गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

आस्था की ‘परीक्षा’ में भक्त ‘पास’

प्रदेश सरकार की योजना सात सौ पचास रूपये में गोविंदघाट से जोशीमठ हेलीकाप्टर से करें यात्रा
कुछ समाचार पत्रा और टीवी चैनल प्रदेश सरकार पर दबाव बनाने के लिए बदरीनाथ धाम की यात्रा रोकने की बात प्रचारित कर रहे हैं। हकीकत तो यह है कि देश-विदेश के सैकड़ों श्र(ालु नित्य कर रहे है नित्य बदरीविशाल के दर्शन



 भू-बैकुण्ठधम बदरीनाथ तक पहुंचने वाले रास्ते में बाधांए आ रही है। इसके बाद भी भक्तों की आस्था के पथ नहीं थम रहे। श्र(ालु मार्ग बंद होने के बाद भी पैदल ही धाम में पहुंचकर भगवान के दर्शन कर रहे हैं। उत्तराखंड सरकार की विपफलता के कारण प्रदेश के कुछ स्थानीय समाचार पत्रा और टीवी चैनल सरकार पर दबाव बनाने के लिए हालांकि यह प्रचारित कर रहे हैं कि बदरीनाथ धम की यात्रा रोकी गई और तीर्थयात्राी वापस जा रहे हैं जबकि हकीकत यह नहीं है। हकीकत तो यह है कि देश-विदेश से आये सैकड़ों श्र(ालु नित्य बदरीनाथ की और पैदल की प्रस्थान कर भगवान बदरीविशाल के दर्शन कर रहे हैं। बदरीनाथ यात्रा को रोके जाने की खबरें पूरी तरह से गलत हैं। बदरीनाथ यात्रा नियंत्रित रूप से लगातार चल रही है। जहां रास्ता बार बार भूस्खलन से क्षतिग्रस्त हुआ है वहां बदरीनाथ के यात्रियों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की गई है। मीडिया सेंटर, सचिवालय में आयोजित प्रेसवार्ता में जानकारी देते हुए अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा ने बताया कि जोशीमठ से आगे मारवाड़ी में हाथीपहाड के भूस्खलन में लगभग 150 मीटर का हिस्सा ध्ंस गया है जबकि 400-500 मीटर के हिस्से में मलबा आ रखा है। सरकार द्वारा वैकल्पिक इंतजाम कर दिए गए हैं। इस तरह की व्यवस्थाएं की गई हैं कि यात्रा बाध्ति न हो। बीआरओ के अध्किारियों द्वारा आश्वस्त किया गया है कि रास्ते के इस हिस्से को 72 घंटे में दुबारा गाड़ियां चलने लायक बना दिया जाएगा। अपर मुख्य सचिव ने स्पष्ट किया कि यात्रा को रोके जाने की खबरें बिल्कुल भी सही नहीं है। मारवाड़ी के पास कल भूस्खलन हुआ था जिसे बीआरओ द्वारा मार्ग खोले जाने के प्रयास किए गए। परंतु आज प्रातः 4ः30 बजे दुबारा वहीं पर भूस्खलन हुआ। जिलाध्किारी व अन्य अध्किारी तुरंत मौके पर पहंुचे। 8ः30 बजे तक हमारे द्वारा यात्रियों का मूवमेंट प्रारम्भ कर दिया गया। शासन से वरिष्ठ        शेष पेज चार पर
अध्किारियों को भी भेजा गया है। सचिव आपदा प्रबंध्न, सचिव लोक निर्माण विभाग व आईजी गढ़वाल को मौके पर भेजा गया है। तीनों अध्किारियों को गोविंदघाट में कैम्प करने के निर्देश दिए गए हैं। आईटीबीपी का भी सहयोग लिया जा रहा है। अपर मुख्य सचिव ने बताया कि मुख्यमंत्राी ने स्वयं जोशीमठ पहंुच कर मौके का निरीक्षण किया है। आज बदरीनाथ मार्ग से 650 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। इनमें से 150 को हेलीकाॅप्टर से जबकि 500 श्र(ालुओं को सड़क मार्ग से पहंुचाया गया। श्री शर्मा ने कहा कि कोई भी यात्राी किसी भी स्थान पर पफंसा नहीं है, केवल 150 श्र(ालु अपनी इच्छा से बदरीनाथ में रूके हैं। जब तक मार्ग पूरी तरह से गाड़ियों की आवाजाही के लिए खुल नहीं जाता है, श्र(ालुओं को ट्रांसशिप करके यात्रा कराई जाएगी। यात्रियों को 2 किमी का पैदल ट्रेक करना होगा। इसके बाद गोविंदघाट से गाड़ियों से उन्हें बदरीनाथ पहंुचाया जाएगा। इसके लिए 30 गाड़ियां पहले से ही मौजूद हैं। बदरीनाथ व अन्य स्थानों पर यात्रियों के लिए खाने-पीने की पूरी व्यवस्था की गई है। सरकार का पूरा प्रयास है कि प्रकृति द्वारा उत्पन्न अवरोध् से यात्रा में किसी प्रकार का अवरोध् न आए। साथ ही यात्रियों को असुविधएं भी न हों। हमारी प्राथमिकता है कि यात्रा लगातार चलती रहे और यात्राी भी पूरी तरह से सुरक्षित रहें। श्री शर्मा ने बताया कि केवल इस अवध् िके लिए जब तक कि बदरीनाथ मार्ग पर गाड़ियों की आवाजाही पूरी तरह शुरू नहीं हो जाती है, एक पैकेज तैयार किया जा रहा है कि जिसके तहत मात्रा 750 रूपए के भुगतान पर गोविंदघाट से जोशीमठ हेलीकाप्टर से जाया जा सकेगा।  उध्र मुख्यमंत्राी हरीश रावत ने कहा कि चारधम यात्रा के लिए राज्य सरकार पूरी तरह से मुस्तैद है। मुख्यमंत्राी हरीश रावत ने निर्देश दिये है कि चारधम यात्रा को देखते हुए शासन के सभी वरिष्ठ अध्किारी व जनपद अध्किारी मुख्य सचिव के संपर्क में रहेंगे। किसी भी प्रकार की कोई आपात स्थिति होने पर सीध्े मुख्य सचिव अथवा मुख्यमंत्राी कार्यालय में संपर्क किया जाय। मुख्यमंत्राी  के निर्देश पर आज मुख्य सचिव द्वारा शासन के सभी वरिष्ठ अध्किारियों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये। इनमें अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, सचिव एवं प्रभारी सचिवों को निर्देश जारी किये है कि सभी अध्किारीगण अपना मोबाइल फोन 24 घंटे खुला रखेंगे, ताकि किसी भी समय संपर्क करने पर तत्काल उत्तर दिया जाय और इसमें किसी प्रकार की बहाने बाजी स्वीकार नहीं की जाएगी। किसी भी नागरिक द्वारा मोबाईल पर सम्पर्क करने पर शिष्टाचार के नाते वार्ता करना सुनिश्चित करें। अवकाश के दिनों में भी सभी अध्किारी अपने मुख्यालय में उपस्थित अथवा संपर्क में रहेंगे।

आशुतोष डिमरी/ नंदन विष्ट

बुधवार, 29 अप्रैल 2015

खौफ के आंसू और न टूटे सात वचन


 हिमालय की गोद में जिंदगी बर्फ की तरह चमक रही थी। अचानक, यह क्या हो गया। मौत पल-पल सामने थी। काठमांडू में धरती डोल रही थी। झटके पर झटके लग रहे थे। हर शख्स जान हथेली पर लेकर दौड़े रहा था। एक युवा जोड़ा ऐसा भी था, जिसको मुश्किल की इस घड़ी में भी सात फेरों के सात वचन याद रहे। इन्हें निभाने के लिए दोनों ने जान की बाजी लगा दी। जलजले में दरकती दीवाल और पैरों तले सरकती जमीन भी उनके हौसलों को मात नहीं दे पाई। हमसफर ने साथ दिया तो वह मौत के इरादों को दफन कर नई जिंदगी पाने में कामयाब रहा।यह कहानी है धनौली निवासी 25 वर्षीय संजू की। वह नेपाल, काठमांडू के काली माटी जूता फैक्ट्री में काम करते थे। आठ महीने पहले उनकी शादी यहीं की आरती से हुई। शादी के बाद से संजू पत्‌नी के साथ काठमांडू स्थित फैक्ट्री के एक कमरे में रहते थे। 25 अप्रैल करीब 11.45 बजे वह फैक्ट्री में ही थे कि अचानक धरती हिलने लगी। सब लोग बाहर की तरफ भागे, तो वह भी दौड़ लिए। बाहर आते ही दिमाग चकरा गया, आखिर पत्‌नी आरती तो अंदर ही फंसी रह गई थीं। अगले ही पल उन्होंने बिना कुछ सोचे फैक्ट्री की ओर दौड़ लगी दी। साथियों ने रोकने की कोशिश की पर वो रुकने को तैयार न हुए।संजू ने बताया अंदर आठ कमरे थे, भूकंप के झटकों से वह एक बार तो भूल ही गए कि उनका कमरा कौन सा है। किसी तरह वह अपने कमरे में पहुंचे तो आरती वहां नहीं थीं, इस बीच कंपन और तेज हो गए। वह बताते हैं कि स्थिति ऐसी हो गई थी कि पैरों तले से जमीन खिसकी हुई सी लगने लगी थी। ऐस लग रहा था कि किसी भी पल अंदर समा जाएंगे। दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई थीं। फैक्ट्री कभी भी धराशाई हो सकती थी। गिरते संभालते वह दूसरे कमरे में पहुंचे लेकिन वहां भी पत्‌नी नहीं मिलीं। तीसरे कमरे में जाते समय आरती सामने से आती दिखाई दीं। संजू ने आरती का हाथ थामा, इस बीच सामने एक दीवाल गिर गई, जिसने रास्ता रोक दिया। अब तो मन कांप रहा था। दोनों बचने के लिए बाहर जाने की बजाए अंदर ही एक टीनशेड के नीचे खड़े हो गए। भगवान और घरवालों को याद करते हुए दोनों एक कोने में खड़े रहे। पांच मिनट बाद भूकंप के पहले दौर के झटके थमे, तभी बाहर निकले। वह कहते हैं कि अब भी इन झटकों की सोचकर दिल कांप जाता है। रात को नहीं नहीं आती।आरती तलाश रही थीं पति को : आरती ने बताया कि जब भूकंप आया तो वह अपने कमरे में थीं। जमीन हिलने पर बहुत कांप गईं। बाहर जाने की बजाए वह पति को देखने फैक्ट्री के अंदर जा घुसीं। संजू के न मिलने पर वह उन्हें तलाश रही थीं। आरती ने बताया कि उन्होंने सोच लिया था कि अकेले जीने से बेहतर साथ मरना है, इसलिए वह बाहर नहीं निकलीं। संजू ने कहा कि मौत का मंजर देखने के बाद अब दोबारा नेपाल वापस नहीं जाएंगे। उनकी आंखों के सामने से वह दृश्य नहीं जा रहा है।नेपाल में आए भूकंप ने हजारों लोगों को अपने आगोश में समेट लिया। काठमांडू के रत्‌ना पार्क के आसपास सैकड़ों गगनचुंबी इमारतें देखते ही देखते जमींदोज हो गईं। नेपाल के काठमांडू में लापता हुए अब्दुल्लापुर निवासी पिता-पुत्र जावेद व समीर व नदीम जैदी ने बुधवार को घर लौटकर प्राकृतिक आपदा के दौरान हुई त्रासदी के मौके की हकीकत बयां की। नेपाल में कपड़े की फेरी लगाने वाले पिता-पुत्र का शनिवार को आए भूकंप के बाद परिवार से संपर्क टूट गया था। बुधवार को दोनों लोग सकुशल घर लौट आए। समीर ने बताया कि भूकंप के बाद हालत इस कदर बिगड़ गए कि खाद्य पदार्थो की लूट शुरू हो गई। दुकानदारों ने पानी की बोतल के बदले तीन सौ रुपये व बिस्कुट के सौ रुपये तक वसूले। पानी व बिस्कुट खाकर काम चलाना पड़ा। भूकंप त्रासदी में फंसे भारतीयों से बस वालों ने काठमांडू से बार्डर तक की दूरी के लिए प्रति व्यक्ति दो हजार रुपये वसूल किए, जिसका किराया आमतौर पर पांच सौ से आठ सौ रूपये के बीच होता है। इस तरह से एक बस मालिक चालीस सवारियों को लेकर रवाना हुआ, जिसने विपरीत परिस्थितियों का फायदा उठाते हुए कुल 80 हजार रुपये वसूल किए। सीमा पर पहुंचने पर उन्होंने राहत की सांस ली।उगते सूर्य की लालिमा के साथ गोरखपुर डिपो की बस लेकर विश्वविद्यालय परिसर में पहुंचे चालक शैलेंद्र तिवारी और परिचालक अमित कुमार ने राहत की सांस ली। हाल और हालात पूछने पर उनकी सांसें गहरी हो गई। बताया, सपने में भी नहीं सोचा था कि इस हाल में काठमांडू जाएंगे। अचानक नेपाल जाने का निर्देश मिला। पहाड़ तो देखा, लेकिन वादियों में शरीर को कंपाने वाली सिहरन थी। जो पानी की बूंदे कभी मन को सुकून देती थीं, वही काल बनकर बरस रही थीं। ऊंची और सुंदर दिख रही पहाडि़यां डरावनी लग रही थी। संकरी सड़कों पर सिर्फ मौत का नाच था। फिर भी हिम्मत नहीं हारी, लोगों को लेकर पहुंच गए। मन को इसी से सुकून पहुंच रहा है। लग रहा है कि किसी के काम तो आए।शैलेंद्र और अमित ही नहीं नेपाल की पहाड़ी और फिसलन भरी सड़कों पर जान जोखिम में डालकर बसों को महफूज गोरखपुर तक पहुंचाने वाले दर्जनों चालकों और परिचालकों का सीना और चौड़ा हो रहा है। वे पिछले दो दिन पीडि़तों के लिए देवदूत बने हैं। बाराबंकी निवासी एवं फैजाबाद डिपो के संविदा चालक संजय कुमार मिश्र बताते हैं कि 55 यात्रियों की जिम्मेदारी उनके कंधे पर थी। कभी पहाड़ों पर बस नहीं चलाया था। सड़क के किनारे खाई देख पसीना छूट जाता था, लेकिन ऊपर वाले को याद करते हुए सबको सकुशल ले आया। परिचालक बदलू प्रसाद ने बताया कि रात में बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। कहीं कुछ खाने को नहीं मिला, लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और बिस्किट-पानी पर काम चला लिया। गोरखपुर परिक्षेत्र से 200 बसें काठमांडू भेजी जा चुकी हैं। उनमें से बुधवार देर शाम तक 80 बसें वापस आ गईं। काठमांडू से लौटे चालक और परिचालकों का कहना है कि भूकंप के बाद नेपाल की सरकारी व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। जो कुछ भी है वह भारत सरकार का है।काठमांडू से तीन किलोमीटर दूर रामेछाप गांव में सहेली की बिटिया की शादी में शामिल होने गईं कोलकाता की गीता देवी को देखकर उस खौफ को महसूस किया जा सकता है। विदाई के कुछ देर बाद आए भूकंप से वह क्षेत्र कराह उठा। गीता दो साथियों के साथ अनजानी राहों पर खुद को बचाने के लिए दौड़ पड़ी। उनकी आंखों ने इमारतों को रेत बनते और मदद की गुहार लगाते लोगों को सदा के लिए सो जाते देखा। वह तीन दिन बाद उस ठिकाने पर पहुंची, जहां के माहौल ने यह भरोसा दिलाया कि अब वह सुरक्षित हैं।दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में बने भूकंप राहत शिविर में उत्तर प्रदेश रोडवेज की बस से पहुंचीं गीता 'जागरण' से वह मंजर याद कर फफक पड़ीं। दहशत का यह आलम था कि बोलते वक्त उसकी सांसें फूल रही थी। वह बार बार आसमान की ओर देखकर ईश्र्वर को धन्यवाद दे रही थी और जल्द से जल्द मां व पिता के पास पहुंचना चाहती हैं। गीता बताती हैं कि 23 अप्रैल को सहेली के घर शादी के बाद योजना थी काठमांडू घूमने की। यही सोचकर सुबह सहेली के घर से जल्दी निकली। सुंदर वादियों के बीच खुशनुमा मौसम ने यात्रा को सुहावना बना दिया। अभी आधा रास्ता भी तय नहीं किया था कि अचानक बस हिलने लगी। ड्राइवर ने बस रोक दी। सभी यात्री नीचे उतरे और सड़क पर बैठ गए। तभी पहाड़ी पर बने एक मकान की खिड़की से पांच लोग मदद की गुहार लगाते दिखे। देखते ही देखते वह इमारत रेत की तरह पहाड़ों से टकराते हुए नीचे जा गिरी। दिल में इस बात की टीस है कि जिस सहेली के यहां गई थी दुख की घड़ी में मैं उसके साथ नहीं रह सकी। भूकंप में सहेली की मां व उसके पिता मलबे में दब गए।गोरखपुर काठमांडू से तीन किलोमीटर दूर रामेछाप गांव में सहेली की बिटिया की शादी में शामिल होने गईं कोलकाता की गीता देवी को देखकर भूकंप के खौफ को महसूस किया जा सकता है। विदाई के कुछ देर बाद आए भूकंप से वह क्षेत्र कराह उठा। गीता दो साथियों के साथ अनजानी राहों पर खुद को बचाने के लिए दौड़ पड़ी। उनकी आंखों ने इमारतों को रेत बनते और मदद की गुहार लगाते लोगों को सदा के लिए सो जाते देखा। वह तीन दिन बाद उस ठिकाने पर पहुंची, जहां के माहौल ने यह भरोसा दिलाया कि अब वह सुरक्षित हैं।दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में बने भूकंप राहत शिविर में उत्तर प्रदेश रोडवेज की बस से पहुंचीं गीता 'जागरण' से वह मंजर याद कर फफक पड़ीं। दहशत का यह आलम था कि बोलते वक्त उसकी सांसें फूल रही थी। वह बार बार आसमान की ओर देखकर ईश्र्वर को धन्यवाद दे रही थी और जल्द से जल्द मां व पिता के पास पहुंचना चाहती हैं। गीता बताती हैं कि 23 अप्रैल को सहेली के घर शादी के बाद योजना थी काठमांडू घूमने की। यही सोचकर सुबह सहेली के घर से जल्दी निकली। सुंदर वादियों के बीच खुशनुमा मौसम ने यात्रा को सुहावना बना दिया। अभी आधा रास्ता भी तय नहीं किया था कि अचानक बस हिलने लगी। ड्राइवर ने बस रोक दी। सभी यात्री नीचे उतरे और सड़क पर बैठ गए। तभी पहाड़ी पर बने एक मकान की खिड़की से पांच लोग मदद की गुहार लगाते दिखे। देखते ही देखते वह इमारत रेत की तरह पहाड़ों से टकराते हुए नीचे जा गिरी। दिल में इस बात की टीस है कि जिस सहेली के यहां गई थी दुख की घड़ी में मैं उसके साथ नहीं रह सकी। भूकंप में सहेली की मां व पिता मलबे में दब गए।

by [प्रेम नारायण द्विवेदी]। 

चट्टान भी नहीं रोक पाए ‘आस्था के पथ’

आज से सुचारू चलेगी बदरीनाथ यात्रा,
 हाईवे बंद होने के बाद भी पैदल ही पहुंचे बदरीनाथ 


नंदन विष्ट

बदरीनाथ। जब सैकड़ों श्र(ालुओं के जत्थे विष्णुप्रयाग से पैदल ही बदरीनाथ धम के लिए निकले तो विष्णुप्रयाग में टूटी चट्टानों को काटकर सापफ करने में लगे श्रमिक कुछ नहीं कह पाए और कुछ समय के लिए कार्य रोक दिया और श्र(ालुओं को आस्था के पथ पर बढ़ने दिया। क्योकि माना जाता है कि आस्था के पथ में जो भी बाधएं आ जाएं सच्चे मन से यात्रा कर रहे श्र(ालुओं के कदमों को नहीं रोक पाती हैं। यही हुआ विष्णुप्रयाग में हाईवे बंद होने के बाद। इसके बाद जो लोग बदरीनाथ धम पैदल जाना चाह रहे हैं उन्हें जाने दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि यात्रा शुरू होने से पूर्व कंचन गंगा में ग्लेशियर बांध बनके खड़े थेे, लेकिन आस्था के पथ में बीआरओ ने इसका तोड़ निकालकर यहां पर वैकल्पित व्यवस्था कर मार्ग को सुचारू किया। लेकिन विष्णुप्रयाग में चट्टान गिरने के बाद कापफी प्रयास के बाद भी नहीं खुल पाया मार्ग तो इसका भी इलाज पैदल यात्रियों को न रोककर आस्था के पथा को सरल बनाया। बारिश के कारण मंगलवार को बदरीनाथ हाईवे पर विष्णुप्रयाग    शेष पेज चार पर
में चट्टान टूटने से हाईवे बाध्ति हो गया, जिससे तीर्थयात्रियों को रास्ते में रोकना पड़ा। बुध्वार को भी बद्रीनाथ हाईवे बंद रहा। प्रशासन ने दावा किया है कि गुरूवार सुबह खुल जाएगा। करीब दो सौ यात्राी विष्णुप्रयाग से पैदल ही बद्रीनाथ गए। विष्णुप्रयाग में बोल्डर हटाते समय बुध्वार की दोपहर दो बीआरओ कर्मचारी चोटिल हो गए। दोपहर लगभग एक बजे बदरीनाथ हाईवे पर चट्टान से बोल्डर आ गए, जिस कारण बीआरओ का डोजर पफंस गया और काम रुक गया। बताया गया कि इस स्थिति में बुध्वार को भी बदरीनाथ हाईवे नहीं खुल पाया। मंगलवार को बदरीनाथ धम समेत यात्रा पड़ावों पर करीब चार हजार तीर्थयात्री पफंस गए। तीर्थयात्रियों के वाहनों को पुलिस ने जोशीमठ, गोविंदघाट, पांडुकेश्वर और बदरीनाथ में ही रोक लिया है। बारिश के कारण हाईवे खोलने का काम भी शुरू नहीं हो पाया था। मंगलवार को बदरीनाथ हाईवे पर वाहनों की सुचारु आवाजाही हो रही थी। दोपहर बारह बजे अचानक मौसम ने करवट बदली और एक बजे जोशीमठ क्षेत्रा में बारिश शुरू हो गई। विष्णुप्रयाग में अचानक चट्टान का एक हिस्सा टूटकर हाईवे पर आ गया, बड़े-बड़े बोल्डर हाईवे पर अटक गए। बदरीनाथ धम जा रहे तीर्थयात्रियों के 15 वाहन मारवाड़ी पुल तक पहुंच गए थे, लेकिन हाईवे बंद होने से वाहनों को जोशीमठ भिजवा दिया गया। बीआरओ के कमांडर आर सुब्रमण्यम का कहना है कि हाईवे पर बड़े-बड़े बोल्डर आ गए हैं। इन बोल्डरों को मशीनों से हटाना संभव नहीं होगा। इन्हें ड्रिल कर विस्पफोट से उड़ाया जाएगा। मौके पर कंप्रेशर मशीन पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि मौसम ठीक रहा तो बुध्वार को सुबह दस बजे तक हाईवे को वाहनों की आवाजाही के लिए खोल दिया जाएगा। विष्णुप्रयाग में बदरीनाथ हाईवे पर जिस समय चट्टान का एक हिस्सा टूटा गनीमत रही कि उस समय वहां वाहनों की आवाजाही नहीं हो रही थी, जिससे कोई जनहानि नहीं हुई। विष्णुप्रयाग जोशीमठ से ग्यारह किमी की दूरी पर स्थित है। यहां करीब आधा किमी तक चट्टानी भाग है। वर्ष 2013 की यात्रा के दौरान भी चट्टान से पत्थर और मलबा हाईवे पर आने से यात्रा बार-बार बाध्ति होती रही।

सोमवार, 27 अप्रैल 2015

Nepal earthquake crosses 4000


Crisis loomed over quake-hit Nepal on Monday following shortage of food, water, electricity and medicines as fear drove tens of thousands of people out into the open and the death toll crossed 4,000.Aid flights arrived through the day carrying emergency medical teams, search-and-rescue equipment and tarps for shelter, but everything seemed to be in short supply in capital Kathmandu and other affected areas.More than two days after the quake struck, people searched for lost loved ones, sorted through rubble for their belongings and struggled to provide for their families' needs.Tens of thousands of families were camped in the streets and in open parks, sleeping inside plastic tents as powerful aftershocks continued  to rock the region every few hours.“We have become refugees,” said Sarga Dhaoubadel, a student whose ancestors had built her Bhaktapur family home over 400 years ago. They were subsisting on instant noodles and fruit.Nepal police said on their Facebook page that the death toll in the country from Saturday's 7.9 magnitude earthquake had risen to 3,904 people, with 7180 injured.  This does not include the deaths in India, the 25 people killed in Tibet and the 18 people killed in the avalanche on Mount Everest.The death toll in India from the quake shot up to 72 with 56 deaths reported in Bihar, 12 in UP, three in West Bengal and one in Rajasthan.India led international salvage and evacuation efforts as teams with sniffer dogs and metal-cutters raced to find survivors buried in the rubble, though the possibility of pulling out someone alive slimmed considerably two days after the monster quake hit the Himalayan nation.“We will continue to look for survivors as long as possible,” said Nepal home ministry spokesperson Laxmi Prasad Dhakal, underscoring the resolve of a nation trying to pick up the pieces after its biggest tragedy in 80 years.As rescue workers reach out to remote villages which have been inaccessible since the quake, the country's officials expressed fears the toll would go up to 5,000."There are people who are not getting food and shelter. I've had reports of villages where 70 percent of the houses have been destroyed," said  Udav Prashad Timalsina a top official in Gorkha district where the quake was centred.Aid is coming from more than a dozen countries and many charities, but Lila Mani Poudyal, the government's chief secretary and the rescue coordinator, said Nepal needed more."We urge foreign countries to give us special relief materials and medical teams. We are really desperate for more foreign expertise to"We are appealing for tents, dry goods, blankets, mattresses, and 80 different medicines that we desperately need now," he told a press conference.As people are pulled from the wreckage, he noted, even more help is needed."Now we especially need orthopaedic (doctors), nerve specialists, anaesthetists, surgeons and paramedics," he said. "We are appealing to foreign governments to send these specialised and smart teams."Help was pouring into Nepal from across the world, as countries big and small sent in medical and rescue teams to provide disaster relief.A Nepal army spokesman says rescue workers and medical teams from at least a dozen countries were in Nepal helping local police and army rescuers.Maj. Gen. Binod Basnyat said the teams were in different places in Kathmandu and surrounding areas. India has sent the biggest team with six helicopters and seven trucks. Seven Indian search and rescue teams and another seven medical teams were at work Monday in the worst-hit areas. They had rescued 10 people and recovered 40 bodies from the rubble of fallen buildings in different parts of Kathmandu.China has sent a medical team and a team of experts to move through structures destroyed in the quake and help with search and rescue operations. Chinese doctors have set up a field hospital at the mountain resort town of Dhulikhel, 30 kilometers (18 miles) east of Kathmandu.Two teams of US Army green beret soldiers  who happened to be in Nepal when the deadly earthquake struck Saturday,are staying to help with search and relief effortsEven Nepal's tiny Himalayan neighbor, Bhutan, has sent a medical team to help the survivors of the quake.Medical and rescue teams from Russia, Japan, France, Switzerland and Singapore were expected to arrive in Kathmandu over the next couple of days, the army said.Mass cremations were held in Kathmandu for the victims, even as rescuers continued to pull out bodies buried under the rubble of flattened homes and buildings. Hundreds were cremated in open grounds as funeral pyres burned with families of victims wailing in grief after losing their loved ones.Almost every available space along the Bagmati river's banks and on its sandbank islands had been taken by the pyres.Around these funerals, the families, hastily assembling their piles of wood, gathered. The smoke rose and floated over the city ravaged by the ugly devastation of the 7.9-magnitude quake.Initial analysis of seismological data show that capital Kathmandu may have shifted  about three metres (10 feet) southward, said   University of Cambridge tectonics expert James Jackson.An area of about 150 kilometres (93 miles) long and 50 km wide in a fault running underneath the Kathmandu valley, gave in after decades of pressure, causing rocks on top of the fault to slip southward over the rock underneath it.

‘मौसम’ के इम्तहान में बंपर ‘भक्ति’



नंदन विष्ट

भारत के चतुर्थ धम श्री बैकुंठधम श्री बदरीनाथ के कपाट खुलने के साथ ही उत्तराखंड में एक बार पिफर तीर्थयात्रियों व पर्यटकों के आगमन से चहल-पहल बढ़ने लगी है। हरिद्वार  से लेकर बदरीनाथ व केदारनाथ में लोगों का हुजूम उमड़ने लगा है। यही नहीं उत्तराखंड के स्विटजरलैंड कहलाने वाले विभिन्न पर्यटक स्थलों में भी अब विदेशी पर्यटकों व शैलानियों की आवाजाही होने से स्थानीय लोगों में भी खुशी की रौनक देखने को मिलने लगी है। गौरतलब है कि 2013 में जिस तरह प्राकृतिक आपदा ने उत्तराखंड जो कहर बरपाया था उससे नहीं लगता था कि इतनी जल्दी उत्तराखंड आपदा से उबर पाएगा। लेकिन सरकारी तथा गैरसरकारी प्रयासों से उत्तराखंड में यह संभव हो पाया है। 24 अप्रैल को भगवान केदारनाथ के  कपाट खुलने के साथ ही हजारों लोगों ने भगवान केदारनाथ के दर्शन किए थे।  जो आपदा के बाद एक सपफल प्रयास के रूप में सामने आया। इसी का परिणाम है कि आज उत्तराखंड में भगवान बदरीनाथ व केदारनाथ में तीर्थयात्रियों का हुजूम उमड़ने लगा है। केदारनाथ में 15-16 जून को प्रकृति ने ऐसा कहर बरपाया था कि कई लोगों को अकाल मौत का शिकार होना पड़ा था। कई परिवार घर से बेघर हो गए थे। हांलाकि प्रकृति के आगे किसी का भी बस नहीं चलता लेकिन प्रयासों से दुबारा मंजिल हासिल हो सकती है। इस बार भारी वपर्फबारी के चलते भी निम ने ऐसा कर दिखाया जो जिसको हांशिल करना नामुमकिन तो था ही प्राप्त करना मुश्किल नहीं था। एक बार पिफर अब केदारनाथ में वहीे रौनक दिखने को मिल रही है। जो वर्ष 13 से पूर्व में था। यात्रियों के दल भी अब सरकार के निर्देशों के अनुरूप चलने लगे हैं। सीमित मात्रा में ही सही लेकिन भगवान के दर्शनों को लेकर अब लोगों में वह भय नहीं रहा जो आपदा के बाद था। अब यहां पर स्थानीय लोग भी आपदा की मार को भूलकर रोजगार के लिए आगे आने लगे हैं। जिस तरह से स्थानीय लोगों का पलायन होने लगा था अब वह भी वापस पटरी पर आने लगा है। केदारनाथ में पट खुलने के दौरान कई बड़ी हस्तियों ने भगवान दर्शन के लिए शिरकत की थी उसका असर भी अब देखने को मिल रहा है वहीं मीडिया की भूमिका  भी सकारात्मक रही है। मीड़िया ने भी लोगों में जो जोश भरने का काम किया है उनकी भी सराहना की जानी चाहिए।हांलाकि इस बार मौसम के बार-बार मिजाज के बदलने से निर्माण कार्याें में परेशानियां तो आई हैं लेकिन निम ने इसकी परवाह न करते रात दिन कार्य कर एक साहस का परिचय दिया है। जहां दो साल के अंदर उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के सड़के बीरान लगने लगी थी वहीं अब सड़कों में भी वाहनों की आवाजाही से रौनक बढ़ने लगी है। स्थानीय लोगों के बंद पड़े होटल व ढ़ावे भी खुलने लगे हैं।वहीं भारत के चतुर्थधम बैंकुंठधम बदरीनाथ के 26 अप्रैल को पट खुलने के दौरान हजारों हजार लोगों ने दिव्य ज्योति के दर्शन कर पुण्य लाभ उठाया। वहीं अब बदरीनाथ में सैलानियों, तीर्थयात्रियों व पर्यटकों की आवाजाही बढ़ने लगी है। हांलाकि बदरीनाथ में वपर्फ के कारण सड़कें अटी-पड़ी होने के कारण कुछ परेशानियों का सामना तो करना पड़ रहा है। लेकिन रास्ते के ग्लेशियर पर्यटकों व तीर्थयात्रियों को खूब आकर्षित कर रहे हैं। ऐसा नजारा भी कई वर्षाें के बाद दिखने को मिल रहा है। स्थानीय लोगों द्वारा अब अपने पुराने ढ़ावों को भी तैयार किया जा रहा है। संभवना ऐसी बनी है कि इस वर्ष यात्रा करने अध्कि से अध्कि श्रद्वालु पंहुचेंगे। जिससे अपने रोजगार को खो चुके लोगों के चेहरों पर रौनक दिखाई देने लगी है। जिस तरह वर्ष 13 की आपदा के चलते लोगों के चेहरे मायूस हो गए थे, सड़कांें पर सन्नाटा विखरा पड़ा था वहीं लोग रोजगार के लिए गांव से शहरों की ओर पलायन करने लगे थे। ठीक उसके उलट अब उत्तराखंड में तीर्थयात्रियों का हुजूम उमड़ने लगा है। और पलायन करने वाले लोग भी अब घरो को लौटने लगे हैं साथ ही सड़कों पर पिफर वही रौनक आने लगी है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याध्किारी बी.डी.सिंह ने उम्मीद जताई है कि इस वर्ष जहां अध्कि से अध्कि श्रद्वालु भगवान के दर्शनों को आऐंगे वहीं पर्यटकों की भी आवााजाही अध्कि से अधिक होगी। हांलाकि बदरीनाथ में भारी वपर्फ के चलते अभी व्यवस्थाओं को पूर्ण रूप से पटरी पर नहीं लाया जा सका लेकिन जल्दी ही सभी व्यवस्थाऐं पटरी पर आने की उम्मीद है।

रविवार, 26 अप्रैल 2015

2,500 Confirmed Dead in Nepal Earthquake



Sleeping in the streets and shell-shocked, Nepalese cremated the dead and dug through rubble for the missing Sunday, a day after a massive Himalayan earthquake killed more than 2,500 people. Aftershocks tormented them, making buildings sway and sending panicked Kathmandu residents running into the streets.The cawing of crows mixed with terrified screams as the worst of the aftershocks — magnitude 6.7 — pummeled the capital city. It came as planeloads of supplies, doctors and relief workers from neighboring countries began arriving in this poor Himalayan nation. No deaths or injuries were reported from the early Sunday afternoon quake, but it took an emotional toll."The aftershocks keep coming ... so people don't know what to expect," said Sanjay Karki, Nepal country head for global aid agency Mercy Corps. "All the open spaces in Kathmandu are packed with people who are camping outdoors. When the aftershocks come you cannot imagine the fear. You can hear women and children crying."Saturday's magnitude 7.8 earthquake spread horror from Kathmandu to small villages and to the slopes of Mount Everest, triggering an avalanche that buried part of the base camp packed with foreign climbers preparing to make their summit attempts. At least 18 people died there and 61 were injured, according to the Nepal Mountaineering Association.The earthquake centered outside Kathmandu, the capital, was the worst to hit the South Asian nation in over 80 years. It destroyed swaths of the oldest neighborhoods of Kathmandu, and was strong enough to be felt all across parts of India, Bangladesh, China's region of Tibet and Pakistan.Nepal authorities said Sunday that at least 2,430 people died in that country alone, not including the 18 dead in the avalanche. Another 61 people died from the quake in India and a few in other neighboring countries.At least 1,152 people died in Kathmandu, and the number of injured nationwide was upward of 5,900. With search and rescue efforts far from over, it was unclear how much the death toll would rise.But outside of the oldest neighborhoods, many in Kathmandu were surprised by how few modern structures — the city is largely a collection of small, poorly constructed brick apartment buildings — collapsed in the quake. While aid workers cautioned that many buildings could have sustained serious structural damage, it was also clear that the death toll would have been far higher had more buildings caved in.Aid workers also warned that the situation could be far worse near the epicenter. The U.S. Geological Survey said the quake was centered near Lamjung, about 80 kilometers (50 miles) northwest of Kathmandu, in the Gorkha district.Roads to that area were blocked by landslides, hindering rescue teams, said chief district official Prakash Subedi. Teams were trekking through mountain trails to reach remote villages, and helicopters would also be deployed, he said by telephone.Local aid worker Matt Darvas said in a statement issued by his group, World Vision, that he heard that many remote mountain villages near the epicenter may have been completely buried by rock falls.The villages "are literally perched on the sides of large mountain faces and are made from simple stone and rock construction," Darvas said. "Many of these villages are only accessible by 4WD and then foot, with some villages hours and even entire days' walks away from main roads at the best of times."Nepal's worst recorded earthquake in 1934 measured 8.0 and all but destroyed the cities of Kathmandu, Bhaktapur and Patan.With people fearing more quakes, tens of thousands of Nepalese spent Saturday night outside under chilly skies, or in cars and public buses. They were jolted awake by strong aftershocks early Sunday."There were at least three big quakes at night and early morning. How can we feel safe? This is never-ending and everyone is scared and worried," said Kathmandu resident Sundar Sah. "I hardly got much sleep. I was waking up every few hours and glad that I was alive."As day broke, rescuers aided by international teams set out to dig through rubble of buildings — concrete slabs, bricks, iron beams, wood — to look for survivors.In the Kalanki neighborhood of Kathmandu, police rescuers finally extricated a man lying under a dead body, both of them buried beneath a pile of concrete slabs and iron beams. Before his rescue, his family members stood nearby, crying and praying. Police said the man's legs and hips were totally crushed.Hundreds of people in Kalanki gathered around the collapsed Lumbini Guest House, once a three-story budget hotel and restaurant frequented by Nepalese. They watched with fear and anticipation as a single backhoe dug into the rubble.Police officer RP Dhamala, who was coordinating the rescue efforts, said they had already pulled out 12 people alive and six dead. He said rescuers were still searching for about 20 people believed to be trapped, but had heard no cries, taps or noises for a while.Most areas were without power and water. The United Nations said hospitals in the Kathmandu Valley were overcrowded, and running out of emergency supplies and space to store corpses.

Shri Badrinath Shrine were opened






The portals of Shri Badrinath Shrine were opened amid the chanting of thousands of devotees at 5:15 am early morning on Sunday. Present on the occasion were Chief Minister Harish Rawat, speaker of Legislative Assembly  Govind Singh Kunjwal, Cabinet Minister Dinesh Dhanai, Chairman of Badri-Kedar Temple committee Ganesh Godiyal, MLA Rajender Bhandari and Mayukh Mahar including other dignitaries. Chief Minister Shri Rawat offered Puja and enchanted Jai Badrivishal with full exaltation along with present devotees. Chief Minister Shri Rawat said that on this auspicious moment I extent my heartiest well wishes to all the people of Uttarakhand and Nation. Pleasing presentation through melodious tunes were given by Garhwal Scouts. Chief Minister Shri Rawat danced with local women group of Bamani Village.
Chief Minister Shri Rawat met devotees and had information regarding Yatra apart from this he asked for suggestions to make Yatra more comfortable.
While informally addressing the media representatives Chief Minister asserted that Chardham Yatra is a pledge asset of Humanity as people’s faith is attached with the Yatra. He informed that it is being considered to make Yatra more accessible, comfortable and recreational.
          Later CM added that as large number of devotees arriving here beyond our  expectations which has highly boosted up our moral. We have put our best efforts to make arrangement at par excellence. Road from Pandukeshwar to Badrinath is challenging to some extent but we constructed road there by cutting the snow. But I Assure you with full confidence  that Yatra will complete uninterrupted and it will  be entirely safe as I imparted responsibilities to higher officials in this regard as well as  Bhagwan Badri’s boundless  blessings are with us.

ग्लेशियर काटकर बने रास्ते में फिसलन



मोहित डिमरी
केदारनाथ। करोड़ों हिंदुओं के आस्था के प्रतीक बाबा केदारनाथ की यात्रा शुरू होते ही चुनौतियां भी बढ़ गई हैं। सबसे बड़ी चुनौती यात्रियों को सुरक्षित यात्रा कराना है। दूसरी बड़ी चुनौती यात्रियों के लिए बेहतर तरीके से ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था करना है। शासन-प्रशासन और नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी (निम) का पूरा फोकस इसी पर है। क्योंकि यात्रा के पहले दिन वीवीआईपी मूवमेंट के चलते थोड़ी बहुत कमी रह गई थी। प्रशासन इन कमियों को दूर करने में जुटा हुआ है।
केदारनाथ की यात्रा पर देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचने लगे हैं। गौरीकंुड से पैदल चलकर श्रद्धालु बाबा के दर में पहुंच रहे हैं। सरकार ने सुरक्षित यात्रा का जमकर प्रचार-प्रसार किया है। इसलिए भी यात्रियों की सुरक्षा सरकार के लिए सबसे बड़ा टाॅस्क है। खराब मौसम शासन-प्रशासन को जरूर परेशान कर रहा है। केदारनाथ मंदिर के कपाट खुलने के दूसरे दिन मौसम ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। केदारघाटी में दोपहर बाद बारिश और बर्फबारी होने लगी। मौसम को देखते हुए प्रशासन ने गौरीकुंड से एक बजे बाद यात्रा पर रोक लगाई हुई है। यात्रियों की सुरक्षा के लिए एसडीआरएफ (स्टेट डिजास्टर रिलीफ फोर्स) विभिन्न संवेदनशील पड़ावों पर तैनात है। जो यात्रियों की मदद कर रहे हैं। यात्रियों की किसी भी तरह की तकलीफ होने पर हेलीकाॅप्टर की भी व्यवस्था की गई है। हालांकि सुरक्षित यात्रा के लिए सरकार ने अपने स्तर पर पूरी तैयारी कर रखी है, लेकिन पैदल मार्ग पर कुछेक कमियां है, जिसे समय रहते पूरी किए जाने की आवश्यकता है। रामबाड़ा से रुद्रा प्वाइंट तक पैदल मार्ग पर रैलिंग नहीं लगाई गई है। मार्ग पर घोड़े-खच्चरों की आवाजाही के दौरान पैदल यात्रियों को चलने में परेशानी हो रही है। लिनचोली से आगे यात्री घोड़े में बैठकर यात्रा नहीं कर सकते। डंडी-कंडी के सहारे ही यहां से आगे यात्रा हो सकती है। लिनचोली से रुद्रा प्वाइंट तक कई स्थानों पर ग्लेशियर काटकर रास्ता तैयार किया गया है। निम के मजदूर बर्फ हटाने में जुटे हुए हैं। बर्फ के कारण रास्ते में फिसलन है। यात्री धड़ाम से नीचे गिर रहे हैं। कुछेक स्थान पर लोडेड घोड़ा-खच्चरों को चलने में दिक्कत हो रही है। हालांकि बर्फ की गुफाओं के बीच गुजरते हुए यात्री रोमांचित हो रहे हैं। निम के मुताबिक, बर्फ काटकर रास्ता और चैड़ा किया जाएगा। भीमबली से लिनचोली तक रास्ते में एक भी दुकान नहीं खुली है। जंगलचट्टी और भीमबली में ही कुछेक स्थानीय लोगों ने दुकानें खोल रखी है।
लिनचोली में जीएमवीएन की ओर से खाने की व्यवस्था तो की गई है, लेकिन इससे यात्री नाखुश हैं। दोपहर के खाने में सिर्फ दाल, चावल और अचार दिया जा रहा है। रात्रि के भोजन में पूरी और आलू का साग दिया जा रहा है। यहां पर रहने की भी माकूल व्यवस्था नहीं है। स्थानीय लोग चाहते हैं कि खाने और ठहरने का जिम्मा निम को दिया जाए। केदारनाथ में जीएमवीएन की ओर से खाने की ठीक-ठाक व्यवस्था है। केदारनाथ में एमआई-26 हेलीपैड एरिया में 70 टेंट लगाए गए हैं। तीस और टेंट यहां पर लगाए जा रहे हैं। सौ टेंट लगने के बाद यहां पर एक हजार लोग आसानी से ठहर सकेंगे। एक सप्ताह बाद हट्स निर्माण का काम भी केदारपुरी में शुरू होगा। निम ने घाट की मार्किंग का काम भी शुरू कर दिया है। केदारनाथ मंदिर में दर्शक के लिए खड़े श्रद्धालुओं को बारिश में परेशानी हो रही है। यहां पर रैन शेल्टर की आवश्यकता महसूस की जा रही है। जिलाधिकारी डाॅ राघव लंगर ने बताया कि यात्रियों को किसी भी तरह की दिक्कत नहीं होने दी जाएगी। रास्तों पर विभिन्न पड़ावों में यात्रियों के लिए खाने और ठहरने की व्यवस्था है। यात्रियों की सुरक्षा के लिए एसडीआरएफ की फोर्स एक्टिव है। निम के प्रधानाचार्य कर्नल अजय कोठियाल ने बताया कि फिलहाल टेंट में सात सौ लोग रह सकते हैं। अभी और टेंट लगाए जाएंगे। हट्स निर्माण का काम भी जल्द शुरू करेंगे। घाट निर्माण की मार्किंग चल रही है। इस पर भी जल्द काम किया जाएगा।

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

वैदिक मंत्रोच्चार के साथ खुले भू-वैकुण्ठधाम बद्रीनाथ के कपाट




वैदिक मंत्रोच्चार के साथ खुले भू-वैकुण्ठधाम बद्रीनाथ के कपाट आज ब्रह्मा बेला में वैदिक मंत्रोच्चार के बाद आगामी शीतकाल तक के लिए खोले गए। इस समय हजारों की संख्या में देश-विदेश के श्रद्वालु मौजूद थे। नर नारायण पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य नौवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा निर्मित स्थित भगवान बदरीनाथ धाम में भगवान विष्णु का साक्षात वास माना जाता है।उल्लेखनीय है बदरीनाथ उत्तर दिशा में हिमालय की उपत्यका में अवस्थित हिन्दुओं का मुख्य यात्राधाम माना जाता है। मन्दिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ-स्थल है। प्रत्येक हिन्दू की यह कामना होती है कि वह बदरीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य ही करे। यहाँ पर शीत के कारण अलकनन्दा में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है। अलकनन्दा के तो दर्शन ही किये जाते हैं। यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। यहाँ वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। प्राचीन कथा के अनुसार, बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुनरू बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुनः स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी. की दूरी पर स्थित बदरीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है। बदरीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बदरीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।
पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे। उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से सर्वविदित है। जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं । कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा। जहाँ भगवान बदरीनाथ ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।

Earthquake in Nepal.1000 duth







A severe earthquake hit much of Nepal overnight. We will be following reports and updating as we receive word from our colleagues leading teams on Everest. Here is an excerpt from one report, with a link to the complete news article below.
"A senior mountaineering guide, Ang Tshering, said an avalanche swept the face of Mt. Everest after the earthquake, and government officials said at least 30 people were injured.Tshering of the Nepal Mountaineering Association said the avalanche apparently occurred between the Khumbu Icefall, a rugged area of collapsed ice and snow, and the base camp where most climbing expeditions have their main camps.
While details are unclear with communications limited to the Everest region, Tshering said the avalanche did not appear to have hit the base camp itself."
A powerful earthquake struck Nepal Saturday, killing at least 926 people across a swath of four countries as the violently shaking earth collapsed houses, leveled centuries-old temples and triggered avalanches on Mt. Everest. It was the worst tremor to hit the poor South Asian nation in over 80 years.Quake triggers Everest avalanche, reports say 18 killed Reuters
Devastating Nepal quake kills over 1,000, some in Everest avalanche Reuters
At least 876 people were confirmed dead in Nepal, according to the police. Another 34 were killed in India, 12 in Tibet and two in Bangladesh. Two Chinese citizens died in the Nepal-China border. The death toll is almost certain to rise, said deputy Inspector General of Police Komal Singh Bam.
It was a few minutes before noon when the quake, with a preliminary magnitude of 7.8, began to rumble across the densely populated Kathmandu Valley, rippling through the capital Kathmandu and spreading in all directions -- north toward the Himalayas and Tibet, south to the Indo-Gangetic plains, east toward the Brahmaputra delta of Bangladesh and west toward the historical city of Lahore in Pakistan."It is hard to describe. The house was shaking like crazy. We ran out and it seemed like the road was heaving up and down," he told The Associated Press. "I don't remember anything like this before. Even my parents can't remember anything this bad."A magnitude-6.6 aftershock hit about an hour later, and smaller aftershocks continued to jolt the region for hours. Residents ran out of homes and buildings in panic. Walls tumbled, trees swayed, power lines came crashing down and large cracks opened up on streets and walls. And clouds of dust began to swirl all around."Our village has been almost wiped out. Most of the houses are either buried by landslide or damaged by shaking," said Vim Tamang, a resident of Manglung village near the epicenter. He said half of the village folks are either missing or dead. "All the villagers have gathered in the open area. We don't know what to do. We are feeling helpless," he said when contacted by telephone.Within hours of the quake, hospitals began to fill up with dozens of injured people. With organized relief largely absent, many of the injured were brought to hospitals by friends and relatives in motorized rickshaws, flatbed trucks and cars.In Kathmandu, dozens of people gathered in the parking lot of Norvic International Hospital, where thin mattresses were spread on the ground for patients rushed outside, some wearing hospital pajamas. A woman with a bandage on her head sat in a set of chairs pulled from the hospital waiting room.Prime Minister Sushil Koirala, who was attending a summit in Jakarta, tried to rush back home but made it as far as Bangkok where his connecting flight to Kathmandu was canceled because the capital's international airport was shut down.While the extent of the damage and the scale of the disaster are yet to be ascertained, the quake will likely put a huge strain on the resources of this poor country best known for Everest, the highest mountain in the world, and its rich Hindu culture. The economy of Nepal, a nation of 27.8 million people, is heavily reliant on tourism, principally trekking and Himalayan mountain climbing.A mountaineering guide, Ang Tshering, said an avalanche swept the face of Mt. Everest after the earthquake, and government officials said at least 8 climbers were killed and 30 injured. Their nationalities were not immediately known.Carsten Lillelund Pedersen, a Dane who is climbing the Everest with a Belgian, Jelle Veyt, said on his Facebook page that they were at Khumbu Icefall , a rugged area of collapsed ice and snow close to base camp at altitude 5,000 meters (16,500 feet), when the earthquake hit.He wrote on his Facebook that they have started to receive the injured, including one person with the most severe injuries who sustained many fractures.View galleryRescuers clear the debris at Durbar Sqaure after an …Rescuers clear the debris at Durbar Sqaure after an earthquake in Kathmandu, Nepal, Saturday, April  …"He was blown away by the avalanche and broke both legs. For the camps closer to where the avalanche hit, our Sherpas believe that a lot of people may have been buried in their tents," he wrote in English. "There is now a steady flow of people fleeing basecamp in hope of more security further down the mountain"
The U.S. Geological Survey put the magnitude of the quake at 7.8. It said the quake hit at 11:56 a.m. local time (0611 GMT) at Lamjung, about 80 kilometers (50 miles) northwest of Kathmandu. Its depth was only 11 kilometers (7 miles), the largest shallow quake since the 8.2 temblor off the coast of Chile on April 1, 2014.The shallower the quake the more destructive power it carries.A magnitude 7 quake is capable of widespread and heavy damage while an 8 magnitude quake can cause tremendous damage. This means Saturday's quake — with the same magnitude as the one that hit San Francisco in 1906 — was about 16 times more powerful than the 7.0 quake that devastated Haiti in 2010."The shallowness of the source made the ground-shaking at the surface worse than it would have been for a deeper earthquake," said David A. Rothery, professor of planetary geosciences at the Open University in Milton Keynes, north of London.View galleryIn this photo released by China's Xinhua News Agency, …
In this photo released by China's Xinhua News Agency, a collapsed building is seen in Nepal' …A major factor in the damage was that many of the buildings were not built to be quake-proof. An earthquake this size in Tokyo or Los Angeles, which have building codes for quake resistance, would not be nearly as devastating.
The power of the tremors brought down several buildings in the center of the capital, the ancient Old Kathmandu, including centuries-old temples and towers.
Among them was the nine-story Dharahara Tower, one of Kathmandu's landmarks built by Nepal's royal rulers as a watchtower in the 1800s and a UNESCO-recognized historical monument. It was reduced to rubble and there were reports of people trapped underneath.Hundreds of people buy tickets on weekends to go up to the viewing platform on the eighth story, but it was not clear how many were up there when the tower collapsed. Video footage showed people digging through the rubble of the tower, looking for survivors.The Kathmandu Valley is densely populated with nearly 2.5 million people, and the quality of buildings is often poor.A Swedish woman, Jenny Adhikari, who lives in Nepal, told the Swedish newspaper Aftonbladet that she was riding a bus in the town of Melamchi when the earth began to move."A huge stone crashed only about 20 meters (yards) from the bus," she was quoted as saying. "All the houses around me have tumbled down. I think there are lot of people who have died," she told the newspaper by telephone. Melamchi is about 45 kilometers (30 miles) northeast of Kathmandu.Nepal suffered its worst recorded earthquake in 1934, which measured 8.0 and all but destroyed the cities of Kathmandu, Bhaktapur and Patan.The sustained quake also was felt in India's capital of New Delhi and several other Indian cities.India's Prime Minister Narendra Modi called a meeting of top government officials to review the damage and disaster preparedness in parts of India that felt strong tremors. The Indian states of Uttar Pradesh, Bihar and Sikkim, which share a border with Nepal, have reported building damage. There have also been reports of damage in the northeastern state of Assam.Pakistan Prime Minister Nawaz Sharif offered "all possible help" that Nepal may need.Naqvi reported from New Delhi. Associated Press writer Munir Ahmed in Islamabad, Jan M. Olsen in Copenhagen and Seth Borenstein in Washington DC contributed to this report.

कपाट खुलने से पूर्व उमड़ा आस्था का सैलाब


गाडू घड़ा यात्रा पहुंची श्री बदरीनाथ धम


 हजारों लोगों का हुजूम देख लग रहा था कि वर्ष 2013 में आयी हिमालयी सुनामी जैसे लोग भूल गए हैं मौका था गाडू घड़ा यात्रा का। आज पांडुकेश्वर से जैसे ही गाडू घड़ा यात्रा बदरीनाथ धम के लिए रवाना हुई वैसे ही हजारों की संख्या में मौजूद लोगों ने भगवान बदरीविशाल की जय-जयकार के नारे लगाएं। पांडुकेश्वर से चली गाडू घड़ा यात्रा का विभिन्न स्थानों पर जोरदार स्वागत हुआ। बदरीशपुरी पहुंचने पर यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। प्रातः 10 बजे कुबेर, उ(व जकी डोली व शंकराचार्य की गद्दी, गाडू घड़ा यात्रा बदरीनाथ के लिए रवाना हुई। बदरीनाथ में कुबेर की डोली बामणी गांव में रात्रि विश्राम किया, जहां भक्तों ने जय कारे लगाए।  वहीं शंकराचार्य की गद्दी परिक्रमा स्थल पर विराजमान की गई। उ(व की डोली रावल निवास पर रखी गई। उल्लेखनीय है कि अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री-यमुनोत्राी और शुक्रवार को केदारनाथ के कपाट खुलने के बाद आज प्रातः श्री बदरीनाथ धम के कपाट खुलेंगे।
शनिवार को गाडू घड़ा यात्रा के समयश्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के सीईओ बीडी सिंह, वेदपाठी सत्य प्रसाद चमोला, राधकृष्ण थपलियाल सहित सैकड़ों श्र(ालु शामिल थे।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

Shri Kedarnath Shrine were opened















The portals of Shri Kedarnath Shrine were opened amid the large numbers of devotees and enchanting the Jai  Baba Kedar in morning on Friday. on the occasion Governor of the State Dr. Krishnakant Pal, Chief Minister Harish Rawat, Cabinet Minister Dr. Harak Singh Rawat, Dinesh Dhanne, President of Badri-Kedar Temple Committee Ganesh Godiyal, MLA Shaila Rani Rawat, Mayukh Mahar, and Lalit Farswan including National Congress Vice President Rahul Gandhi were  present. Overwhelmed  by the presence of devotees Shri Rawat applauded for Baba Kedar with full enthusiasms ,  noted Sufi Singer of film industry Kailash Kher and Local Folk Artists presented the devotional songs which CM enjoyed. 
            Prior to this, Chief Minister Harish Rawat and Congress Vice President Rahul Gandhi travelled by foot from Lincholi to Kedarpuri in early morning on Friday. During this period Chief Minister met devotees from the various parts of  country and abroad and warmly welcomed them and asked for their suggestions about the arrangement of Yatra route. Devotees expressed satisfaction over the arrangements on the Yatra route by the State Government. Chief Minister inspected the basic arrangements like Drinking water, housing, toilets, etc on the yatra route and talked to the owners of horses, mules and porters and took suggestions regarding Yatra facilities.
            While informally addressing the media representatives Chief Minister Shri Rawat said that last year yatra route was not apt which has been reconstructed this year. Many new facilities have been developed for the devotees this year. He added that in the coming year State Government will provide more facilities for the devotees on Yatra route. Chief Minister said the  crowd of devotees and enthusiasm  has encouraged our zeal. He informed that on the occasion of portals opening more than 2200 devotees to arrive. Chief Minister said motive of the government  is  to conduct the Yatra throughout year. He said in coming one-two years a road for the transportation  of small vehicle on foot way up to Kedarpuri base camp would be  constructed . Chief Minister said massage of safe Uttarakhand has been sent as it  resulted in large number of  devotees. He informed that instructions have been issued to officials concerned with Chardham Yatra to increase more facilities.  
            On answering a question of  Media he said that Prime Minister Shri Narender Modi is also welcomed for Chardham Yatra as well as he would request to the Prime Minister to restart the mythological Yatra route for holy Kailash Mansarovar Yatra. Chief Minister said that it is faith, devotion and enthusiasm of Rahul Gandhi for Lord Shiva that he travelled from Gaurikund to Kedarpuri by foot. Chief Minister said this year splendorous view of Kedarpuri suggests that Lord Shiva is visibly present here.

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

वैदिक मंत्रोच्‍चारण के साथ खुले पवित्र केदारनाथ के कपाट






हिंदुओं की आस्था के केंद्र 11वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ मंदिर के कपाट शुक्रवार सुबह मंत्रोच्‍चारण के साथ खुल गए। पवित्र केदारनाथ के कपाट सुबह 8.50 बजे खुले। अब ग्रीष्मकाल के छह माह तक भक्त यहां बाबा केदार के दर्शन कर सकेंगे। शीतकालीन प्रवास स्थल ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ से सोमवार को चली बाबा की उत्सव डोली विभिन्न पड़ावों पर रुकती हुई बृहस्पतिवार को केदारधाम पहुंची। कपाट खुलने से पहले धाम में मौसम बार-बार बदलता रहा। कभी धूप तो कभी बादल छाए रहे और रुक-रुक कर बारिश होती रही। बृहस्पतिवार दिन में धूप के बाद शाम को धाम में फिर बारिश हुई। बुधवार को यहां बर्फबारी भी हुई थी। यात्रा पड़ाव लिनचौली के अलावा रामबाड़ा में भी तेज बारिश हुई। पहले से जमी बर्फ के चलते भी धाम में फिलहाल ठंड काफी ज्यादा है। मौसम विभाग के मुताबिक कपाट खुलने के दिन भी बारिश-बर्फबारी होगी। दुश्वारियों को मात देते 458 यात्री बृहस्पतिवार को ही धाम पहुंच गए थे। कपाट खुलने से पहले ही कर्नल अजय कोठियाल समेत नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम) की टीम के 400 लोग पहले से ही केदारनाथ में मौजूद रहे। ये सभी लोग कड़ाके की ठंड के बीच मंदिर के आगे अलाव जलाकर रात तक शिव स्तुति में मग्न रहे।पैदल धाम जा रहे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और मुख्यमंत्री हरीश रावत समेत 700 लोग शाम को लिनचौली में रुके। ये सभी साढ़े पांच किमी चलकर शुक्रवार की सुबह केदारनाथ पहुंचे। शुक्रवार की सुबह गौरीकुंड से भी बड़ी संख्या में यात्री धाम के लिए रवाना हुए। कपाट खुलने के मौके पर केदारनाथ में लगभग दो हजार लोग मौजूद रहे।यात्रा मार्ग पर रामबाड़ा से लिनचौली तक हिमखंड पसरे पड़े हैं, जिन्हें काटकर रास्ता बनाया जा रहा है। बृहस्पतिवार देर रात तक रास्ता बनाने का काम चलता रहा। लेकिन इससे पहले धाम पहुंचे यात्रियों में से किसी ने इन हिमखंडों की न तो परवाह की, न शिकायत।सुबह राज्यपाल कृष्णकांत पॉल भी धाम पहुंचेंगे। लिनचौली और धाम पहुंचे यात्रियों में से ज्यादातर गुजरात और दक्षिण भारत से हैं।कपाट खुलने से पहले उपजिलाधिकारी मंदिर के पृष्ठ भाग में सील लगे ताले को खोलकर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कर निरीक्षण करेंगे। इसके बाद केदारनाथ के रावल मंदिर के गर्भगृह में कुछ देर भस्म पूजा और भोलेनाथ का अभिषेक करेंगे। इसके बाद भक्त केदारबाबा के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकेंगे। बाबा केदार की डोली गौरीकुंड से रवाना होकर बृहस्पतिवार शाम 4.25 बजे केदारनाथ पहुंच गई थी। बाबा केदार की डोली शीतकालीन प्रवास स्थल ओंकारेश्वर मंदिर से चलकर गौरीकुंड समेत विभिन्न पड़ावों पर विश्राम करते हुए केदारनाथ पहुंची।

आज खुलेंगे केदारनाथ धम के कपाट


 विश्व प्रसिद्ध भगवान केदारनाथ धाम के कपाट शुक्रवार को तय समय सुबह खुलेगे। चारधाम यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में अपार उत्साह का उदाहरण इस बात से मिलता है कि बाहरी राज्यों के २७ श्रद्धालुगण भी केदारनाथ पहुंचे। वहीं यहां दून से सात विकलांगो के दल को मुख्यमंत्री की ओर से केदरधाम के लिए रवाना किया गया। उधर कांगे्रस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी शुक्रवार को धाम के कपाट खुलने के पहले दिन भगवान केदार के द्वार पर मत्था टेकेंगे। केदारनाथ धाम की यात्रा के उद्देश्य से राहुल गांधी गुरूवार दोपहर १२.०५ पर जॉलीगं्राट एयरपोर्ट पर पहुंचे। चार्टर प्लेन से आए राहुल गांधी कुछ देर विश्राम के बाद विमान से गौरीकुण्ड की ओर रवाना हुए। उल्लेखनीय रहे कि भाजपा नेताओं ने यात्रा मार्गों का निरीक्षण कर खामियां निकालते हुए गृह मंत्री से मुलाकात की। वहीं राहुल की इस यात्रा को भाजपा के सवालों का जवाब देना माना जा रहा है। उधर बाबा केदार की डोली गुरूवार को सुबह गौरीकुण्ड से केदारधाम की ओर रवाना हुई। बाबा की यह उत्सव डोली सैकड़ों श्रद्धालुओं संग देर रात तक केदारधाम पहुंच जाएगी। केदारधाम के दर्शन को प्रथम पड़ाव ऋषिकेश से भी श्रद्धालुओं की बसें रवाना किए जाने की खबर रही। वहीं मौसम विभाग की ओर से पहाड़ी इलाकों में मौसम बिगडऩे की संभावना जताई है। विभाग की ओर से साढ़े तीन हजार मीटर से अधिक ऊंचाई वाली चोटियों पर बर्फवारी की संभावना जताई है। मौसम के मिजाज को लेकर जिला प्रशासन की ओर से हर एतिहाती कदम उठाने के दावे किए हैं। बताया गया कि लिनचौली के बाद केदारधाम तक रास्ते में पड़ी बर्फ को हटाने का काम दिनरात चल रहा है। हालांकि काफी आगे तक बर्फ हटा ली गई है। बाकी बचा काम जल्द पूरा कर लिए जाने की उम्मीद है। गौरीकुण्ड से केदारनाथ धाम की दूरी १६ किलोमीटर बताई जाती है, जबकि लिनचौली से छह किलोमीटर की दूरी श्रद्धालुओं को पैदल ही तय करनी पड़ती है। गुरूवार दोपहर राहुल गांधी के हेलीकॉप्टर ने गौरीकुण्ड में लैण्ड किया। शुक्रवार सुबह राहुल गांधी लिनचौली से पैदल ही भगवान केदार के दर्शन को रवाना होंगे। यहां जॉलीग्रांट एयर पोर्ट पर राहुल के स्वागत में सीएम हरीश रावत, वित्त मंत्री इंदिरा हृदयेश समेत अन्य मौजूद रहे। कांगे्रसी सूत्रों की माने तो राहुल के साथ मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष समेत कुछ अन्य भी लिनचौली से पैदल ही केदारधाम तक यात्रा करेंगे।

प्रातः आठ बजकर आठ मिनट पर खुलेंगे कपाट

बाबा केदार की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली अपने धम केदारनाथ पहुंच चुकी है। आज प्रात: आठ बजकर मिनट पर मिथुन लगन में भगवान केदारनाथ के कपाट ग्रीष्मकाल के छह माह के लिये आम श्र(ालुओं के दर्शनार्थ खोल दिये जाएंगे। तृतीय रात्रि प्रवास गौरीकुंड में करने के बाद गुरूवार को बाबा केदारनाथ की डोली रामाबाड़ा, जंगलचटटी, लिनचैली होते हुए देर सांय केदारनाथ पहुंची। केदारनाथ पहुंचने पर यहां पूर्व से मौजूद भक्तों ने पफूल-मालाओं के साथ बाबा केदार की डोली का भव्य स्वागत किया। शुक्रवार प्रात भगवान केदारनाथ की डोली की पूजा अर्चना के बाद ठीक आठ बजकर पचास मिनट पर ग्रीष्मकाल के छह माह के लिये भगवान केदारनाथ के कपाट खोल दिये जाएंगे। इसके बाद कपाट बंद होते समय भष्म, ब्रहमकमल, राख, पुष्प-अक्षत्रा से भगवान शिव के स्वयंभू लिंग को दी गई समाध् िको श्र(ालुओं को प्रसाद स्वरूप वितरित किया जाएगा। तद पश्चात भगवान केदारनाथ की विध्वित पूजाएं शुरू हो जाएंगी। इससे पूर्व बीस अप्रैल को भगवान केदारनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली ने शीतकालीन गददीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से प्रस्थान कर प्रथम रात्रि प्रवास गुप्तकाशी, द्वितीय फाटा और तृतीय रात्रि प्रवास गौरीकुंड में किया था। भगवान केदारनाथ की डोली के साथ देश-विदेश एवं स्थानीय श्र(ालु भी हजारों की संख्या में केदारनाथ पहुंचे हैं। 
 रवाना हुई गाड़ू घड़ा कलश यात्रा 
देहरादून। भगवान बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि भी नजदीक आ रही है। आगामी २६ अप्रैल को तय समय पर वैदिक मंत्रोच्चार के बाद बदरीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। वही गुरूवार को गाड़ू घड़ी कलश यात्रा बदरीनाथ धाम के लिए रवाना हुई। गंगोत्री यमुनोत्री के कपाट खुलने से जहां श्रद्धालुओं में अपार उत्साह देखा जा रहा है। वहीं केदारनाथ धाम में भगवान शिव के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं में ऊर्जा की भरमार दिख रही है। २६ को भगवान बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने जा रहे हैं। गुरूवार को गाडू़ घड़ी कलश यात्रा ने लक्ष्मीनारायण    मंदिर से बदरीनाथ के लिए प्रस्थान किया। यात्रा जोशीमठ के नृसिंह मंदिर पहुंचेगी, जिसके बाद २६ को धाम के कपाट खुल जाएंगे। 


पीड़ितों में जगी आस


 कांग्रेस के युवराज राहुल गांध्ी का हेलीकाॅप्टर गौरीकुंड हेलीपैड पर दो बजे पहुंचे और यहां से राहुल गांध्ी सीध्े गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट हाऊस पहुंचे। मौसम खराब होते देख राहुल ने सीध्े गौरीकंुड से केदारनाथ के लिये प्रस्थान किया। गौरीकुंड में उपस्थित कांग्रेस कार्यकर्ताओं एवं जनता मुलाकात न करने से जनता में निराशा देखी गई। गौरीकुंड से लिनचैली तक पैदल यात्रा के दौरान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांध्ी ने कहा कि तीर्थ यात्रियों के लिये मार्ग सुरक्षित है।
 मुख्यमंत्राी हरीश रावत के नेतृत्व में केदारनाथ और अन्य आपदा प्रभावित क्षेत्रों में सराहनीय कार्य हुए हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार का पूरा ध्यान केदारनाथ यात्रा पर है। इस बार चारधम की यात्रा पर आने वाले श्र(ालुओं की संख्या में भारी इजापफा हुआ है। उन्होंने कहा कि चार धम यात्रा मार्ग की स्थिति भी सुध्र गई है। इसके साथ ही केदारनाथ में अनेक कार्य हो रहे हैं।
प्रदेश सरकार आपदा से निपटने में पूरी तरह से सक्षम साबित हुई है। उन्होंने कहा कि देश-विदेश के तीर्थ यात्रियों को चार धम यात्रा पर आने का निमंत्राण कांग्रेस की ओर से दिया गया है। इस दौरान मुख्यमंत्राी हरीश रावत ने कहा कि कांग्रेस सरकार का ध्यान पूरी तरह से चारधम यात्रा के सुव्यवस्थित संचालन पर लगा है। कांग्रेस राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांध्ी के केदारनाथ पहुंचने से स्थापनीय लोगों और तीर्थ यात्रियों में नई ऊर्जा का संचार होगा। कहा कि इस बार देश-विदेश से आने वाले तीर्थ यात्राी चारो धमों की सुरक्षित तरीके से यात्रा करेंगे। यात्रियों की सुविध के लिये सभी प्रकार की व्यवस्थाएं की गई हैं। रहने और खाने की कोई भी दिक्कत यात्रियों को नहीं होने दी जाएगी।
केदारनाथ हाईवे सोनप्रयाग तक सही है। सोनप्रयाग से गौरीकुंड के बीच कार्य चल रहा है। विभागीय अध्किारियों को एक सप्ताह के भीतर मोटरमार्ग का निर्माण कार्य पूर्ण करने के निर्देश दिये गये हैं। उन्होंने कहा कि केदारनाथ पैदल मार्ग की स्थिति पहले से लाख गुना अच्छी हो गई है। यात्रियों की सुविध के लिये पैदल मार्ग पर रहने, खाने के साथ ही बिजली एवं पानी की व्यवस्था भी सुचारू की गई है। देर रात्रि राहुल गांध्ी लिनचैली पहुंचे। आज प्रातः वह केदारनाथ के लिये रवाना होंगे और भगवान केदारनाथ के कपाट खुलने के अवसर पर धम में                             मौजूद रहेंगे।

गढ़वाली फ़ौज

23 अप्रैल 1930 की घटना इस देश की आजादी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी.इस दिन पेशावर में चन्द्र सिंह गढ़वाली के नेतृत्व में गढ़वाली फ़ौज ने देश की आजादी के लिए लड़ने वाले निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया था.यह देश की आजादी की लड़ाई और आज के लिहाज से भी कहें तो एक राष्ट्रीय महत्व की घटना थी.लेकिन यह अफसोसजनक है कि चूँकि इस घटना को अंजाम देने वाली गढ़वाली फ़ौज और उनके अगवा बने चन्द्र सिंह गढ़वाली थे,इसलिए इसका राष्ट्रीय प्रभाव और महत्व स्वीकारने और महसूस करने के बजाय इसे गढ़वाल के लोगों के लिए गर्व करने के मौके, जैसे रूप में सीमित कर दिया गया है.
आज हम इस देश में जिस साम्प्रदायिक विभाजन और उसको बढ़ावा देने वाली राजनीति को परवान चढ़ते हुए देख रहे हैं,उस साम्प्रदायिक विभाजन की राजनीति की बुनियाद अंग्रेज साम्राज्यवादियों ने डाली थी. 1857 की बगावत से अंग्रेजों ने यह सबक सीखा था कि इस देश में रहना है तो हिन्दू-मुसलमान को लड़ा कर ही इस देश में टिके रहा जा सकता है. “फूट डालो,राज करो” का सूत्र उन्होंने इसी काम के लिए ईजाद किया था.
पेशावर में भी अंग्रेजों ने गढ़वाली फ़ौज को इसी मंशा से तैनात किया था ताकि पठानों पर गोली चलाने के लिए हिन्दू धर्मावलम्बी गढ़वाली फौजियों को उकसा कर पठानों पर गोली चलवाई जा सके. इसीलिए पेशावर में पठानों पर गोली चलाने के लिए गढ़वाली फौजियों को उकसाते हुए अंग्रेज अफसर ने कहा-“पेशावर में 94 फ़ीसदी मुसलमान हैं,दो फ़ीसदी हिन्दू हैं.मुसलमान हिन्दू की दुकानों में आग लगा देते हैं,लूट लेते हैं.शायद हिन्दुओं को बचाने के लिए हमें बाजार जाना पड़े और इन बदमाशों पर गोली चलानी पड़े.”यह आज से 85 वर्ष पूर्व की घटना है.आज 85 साल बाद भी क्या इसी तरह के उकसावे पूर्ण वक्तव्यों और अफवाहों से हमारे देश में दंगों की वारदात नहीं होती हैं?लेकिन चन्द्र सिंह गढ़वाली अंग्रेज अफसर की उकसावे पूर्ण बातों में नहीं आये बल्कि उन्होंने अपने साथियों को समझाया-“इसने जो बातें कही सब झूठ हैं.हिन्दू-मुसलमान के झगडे में रत्ती भर सच्चाई नहीं है.न ये हिन्दुओं का झगड़ा है,न मुसलमानों का.झगड़ा है कांग्रेस और अंग्रेज का.जो कांग्रेसी भाई हमारे देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ाई लड़ रहे हैं,क्या ऐसे समय में हमें  उन के ऊपर गोली चलानी चाहिए? हमारे लिए गोली चलाने से अच्छा होगा कि अपने को गोली मार लें.” ये अशिक्षित फौजी थे,जिन्होंने देवनागरी पढना भी बड़े जातन से सीखा था.लेकिन देश की आजादी के लिए लड़ने वाले वाले दूसरे धर्म के मानने वालों पर भी गोली चलाने से बेहतर वे स्वयं को गोली मारना समझ रहे थे.आज जब हाशिमपुरा के पीड़ितों के लिए, न्याय के लिए चिल्लाते देश में,वीरता मेडलों के लिए निर्दोषों को भी तथाकथित मुठभेड़ों में मार गिराने वाले समय में, आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट-1958 को किसी को भी गोली मारने और यहाँ तक कि बलात्कार करने के लिए कायम रखने के लिए अड़ने वाले सैन्य बलों और उनके अंध समर्थकों के दौर में, क्या कोई ये कल्पना भी कर सकता है कि 85 वर्ष अंग्रेजों की फ़ौज में मामूली सैनिकों ने अपने से इतर धर्म को मानने वालों पर तमाम उकसावों और लोभ-लालच को धता बताते हुए गोली चलाने से इनकार कर दिया था?और ऐसा फैसला उन्होंने किसी आवेश में नहीं लिया था,बल्कि ऊपर दिए गए बातचीत के ब्यौरे से स्पष्ट है कि अंग्रेजों के मंसूबे को भांपते हुए पहले से सोच-विचार कर और ऐसा करने का अंजाम भांपते हुए भी गोली न चलाने का दृढ इरादा कर लिया था.इसकी कीमत भी इन्होने चुकाई.गोली न चलाने के लिए कोर्ट मार्शल हुआ,काले पानी की सजा दी गयी और तनख्वाह पेंशन आदि सब जब्त कर लिया गया.
 आज साम्प्रदायिक उन्माद देश में चहुँ ओर फैलता हुआ नजर आता है और पुलिस व सैन्य बलों और सुरक्षा एजेंसियां उससे अछूती नहीं है.लेकिन देश की आजादी की लड़ाई में बार-बार सैन्य बलों ने साम्प्रदायिक सौहार्द के परचम को बुलंद किया.1857 की पहली जंगे आजादी में हिन्दू और मुसलमान कंधे से कन्धा मिला कर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े.जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि हिन्दू-मुस्लिमों की इस एकता से ही अंग्रेजों ने यह सबक सीखा कि भारत में हिन्दू-मुसलमान में फूट डाले बगैर, उनकी जड़ें जमना नामुमकिन है.इस देश में सैन्य बालों के भीतर हुई एक और महत्वपूर्ण,लेकिन कम चर्चित बगावत थी-1946 का नेवी विद्रोह.यह विद्रोह नाविकों में मेहनतकशों वाली चेतना के लिहाज से भी बेमिसाल था.नेवी विद्रोह में शामिल नाविकों ने भी साम्प्रदायिक विभाजन के अंग्रेजी हथकंडे को धता बताया.उन्होंने साम्प्रदायिक एकता का सन्देश देने के लिए ही अपनी 36 सदसीय नेवी हड़ताल समिति का अध्यक्ष एक मुस्लिम नाविक- सिग्नलमैन एम.एस.खान को बनाया व एक सिख टेलेग्राफ़ ऑपरेटर मदन सिंह को उपाध्यक्ष चुना.1857 की पहली जंगे आजादी के बाद पेशावर विद्रोह इस श्रृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी था,जहाँ सैनिकों ने अपना सब कुछ दांव पर लगा कर भी अंग्रेजों के साम्रदायिक विभाजन के एजेंडे को पूरा नहीं होने दिया.
पेशावर विद्रोह के नायक चन्द्र सिंह गढ़वाली जेलों में रहते हुए कम्युनिस्टों के संपर्क में आये और फिर आजीवन कम्युनिस्ट हो गए.जनता के हकों के लिए लड़ते हुए उन्होंने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया.सत्ता और उसका सुख पाने के लिए सिद्धांतों से समझौता करने से उन्होंने इनकार कर दिया.जीवन पर्यंत वे एक प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट बने रहे.
आज जब हम दंगाईयों को राजनीति का सिरमौर बनता हुआ देख रहे हैं,आये दिन साम्प्रदायिक भावनाओं को भडकाने के लिए ‘घर वापसी’, ‘लव जेहाद’ आदि-आदि नित नए शिगूफे और उकसावेपूर्ण वक्तव्यों का जहर झेल रहे हैं,तब कामरेड चन्द्र सिंह गढ़वाली की अगुवाई में हुआ पेशावर विद्रोह,इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब और साम्प्रदायिक सौहार्द की प्रेरणा देता हुआ देश की आजादी की लड़ाई का एक गौरवशाली,शानदार अध्याय है.
-इन्द्रेश मैखुरी