुराने मंदिर थे जिसमे काष्टमंडप नामक एक 40 मीटर ऊंची इमारत भी थी जो भूकंप में धराशाई हो गई। लेकिन हैरानी की बात है कि लगभग उसी तर्ज पर लकड़ी और ईंट से बना कुमारी निवास अब भी अपनी जगह खड़ा हुआ है। गौतम शाक्य ने बताया कि घर में थोड़ी बहुत दरार तो पड़ी है लेकिन सब सकुशल है। उन्होंने कहा, देवी की कृपा है बस कि यह ठिकाना बच गया और किसी को क्षति नहीं पहुंची। वरना सामने के मंदिरों का तो नामोनिशान मिट चुका है। इन दिनों मतीना शाक्य यानी काठमांडू की कुमारी नेपाल में हिन्दू धर्म की दुर्गा का अवतार समझी जाती हैं। इनकी पूजा पूरे नेपाल में होती है और जब वे जवान हो जाती हैं तब उनकी जगह एक दूसरी कुमारी का चयन किया जाता है। गौतम शाक्य का मानना है कि कुमारी की शक्तियों के चलते ही उनका घर भूकंप से प्रभावित नहीं हुआ और ऐसा ही 1934 के भूकंप के दौरान भी हुआ था। नेपाल में कई कुमारियों की पूजा होती है लेकिन कुमारी या देवी को सबसे पवित्र या ताकतवर समझा जाता है।

भारत के कामों पर मीडिया ने फेरा पानी

अगर सोशल मीडिया लोगों की भावनाओं का आइना है तो भारतीय मीडिया के अच्छे दिन गए या जाने वाले हैं। ट्विटर पर कुछ लोगों ने लिखा, भारतीय मीडिया को न तो पड़ोसी चाहते हैं और न ही देशवासी। एक नाराज व्यक्ति ने ट्वीट किया, जहाँ भी जाओ, लेकिन देश वापस मत आना। तो एक और ट्वीट में लिखा गया, आत्महत्या कर लो मगर देश वापस मत आना। नेपाली पत्रकारों के अनुसार भारतीय सरकार के जबरदस्त राहत कार्यों पर भारतीय मीडिया की असंवेदनशीलता ने पानी फेर दिया। वे कहते हैं कि भारतीय मीडिया ने मोदी के नाम की माला जपी जिसे वहां के लोगों ने पसंद नहीं किया। नेपाल में भारत के अलावा कई दूसरे देश भी राहत-बचाव कार्यों में लगे हैं। भारतीय मीडिया को नेपाल के भूगोल, इतिहास और यहाँ की प्राकृतिक परिस्थितियों की जानकारी नहीं है। वो नेपाल के प्रति अपने अज्ञान या बेवकूफियों को ज्ञान की तरह पेश करने लगे। नतीजा ये हुआ कि यहाँ के मध्यम वर्ग में कुछ असंतोष फैलने लगा। भारतीय मीडिया कहने लगी कि मोदी नेपाल के उ(ारक हैं जबकि सभी देशों के लोग राहत का काम कर रहे थे। भारतीय मीडिया को लगने लगा कि वो एक बहुत बड़े देश से आए हैं और वो जहाँ चाहे जा सकते हैं, उन्हें किसी की इजाजत की जरूरत नहीं। इसे नन्हा देश कहते हैं, ये 3 करोड़ का देश है, दुनिया में 40-50 बड़े देशों में नेपाल की गिनती होती है फिर भी भारतीय मीडिया इसे नन्हा देश कहती है जिसे लोग पसंद नहीं करते।  इस बार भारतीय मीडिया ने अपना संतुलन खो दिया। उन्हें अपनी सरकार के काम को कितना बढ़ावा देना चाहिए, और कितनी आजादी लेनी चाहिए इस में मीडिया संतुलन नहीं ला पाई। भारत नेपाल में अधिक लोकप्रिय नहीं है। इसका कारण भारतीय दूतावास का नेपाल के अंदरूनी मामलों में खुले तौर पर हस्तक्षेप करना है।
प्रकृति का उपहार भी
नेपाल में 25 अप्रैल को आए विनाशकारी भूकंप में जहां एक और व्यापक स्तर पर तबाही का मंजर देखने को मिला। वहीं, इससे देश को एक उपहार भी मिला है। भूकंप के बाद अचानक ही नेपाल में कई स्थानों पर भूमिगत जल स्रोत फिर से जाग्रत हो गए हैं और उनमें से पानी निकलना शुरू हो गया है। समाचार पत्र हिमालयन टाइम्स के मुताबिक, कई सालों बाद महादेवस्थान गांव और मातातीर्थ गांव में जल स्रोतों से पानी का सोता स्वतः ही शुरू हो गया है। सूत्रों के मुताबिक, इन स्रोतों से पानी निकल रहा है और अब ग्रामीणों के पास पीने के लिए, सफाई के लिए, नहाने और खाना पकाने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी है। अधिकतर ग्रामीणों का कहना है कि नवनिर्मित घरों की वजह से अवरु( हो चुके जमीन के नीचे मौजूद पानी के स्रोत भूकंप की वजह से फिर से खुल गए हैं और अब लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी की आपूर्ति हो रहा है। ठीक इसी तरह, महादेवस्थान के पास सुनधरा में भी जल स्रोत से पानी निकलने लगा है। महादेवस्थान के एक निवासी ने कहा, तीन से चार साल पहले ये परंपरागत स्रोत सूख गए थे। मुझे अभी भी याद है कि तीन साल पहले सुनधरा जलस्रोत से पानी की आपूर्ति होती थी, लेकिन यह अचानक सूख गया। इन प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त पानी को शु( करने के लिए ग्रामीण फिल्टर का इस्तेमाल नहीं करते। भूकंप और भूकंपीय झटकों के बाद खुले स्थानों पर रह रहे लोगों के लिए ये पानी के स्रोत एक वरदान की तरह हैं। महादेवस्थान की निवासी रबिना मिश्रा ;26द्ध कहती हैं, हमें इस संकट की घड़ी में पीने के पानी के लिए सरकारी टैंकरों पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है। हमें हमारे शिविरों के पास इन जल स्रोतों से बह रहे ताजा और स्वच्छ पानी की प्राप्ति हो रही है।

दिल्ली में नेपाल सा भूकंप आया तो?

नेपाल में विनाशकारी भूकंप के बाद से भारत में चिंता की लकीरें गहराती जा रहीं हैं। नेपाल में आए 7.8 तीव्रता वाले भूकंप से बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में जान-माल का नुकसान हुआ जबकि राजधानी दिल्ली तक झटके महसूस किए गए थे। अब बहस इस पर छिड़ी है कि अगर सिस्मिक जोन-4 के अंतर्गत आने वाली दिल्ली में नेपाल सी तीव्रता वाला जलजला आया तब क्या होगा? जानकार सिस्मिक जोन-4 में आने वाले भारत के सभी बड़े शहरों की तुलना में दिल्ली में भूकंप की आशंका ज्यादा बताते हैं। मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहर सिस्मिक जोन-3 की श्रेणी में आते हैं। भूगर्भशास्त्री कहते हैं कि दिल्ली की दुविधा यह भी है कि वह हिमालय के निकट है जो भारत और यूरेशिया जैसी टेक्टानिक प्लेटों के मिलने से बना था और इसे धरती के भीतर की प्लेटों में होने वाली हलचल का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। इंडियन एसोसिएशन आफ स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स के अध्यक्ष प्रोफेसर महेश टंडन को लगता है कि दिल्ली में भूकंप के साथ-साथ कमजोर इमारतों से भी खतरा है। उन्होंने कहा, हमारे अनुमान के मुताबिक, दिल्ली की 70-80 प्रतिशत इमारतें भूकंप का औसत से बड़ा झटका झेलने के लिहाज से डिजाइन ही नहीं की गई हैं। पिछले कई दशकों के दौरान यमुना नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर बढ़ती गईं इमारतें खास तौर पर बहुत ज्यादा चिंता की बात है क्योंकि अधिकांश के बनने के पहले मिट्टी की पकड़ की जांच नहीं हुई है। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले आदेश दिया था कि ऐसी सभी इमारतें जिनमें 100 या उससे अधिक लोग रहते हैं, उनके ऊपर भूकंप रहित होने वाली किसी एक श्रेणी का साफ उल्लेख होना चाहिए। फिलहाल तो ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र की एक बड़ी समस्या आबादी का घनत्व भी है। लगभग डेढ़ करोड़ वाली राजधानी दिल्ली में लाखों इमारतें दशकों पुरानी हैं और तमाम मोहल्ले एक दूसरे से सटे हुए बने हैं। भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार दिल्ली और उत्तर भारत में छोटे-मोटे झटके या आफ्टरशाक्स तो आते ही रहेंगे लेकिन जो बड़ा भूकंप होता है उसकी वापसी पांच सौ वर्ष में जरूर होती है और इसीलिए ये चिंता का विषय भी है। वैसे भी दिल्ली से थोड़ी दूर स्थित पानीपत इलाके के पास भूगर्भ में फाल्ट लाइन मौजूद है जिसके चलते भूकंप की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। सवाल यह भी है कि दिल्ली भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए कितनी तैयार है। सार्क डिजास्टर मैनेजमेंट सेंटर के निदेशक प्रोफेसर संतोष कुमार को लगता है कि पहले की तुलना में अब भारत ऐसी किसी आपदा से बेहतर निपट सकता है। उन्होंने बताया, देखिए आशंकाएं सिर्फ अनुमान पर आधारित होती हैं। अगर हम लातूर में आ चुके भूकंप को ध्यान में रखें तो निश्चित तौर पर दिल्ली में कई भवन असुरक्षित हैं। लेकिन बहुत सी जगह सुरक्षित भी हैं। सबसे अहम है कि हर नागरिक ऐसे खतरे को लेकर सजग रहे और सरकारें प्रयास करें कि नियमों का उल्लंघन कतई न हो। सेंटर फार साइंस एंड एनवायरनमेंट की अनुमिता रॉय चैधरी का भी मानना है कि दिल्ली में हजारों ऐसी इमारतें हैं जिनमें रेट्रोफिटिंग यानी भूकंप निरोधी मरम्मत की सख्त जरूरत है।

भयानक था तबाही का मंजर!

नेपाल में 25 अप्रैल को आए विनाशकारी भूकंप में अपने भयावह अनुभव को याद करते हुए सुधा उपाध्याय का कहना है कि उस वक्त मुझे ऐसा लगा कि दीवारें पास आ रही हैं और मैं इनके बीच दबकर मर जाऊंगी। उपाध्याय ;54द्ध ने बताया कि जब भूकंप आया, वह टेलीविजन देख रही थीं। अचानक, टीवी पर एक संदेश प्रसारित हुआ। अब मुझे लगता है कि वह संदेश एक चेतावनी थी। उन्होंने कहा कि चंद सेकंड के भीतर ही उनका घर हिलने लगा। सुधा ने 1974 में बनी हालीवुड फिल्म ‘अर्थक्वेक’ से इस भूकंप की तुलना करते हुए कहा, ‘ठीक जिस तरह से फिल्मों में दिखाया जाता है, घर हिलने लगा। मैं मुश्किल से ही दरवाजे तक पहुंच पाई और दरवाजे को मजबूती से पकड़कर मंत्र पढने लगी। मुझे लगा बस अब सब कुछ खत्म है।’ नेपाल में 25 अप्रैल को विनाशकारी भूकंप आया था, जिसकी रिक्टर पैमाने पर तीव्रता 7.9 थी। इसमें 6,500 से अधिक लोगों की मौत हो गई है और 14,000 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोईराला के मुताबिक, भूकंप में मरने वालों की संख्या 10,000 तक जा सकती है। उपाध्याय अपने पति और सास के साथ ज्ञानेश्वर में रहती हैं, जो घनी आबादी वाला पॉश इलाका है। उपाध्याय की सास दमयंती (81) ने बताया, ‘मैं सो रही थी कि अचानक से बिस्तर तेजी से हिलने लगा। मैंने जैसे-तैसे कर एक कुर्सी पकड़ी और उसे पकड़कर बैठ गई।’ भूकंप के झटकों से घबराकर सुधा व उनका पूरा परिवार और उनके पड़ोसी बाहर भागे और कई घंटों तक वहीं रहे। सुधा के पति फणींद्र उपाध्याय ;60द्ध, पोखरा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं और जिस समय भूकंप आया, वह एक कार्यशाला का संचालन कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘भूकंप की वजह से दीवारें हिलने की वजह से वह और उनके विद्यार्थी कक्षाओं से बाहर भागे। मैं डेढ़ घंटे बाद ही सुधा से बात कर पाया। मेरी कार जमीन से दो फुट ऊपर उछल रही थी। मैंने ऐसा कुछ पहले कभी नहीं देखा था।’ परिवार ईश्वर का शुक्रगुजार है कि वह इस भूकंप से बच गया, लेकिन उनकी संवेदना भूकंप में मारे गए लोगों के प्रति हैं। ज्यादार नेपाली लोगों की यह कहानी है। नेपाल में 1934 में इस तरह का बड़ा भूकंप आया था। नेपाल में शनिवार को आए भूकंप से भारी तबाही हुई है और इसे 1932 के बाद सबसे बड़ा भूकंप माना जा रहा है। नेपाल में भूकंप आते रहते हैं और इसीलिए उसे दुनिया से सबसे ज्यादा भूकंप संभावित इलाकों में एक माना जाता है। लेकिन वहां इतने भूकंप क्यों आते हैं, ये समझने के लिए आपको हिमालय को देखना होगा। इस क्षेत्र में पृथ्वी की इंडियन प्लेट ;भारतीय भूगर्भीय परतद्ध यूरेशियन प्लेट के नीचे दबती जा रही है और इससे हिमालय ऊपर उठता जा रहा है। हर साल लगभ पांच सेंटीमीटर ये प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे जा रही है और इससे हर साल हिमालय पांच मिलीमीटर ऊपर उठता जा रहा है। इससे वहां के चट्टानों के ढांचे में एक तनाव पैदा हो जाता है। जब ये तनाव चट्टानों के बर्दाश्त के बाहर हो जाता है तो ये भूकंप आता है। अभी दुनिया में कोई भी वैज्ञानिक ये अंदाजा नहीं लगा सकता है कि दुनिया में कब कहां और कितनी तीव्रता वाला भूकंप आएगा, लेकिन वैज्ञानिक इतना जरूरत मानते हैं कि हिमालयी क्षेत्र में बड़ा भूकंप आने की आशंका है। वैज्ञानिक प्रयास कर रहे है कि कोई ऐसा तरीका तलाशा जाए जिससे भूकंप के आने की संभावना का पता लगाया जाए, लेकिन अभी इसमें कोई कामयाबी नहीं मिली है।

बुधवार, 6 मई 2015

उदय दिनमान मई 2015 अंक कवर पेज


तुंगनाथ अपने धाम रवाना


ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ अपने स्थल तुंगनाथ धाम के लिए रवाना हो गए। तुंगनाथ की उत्सव डोली रात्रि विश्राम के लिए पहले पड़ाव भूतनाथ मंदिर पहुंची। भगवान शिव की विदाई अवसर पर गांव में पौणखी मेले का आयोजन किया गया। पंचाग गणना के आधार पर पूर्व में तय की गई तिथि के अनुसार बुधवार को भगवान तुंगनाथ मध्य हिमालय स्थित अपने ग्रीष्मकाल प्रवास तुंगनाथ धाम के लिए रवाना हो गए। भगवान तुंगनाथ की शीतकालीन गद्दी स्थल मक्कूमठ स्थित मार्कंडेय मंदिर में सुबह से ही तैयारियां शुरू हो गई थी। वेदपाठी और ब्राह्मणों ने पूजा अर्चना शुरू की। इसके पश्चात करीब दस बजे तुंगनाथ की उत्सव डोली को मंदिर के गर्भ गृह से बाहर लाया गया, जहां ग्रामीणों व भक्तों ने भगवान तुंगनाथ के दर्शन किए। सुबह करीब 11 बजे भगवान की उत्सव डोली ने अपने पहले पड़ाव स्थल भूतनाथ मंदिर के लिए प्रस्थान किया। इस दौरान भगवान शिव को विदा करने के लिए डोली के साथ भारी संख्या में ग्रामीणों का हुजूम  उमड़ पड़ा। 12 बजे तुंगनाथ की उत्सव डोली भूतनाथ मंदिर के समीप एक खेत में पहुंची, जहां पौणखी मेले का आयोजन किया गया। इस मेले के बारे में कहा जाता है कि अपने अराध्य भगवान शिव को कैलाश भेजने के पावन दिवस पर ग्रामीण इस मेले का आयोजन करते है। इसमें ग्रामीण अपने व अपने परिवार की कुशलक्षेम के लिए इस मेले का आयोजन करते हैं। मेले के दौरान दोपहर एक बजे भगवान शिव को स्थानीय व्यंजनों का भोग लगाया गया। तत्पश्चात करीब दो बजे डोली को भूतनाथ मंदिर में ले जाया गया, जहां डोली रात्रि विश्राम करेगी। गुरूवार को तुंगनाथ की डोली दूसरे पड़ाव चोपता व शुक्रवार को डोली अपने धाम तुंगनाथ पहुंचेगी। इसी दिन मंदिर के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। इस मौके पर मठापति रामप्रसाद मैठाणी, रविन्द्र मैठाणी, सुबोध मैठाणी, महेशानंद मैठाणी, मुकेश मैठाणी, सुरेन्द्र मैठाणी समेत भारी संख्या में ग्रामीण मौजूद थे।

चारधाम उमड़ने लगा कारवां

अभी तक हजारों लोगों ने किए बाबा केदार व बदरीविशाल के दर्शन

आशुतोष डिमरी
बदरीनाथ। भारत के चारधमों में से सर्वश्रेष्ठ धम श्री बदरीनाथ समेत उत्तराखंड के अन्य धमों के रूपों में प्रसि( गंगोत्राी, यमुनोत्राी व केदारनाथ में अब देश-विदेश से पहुंचने वाले तीर्थयात्रियों के रूप में श्र(ा का कारवां दौड़ पड़ा है। अलवत्ता इस बीच गढ़वाल में स्थित पंचकेदारों में कई मंदिर व पंचबदरी के मंदिर के कपाट खुलने के बाद एक बार पिफर हिमालय में भक्ति का संगम दिखने लगा है। बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग के पूरी तरीके से खुल जाने के बाद अब )षिकेश से बदरीनाथ तक सुचारू रूप से छोटे व बडे़ वाहनों की आवाजाही से श्र(ालु तीर्थयात्रियों की सहूलियत बढ़ने लगी हैं।
गौरतलब है कि हर साल अप्रैल के आखिरी सप्ताह अथवा मई के प्रारंभ में बदरीनाथ धम समेत उत्तराखंड के अन्य तीर्थ स्थलों के कपाट खुलने के बाद देश व विदेश का श्र(ालु भारी संख्या में उत्तराखंड की ओर उमड़ता दिखाई दे रहा है। हालांकि वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आयी भीषण आपदा के बाद तीर्थाटन व पर्यटन प्रभावित होने लगा था, लेकिन इस साल 21 अप्रैल को गंगोत्राी-यमुनोत्राी के साथ कपाट खुलने का सिलसिला शुरू हुआ। 24 अप्रैल को केदारबाबा और 26 अप्रैल को बदरीनाथ धम के कपाट खुलने के बाद शुरूआती दौर में जिस तरह तीर्थयात्राी उत्तराखंड पहुंचने लगे हैं उससे यात्रा में इस साल कापफी इजापफा होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। भारत में चारधमों के रूपों में प्रसि( द्वारका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम व बदरीनाथ की मान्यता प्राचीनकाल से सर्वसम्मत है और इन चारों धामों में से हिमालय में स्थित जहां बदरीनाथ धम को सर्वश्रेष्ठ धम के रूप में माना जाता है वही 12 ज्योर्तिलिंगों में से 11वें ज्योर्तिलिंग के रूप में केदारनाथ का स्थान प्रमुख है। यही वजह है कि हर साल कोसो मील दूर का सपफर तय कर लाखों की संख्या में तीर्थयात्रियों का कारवां बदरी-केदार की ओर दौड़ पड़ता है और भगवान के दर्शन का पुण्य लाभ अर्जित करता है।तीर्थयात्रा को सुखद व निरापद बनाने के लिए शासन के आला अध्किारी समेत जिला प्रशासन को हर स्थिति पर अपनी पैनी नजर बनाये रखने के लिए सरकार ने निर्देश जारी किए हैं ताकी तीर्थयात्रियों को किसी भी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पडे़। गढ़वाल मंडलायुक्त सी.एस. नपलच्याल ने बताया कि शुरूआती दौर में गंगोत्राी-यमुनोत्राी व बदरी-केदार में अच्छी संख्या में तीर्थयात्रियों ने दर्शन किये हैं। उन्होंने बताया कि यात्रा से जुडे़                  सभी संबंध्ति विभागों को तमाम व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने के कडे़ निर्देश दिए गए हैं।
श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्यकायाध्किारी बी.डी. सिंह ने बताया कि अभी तक करीब तीस हजार से अधिक तीर्थयात्राी भगवान बदरीविशाल के दर्शन कर चुके हैं। जबकि केदारनाथ में सोलह हजार से अध्कि श्र(ालु बाबा केदार के चरणों में अपना मत्थ टेक चुके हैं। उन्होंने बताया कि अभी तक बदरीनाथ में मंदिर समिति को चढ़ावे के रूप में 35 लाख व केदारनाथ में 19 लाख की आमदनी हुई है। उन्होंने बताया कि अब दिन प्रतिदिन यात्रियों की संख्या में वृ(ि हो रही है। श्री सिंह ने उम्मीद जताई है कि मई माह के दूसरे पखवाडे़ के शुरू होते ही तीर्थयात्रियों की संख्या में भारी वृ(ि होगी। उध्र, मंदिर समिति के अध्यक्ष गणेश गोदियाल समेत बदरीनाथ व केदारनाथ मंदिर से जुडे़ तमाम धार्मिक पंचायतों ने श्र(ालु तीर्थयात्रियों से गंगोत्राी,यमुनोत्राी, बदरी-केदार पहुंचकर दर्शन का पुण्य लाभ अर्जित करने की अपील की है।

मंगलवार, 5 मई 2015

‘अतृप्त आत्माओं’ को ‘अपनों का इंतजार’

‘अतृप्त आत्माओं’ को ‘अपनों का इंतजार’

udaydinmaan: ‘अतृप्त आत्माओं’ को ‘अपनों का इंतजार’

udaydinmaan: ‘अतृप्त आत्माओं’ को ‘अपनों का इंतजार’: सरकारी हवन और विशेष पूजा के बाद भी नहीं खुल पाये मृतकों के लिए मोक्षधम के द्वार देश-विदेश के सैकड़ो प्रतिदिन पहुंच कर रहे हैं केदारनाथ ...

‘अतृप्त आत्माओं’ को ‘अपनों का इंतजार’



सरकारी हवन और विशेष पूजा के बाद भी नहीं खुल पाये मृतकों के लिए मोक्षधम के द्वारदेश-विदेश के सैकड़ो प्रतिदिन पहुंच कर रहे हैं केदारनाथ में  अपने कालग्रस्त हुए लोगों का पिण्डदान करनेसैकड़ों अतुप्त आत्माएं खड़ी हैं  मार्ग पर अपनों के इंतजार में

संतोष बेंजवाल
केदारनाथ। वर्ष 2013 की हिमालयी सुनामी ने केदार घाटी में देश-विदेश के सैकड़ों लोगों को काल ने अपना ग्रास बनाया। हिन्दू ध्र्म के अनुसार जो लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं उनकी आत्मा तब तक इस ध्रा पर भटकती रहती है जब तक उनके अपने तीर्थ स्थल पर उनका पिण्डदान नहीं करते हैं। इस बात को कोई माने या न माने लेकिन यह सत्य है कि केदार घाटी में वर्ष 2013 की सुनामी में भी देश-विदेश के सैकड़ों लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों के परिजनों ने हालांकि अपने-अपने तरीके से अकाल मृत्यु को प्राप्त अपनों के लिए वह सब किया जो हिन्दू ध्र्म के अनुसार किया जाता है। इसके बाद भी केदारघाटी में काल के ग्रास बने उन लोगों की आत्मा अभी तक तृप्त नहीं हुई। ऐसा मानना मेरा नहीं बल्कि यात्रा शुरू होने के बाद गौरीकुंड से केदारनाथ मार्ग पर चलने वाले लोगों का है। खासकर जो लोग वहां डंडी, कंडी, घोड़ा-खच्चर और अन्य कार्य कर रहे हैं उनका कहना है कि इस मार्ग पर चलते हुए ऐसा आभास हो रहा है कि जैसे कोई उन्हें देख रहा है। हालांकि इस हलचल के बाद डर तो नहीं लग रहा हैं, लेकिन यह महसूस हो रहा है कि इस स्थान पर मरे लोगों की अतृप्त आत्माएं आने-जाने वालों में अपनों की तलाश कर रहे हैं। ताकी वे केदारनाथ में उनका पिण्डदान करें और वे मोक्षधम की और आगे बढ़े।
उल्लेखनीय है कि आपदा में अकेले केदारघाटी में दस हजार से अध्कि लोग अकाल मौत को प्राप्त हुए थे। उस समय स्थिति ऐसी थी कि यहां शवों को खोजने में भारी परेशानियां हुई। जो शव मिले उनका अंतिम संस्कार तो किया गया, लेकिन शायद विध् िविधन से नहीं। यही कारण है कि वह आत्माएं आज भी अतृप्त हैं और अपने का इंतजार कर रही हैं कि उनके अपने आये और उनका केदारनाथ में पिण्डदान कर उन्हें मोक्ष धम जाने के लिए रास्ता दें। हालांकि केदानाथ घाटी में अलग-अलग स्थानों पर आपदा के शिकार हुए लोगों का अंतिम संस्कार उत्तराखंड सरकार द्वारा किया तो गया, लेकिन उस समय विकट परिस्थितियों के चलते शायद मृतकों का अंतिम संस्कार सही नहीं हो पाया। इसके बाद सरकार ने सभी मृतकों की आत्मा की शांति और बाबा केदार की शु(िकरण के लिए एक सामुहिक यक्ष और अनुष्ठान भी करवाया। लेकिन देश-विदेश के उन सैकड़ों मृत लोगों की आत्मा को तो उनके अपने ही मुक्ति दे सकते हैं। शायद इसी वजह से उनकी अतृप्त आत्माएं अपनों का इंतजार में हैं और वह हर आने-जाने वाले में अपनों की खोज कर रहे हैं। पौराणिक मान्यता है कि मरने के बाद केदारनाथ में पिण्डदान करने से मृतक की आत्मा मोक्षधम की ओर चली जाती है। मोक्षधम में उसी आत्मा को प्रवेश मिलता है जिनके अपनों ने पिण्डदान किया हो और उसके बाद वह दूसरा जन्म लेने के हकदार होते हैं। यह मैं नहीं हमारे शास्त्रों में इसका उल्लेख है जो सदियों से चला आ रहा है। वर्ष 2013 और 2014 में केदारनाथ धाम में तीर्थयात्रियों को आना बहुत कम रहा, लेकिन इस साल कपाट खुलते ही यहां तीर्थयात्रियों की आमद में दिन प्रतिदिन बढौत्तरी हो रही है। शायद यही आशा उन अतृप्त आत्माओं को भी है कि इस साल शायद उनके अपने यहां जरूर आयेंगे।

‘अतृप्त आत्माओं’ को ‘अपनों का इंतजार’


उसरकारी हवन और विशेष पूजा के बाद भी नहीं खुल पाये मृतकों के लिए मोक्षधम के द्वार
उदेश-विदेश के सैकड़ो प्रतिदिन पहुंच कर रहे हैं केदारनाथ में  अपने कालग्रस्त हुए लोगों का पिण्डदान करने
उसैकड़ों अतुप्त आत्माएं खड़ी हैं  मार्ग पर अपनों के इंतजार में
संतोष बेंजवाल
केदारनाथ। वर्ष 2013 की हिमालयी सुनामी ने केदार घाटी में देश-विदेश के सैकड़ों लोगों को काल ने अपना ग्रास बनाया। हिन्दू ध्र्म के अनुसार जो लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं उनकी आत्मा तब तक इस ध्रा पर भटकती रहती है जब तक उनके अपने तीर्थ स्थल पर उनका पिण्डदान नहीं करते हैं। इस बात को कोई माने या न माने लेकिन यह सत्य है कि केदार घाटी में वर्ष 2013 की सुनामी में भी देश-विदेश के सैकड़ों लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों के परिजनों ने हालांकि अपने-अपने तरीके से अकाल मृत्यु को प्राप्त अपनों के लिए वह सब किया जो हिन्दू ध्र्म के अनुसार किया जाता है। इसके बाद भी केदारघाटी में काल के ग्रास बने उन लोगों की आत्मा अभी तक तृप्त नहीं हुई। ऐसा मानना मेरा नहीं बल्कि यात्रा शुरू होने के बाद गौरीकुंड से केदारनाथ मार्ग पर चलने वाले लोगों का है। खासकर जो लोग वहां डंडी, कंडी, घोड़ा-खच्चर और अन्य कार्य कर रहे हैं उनका कहना है कि इस मार्ग पर चलते हुए ऐसा आभास हो रहा है कि जैसे कोई उन्हें देख रहा है। हालांकि इस हलचल के बाद डर तो नहीं लग रहा हैं, लेकिन यह महसूस हो रहा है कि इस स्थान पर मरे लोगों की अतृप्त आत्माएं आने-जाने वालों में अपनों की तलाश कर रहे हैं। ताकी वे केदारनाथ में उनका पिण्डदान करें और वे मोक्षधम की और आगे बढ़े।
उल्लेखनीय है कि आपदा में अकेले केदारघाटी में दस हजार से अध्कि लोग अकाल मौत को प्राप्त हुए थे। उस समय स्थिति ऐसी थी कि यहां शवों को खोजने में भारी परेशानियां हुई। जो शव मिले उनका अंतिम संस्कार तो किया गया, लेकिन शायद विध् िविधन से नहीं। यही कारण है कि वह आत्माएं आज भी अतृप्त हैं और अपने का इंतजार कर रही हैं कि उनके अपने आये और उनका केदारनाथ में पिण्डदान कर उन्हें मोक्ष धम जाने के लिए रास्ता दें। हालांकि केदानाथ घाटी में अलग-अलग स्थानों पर आपदा के शिकार हुए लोगों का अंतिम संस्कार उत्तराखंड सरकार द्वारा किया तो गया, लेकिन उस समय विकट परिस्थितियों के चलते शायद मृतकों का अंतिम संस्कार सही नहीं हो पाया। इसके बाद सरकार ने सभी मृतकों की आत्मा की शांति और बाबा केदार की शु(िकरण के लिए एक सामुहिक यक्ष और अनुष्ठान भी करवाया। लेकिन देश-विदेश के उन सैकड़ों मृत लोगों की आत्मा को तो उनके अपने ही मुक्ति दे सकते हैं। शायद इसी वजह से उनकी अतृप्त आत्माएं अपनों का इंतजार में हैं और वह हर आने-जाने वाले में अपनों की खोज कर रहे हैं। पौराणिक मान्यता है कि मरने के बाद केदारनाथ में पिण्डदान करने से मृतक की आत्मा मोक्षधम की ओर चली जाती है। मोक्षधम में उसी आत्मा को प्रवेश मिलता है जिनके अपनों ने पिण्डदान किया हो और उसके बाद वह दूसरा जन्म लेने के हकदार होते हैं। यह मैं नहीं हमारे शास्त्रों में इसका उल्लेख है जो सदियों से चला आ रहा है। वर्ष 2013 और 2014 में केदारनाथ धाम में तीर्थयात्रियों को आना बहुत कम रहा, लेकिन इस साल कपाट खुलते ही यहां तीर्थयात्रियों की आमद में दिन प्रतिदिन बढौत्तरी हो रही है। शायद यही आशा उन अतृप्त आत्माओं को भी है कि इस साल शायद उनके अपने यहां जरूर आयेंगे।
‘अतृप्त आत्माओं’ को ‘अपनों का इंतजार’
उसरकारी हवन और विशेष पूजा के बाद भी नहीं खुल पाये मृतकों के लिए मोक्षधम के द्वार
उदेश-विदेश के सैकड़ो प्रतिदिन पहुंच कर रहे हैं केदारनाथ में  अपने कालग्रस्त हुए लोगों का पिण्डदान करने
उसैकड़ों अतुप्त आत्माएं खड़ी हैं  मार्ग पर अपनों के इंतजार में

संतोष बेंजवाल
केदारनाथ। वर्ष 2013 की हिमालयी सुनामी ने केदार घाटी में देश-विदेश के सैकड़ों लोगों को काल ने अपना ग्रास बनाया। हिन्दू ध्र्म के अनुसार जो लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं उनकी आत्मा तब तक इस ध्रा पर भटकती रहती है जब तक उनके अपने तीर्थ स्थल पर उनका पिण्डदान नहीं करते हैं। इस बात को कोई माने या न माने लेकिन यह सत्य है कि केदार घाटी में वर्ष 2013 की सुनामी में भी देश-विदेश के सैकड़ों लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों के परिजनों ने हालांकि अपने-अपने तरीके से अकाल मृत्यु को प्राप्त अपनों के लिए वह सब किया जो हिन्दू ध्र्म के अनुसार किया जाता है। इसके बाद भी केदारघाटी में काल के ग्रास बने उन लोगों की आत्मा अभी तक तृप्त नहीं हुई। ऐसा मानना मेरा नहीं बल्कि यात्रा शुरू होने के बाद गौरीकुंड से केदारनाथ मार्ग पर चलने वाले लोगों का है। खासकर जो लोग वहां डंडी, कंडी, घोड़ा-खच्चर और अन्य कार्य कर रहे हैं उनका कहना है कि इस मार्ग पर चलते हुए ऐसा आभास हो रहा है कि जैसे कोई उन्हें देख रहा है। हालांकि इस हलचल के बाद डर तो नहीं लग रहा हैं, लेकिन यह महसूस हो रहा है कि इस स्थान पर मरे लोगों की अतृप्त आत्माएं आने-जाने वालों में अपनों की तलाश कर रहे हैं। ताकी वे केदारनाथ में उनका पिण्डदान करें और वे मोक्षधम की और आगे बढ़े।
उल्लेखनीय है कि आपदा में अकेले केदारघाटी में दस हजार से अध्कि लोग अकाल मौत को प्राप्त हुए थे। उस समय स्थिति ऐसी थी कि यहां शवों को खोजने में भारी परेशानियां हुई। जो शव मिले उनका अंतिम संस्कार तो किया गया, लेकिन शायद विध् िविधन से नहीं। यही कारण है कि वह आत्माएं आज भी अतृप्त हैं और अपने का इंतजार कर रही हैं कि उनके अपने आये और उनका केदारनाथ में पिण्डदान कर उन्हें मोक्ष धम जाने के लिए रास्ता दें। हालांकि केदानाथ घाटी में अलग-अलग स्थानों पर आपदा के शिकार हुए लोगों का अंतिम संस्कार उत्तराखंड सरकार द्वारा किया तो गया, लेकिन उस समय विकट परिस्थितियों के चलते शायद मृतकों का अंतिम संस्कार सही नहीं हो पाया। इसके बाद सरकार ने सभी मृतकों की आत्मा की शांति और बाबा केदार की शु(िकरण के लिए एक सामुहिक यक्ष और अनुष्ठान भी करवाया। लेकिन देश-विदेश के उन सैकड़ों मृत लोगों की आत्मा को तो उनके अपने ही मुक्ति दे सकते हैं। शायद इसी वजह से उनकी अतृप्त आत्माएं अपनों का इंतजार में हैं और वह हर आने-जाने वाले में अपनों की खोज कर रहे हैं। पौराणिक मान्यता है कि मरने के बाद केदारनाथ में पिण्डदान करने से मृतक की आत्मा मोक्षधम की ओर चली जाती है। मोक्षधम में उसी आत्मा को प्रवेश मिलता है जिनके अपनों ने पिण्डदान किया हो और उसके बाद वह दूसरा जन्म लेने के हकदार होते हैं। यह मैं नहीं हमारे शास्त्रों में इसका उल्लेख है जो सदियों से चला आ रहा है। वर्ष 2013 और 2014 में केदारनाथ धाम में तीर्थयात्रियों को आना बहुत कम रहा, लेकिन इस साल कपाट खुलते ही यहां तीर्थयात्रियों की आमद में दिन प्रतिदिन बढौत्तरी हो रही है। शायद यही आशा उन अतृप्त आत्माओं को भी है कि इस साल शायद उनके अपने यहां जरूर आयेंगे।

शनिवार, 2 मई 2015

Policy and Development of Micro, Mini and Small

Dehradun,
Chief Minister Harish Rawat addressed a workshop as a Chief guest organized   at Institute of Engineers in Uttarakhand State Center on the subject  “ Policy and Development of Micro, Mini and Small   Hydro Electric Projects in Uttarakhand State” He expected active participation  of Panchayat Representatives strengthening the village economy as well as helping the state government’s efforts.
Micro, Mini and Small Hydro Electric Projects Policy will promote the economic empowerment in our villages. Village’s economy will be self-dependent.The state government has established policy structure by expanding the role of Panchayats to ensure the community participation. Chief Minister asserted that Micro, Mini and Small  Hydro Electric Projects policy is unique initiative of government to empower the Gram Panchayats economically. Ninety  percent subsidy is granted under this policy. Gram Panchayats have to select a partner for commercial, technical assistance and for capital investment
UREDA, UJVNL, KMVN and GMVN can become partners in these HEPs. HEPs up to 2 MW have been completely reserved for Gram Panchayats. Gram Panchayats will be preferred for developing the HEPs of 2-5 MW. Director, UREDA has been instructed to prepare a working plan concerned with Solar Energy Production with partnership of Gram Panchayats in Haridwar and Udham Singh Nagar districts.
Chief Minister stated that initiatives should be taken by Gram Panchayts to promote the farming of fruits, walnut, medicinal herbs and water conservation through the “Chal-Khal” on community base. State Government will fully co-operate.
Secretary Energy Dr.  Umakant Pawar, informed that Micro HEPs will be allotted under the Micro, Mini and Small Hydro Electric Projects Policy in Baram, Birahi and Jimmigad of Pithoragarh District and in Purkul and Nada of Dehradun District till the end of May, 2015.  Gram Panchayats will be allotted 36 projects till the end of this financial year. Jal Vidhut Nigam and UREDA will impart  training for skill development at Block level. Micro Hydro Projects up to 2 MW have been reserved for Local Gram Panchayats.  Projects of 2-5 MW have been reserved for Panchayati Raj Institutions, community based institutions, Industrial institutions and Joint Public sector undertakings.
Prior to this, Chief Minister inaugurated the Soil and Concrete Testing laboratory at Institute of Engineers in Uttarakhand State Center.

शुक्रवार, 1 मई 2015

श्रद्धालुओं को ‘पगडंडियों’ का ‘सहारा’

८उत्तराखंड के चारधामों में नित्य पहुंच रहे है सैकडों भक्त
८पैदल यात्रा कर आनंद की अनुभूति कर रहे हैं भक्त
८चारधाम यात्रा को लेकर प्रदेश सरकार का मीडिया मैनेजमैंट हो रहा है फैल
८मीडिया कर रहा है दुष्प्रचार कि यात्रा बंद है, लेकिन यात्रा चल रही सुचारू
८बदरीनाथ धाम की यात्रा पैदल कर रहे है तीर्थयात्री, भक्त खुश पर मीडिया नाखुश



संतोष बेंजवाल 

 मेरा ओण से हर्ष हो कै त हैल्यो...। गढ नरेश नरेंद्र सिंह नेगी के इस दर्द भरे गीत की पक्तियों को सुन मन की गहराईयों में जाने को मजबूर हुआ। इसके पीछे कारण यह है कि वर्ष २०१३ की हिमालयी सुनामी के बाद उत्तराखंड की आर्थिकी पर जो संकट आया और आपदा के जख्मों को भरने के लिए उत्तराखंड की चारधाम यात्रा का चलना अति आवश्यक है। क्योंकि यहां की सरकार ने आपदा पीडितों को तो दो साल से उनको उनके हाल पर छोडा हुआ है। राज्य के खासकर रूद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी सहित अन्य जनपदों के लोगों की उम्मीदों को पंख तब लगे जब चारधाम यात्रा शुरू हुई और लोगों के चेहरों की चमक देखते ही बन रही थी। लेेकिन बदरीनाथ धाम यात्रा मार्ग पर मौसम की मार से यात्रा प्रभावित हो रही है और सरकार की नाकामी के कारण मीडिया इसे जोर-शोर से प्रचारित कर रही है। इस कारण देश-विदेश से उत्तराखंड आने वाले तीर्थयात्री और पर्यटक यहां का रूख करने से कतरा रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि अकेले बदरीनाथ धाम यात्रा मार्ग पर बाधा है वह भी सीधे बदरीनाथ धाम तक वाहन नहीं जा पा रहे हैं, लेकिन जहां पर मार्ग बंद है वहां से तीर्थयात्री पैदल भगवान बदरीविशाल के दर्शनों के लिए जा रहे हैं। वही अन्य धामों में जाने के सभी मार्ग खुले हैं और मीडिया यात्रा को रोकने का कार्य कर रहा है। सरकार का मीडिया मैनेजमैंट यहां पर फैल साबित हो रहा है। इसके पीछे की असली वजह क्या है यह तो सरकार ही जाने, लेकिन यहां खबरनबीसों के लिए कि- मेरा ओण से हर्ष हो कै त हैल्यो...। सटीक बैठ रही है। कुछ खबरनवीस शायद यह नहीं चाहते हैं कि प्रदेश की चारधाम यात्रा सुचारू चले। अगर ऐसा नहीं होता तो यात्रा बंद की अफवाह नहीं फैलाते। यहां यह उल्लेख करना चाहूंगा कि अधिसंख्य खबरनवीस देहरादून में बैठकर खबरों का पोस्टमार्टम करते हैं। जबकि केदारनाथ,      
गंगोत्री, यमुनोत्री और बदरीनाथ यात्रा मार्ग अगर बंद भी होता है तो तीर्थयात्री पैदल यात्रा करते हैं। यह तो सदियों से चली आ रही प्रथा है कि भगवान के दर्शनों को ज्यादा तो नहीं पर कुछ अगर पैदल चला जाय तो यात्रा सफल होती है। इस बात को तीर्थयात्री जानते हैं और वह जहां पर मार्ग बंद है वहां पर पैदल चलकर अपनी यात्रा पूरी करते हैं।उल्लेखनीय है कि राज्य में देर रात एक साथ अधिकांश जगह पर मौसम का मिजाज बिगड़ा रहा। मगर सुबह होते-होते मौसम खुल गया। धामों में भी शुक्रवार को मौसम ठीक रहा। मगर मंगल और बुध की बारिश ने बद्रीनाथ धाम मार्ग में भूस्खलन पैदा कर श्रद्धालुओं की राह में अड़चन डालने का काम किया। विष्णु प्रयाग के समीप हुए भूस्खलन से गुरूवार की तड़के करीब दो सौ मीटर मार्ग का हिस्सा बाधित हो गया था। यह मार्ग आज भी यात्रा के लिए नहीं खुल सका।  बीआरओ की टीम ड्रिल मशीनों और डोजर की मदद से भारी बोल्डरों को मार्ग से हटाने का काम जोरों से कर रही हैं। सूत्रों की माने तो कल भी पूरे दिन मार्ग खुलने के आसार नहीं दिख रहे। जबकि पाण्डूकेश्वर और गोविन्दघाट में फंसे सभी श्रद्धालुओं को शुक्रवार को सेना के हेलीकॉप्टर की मदद से जोशीमठ पहुंचा दिया गया। जोशीमठ में स्थानीय जिला प्रशासन की ओर से श्रद्धालुओं के लिए खाने, दवाओं और ठहरने के बंदोबस्त किए हैं। जबकि मुख्य मार्ग क्षतिग्रस्त होने से यात्रा में भले ही रूकावट आ रही हो, मगर काफी संख्या में श्रद्धालुओं ने पट्टीदार पैदल मार्ग का सहारा लेकर बदरीधाम के दर्शन भी किए।

अलकनंदा नदी में बनी झील से किसी तरह का खतरा नहींः जिलाध्किारी
मौसम ने दी राहत, काम ने रफ्रतार 

शुक्रवार को गढ़वाल के मंडलायुक्त और चमोली के जिलाधिकारी ने मलबा गिरने से अलकनंदा में बनी झील का निरीक्षण किया। गुरुवार को हाथीपहाड़ से गिरी मलबे से बनी 200 मीटर लंबी झील करीब 10 मीटर गहरी बताई जा रही है। निरीक्षण के बाद चमोली के जिलाध्किारी अशोक कुमार ने बताया कि झील से किसी तरह का खतरा नहीं है, लेकिन मार्ग दुरुस्त करने में जुटे सीमा सड़क संगठन ;बीआरओद्ध को मलबा हटाने में एहतियात बरतने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि मार्ग खोलने के बाद तत्काल अलकनंदा के बहाव को सामान्य करने के प्रयास किए जाएंगे। दूसरी ओर गढ़वाल आयुक्त सीएस नपच्याल ने भूस्खलन जोन का जायजा लेकर बीआरओ के अध्किारियों से वार्ता की। शुक्रवार को मौसम ने राहत दी तो मलबा हटाने के काम ने रफ्रतार पकड़ी। बीआरओ के जवान सुबह छह बजे ही काम में जुट गए। शाम तक करीब पचास मीटर दूरी तक मलबा हटा दिया गया। गौरतलब है कि मंगलवार से बंद सड़क पर गुरुवार को हाथीपहाड़ से हुए जबरदस्त भूस्खलन से 150 मीटर सड़क ध्ंस गई और 500 मीटर मलबे में दब गई। जोशीमठ से बदरीनाथ की ओर 12 किलोमीटर दूर स्थित हाथीपहाड़ से आए मलबे को सापफ करने में अभी तीन दिन और लग सकते हैं। बीआरओ के द्वितीय कमान अध्किारी दिव्य विकास ने बताया कि मलबा झील से दूर पफेंका जा रहा है। मार्ग बंद होने की वजह से बदरीनाथ आने जाने वाले यात्रियों को मारवाड़ी और विष्णुप्रयाग के बीच दो किलोमीटर की दूरी एक अन्य मार्ग से पैदल ही नापनी पड़ रही है। बावजूद इसके यात्रियों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। शुक्रवार को लगभग बारह सौ यात्राी बदरीनाथ पहुंचे, जबकि करीब एक हजार से ज्यादा दर्शनकर जोशीमठ लौट आए। इसके अलावा 190 यात्राी हेलीकाप्टर से लाए ले जाए गए। गुरुवार को मुख्यमंत्राी के निर्देश के बाद दो हेलीकाप्टर जोशीमठ और गोविंदघाट के बीच उड़ान भर रहे हैं।