सोमवार, 20 अप्रैल 2015

Chief Minister Harish Rawat paid a visit to Shri Badrinath










On Monday, Chief Minister Harish Rawat paid a visit to Shri Badrinath shrine and inspected the preparation of Yatra and prayed to Lord Shri Badreivishal for the success of Chardham Yatra and happiness for the people of Uttarakhand. Chief Minster took the information regarding electricity, water, communication, housing and other arrangements in Badrinath Shrine. He found  preparations satisfied and asked officials to improve arrangements. He said that after clearing the snow, Yatra Pathway has been opened entirely. Permanent solution will  be ensured  for Lambagad landslide area within two year after constructing tunnel. Chief Minister directed to prepare plan for constructing safety wall in Bamnigaun and  the  road to be opened  which has been  obstructed on account of bolder in Marwari of Joshimath.
            Chief Minister Shri Rawat said Chardham Yatra is backbone of economy of the state. Government has put all its efforts to conduct the Yatra smoothly. SDRF Team has been deployed for the purpose. ASP Chamoli  Navneet Bhullar has been imparted the responsibility to train 100 local Youths in remote hill areas with the help of NIM. After the training Youths will be capable in relief and rescue works in high altitude conditions. Soldier Welfare department would also be activated for this purpose. A sports collage will be established in Munsyari. A plan is being considered for School children to take them on visit of Chardham Yatra
CM stated that our people are working day-night in unfavorable conditions. Chief Minister informed that government is well prepared and he has full confidence to get positive response. Devotees can come to the Chardham Yatra without fear and hesitation. During the occasion, Chief Minister directed the officials to organize Bhandara (Group Feast)  free of cost on behalf of state government for the visiting  devotees on inauguration of Gate opening of all four shrines (Dham) as well as  on previous evening of  Gate opening. Under earlier said plan, Free of Cost Bhandara would be arranged by State Government for the visiting devotees on 20th and 21st April in Gangotri and Yamunotri, on 23rd and 24th April  in Kedarnath Shrine and on 25th and 26th April in Shri Badrinath Shrine. Garwal Mandal Vikas Nigam has been nominated as an organizer institution for the arrangement of Free of Cost Bhandara (Group Feast).
Vice President of Twenty points plan and Area MLA  Rajender Bhandari , Secretary PWD Amit Negi, Commissioner Garhwal Mandal CS Napchyal including other officials were present on the occasion.

रविवार, 19 अप्रैल 2015

आस्था की डगर में चुनौतियों का पहाड़






गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलने के साथ ही चार धाम के लिए तीर्थयात्रियों के जत्थे आने शुरू हो जाएंगे। प्रदेश सरकार के तमाम दावों की पोल खुल जाएगी। क्योंकि आस्था की डगर पर चुनौतियों के पहाड़ बरकरार हैं। प्रदेश की कांग्रेस सरकार और विपक्ष की भूमिका में खडी भाजपा दोनों तो आपस में लडने में लगे हुए हैं। यात्रा की तैयारियां प्रशासनिक स्तर पर हो रही हैं तो वो भी सिर्फ बैठकों में। चारधाम तक पहुंचने वाले मार्गों का हाल तो साफ दिख रहा है। अकेले सबसे पहले जिन धामों के कपाट खुलेंगे उनके बारे में बताये तो गंगोत्री में पसरा सन्नाटा इसकी तस्दीक कर रहा है। यहां अभी करीब 40 में 10 होटल ही यात्रियों के स्वागत के लिए तैयार हैं तो डेढ़ सौ में से आठ दुकानों के शटर ही खुले हुए हैं। वजह यह कि चिन्यालीसौड़ से गंगोत्री तक 135 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग पर 25 किमी का हिस्सा विभिन्न स्थानों पर अब भी बेहद खराब है। धाम में अभी बिजली-पानी तक बहाल नहीं हो पाया है। गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष भागेश्वर सेमवाल कहते हैं यात्रा व्यवस्थाओं को लेकर छह माह पूर्व ही शासन प्रशासन को तैयारी के लिए कहा गया था, लेकिन सरकारी मशीनरी काफी देरी से हरकत में आई। गौरतलब है कि पिछली बार गंगोत्री और यमुनोत्री में सिर्फ 58 हजार यात्री पहुंचे, जबकि आपदा से पहले दोनों धामों में यह संख्या करीब सात लाख के आसपास रहती थी।
दरअसल, कुछ यात्रा तैयारियों में जुटे विभागों की लेटलतीफी और कुछ मौसम का मिजाज, इन दोनों ने ही राह में ज्यादा मुश्किल पैदा की हैं। हालांकि यमुनोत्री के हालात फिर कुछ बेहतर हैं। बिजली और पानी बहाल होने के बाद व्यापारी यहां पहुंचने लगे हैं। दस होटल में से आठ खुल चुके हैं और 50 दुकानों में दस सज चुकी हैं। व्यापारियों के आने का सिलसिला जारी है। थोड़ी बहुत कमियां हैं, जिन्हें दुरुस्त किया जा रहा है। भैरव मंदिर के समीप क्षतिग्रस्त पैदल मार्ग की मरम्मत के साथ ही टूटी रेलिंग को ठीक करने का काम जारी है। यमुनोत्री मंदिर समिति के सचिव पुरुषोत्तम उनियाल उत्साहित हैं। वह कहते हैं पैदल मार्ग जल्द ही दुरुस्त हो जाएगा और बिजली व पानी तो बहाल हो चुका है। ऐसे में व्यापारी भी पहुंचने लगे हैं। वह कहते हैं इस बार यात्रा से अच्छी रहेगी।

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

बदरीनाथ नगरीः यात्रियों के स्वागत को तैयार

बद्रीनाथ धम में बिजली, पानी तथा दूरसंचार व्यवस्था हुई सुचारूः जिलाध्किारी

चारधम यात्रा की व्यवस्थाओं को लेकर जिलाधिकारी अशोक कुमार ने आज हैलीकाप्टर द्वारा बद्रीनाथ पहुॅचकर व्यवस्थाओं का जायजा लेते हुए बताया कि बद्रीनाथ धम में बिजली, पानी तथा दूरसंचार व्यवस्था सुचारू कर दी गयी है। मन्दिर परिसर, मन्दिर मार्ग, दो हैलीपैड़ों सहित अन्य स्थानों की बपर्फ भी हटवा दी गयी है। उन्होंने बताया कि गढ़वाल मण्ड़ल विकास निगम, अतिथि गृहों व यूथ हाॅस्टल सहित अन्य  स्थानों में बिजली, पानी व्यवस्था बहाल कर दी गयी है। बपर्फ को गलाने के लिए नमक तथा यूरिया का छिड़काव किया जा रहा है और कंचनजंघा पर मोटरमार्ग को ठीक करने के लिए बीआरओ द्वारा बपर्फ कटिंग का काम यु( स्तर पर चल रहा है। बपर्फ कटिंग के लिए जे.पी. कम्पनी द्वारा एक-एक पौकलैण्ड़ मशीन व जेसीबी उपलब्ध् करायी गयी है। धम में सपफाई व्यवस्था के लिए पर्याप्त संख्या में मजदूर तैनात कर दिये गये हैं। उन्होंने बताया कि सभी व्यवस्थायें 20-21 अपै्रल तक पूर्ण कर ली जायेंगी। निरीक्षण के दौरान उनके साथ पुलिस अध्ीक्षक सुनील कुमार मीणा सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे।


मुख्यमंत्री ने लिया जायजा देश-विदेश में रहने वाले यात्रियों से केदारनाथ आने की अपील




मुख्यमंत्री हरीश रावत ने शनिवार को केदारनाथ धाम पहुंचकर यात्रा व्यवस्थाओं का जायजा लिया। इस दौरान उन्होंने देश-विदेश में रहने वाले यात्रियों से केदारनाथ आने की अपील की। सीएम ने केदारनाथ में चल रहे पुनर्निर्माण कार्यो का निरीक्षण करने के बाद गुप्तकाशी में व्यापारियों व मजदूरों को साढ़े आठ करोड़ से अधिक के चेक वितरित किए। तयशुदा कार्यक्रम के तहत मुख्यमंत्री सुबह ग्यारह बजे हेलीकॉप्टर से केदारनाथ पहुंचे। उन्होंने कहा कि केदारनाथ धाम यात्रियों के स्वागत के     लिए सरकार तैयार है, यहां पांच हजार यात्रियों की रहने की व्यवस्था हो चुकी है। बर्फ रास्तों से साफ की जा चुकी है। सीएम ने पुनर्निर्माण को लेकर डीएम रुद्रप्रयाग व धाम में रह रहे निम के कर्मचारियों व मजदूरों से बातचीत की। इसके बाद सीएम केदारनाथ से गुप्तकाशी हेलीपैड पहुंचे, लोनिवि के निरीक्षण भवन में आयोजित कार्यक्रम में सीएम ने 48 केदारनाथ आपदा पीडि़तों को आठ करोड़ 67 लाख 52 हजार दो दो सौ 66 रुपये तथा 13 मजदूरों को 130000 रुपये की धनराशि के चेक वितरित किए। उन्होंने कहा कि अभी तक केदारनाथ में 24 भवन स्वामी अपनी सहमति दे चुके हैं, जिसमें 13 भवनों को तोडऩे की सहमति शासन को मिल चुकी है। उन्होंने कहा कि केदारपुरी अब मानसरोवर की तरह दिख रहा है। अभी तक रामबाड़ा से ऊपर 2500 लोगों को जाने की अनुमति दी जाएगी। उन्होंने देश-विदेश से अधिक से अधिक यात्रियों को चारधाम यात्रा पर आने का आमंत्रण दिया है। इसके लिए उन्होंने प्रशासन के साथ ही तीर्थपुरोहितों, व्यवसायियों व स्थानीय लोगों से सहयोग की अपेक्षा भी की है। जिससे पूरे देश में यात्रा को लेकर अच्छा संदेश पहुंच सके। अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा ने कहा कि मुआवजे पर कोई कर नहीं लगेगा। भवन स्वामियों को जमीन के बदले जमीन दी जाएगी। उन्होंने भवन के लिए भवन स्वामियों को माडल तैयार करने बाद भवन बनाकर देंगे। मंदिर के पचास फीट के बहार जो जीर्ण-शीर्ण भवन हैं, इसके लिए यदि भवन स्वामी अपनी सहमति देता है, तो ठीक है, नहीं तो सुरक्षा की दृष्टि से इसे तोड़ा जाए। इसके लिए डीएम को निर्देशित किया जा चुका है। इस अवसर पर संसदीय सचिव शैलारानी रावत, डीएम डॉ. राघव लंघर, सहायक सेटलमेंट आफिसर एलआर चौहान समेत यात्रा से संबंधित अधिकारी उपस्थित थे। सीएम को सिरोबगड़ स्लाइडिंग जोन का निरीक्षण करना था पर नहीं कर सके।

गंगोत्री-यमुनोत्री में सन्नाटा


 अक्षय तृतीया के दिन 21 अप्रैल को गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट खुलने हैं, लेकिन अभी तक दोनों धाम में पसरा सन्नाटा नहीं टूटा है। दोनों धामों में अब भी अधिकांश दुकानें बंद हैं। देर तक हुई बर्फबारी के कारण बाजार में दुकानों के आगे से बर्फ के ढेर भी नहीं हटाए जा सके हैं। पूजा सामग्री की कुछ दुकानों को छोड़कर अधिकांश दुकानें अभी तैयार नहीं हो सकी हैं। वर्ष 2013 में जून माह बाढ़ के चलते गंगोत्री व यमुनोत्री धाम में सीजनल व्यापारियों का बड़ा नुकसान हुआ था। कपाट खुलने के महज डेढ़ माह बाद ही आपदा के कारण व्यापारियों को सामान वहीं छोड़कर वापस लौटना पड़ा था। पूर्व में दोनों धामों में यात्रियों की आमद का जो आंकड़ा चार लाख से ऊपर पहुंचता था। वर्ष 2014 में घटकर 58 हजार ही रहा। इस कारण धाम में पचास फीसदी दुकानें ही खुल सकी। उनमें भी बरसात शुरू होने तक कई व्यापारी वापस लौट गए थे। हालांकि इस बार यात्रियों के बड़ी तादाद में पहुंचने की उम्मीद की जा रही है, लेकिन अभी तक दोनों धामों के बाजार में चहल पहल शुरू नहीं हो सकी है। जबकि वर्ष 2013 तक कपाट खुलने से पंद्रह दिन पहले ही गंगोत्री धाम व्यापारियों, साधुओं और तीर्थ पुरोहितों से गुलजार हो जाता था। वहीं जानकीचट्टी बाजार के साथ ही यमुनोत्री धाम तक यात्रा के लिए माहौल तैयार हो जाता था। पांच किमी के पैदल मार्ग में भी इस बार दुकानें तैयार नहीं हो सकी हैं। गंगोत्री मंदिर समिति के सचिव सुरेश   सेमवाल का कहना है कि गंगोत्री बाजार में यात्रियों ने तैयारी तो की है, लेकिन उम्मीद है कि कपाट खुलने के दिन से ही व्यापारी अपना कारोबार जमाना शुरू करेंगे। गंगोत्री बाजार में पूजा सामग्री व खाने रहने के होटल व रेस्टोरेंट सबसे ज्यादा हैं। इसके अलावा गर्म कपड़े, दवाइयां, किराना, लेमिनेटेड फोटो, ऑडियो वीडियो सीडी, छाते, टॉर्च समेत उच्च हिमालयी क्षेत्र के लिए जरूरी वस्तुओं का भी यहां पूरे यात्रा सीजन के दौरान कारोबार होता है। इसी तरह की दुकानें चारधाम यात्रा के पहले धाम यमुनोत्री में जानकीचट्टी के साथ ही यमुनोत्री धाम व बीच के पैदल मार्ग पर भी तैयार होती हैं। यह सीजनल व्यापारी पूरी तरह यात्रा के रुझान पर निर्भर है। चार धाम यात्रा के शुभारंभ को दो दिन शेष रह गए हैं। परिवहन विभाग अब तक 133 ग्रीन कार्ड जारी कर चुका है।चार धाम यात्रा संचालन में परिवहन विभाग की भूमिका अहम है। यही कारण है कि शासन की ओर से विभाग की जवाबदेही को और बढ़ाया गया है। चारधाम यात्रा मार्गो के लिए चार जांच दल बनाए गए हैं। ऋषिकेश को यात्रा का प्रवेश द्वार कहा जाता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए सहायक संभागीय परिवहन कार्यालय ने इस बार वाहनों को ग्रीन कार्ड जारी करने के लिए चार काउंटर बनाए हैं। सुबह आठ बजे से शाम छह बजे तक यह काउंटर खुले रहेंगे। 15 अप्रैल से यहां ग्रीन कार्ड जारी करना शुरू कर दिया था।
 इन चार दिनों में ग्रीन कार्ड जारी करने के जो आंकड़े सामने आए हैं वह यात्रा के प्रति आशंकित लोगों को राहत देने वाले हैं। विभाग की ओर से अब 133 ग्रीन कार्ड जारी किए गए हैं, जिनमें 39 बस, 69 टैक्सी, 22 मैक्स, तीन मिनी बस शामिल है। 15 अप्रैल को 15, 16 अप्रैल को 38, 17 अप्रैल को 50 व 18 अप्रैल को 30 ग्रीन कार्ड जारी किए गए हैं। यहां से अब तक जितने भी ग्रीन कार्ड जारी हुए हैं, उसमें बाहरी राज्य का कोई वाहन नहीं है। सभी वाहन स्थानीय लोगों के हैं। वहीं, ऋषिकेश के एआरटीओ एके जाससवाल ने बताया कि चार धाम यात्रा को लेकर परिवहन विभाग की तैयारी पूर्ण है। अब तक 133 ग्रीन कार्ड जारी कर दिए गए हैं। संख्या धीरे-धीरे बढ़ेगी। वाहन स्वामियों की सुविधा का पूरा ख्याल रखा जा रहा है।

‘कागजों’ में पूरी हो गयी चारधाम यात्रा की ‘तैयारी’

चारधाम यात्रा के सफल संचालन पर प्रश्र चिन्ह, चारधामों को जोडने वाले मार्ग दयनीय हाल में 



 गंगोत्री धाम की यात्रा शुरू होने में सिर्फ दो दिन का समय बचा है लेकिन जिला प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है। एक भी अधिकारी ने धाम की स्थिति का जायजा लेने की जहमत तक नहीं उठाई है। यात्रा की तैयारियों के घोड़े केवल फाइलों में दौड़ाए जा रहे हैं।
आगामी 21 अप्रैल को गंगोत्री धाम की यात्रा शुरू हो जाएगी। जिला प्रशासन सिर्फ बैठकों में ही यात्रा की तैयारियों में जुटा हुआ है। धाम में क्या स्थिति है। क्या काम किए जाने की जरूरत है। यात्रा पड़ावों में तो सुविधाओं को दुरूस्त करने का काम किया जा रहा है लेकिन धाम में छह महीने से हो रही बर्फबारी से फैली अव्यवस्था से प्रशासन अनजान बना हुआ है। गंगोत्री जाने के लिए प्रशासन सचिव का इंतजार कर रहा है। राज्य सरकार ने बीते दिनों यात्रा की तैयारियों का जिम्मा सचिवों को दिया था। माना जा रहा है कि गंगोत्री यमुनोत्री के लिए नोडल अधिकारी के तौर पर नियुक्त सचिव शैलेष बगोली इस सप्ताह के अंत तक गंगोत्री का निरीक्षण कर यात्रा व्यवस्थाओं का जायजा लेंगे। लिहाजा जिला प्रशासन भी सचिव के निरीक्षण का इंतजार कर रहा है। बड़कोट एसडीएम ने यमुनोत्री पहुंचकर धाम का जायजा लिया। बीते दिनों बर्फबारी से हुए भूस्खलन से सूर्य कुंड और मंदिर परिसर को नुकसान की खबरों के बावजूद एसडीएम बड़कोट ने यमुनोत्री जाना मुनासिब नहीं समझा। सिर्फ पटवारी ने ही उस दौरान धाम का निरीक्षण किया था। पटवारी के निरीक्षण के बाद एसडीएम भी धाम में व्यवस्थाओं को लेकर आश्वस्त हीं नजर आए। लेकिन जब रविवार को वह यमुनोत्री पहुंचे तो वास्तविकता से रूबरू हुए। रास्ते बदहाल हैं तो धाम में कई जगहों पर नुकसान पहुंचा है। यही हाल केदारनाथ धाम का भी है। यहां मंदिर को भले ही ऊर्जा निगम ने रोशन कर दिया हो लेकिन बेस कैंप अब भी अंधेरे में है। चार सौ से अधिक मजदूरों को बिजली का इंतजार है। इसका कारण बिजली के तारों का बर्फ में दबा होना है। केदारनाथ क्षेत्र में फरवरी माह से विद्युत आपूर्ति ठप पड़ी हुई है। लिनचोली तक दो सप्ताह पूर्व आपूर्ति बहाल कर दी गई थी, लेकिन ऊंचाई वाले क्षेत्र में अधिक बर्फबारी के चलते विद्युत लाइनें पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिससे बिजली आपूर्ति में निगम के कर्मचारियों को खासी परेशानी उठानी पड़ी। केदारनाथ बेस कैंप में बिजली आपूर्ति के लिए बर्फ से तबाह हो चुकी एलटी लाइन को ठीक करने की कार्यवाही की जा रही है। ऊर्जा निगम के सहायक अभियंता अक्षित भट्ट ने बताया कि केदारनाथ बेस कैंप में आपूर्ति सुचारू करने के लिए बर्फ में दबी लाइन के तारों को निकालने का प्रयास किया जा रहा है। यह तारें चार से आठ फुट नीचे बर्फ में दबी हैं। उन्होंने बताया कि यदि तार बर्फ से नहीं निकल पाई तो ऊखीमठ से बिजली की तारें भेजी जाएंगी। उधर, केदारनाथ में निम के पास सौर ऊर्जा की लाइटें व दस से अधिक जनरेटर मौजूद हैं, जिनका नियमित रूप से रात्रि को प्रयोग में लाया जाता है। जनरेटरों के लिए मिट्टी तेल हेलीकॉप्टर से सप्लाई की जा रही है। जबकि कमरों में जलने वाले बोल्वो हीटर मिट्टी तेल से ही चलते हैं। बाबा केदार भी समस्याओं से अछूते नहीं हैं यहां भी अभी तक प्रशासन कोई खास तैयारी नहीं कर सका है। चारों धामों को जाने वाली सड़कों की दशा पूरी तरह से खराब है। कब कहां कौन की सी दुर्घटना हो जाए कहा नहीं जा सकता है। ऐसे में दो दिन बाद शुरू होने वाली चारधाम यात्रा के सफल संचालन पर प्रश्र चिन्ह खड़े हो गये हैं।


गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

चारधम यात्राी यात्रा करेंगे, भगवान भरोसे

‘जनसैलाब’ पर ‘प्रतिबंध्’
उकेदारनाथ यात्रा के पहले दिन हजारों श्र(ालु होंगे निराश
उपन्द्रह सौ से अध्कि यात्राी नहीं जा सकेंगे केदारनाथ धम
उधम में एक रात में पांच हजार के ठहरने की व्यवस्था
उचारधम मार्ग आज भी हैं बदहाल, प्रदेश सरकार सुस्त
उकरोड़ों रूपये खर्चने के बाद भी व्यवस्था अभ शून्य
उप्रदेश सरकार का दावा, सभी तैयारियां हो गई है पूर्ण
चारधम यात्राी यात्रा करेंगे, भगवान भरोसे






संतोष बेंजवाल
वर्ष 2013 के बाद उत्तराखंड के चारधम में जहां भारी जन-ध्न की हानि हुई वहीं उत्तराखंड  के लोगों की आर्थिकी भी खत्म हुई। प्रदेश सरकार ने दो साल तक भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाएं और जनता को छोड़ दिया भगवान भरोसे। अकेले केदारनाथ की बात करें तो सबसे अध्कि नुकसान केदारघाटी को हुआ यहां  भारी जनध्न की हानि के साथ इस घाटी के लोग बेरोजगार हो गये। इस साल लोगों को उम्मीद है कि भोले बाबा इस धम में अपने भक्तों को बुलाएंगे और घाटी के लोगों की अर्थव्यवस्था में सुधर होगा।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में आयी हिमालयी सुनामी के बाद स्थानीय लोग तो बेरोजगार हो गए  और सरकार में बैठे अपफसर और राजनेताओं को रोजगार मिला और वह यह भूल गए कि किसके पीछे वह रोजगार पाने में सपफल हुए। दो साल तक केदारघाटी के लोगों के घरों में चूल्हा कैसे जला इस बात की पिफक्र किसी को नहीं और कैसे लोगों ने जीवन जीया इस बार यहां के लोगों को उम्मीद तो है पर सरकार की दखल से लोगों के मन में डर बैठा हुआ है।
ज्ञात हो कि वर्ष 2013 में केदारनाथ में आयी हिमालयी सुनामी से पहले सरकार जाग जाती तो शायद उस जलजले में हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ नहीं धेना पड़ता, लेकिन तत्काली प्रदेश सरकार के मुखिया का ध्यान तो सिपर्फ अपनी जेबों को भरने में लगा था।  उस जलजले के बाद पूरे विश्व में सरकार की थू-थू हुई। दो साल तक केदानाथ का दर्द झेलने वाले भोले नाथ के भक्तों और केदारनाथ यात्रा पर अपनी आर्थिकी को चलाने वालों को इस बाद उम्मीद है कि यात्रा अपने चरम पर रहेगी। इसके लिए वर्तमान सरकार भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। पिछली गलती से सबक लेते हुए इस बार प्रदेश सरकार जाग गयी है।
इस बार केदारनाथ धम के कपाट खुलने के दिन हजारों श्र(ालु जहां निराश होंगे। वहीं व्यवस्थाओं की पहल लोगों को राहत देगी। सरकार ने इस बार कुछ अहम निर्णय लिये हैं। केदारनाथ धम में इस बार पहले दिन केवल 15 सौ यात्राी ही भगवान केदार के दर्शन कर सकेंगे। इस मौके पर राष्ट्रपति भी धम पहुंच रहे हैं। पहले दिन से लेकर माह के अंतिम दिन तक यात्रियों की सीमिति संख्या को धम में पहुंचाने का निर्णय लिया गया है। मई से इस संख्या में ध्ीरे-ध्ीरे बढ़ोत्तरी की जाएगी। जून 2013 की आपदा के बाद पुनर्निर्माण से गुजर रहे केदारनाथ में हालात सामान्य हो रहे हैं। हालांकि अभी वहां इतनी व्यवस्था नहीं हो पाई है कि एक रात में 5 हजार लोगों को ठहराया जा सके। आज की तिथि में यहां एमआई-26 हेलीपैड के किनारों पर नाली निर्माण किया जा रहा है। धम में नव निर्मित 12 काटेज हैं। 13 का निर्माण होना बाकी है। गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग पर गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्किांश हट्स बपर्फबारी से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। ऐसे हालात में निगम भी अप्रैल माह में प्रतिदिन 250 यात्रियों की बुकिंग करेगा। जरूरी व्यवस्थाओं को पूरा होने पर प्रशासन और निगम यात्रियों की संख्या में इजाफा करेंगे। दिसंबर से लेकर 2 अप्रैल तक केदारनाथ में मौसम की मार ने पुनर्निर्माण कार्यों को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। तीन से पांच दिन के अंतराल में बिगड़ रहे मौसम के कारण धम में बर्फबारी हो रही है। इससे तैयारियों पर भी असर पड़ रहा है। रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी डा. राघव लंगर ने बताया कि केदारनाथ धम में अब भी 8 पफीट से अध्कि बपर्फ जमा है। साढ़े तीन माह में 15 से अध्कि बार धम में बपर्फ गिर चुकी है। केदारनाथ के कपाट खुलने पर राष्ट्रपति धम पहुंच रहे हैं। धम में भारी सुरक्षा बल तैनात रहेगा। पुजारी लोगों के साथ मीडिया व कापफी संख्या में स्थानीय लोग भी होंगे। सीमित संसाधन और जगह की कमी को देखते हुए पहले दिन 15 सौ यात्रियों को भी केदारनाथ जाने की अनुमति दी जाएगी। प्रदेश सरकार केदारनाथ धम यात्रा के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च कर वाह-वाही लूट रही है, लेकिन स्थिति कुछ अलग है जहां करोड़ों रूपये केदारनाथ में खर्च हो चुके है वहीं सरकार जमीन पर कुछ नहीं कर पा रही है।
अकेले उत्तराखंड के चारधम में सड़कों की स्थिति को देखे तो सड़के दयनीय हाल में हैं। सरकार ने सड़कों के नाम पर करोड़ों रूपये अभी तक खर्च कर दिये हैं और सड़कों की स्थिति अभी भी दयनीय है। इस बार भी यात्रियों को हिचकोले खाकर ही चारधम यात्रा पर जाना पडे़गा। वहीं अन्य व्यवस्थाओं के नाम पर भी अभी तक सिपर्फ घोषणाएं ही हो रही हैं। जमीन पर तो आज भी वही हाल है जो पिछले दो साल पहले आपदा के बाद थे। सिपर्फ कागजों में सब काम हो रहे हैं।
 केदारनाथ में एक बार में 5000 यात्राी ही जा सकेंगे, इस बार आनलाइन रजिस्ट्रेशन भी सरकार एक ओर कह रही है केदारनाथ में सारी व्यवस्थाएं चुस्त दुरूस्त है। लेकिन धरातल पर कुछ नहीं दिख रहा है। प्रदेश में सड़कों कि स्थिति देहरादून में अच्छी नहीं है, तो पहाड में कैसी होगी इस सवाल पर लोकनिर्माण विभाग के मुख्य अभियंता ए.के. उप्रेती अपना सवाल का जवाब नहीं दे पाई, जबकि केदारनाथ में भी स्थिति अच्छी नहीं है। देखना यह है कि इन 20-25 दिनों में सरकार क्या कुछ करती है यह देखना बाकी है। केदारधम में जून 2013 में आई आपदा से सरकार ने अब सबक लिया है। उत्तराखंड शासन ने ऐसी व्यवस्था की है कि अब धम में जनसैलाब नहीं उमड़ेगा। इसी माह अप्रैल शुरू हो रही यात्रा में अब एक बार में केदारधम में 5000 यात्रियों से ज्यादा लोगों को जाने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा चार धम के सभी यात्रियों का पंजीकरण भी आवश्यक रूप से किया जाएगा। इसके लिए 18 केंद्र बनाए गए हैं। लेकिन यात्रियों को बायोमेट्रिक्स रजिस्ट्रेशन ;मशीन से पंजीकरणद्ध से छूट दी गई है। उनके लिए सिपर्फ पफोटो पहचानपत्रा जारी होंगे। केदारनाथ यात्रा के लिए राज्यों की ओर से जारी स्वास्थ्य प्रमाणपत्रा भी                     मान्य होंगे। केदारनाथ में तीन हजार लोगों के रहने की व्यवस्था कर ली गई है। दो हजार लोग सोनप्रयाग से लेकर केदारनाथ के बीच के पड़ावों में भी ठहर सकते हैं।
केदारनाथ मंदिर में संरक्षण कार्य में सौ दिक्कतें सामने आ रही हैं। आलम यह है कि केदारनाथ मंदिर में इस्तेमाल को मंगाई गई तकरीबन 30 लाख की लकड़ी डंप है। वजह, मंदिर समिति फर्श में इसके इस्तेमाल को तैयार नहीं थी, जबकि एएसआई ;भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षणद्ध पहले ही इसे मंगा चुका था। कुछ लकड़ियां धाम तो कुछ दून डिपो में रखवा दी गई हैं। इनकी अब अन्य मंदिरों में इस्तेमाल की तैयारी है। मसलन अब जागेश्वर धाम स्थित मंदिर की कैनोपी तैयार करने समेत कई कार्यों में इसका प्रयोग होगा। कार्य में देरी का जिम्मेदार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान ;आईआईटीद्ध चेन्नई भी है। केदारनाथ में संरक्षण के कार्य के लिए की सर्वे रिपोर्ट का इंतजार हो रहा है। एएसआई ने रिपोर्ट मंगाने के लिए आईआईटी चेन्नई को पत्र लिखा है, लेकिन पखवाड़ा भर बीतने के बावजूद वहां से कोई जवाब नहीं आया है। ऐसे में वहां काम तो जरूर होगा, लेकिन तकनीकी सुझावों के बगैर कार्य की प्राथमिकता तय करना एएसआई के लिए मुश्किल होगा। तीसरी दिक्कत जरूरी समय सीमा की है। एएसआई को अपने काम को अंजाम देने के लिए 100 कार्य दिवस की जरूरत होगी ही। आने वाली 24 अप्रैल को मंदिर के कपाट खुलेंगे। 15 जून से अमूमन मानसून की आमद मानी जाती है। ऐसे में आवश्यक समय संस्थान के विशेषज्ञों को मिल सकेगा या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। लकड़ी अब अन्य कार्यों में प्रयोग होगी। कपाट खुलने के साथ वहां एएसआई की टीम जाएगी। आईआईटी चेन्नई की टीम की सर्वे रिपोर्ट मिल जाती तो अच्छा होता। तकनीकी तरीके से हुए सर्वे के आधार पर कार्य की प्राथमिकता तय हो सकती थी। वहीं श्री बदरीनाथ-केदानाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष गणेश गोदियाल का कहना है कि लकड़ी किसने, कहां भेजी, हमें नहीं पता। हमने फर्श में लकड़ी लगाने को मना नहीं किया, बल्कि लिखित में यह सुझाव दिया था कि लकड़ी का फर्श लगाने से पहले यह सुनिश्चित किया जाए कि वह आग न पकड़े।

‘कांपते’ हाथों में डंडा देख ‘दुबका’ गुलदार

चमोली जिले के गनोली गांव के 70 वर्षीय चंद्र सिंह ने डंडे से किए गुलदार पर कई वार




नंदन विष्ट

 जब अपनों पर संकट आया तो 70 बसंत पार कर चुके बुजूर्ग का खून खोल गया और उसने कांपते हाथों से डंडा उठाया और गुलदार से भिड़ कर उसे दुबकने के लिए मजबूर कर दिया। 70 साल की उम्र में ऐसी पफुर्ती देख सभी दंग रह गए और सभी की जुबा पर इस बुजुर्ग के हौंसले व बहादुरी की दाद दे रहे हैं। जानकारी के अनुसार गुरुवार तड़के तीन बजे चमोली जिले के गनोली गांव में जब भजन सिंह के घर में गुलदार घुसने की सूचना चंद्र सिंह को मिली तो वह दौड़ कर वहा पहुंचे। जब उन्हें पता चला कि घर के अंदर उनके भाई, भाभी और तीन नाती-पोते मौजूद हैं तो उनके होश पफाख्ता हो गए। इसके बाद 70 वर्षीय चंद्र सिंह ने जान की परवाह न कर खून के रिश्तों को निभाते हुए अपना जीवन भी संकट में डालकर घर के अंदर जाने का निर्णय लिया। हालांकि तब गांव के अन्य लोग रोशनदान से घर के अंदर जाकर पफंसे लोगों को बाहर निकालने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। बड़े भाई के परिवार को संकट से निकालने के लिए घर के अंदर गए चंद्र सिंह का कहना है कि जब बड़े भाई भजन सिंह पर गुलदार ने हमला कर उन्हें नीचे गिराकर निवाला बनाया जा रहा था तो वह हकदक रह गए थे। उन्होंने यह सब कुछ इसलिए भी सापफ सापफ देखा क्योंकि उनके हाथों में टार्च होने के चलते रोशनी की गई थी। चंद्र सिंह का कहना है कि डर के बाद भी उनके अंदर भाई को बचाने के लिए कहां से ऊर्जा आई और उन्होंने हाथ पर रखे डंडे से गुलदार पर पांच बार वार किया। हमले से हड़बड़ाए गुलदार ने भी निवाला छोड़कर पिफर कमरे के किनारे पर दुबकने में मजबूर हो गया। इसी दौरान रोशनदान के बाहर से भी ग्रामीण पूरा नजारा देखकर हल्ला मचा रहे थे। अपनी जान की परवाह किए बगैर ही चंद्र सिंह ने घायल भाई को घसीटकर किसी तरह रोशनदान तक ले जाकर उन्हें सबसे पहले बाहर निकाला और पिफर खुद बाहर आए। यह खबर आग की तरह पूरे क्षेत्रा में पफैल गयी और लोग इस बुजूर्ग की हिम्मत की तारीपफ करने से पीछे नहीं हट रहे।

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

अभी भगवान की नाराजगी दूर नहीं हुई



चारधाम यात्रा के लिए अपने-अपने यजमान को टटोल रहे तीर्थ पुरोहितों को मिल रहे जवाब निराशाजनक हैं और ऐसा लग रहा है कि अभी भगवान की नाराजगी दूर नहीं हुई है। वर्ष 2013 की प्राकृतिक आपदा के बाद से चारधाम यात्रा ठप है। सरकार के स्तर से किए गए तमाम उपक्रमों के बावजूद 2014 में यात्रा जोर नहीं पकड़ सकी। परिणामस्वरूप यात्रा पर निर्भर लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। इस वर्ष लोग यात्रा के जोर पकड़ने की उम्मीद लगाए बैठे थे। यात्रा मार्ग को सुगम बनाने के लिए निम जैसे संस्थानों ने पूरा जोर लगा दिया और सरकार ने भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी। र्शम और साहस का ऐसा समिर्शण सामने आया कि इसने केदारधाम जैसे दुर्गम क्षेत्र में कई कीर्तिमान बना डाले। परंतु इसके बाद भी कुदरत से पार नहीं पाया जा सका और इसका एकमात्र कारण है लगातार हो रही बेमौसमी बारिश। दरअसल, इस बारिश ने सबसे अधिक उन राज्यों को प्रभावित किया है जहां से चारधाम यात्रा पर सबसे अधिक यात्री आते हैं। इन यात्रियों में सबसे बड़ा हिस्सा किसानों का होता है। यात्रियों का ये तबका लोकल बाजार को सबसे अधिक ऑक्सीजन देता है। ऐसे राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश शामिल हैं। इन राज्यों में किसानों को सबसे अधिक नुकसान की बात सामने आ रही है। सूचना है कि मुसीबत में घिरे किसान इस बार चारधाम यात्रा नहीं करने का मन बना रहे हैं। लोगों को यात्रा के लिए प्रेरित करने वाले तीर्थ पुरोहित भी ही ऐसा मान रहे हैं। यजमानों को कपाट खुलने की जानकारी दे रहे तीर्थ पुरोहितोंे से किसान फोन पर नुकसान का जिक्र कर रहे हैं। वे साफ कह रहे हैं कि फसलें नष्ट होने के कारण इस बार उनका यात्रा पर जाना मुश्किल होगा।आस्था के पथ पर उम्मीदों का दामन फैला हुआ है। यात्रा के जरिए आर्थिकी को आकार देने का भगीरथ प्रयास हो रहे हैं। दो वर्ष पूर्व आई जल प्रलय में बह गई सूबे की साख को वापस लाने की जद्दोजहद जारी है। भगवान के दर पर भक्तों का बेसब्री से इंतजार हो रहा है। यानी समग्र रूप में यूं कह लें कि मंद व कुंद पड़ी पहाड़ की श्रद्धामयी कोलाहल को वापस लाने के सारे इंतजाम कर लिए गए हैं। पर विडंबना यह है कि भगवान आज भी नाराज हैं और उनकी नाराजगी कभी बाढ़ तो कभी बारिश के रूप में सामने आ रही है। निम के अथक प्रयास और सरकार की सकारात्मक सोच ने चारधाम यात्रा को फिर से जीवंत होने की उम्मीद तो जगा दी परंतु लगातार हो रही बेमौसमी बारिश ने किसानों को इस कदर तबाह कर दिया है कि वे इस बार चारधाम यात्रा का विचार ही त्याग रहे हैं।संभावित र्शद्धालुओं के इस रुख से टूर ऑपरेटर से लेकर ढाबे वालों तक चिंतित दिखाई दे रहे हैं। यद्यपि इसके बावजूद बदरीनाथ के तीर्थ पुरोहितों की मुख्य पंचायत बद्रीश पंडा पंचायत के अध्यक्ष कृष्णकांत कोटियाल मानते हैं कि इस बार की यात्रा पिछले दो वर्षों के मुकाबले ठीक रहेगी।

शनिवार, 11 अप्रैल 2015

ऊर्जा प्रदेश में महंगी हुई बिजली


 ऊर्जा प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं को अब प्रति युनिट 10 से 50 पैसा अािक देना पड़ेगा। विद्युत नियामक आयोग ने उत्तराखण्ड पावर कारपोरेशन  के प्रस्ताव पर विचार करते हुए घरेलू श्रेणी के उपभोक्ताओं के बिजली ीूल्य में वृद्घि का अनुमोदन किया है। इस बाबत शनिवार को आयोग की अहम बैठक में व्यापक मंथन के बाद पावर कारपोरेशन के प्रस्ताव को कुछ संशोधनों के साथ हरी झंडी दिखाई।
उत्तराखण्ड विद्युत नियामक आयोग  के अध्यक्ष सुभाष कुमार ने बताया कि घरेलू श्रेणी के उपभोक्ताओं के लिए विद्युत ीूल्य में वृद्घि की गई है। प्रथम 100 यूनिट तक खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को प्रति यूनिट 10 पैसा अधिक देना पड़ेगा।  इसके अलावा 101 से 200 यूनिट तक 20 पैसे, 201 से 300 तथा 301 से 400 यूनिट तक खर्च करने वाले को 45 पैसा प्रति यूनिट तथा  401 से 500 युनिट या इससे अािक बिजली खर्च करने पर 50 पैसे प्रति युनिट का उपभोक्ता की जेब पर व्ययभार बढ़ा है। उन्होंने यह भी बताया कि एलटी उद्योगों एवं गैर घरेलू श्रेणी के लिए न्यूनतम उपभोग गारंटी को 60 किलोवाट प्रतिमाह से कम कर 25 किलोवाट प्रतिमाह किया गया है। निजी नलकूप उपभोक्ताओं के लिए न्यूनतम उपभोग गारंटी 70 किलोवाट प्रति बीएचपी प्रतिमाह से कम कर 60 किलोवाट प्रति बीएचपी प्रतिमाह करने का निर्णय लिया गया है। माह में प्रतिदिन 18 घंटे की न्यूनतम औसत आपूर्ति प्रान्त नहीं किए जाने की दशा में एचटी औद्योगिक उपभोक्ताओं का डिमांड चार्जेज उस माह में 80 प्रतिशत ही लगाया जाएगा। नई दरें 1 अप्रैल 2015 से लागू होंगी। उन्होंने यह भी बताया कि आयोग द्वारा पावर कारपोरेशन को आवश्यक सुधरात्मक उपाय करने के भी निर्देश दिए गए हैं। कारपोरेशन को लाइन लॉस     कम करने, खराब मीटरों को बदलने, कलेक्शन सिस्टम में सुधार करने, एरियर रिकवरी में सुधार, और एनर्जी ऑडिट करने के भी निर्देश दिए गए हैं। सभी नए विद्युत कनेक्शन को सही मीटरों के साथ संयोजित करने के निर्देश हैं। विद्युत नियामक आयोग ने उत्तराखण्ड विद्युत पारेषण निगम पिटकुल द्वारा दायर याचिका की भी सुनवाई के बाद अपना निर्णय दे दिया है। पिटकुल ने 2004-05 से 2013-14 के अंतिम सहीकरण के लिए 268$19 करोड़ की धनराशि का अंतर प्रक्षेपित किया  था। जिसके विपरीत आयोग ने अंतिम सहीकरण कर मात्रा 40$71 करोड़ का अंतर अनुमोदित किया है। इस प्रकार गत वर्ष की तुलना में आयोग ने मात्र 26$91 प्रतिशत वृद्घि को अनुमोदित किया। उनका यह भी कहना था कि घरेलू विद्युत उपभोक्ताओं पर ज्यादा भार न डालते हुए पावर कारपोरेशन को वितरण सिस्टम में सुधर के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने माना कि लाइन लॉस कम होने से बिजली का व्यर्थ व्यय नहीं होगा, इससे उपभोक्ता व कारपोरेशन दोनों को लाभ होगा। 

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

चारधाम यात्रा का टिहरी से हुआ गणेश





भगवान बदरीनाथ के अभिषेक के लिए निकाला तिलों का तेल
 राज परिवार की मौजूदगी में नरेंद्रनगर स्थित राजमहल में गुरुवार सुबह बदरीनाथ की पूजा-अर्चना टिहरी की राजरानी माल्या लक्ष्मी शाह के साथ सुहागिन महिलाओं ने भगवान बदरीनाथ के अभिषेक के लिए तिल का तेल निकाला। नरेंद्र नगर से देर शाम गाडू घड़ा ऋषिकेश के लिए रवाना कर दिया गया। गुरुवार को राजमहल में सुबह पं. संपूर्णानंद जोशी, पं. कृष्ण प्रसाद और पं. हेतराम थपलियाल ने विधिविधान के साथ बदरीनाथ की पूजा-अर्चना कराई। इसके बाद महारानी और टिहरी सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह ने तिलों का तेल निकालने की प्रक्रिया शुरू की। इसके बाद करीब 60                     सुहागिन महिलाओं ने तिलों का तेल निकाला। गाडू घड़ा में भरकर महाराजा मनुजयेंद्र ने परंपरानुसार श्री बदरीनाथ धार्मिक केंद्रीय पंचायत को सौंपा गया। शाम करीब 9 बजे विधिविधान से पूजा-अर्चना और भोग के बाद गाडू घड़ा यहां से रवाना हुआ। इस अवसर पर महाराजा पुंछ, डिमरी धार्मिक पंचायत के अध्यक्ष ज्योतिष डिमरी, सचिव महेश डिमरी, सह सचिव भास्कर डिमरी, शिव प्रसाद डिमरी, विनोद डिमरी, राकेश डिमरी राकूडी और डा भवनेश्वर प्रसाद डिमरी उपस्थित थे।
केदारनाथ पहुंची मंदिर समिति की 50 सदस्यीय टीम 
 बद्री-केदार मंदिर समिति की 50 सदस्यीय टीम केदारनाथ पहुंची टीम यात्रा शुरू होने से पहले मंदिर परिसर में साफ-सफाई और अन्य तैयारियों में जुटेगी। आगामी 24 अप्रैल को खुलने जा रहे भगवान केदारनाथ के कपाट को लेकर मंदिर समिति ने भी तैयारियां शुरू कर दी हैं। मंदिर समिति की 50 सदस्यीय टीम ने देर रात्रि विश्राम गौरीकुंड में किया। गुरुवार को सुबह टीम गौरीकुंड से केदारनाथ के लिए रवाना हुई और दोपहर बाद केदारनाथ पहुंच गई। टीम में दो इंजीनियर, दो सुपरवाइजर, तीन चौकीदार, दो क्लर्क समेत कई मजदूर शामिल हैं। मंदिर समिति के अधिकारियों की देखरेख में मंदिर परिसर से बर्फ हटाने का कार्य शुरू किया जाएगा। इसके अलावा, मंदाकिनी पुल से केदारनाथ मंदिर तक साफ-सफाई भी की जाएगी। इस दौरान मजूदर भोगमंडी का एवं अस्थायी शौचालयों का निर्माण करेंगे ताकि यात्रा के दौरान कोई दिक्कत न आए। मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह ने बताया कि समिति की टीम केदारनाथ पहुंच गई है, जो शुक्रवार से अपने कार्यो में जुट जाएगी। इस टीम में सहायक अभियंता गिरीश देवली, प्रशासनिक अधिकारी बचन सिंह रावत, युद्ववीर पुष्ववाण, गजानन त्रिवेदी, धर्मानंद सेमवाल, अनुसूया त्रिवेदी, प्रमोद कैशिव, अवनीश रावत शामिल हैं।

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

चारधम यात्राः अंध्ेरे में उजाले की आस


उप्रदेश सरकार उत्साहित पर मौसम का मिजाज कर रहा परेशानियां खड़ी 
उस्थानीय लोगों को है इस साल यात्रा अपने चरम पर चलने की उम्मीद
उचारधम के यात्रा मार्गों की स्थिति में नहीं हुआ कोई खास  बदलाव
संतोष बेंजवाल
 उत्तराखंड में इन दिनों चारधाम यात्रा का शोर है। शोर आखिर हो भी क्यों न, चारधम यात्रा प्रदेश में आर्थिकी की रीड़ है। इस यात्रा से लाखों लोगों का सीध रोजगार जुड़ा है। 2013 में आपदा झेल चुके सैंकड़ो होटल मालिकों और दुकानदारों को चारधम यात्रा से बड़ी उम्मीदें हैं। उत्तराखंड राज्य में हकीकत यह है कि आपदा ग्रस्त क्षेत्रों और यात्रा रूटों पर दुर्भाग्य से कोई खास बदलाव नहीं है। बदलाव है तो सिपर्फ और सिपर्फ सरकारी आंकड़ों में। आज नहीं तो कल हमें सच स्वीकारना ही होगा। हमें स्वीकारना होगा की हम न सिस्टम के काम करने के तौर-तरीके बदल पाए न प्रदेश के हालात बदल पाए। उलटे घटाटोप अंध्ेरे में उजाले की आस लगाये बैठे लोगों को भी हमने नाउम्मीदी की खाइयों में धकेल दिया। दूसरी ओर, अगर इस बार सरकार के अभी तक के जारी आंकडों पर नजर दौढ़ाएं तो इस बार उम्मीद नजर आ रही है दरअसल, चारों धम में व्यवस्थाएं अभी भी सामान्य नहीं हो पाई हैं। केदारनाथ सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न तो बना, लेकिन हालात अभी भी बेहद खराब हैं। राजमार्गों के हालात में कोई आशाजनक सुधार दूर दूर तक नजर नहीं आता। रूद्रप्रयाग-गौरीकुंड, )षिकेश- बदरीनाथ, गंगोत्राी और यमनोत्राी हाइवे से गुजरना कुछ ऐसा है, जैसे मौत की गलियों से गुजरना। यह सत्य है अगर आपको इससे रूबरू होना है तो इन स्थानों के डेंजर जोन से गुजरिये अपने आप आपको पता चल जाएगा। उत्तराखंड के चारधम की यात्रा इस माह के अंतिम सप्ताह में शुरू हो जाएगी। वर्ष 2013 में आयी हिमालयी सुनामी ने उत्तराखंड की आर्थिकी की कमर तोड़ दी थी। हिमालयी सुनामी का सबसे ज्यादा खामियाजा उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्रा के निवासियों को उठाना पड़ा। चारधम पर अपनी आर्थिकी  चलाने वाले यहां के वासिंदों के लिए इस हादसे ने झकझोर कर रख दिया। दो साल मुपफलीसी में जीने के बाद इस साल शुरू होने वाली चारधम यात्रा से लोगों की उम्मीदों को पंख लगने की उम्मीद है। एक ओर जहां सरकार चारधम यात्रा को लेकर उत्साहित है वही मौसम की बेरूखी से लोग सहमे-सहमे हैं। हालांकि सरकार की अभी तक की कागजी तैयारी से उम्मीद की जा रही है कि इस साल चारधम यात्रा अपने चरम पर रहेगी, लेकिन मौसम को लेकर सरकार और जनता आशंकित नजर आ रही है। उत्तराखंड अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदा से उबर रहा है और अपने तीर्थाटन/पर्यटन क्षेत्रा को पुनर्जीवित करने के लिए पूरी तरह तैयार है। उम्मीदें सालाना चारधाम यात्रा को मिलने वाली अच्छी प्रतिक्रिया पर टिकी हैं।उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक तीर्थाटन/पर्यटन पर टिकी है। यहां हिंदुओं के चार प्रमुख तीर्थस्थान केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्राी और यमुनोत्राी ;चार धमद्ध हैं जहां हर साल भारी संख्या में श्र(ालु पहुंचते हैं। तीर्थयात्रियों की आमद से गढ़वाल क्षेत्रा के लोगों के साथ आसपास के राज्यों के लोगों के लिए रोजगार के द्वार खुलते हैं। वर्ष 2013 में आयी हिमालयी सुनामी के बाद हजारों लोगों के हाथ से रोजगार छिन गया था, लेकिन इस बार हजारों लोगों को रोजगार की उम्मीद है। इस साल चारधम यात्रा में आने वाले यात्रियों की संख्या को लेकर सरकार उत्साहित है। केदारनाथ और बदरीनाथ धम यात्रा शुरू करने को लेकर सरकार पूरी तरह तैयार और आश्वस्त दिख रही है। जबकि गंगोत्राी और यमुनोत्राी यात्रा मार्गों को पिफलहाल बेहतर नहीं मान रही है। लगातार हो रही बारिश, बपर्फबारी और ग्लेश्यिर की वजह से इन यात्रा मार्गों की मरम्मत में दिक्कतें आ रही है। बावजूद सरकार 20 अप्रैल तक सड़क मार्ग और अन्य कमियों को पूरा करने का दावा कर रही है। तीर्थाटन और पर्यटन मंत्राी दिनेश ध्नै ने मंगलवार को यात्रा से जुड़े विभागों के आलाध्किारियों के साथ बैठक कर तैयारियों की जानकारी ली। सरकार की मानें तो यात्रा शुरू होने से पहले चारों धम तक सड़क, वहां बिजली की व्यवस्था, खानपान और यात्रियों के ठहरने की पर्याप्त व्यवस्था की जा रही है। चारधाम यात्रा की निगरानी कर रहे अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा ने बताया कि चारों धम तक सड़क का नेटवर्क 15-20 दिनों में पूरा हो जाएगा। उन्होंने बताया कि पीडब्ल्यूडी यु(स्तर पर काम कर रही है।

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

‘निशंक’ के साहित्य ने दक्षिण में जगाई अलख




सुप्रसि( साहित्यकार डाॅ0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के उपन्यास ‘भागोंवाली’ के तमिल अनुवाद तथा कहानी संग्रह ‘अंतहीन’ के कन्नड़ अनुवाद का विमोचन तेलंगाना के मुख्यमंत्राी के0चन्द्रशेखर राव द्वारा इस माह किया जायेगा। डाॅ0 निशंक का साहित्य दक्षिण भारत के अनेक राज्यों में विस्तारित होता जा रहा है। एक ओर उनके साहित्य पर वहाँ शोध् कार्य चल रहा है तो दूसरी ओर उनकी अनेक पुस्तकों का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में किया जा रहा है। यह उनके साहित्य सृजन में एक नये अध्याय के रूप में जुड़ गया है। विगत दिवस दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा हैदराबाद के स्वर्ण जयंती वर्ष के उपलक्ष में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय हिन्दी संगोष्ठी के दूसरे दिन सुप्रसि( साहित्यकार एवं उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्राी डाॅ0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की कहानी संग्रह ‘टूटते दायरे’ के तेलगु अनुवाद ‘अन्ध्कारम् पई सम्मैटा डेब्बा’ का विमोचन विश्वविख्यात कला संग्राहक पद्मश्री श्री जगदीश मित्तल द्वारा किया गया। वहीं दूसरी ओर उनके साहित्य पर अलग-अलग विश्वविद्यालयों में षोध कार्य भी किये जा रहे हैं। राष्ट्र पिता महात्मा गाँध्ी द्वारा स्थापित की गयी दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में डाॅ0 निशंक के एक कहानी संग्रह ‘टूटते दायरे’ के तेलगु अनुवाद के विमोचन के साथ ही डाॅ0 निशंक के साहित्य पर भरपूर चर्चा हुई। विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि विश्व प्रसि( कला संग्राहक एवं कला समीक्षक पद्मश्री जगदीश मित्तल ने कहा कि हिन्दी में लिखी हुई डाॅ0 निशंक की इन उत्कृष्ट कहानियों को दक्षिण भारत में निश्चित रूप से पसन्द किया जा रहा है और वह लोकप्रिय हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि कहानियाँ सजीव हैं और किसी के भी अन्तस को छूने वाली हैं। ऐसी कहानियाँ समाज में जागरूकता के साथ-साथ संवेदनाओं को जिंदा रखती हैं। महात्मा गाँध्ी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्ध ;महाराष्ट्रद्ध के अधिष्ठाता प्रो0 देवराज ने कहा कि किसी राजनैतिक व्यक्ति के अन्दर हिन्दी के प्रति पहली बार उन्होंने इतनी आग देखी है। उन्होंने कहा कि राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ निशंक एक साहित्यकार होने के नाते अत्यंत संवेदनशील हैं यही उनके साहित्य का प्रबल पक्ष भी है। उनकी रचनाएं व्यावहारिक और समाज में बदलाव की अगुवाई भी करती हैं। दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा चैन्नई की कुलसचिव प्रो0 निर्मला एस. मौर्य, आन्ध्र की लोकप्रिय पत्रिका भास्वर भारत के सम्पादक डाॅ0 राध्ेश्याम शुक्ल, बी.जे.आर. डिग्री काॅलेज हैदराबाद के विभागाध्यक्ष डाॅ0 घनश्याम, इफ्रलू हैदराबाद के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ0 एम. बैंकटेश्वर, त्रिपुरा विश्वविद्यालय अगरतला के हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ0 मिलन जमातिया, मणिपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की सहायक आचार्य डाॅ0 विजयलक्ष्मी, मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 शकीला खानम एवं केन्द्रिय हिन्दी अकादमी के पूर्व सदस्य डाॅ0 योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने निशंक के साहित्य पर चर्चा करते हुए कहा कि राजनीति के टेढ़े-मेढे़े रास्तों से गुजरने और तमाम व्यवस्तताओं के बीच निशंक ने अपनी-रचनाध्र्मिता को बुझने नहीं दिया, बल्कि वे अनवरत अपनी कहानियों, कविताओं और उपन्यास के माध्यम से अपने रचना संसार को विपरीत परिस्थितियों में भी जीवित रखे हुए हैं। डाॅ0 निशंक के साहित्य पर हैदराबाद विश्वविद्यालय एवं दो शोधर्थियों द्वारा शोध् कार्य भी किये जा रहे हैं, जबकि डाॅ0 निशंक के साहित्य की तमाम विधओं पर दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम निदेशक प्रो0 )षभदेव शर्मा के निर्देशन में सुप्रसि( साहित्यकार एवं अनेकों भाषाओं की विदुषी डाॅ0 गुर्रमकोंडा नीरजा द्वारा डी0लिट् किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त डाॅ0 निशंक की कवितायें आन्ध्र प्रदेश के हाईस्कूल के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाई जा रही हैं। ज्ञातव्य हो कि डाॅ0 निशंक के साहित्य का अनुवाद इससे भी पूर्व तेलगु, तमिल एवं मराठी में हो चुका है। मद्रास विश्वविद्यालय चेन्नई द्वारा कहानी संग्रह ‘खड़े हुए प्रश्न’ का तमिल अनुवाद ‘एन केलविक्कु एन्नाबाथिल’ एवं मराठी अनुवाद ‘प्रश्नांकित’ वर्श 2008 में हो चुका था। इसके अतिरिक्त कहानी संग्रह ‘क्या नहीं हो सकता’ का मराठी अनुवाद ‘संगले शक्य आहे’ तथा ‘ए वतन तेरे लिए’ देशभक्ति काव्य संग्रह का तमिल अनुवाद ‘तायनाडे उनक्काड एवं तेलगु अनुवाद ‘जन्मभूमि’ वर्ष 2009 में हो चुका है, जिन्हें वहाँ खूब लोकप्रियता प्राप्त हुई है। उनके गीत विभिन्न भाषाओं में गाये जाते हैं और उनकी कहानियाँ का दक्षिण भारत की भाषाओं में नाट्य रूपान्तरण भी हुआ है।

ejagran.in

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शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

निजी भवनों को तोडऩे का कार्य शुरू



 केदारनाथ में पुनर्निर्माण कर रहे निम (नेहरू पर्वतारोहण संस्थान)ने सरकारी भवनों को तोडऩे के बाद अब निजी भवनों को तोडऩे का कार्य भी शुरू कर दिया है। वर्ष 2013 में आई भीषण आपदा में केदारनाथ धाम में सरकारी और निजी संपतियों को भी नुकसान हुआ था। इस दौरान 46 सरकारी व 217 निजी भवन क्षतिग्रस्त हो गए थे। गत जनवरी व फरवरी माह में पुनर्निर्माण कार्यो में जुटी नेहरू पर्वतारोहण संस्थान ने 46 सरकारी जर्जर भवनों को तोड़ा। वहीं निजी भवनों को लेकर तीर्थ पुरोहितों एवं भवन स्वामियों के बीच करार न होने से 217 निजी भवनों को तोडऩे का मामला लटका पड़ा था। अब जिला प्रशासन और पुरोहितों में सहमति बनने के बाद 18 भवन स्वामियों ने केदारनाथ जाकर अपने भवन की भूमि भी नपत कराई। नए मास्टर प्लान में निजी भवनों को तोड़ा जाना भी अहम कड़ी थी। शासन-प्रशासन एवं केदारनाथ भवन स्वामियों के बीच हुए करार के बाद केदारनाथ में निजी भवनों को तोडऩे का कार्य भी शुरू हो गया है। निम के मीडिया प्रभारी देवेंद्र सिंह ने बताया कि शुक्रवार को निम के मजदूरों ने पाटलीपुत्र भवन से निजी भवनों को अंदर से तोडऩे का कार्य शुरू कर दिया है। मौसम ने साथ दिया तो यात्रा से पूर्व अधिकांश निजी भवनों को तोडऩे का काम पूर्ण कर दिया जाएगा। वहीं केदारनाथ में नए प्रीफेब्रिकेट हटों का निर्माण कार्य भी शीघ्र शुरू कर दिया जाएगा। इससे यात्रा के दौरान अधिक से अधिक यात्रियों के लिए केदारनाथ में रहने की व्यवस्था की जा सके।

मौसम की मार चारधाम यात्रा तैयारियों पर भारी

बदरीनाथ नेशनल हाईवे की स्थिति कई स्थानों पर काफी खराब, कई जगहों पर मार्ग असुरक्षित

नंदन विष्ट
गोपेश्वर। इस बार मौसम यात्रा व्यवस्थाओं और त्ैायारियों में मुश्किलें पैदा कर रहा है। यात्रा प्रारम्भ होने के लिये मात्र 22 दिन शेष रह गये हैं। बदरीनाथ हाई वे की स्थिति काफी खराब है, कई जगहों पर मार्ग असुरक्षित है। टंगणी के पास पागल नाला और पाण्डुकेश्वर के बाद लामबगड़ स्लाइड ऐसे समस्याग्रस्त क्षेत्र हैं, जो हल्की सी बर्षा से ही मार्ग केा बन्द करने के लिये काफी हैं। लामबगड़ स्लाइड का स्थायी हल ढूंढने के लिये काफी कवायद की गई हैं, इसके लिये वर्ष 2014 के जाड़ों में दक्षिण अफ्रीका के इंजीनियर्स भी आये थे और उन्होनें स्लाइड जोन का निरीक्षण करके टनल बनाये जाने का सुझाव दिया था, इसकी कार्ययोजना भी बनाई गई है, लेकिन इस पर कोई अमल नहीं हुआ ।
इसके अलावा इस स्लाइड पर भूस्खलन की रोकथाम के लिये सरकार ने सिंचाई विभाग, बीआरओ और लोनिवि से एक कार्ययोजना तैयार करवाई है, लेकिन अपने गोपेश्वर और जोशीमठ दौरे के दौरान सीएम हरीश रावत ने बताया कि इस स्लाईड जोन के स्थायी ट्रीटमेंट की कार्ययोजना तैयार है , लेकिन इस वर्ष इसका कार्य होना सम्भव नहीं है, उन्होनें अश्वासन दिया कि इस समस्या का अस्थाई समाधान हो जायेगा और यात्रा में कोई गतिरोध नहीं होने दिया जायेगा। बीआरओ का कहना है कि अस्थायी ट्रीटमेंट का जो कार्य चल रहा है, उसमें इस जोन के ठीक ऊपर बसे गांव पड़गासी के ग्रामीण अवरोध पैदा कर रहे हैं, जैसा संगठन चाहता है, उस ढंग से काम नहीं हो पा रहा है क्योंकि बीआरओ की योजना यह है कि स्लाइड के ऊपर जमा मलबे को गिराकर मार्ग को सुरक्षित बनाया जाये। इससे ग्रामीण गांव को खतरा होने की बात कर रहे हैं। गांव पड़गासी की स्थिति ऐसी है कि उसे आज नही ंतो कल जरूर खतरा है, इन्हें विस्थापित किये जाने की बातें भी चल रही है, लेकिन डीएम अशोक कुमार के अनुसार सरकार ने पूर्व में खतरे की जद में आने वाले परिवारों     शेष पेज चार पर
को विस्थापित करने के लिये कहा था, लेकिन उनके साथ सहमति नहीं बन पाई है ।  साफ है कि इस वर्ष भी यात्रा के दौरान यात्रियों की राह आसान नहीं रहेगी।दूसरी ओर इस मार्ग केा लोनिवि को हस्तान्तरित किये जाने की बातें भी जोर-शोर से चल रही हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि जब पर्यान्त संसाधनों के बावजूद बीआरओ मार्ग केा दुरूस्त करने में कठिनाई महसूस कर रहा है, तब लोनिवि कैसे इससे निपट पायेगा, यह प्रश्नचिन्ह बना हुआ है। हाल ही में चमोली जनपद के भ्रमण के दौरान पूर्व सीएम मे0 जनरल भुवन चन्द्र खण्डूड़ी ने इस कदम को काफी खेदजनक बताया और कहा कि यह सीमान्त मार्ग राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है और इसे इतने हल्के में लेना वाजिब नहीं है, इसलिये उन्हेानें रक्षामंत्रालय के साथ इस बारे में बात की है और उम्मीद जताई कि भारत सरकार शीइा्र ही इस फैसले पर पुनर्विचार कर उसे वापस लेगी।  गौरतलब है कि विगत वर्ष लामबगड़ स्लाइड के स्थायी ट्रीटमेंट के लिये बदरीनाथ के पण्डा, व्यापारियों, पुजारियों एवं साधुओं के साथ ही स्थानीय निवासियों ने मिल कर एक माह तक आन्दोलन किया था और सीएम के इस आश्वासन के बाद ही आन्दोलन स्थगित किया गया था कि 16 करोड़ की कार्ययोजना को एक माह के अन्दर अमल में लाया जायेगा, लेकिन इसपर कुछ नहीं हुआ। इस बारे में धनेश्वर डांडी, अध्यक्ष नगर पंचायत बदरीनाथ का कहना है कि इस कार्ययोजना पर काम शुरू न होने से बदरीनाथ के निवासी काफी नाराज हैं।

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

udaydinmaan: केदारनाथः ‘जनसैलाब’ पर ‘प्रतिबंध्’

udaydinmaan: केदारनाथः ‘जनसैलाब’ पर ‘प्रतिबंध्’

हवा में होगी चारधम यात्रा



नंदन विष्ट
 प्रदेश सरकार केदारनाथ धम यात्रा के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च कर वाह-वाही लूट रही है, लेकिन स्थिति कुछ अलग है जहां करोड़ों रूपये केदारनाथ में खर्च हो चुके है वहीं सरकार जमीन पर कुछ नहीं कर पा रही है।
अकेले उत्तराखंड के चारधम में सड़कों की स्थिति को देखे तो सड़के दयनीय हाल में हैं। सरकार ने सड़कों के नाम पर करोड़ों रूपये अभी तक खर्च कर दिये हैं और सड़कों की स्थिति अभी भी दयनीय है। इस बार भी यात्रियों को हिचकोले खाकर ही चारधम यात्रा पर जाना पडे़गा। वहीं अन्य व्यवस्थाओं के नाम पर भी अभी तक सिपर्फ घोषणाएं ही हो रही हैं। केदारनाथ में एक बार में 5000 यात्राी ही जा सकेंगे, इस बार आनलाइन रजिस्ट्रेशन भी सरकार एक ओर कह रही है केदारनाथ में सारी व्यवस्थाएं चुस्त दुरूस्त है। लेकिन धरातल पर कुछ नहीं दिख रहा है। प्रदेश में सड़कों कि स्थिति देहरादून में अच्छी नहीं है, तो पहाड में कैसी होगी इस सवाल पर लोकनिर्माण विभाग के मुख्य अभियंता ए.के. उप्रेती अपना सवाल का जवाब नहीं दे पाई, जबकि केदारनाथ में भी स्थिति अच्छी नहीं है।
 देखना यह है कि इन 20-25 दिनों में सरकार क्या कुछ करती है यह देखना बाकी है। केदारधम में जून 2013 में आई आपदा से सरकार ने अब सबक लिया है। उत्तराखंड शासन ने ऐसी व्यवस्था की है कि अब धम में जनसैलाब नहीं उमड़ेगा। इसी माह अप्रैल शुरू हो रही यात्रा में अब एक बार में केदारधम में 5000 यात्रियों से ज्यादा लोगों को जाने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा चार धम के सभी यात्रियों का पंजीकरण भी आवश्यक रूप से किया जाएगा। इसके लिए 18 केंद्र बनाए गए हैं। लेकिन यात्रियों को बायोमेट्रिक्स रजिस्ट्रेशन ;मशीन से पंजीकरणद्ध से छूट दी गई है।                      उनके लिए सिपर्फ पफोटो पहचानपत्रा जारी होंगे। केदारनाथ यात्रा के लिए राज्यों की ओर से जारी स्वास्थ्य प्रमाणपत्रा भी                     मान्य होंगे। केदारनाथ में तीन हजार लोगों के रहने की व्यवस्था कर ली गई है। दो हजार लोग सोनप्रयाग से लेकर केदारनाथ के बीच के पड़ावों में भी ठहर सकते हैं। 

केदारनाथः ‘जनसैलाब’ पर ‘प्रतिबंध्’


उकेदारनाथ यात्रा के पहले दिन हजारों श्र(ालु होंगे निराशउपन्द्रह सौ से अध्कि यात्राी नहीं जा सकेंगे केदारनाथ धमउधम में एक रात में पांच हजार लोगों के ठहरने की व्यवस्थासंतोष बेंजवाल

 वर्ष 2013 में केदारनाथ में आयी हिमालयी सुनामी से पहले सरकार जाग जाती तो शायद उस जलजले में हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ नहीं धेना पड़ता, लेकिन तत्काली प्रदेश सरकार के मुखिया का ध्यान तो सिपर्फ अपनी जेबों को भरने में लगा था।  उस जलजले के बाद पूरे विश्व में सरकार की थू-थू हुई। दो साल तक केदानाथ का दर्द झेलने वाले भोले नाथ के भक्तों और केदारनाथ यात्रा पर अपनी आर्थिकी को चलाने वालों को इस बाद उम्मीद है कि यात्रा अपने चरम पर रहेगी। इसके लिए वर्तमान सरकार भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। पिछली गलती से सबक लेते हुए इस बार प्रदेश सरकार जाग गयी है।
इस बार केदारनाथ धम के कपाट खुलने के दिन हजारों श्र(ालु जहां निराश होंगे। वहीं व्यवस्थाओं की पहल लोगों को राहत देगी। सरकार ने इस बार कुछ अहम निर्णय लिये हैं। केदारनाथ धम में इस बार पहले दिन केवल 15 सौ यात्राी ही भगवान केदार के दर्शन कर सकेंगे। इस मौके पर राष्ट्रपति भी धम पहुंच रहे हैं। पहले दिन से लेकर माह के अंतिम दिन तक यात्रियों की सीमिति संख्या को धम में पहुंचाने का निर्णय लिया गया है। मई से इस संख्या में ध्ीरे-ध्ीरे बढ़ोत्तरी की जाएगी। जून 2013 की आपदा के बाद पुनर्निर्माण से गुजर रहे केदारनाथ में हालात सामान्य हो रहे हैं। हालांकि अभी वहां इतनी व्यवस्था नहीं हो पाई है कि एक रात में 5 हजार लोगों को ठहराया जा सके। आज की तिथि में यहां एमआई-26 हेलीपैड के किनारों पर नाली निर्माण किया जा रहा है। धम में नव निर्मित 12 काटेज हैं। 13 का निर्माण होना बाकी है। गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग पर गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्किांश हट्स बपर्फबारी से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। ऐसे हालात में निगम भी अप्रैल माह में प्रतिदिन 250 यात्रियों की बुकिंग करेगा। जरूरी व्यवस्थाओं को पूरा होने पर प्रशासन और निगम यात्रियों की संख्या में इजाफा करेंगे। दिसंबर से लेकर 2 अप्रैल तक केदारनाथ में मौसम की मार ने पुनर्निर्माण कार्यों को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। तीन से पांच दिन के अंतराल में बिगड़ रहे मौसम के कारण धम में बर्फबारी हो रही है। इससे तैयारियों पर भी असर पड़ रहा है। रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी डा. राघव लंगर ने बताया कि केदारनाथ धम में अब भी 8 पफीट से अध्कि बपर्फ जमा है। साढ़े तीन माह में 15 से अध्कि बार धम में बपर्फ गिर चुकी है। केदारनाथ के कपाट खुलने पर राष्ट्रपति धम पहुंच रहे हैं। धम में भारी सुरक्षा बल तैनात रहेगा। पुजारी लोगों के साथ मीडिया व कापफी संख्या में स्थानीय लोग भी होंगे। सीमित संसाधन और जगह की कमी को देखते हुए पहले दिन 15 सौ यात्रियों को भी केदारनाथ जाने की अनुमति दी जाएगी।

गुरुवार, 26 मार्च 2015


अरविन्द भाई, हम दोनों को मजबूर होकर आपके नाम यह खुली चिठ्ठी लिखनी पड़ रही है. दस दिन पहले आपके बंगलूर से आने पर हमने आपसे मुलाक़ात का समय माँगा था, लेकिन अभी तक आप समय नहीं निकाल पाये हैं. ऐसे में बहुत अनिश्चितता का माहौल बना है. पार्टी के तमाम वॉलंटियर, समर्थक और शुभचिंतक यह आस लगाये बैठे हैं कि बातचीत चल रही है और कुछ अच्छी खबर आने वाली है. मन ही मन चिंतित भी हैं कि पार्टी की एकता बनी रहेगी या नहीं.यह आशंका भी जताई जा रही है कि बंद कमरों की इस बातचीत में पार्टी के सिद्धांतों से कोई समझौता तो नहीं किया जा रहा, इसलिए हम इस चिठ्ठी को सार्वजनिक कर रहे हैं.आपके बंगलूर से वापिस आने के बाद उसी रात को पार्टी के कई वरिष्ठ साथी योगेन्द्र के घर मिलने आये. उसके बाद बातचीत का एक सिलसिला शुरू हुआ, जिसमें हमारी ओर से प्रा. आनंद कुमार और प्रा. अजीत झा थे. हम दोनों ने इस बातचीत के लिए एक लिखित प्रस्ताव रखा. शुरू में लगा कि बातचीत ठीक दिशा में बढ़ रही है. लगा कि राष्ट्रीय संयोजक पद जैसे फ़िज़ूल के मुद्दों और आरोपों से पिंड छूटा है.जब पीएसी ने देशभर में संगठन निर्माण, दिल्ली के बाहर चुनाव पर विचार और वॉलंटियर की आवाज़ सुनने की घोषणा की तो हमें भी लगा कि आखिर अब उन सवालों पर जवाब मिल रहा है जो हमने उठाये थे, लेकिन जब पार्टी में आतंरिक लोकतंत्र के इन सवालों पर ठोस बातचीत हुई तो निराशा ही हाथ लगी. कहने को सिद्धांतों पर सहमति थी, लेकिन किसी भी ठोस सुझाव पर या तो साफ़ इंकार था या फिर टालमटोल.1. हमारा आग्रह था कि स्वराज की भावना के अनुरूप राज्य के फैसले राज्य स्तर पर हों. हमें बताया गया कि यह संगठन और कार्यक्रम के छोटे-मोटे मामले में तो चल सकता है, लेकिन देश के किसी भी कोने में पंचायत और म्युनिसिपालिटी के चुनाव लड़ने का फैसला भी दिल्ली से ही लिया जायेगा, और वो भी सिर्फ पीएसी द्वारा.
कुमार भाई को महाराष्ट्र भेजने के फैसले ने हमारे संदेह की पुष्टि की है.2. हमने मांग की थी कि हमारे आंदोलन की मूल भावना के मुताबिक पिछले कुछ दिनों में पार्टी पर लगाये गए चार बड़े आरोपों (दो करोड़ के चैक, उत्तमनगर में शराब बरामदगी, विधि मंत्री की डिग्री और दल-बदल और जोड़-तोड़ के सहारे सरकार बनाने की कोशिश) की लोकपाल से जांच करवाई जाये. जवाब मिला कि बाकी सब संभव है, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से जुड़े किसी भी 'संवेदनशील' मामले पर जांच की मांग भी न की जाय.3. हमने सुझाव दिया था कि लोकतान्त्रिक भागीदारी की हमारी मांग के अनुरूप पार्टी के हर बड़े फैसले में वॉलंटियरों की राय ली जाय, मांग हो तो वोट के ज़रिये. जवाब मिला कि राय तो पूछ सकते हैं, लेकिन वॉलंटियर द्वारा वोट की बात भूल जाएँ, खासतौर पर उम्मीदवार चुनते वक्त.

4. हमने कहा था कि पार्टी अपने वादे के मुताबिक़ RTI के तहत आना स्वीकार करे. हमें बताया गया कि पार्टी कुछ जानकारी सार्वजनिक कर देगी, लेकिन RTI के दायरे में आना व्यवाहारिक नहीं है.
5. आपकी तरफ से प्रस्ताव आया कि सभी पदाधिकारी चुनाव आयोग वाला एफिडेविट भर कर अपनी संपत्ति का ब्यौरा दें, आयकर का ब्यौरा पार्टी को दें और परिवार एक पद का नियम आमंत्रित सदस्यों पर भी लागू हो. हमने यह सब एकदम मान लिया.

6. आपकी तरफ से एक मुद्दा बार-बार उठाया गया. योगेन्द्र को कहा गया कि वे चाहें तो उन्हें हरियाणा में खुली छूट दी जा सकती है. जिन लोगों ने वहां योगेन्द्र के काम में रोड़े अटकाए हैं, उन्हें राज्य बाहर कर दिया जायेगा. हमने स्वीकार नहीं किया, चूंकि जब तक आतंरिक लोकतंत्र के हमारे मूल सवालों का जवाब नहीं मिलता तब तक ऐसी किसी चर्चा में भाग लेना भी सौदेबाजी होगी.
हमने इन सब सवालों पर खुले मन से बातचीत की. जब पृथ्वी रेड्डी ने इन मुद्दों पर अपना एक प्रस्ताव रखा जो हमारे प्रस्ताव से बहुत अलग था, तो हमने उसे भी स्वीकार कर लिया. लेकिन अब पृथ्वी इस न्यूनतम प्रस्ताव को लेकर मिले तो आपने इसे सिरे से ख़ारिज कर दिया.

एडमिरल रामदास को भी असफलता ही हाथ लगी.
हमें ऐसा समझ आने लगा कि बातचीत का मकसद हमारे मुद्दों को सुलझाना नहीं था, बल्कि हमारा इस्तीफ़ा हासिल करना था. आपकी ओर से बात कर रहे साथी घुमा-फिरा कर एक ही आग्रह बार-बार दोहराते थे कि हम दोनों अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफ़ा दे दें. कारण यही बताया जाता था कि यह आपका व्यक्तिगत आग्रह है, आपने कहा है कि जब तक हम दोनों राष्ट्रीय कार्यकारिणी में हैं, तब तक आप राष्ट्रीय संयोजक के पद पर काम नहीं कर सकते. यही बात आपने तब भी कही थी जब हमें पीएसी से निकलने का प्रस्ताव लाया गया था.
आपके कई नजदीकी लोग सार्वजनिक रूप से यह भी कह रहे हैं कि हमें पार्टी से ही निष्कासित किया जायेगा. कुल मिलाकर आपकी तरफ से सन्देश आ रहा है की या तो शराफत से इस्तीफ़ा दे दो, या फिर अपमानित करके निकाला जायेगा. ये सब आपके सलाहकार ही नहीं, आप खुद कहलवा रहे हैं, यह सुनकर हमें बहुत दुःख और धक्का लगा है.
हमने ऐसा क्या किया है अरविन्द भाई, जो आप हमसे इतनी व्यक्तिगत खुंदक पाले हुए हैं? आपके मित्रगण मीडिया में चाहे जो भी झूठ फैला रहे हों, लेकिन आप सच्चाई से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं. हमने आज तक कभी भी आपसे कोई पद, ओहदा या लाभ नहीं माँगा. हमने कभी भी आपको अपदस्थ करने की कोशिश नहीं की है. यहाँ गिनाना शोभा नहीं देता, लेकिन आप जानते हैं कि हम दोनों ने हर नाजुक मोड़ पर आपकी मदद की. हाँ, हमने आपसे सवाल ज़रूर पूछे हैं. तब भी पूछे हैं, जब आप नहीं चाहते थे.
हाँ, हमने नासमझी और उतावली के खिलाफ आपको आगाह जरूर किया है, और हाँ, जब आपने सुनने से भी मना किया, तो हमने संगठन की मर्यादा के भीतर रहकर विरोध भी किया. स्वराज के सिद्धांतों पर बनी हमारी पार्टी में क्या ऐसा करना कोई अपराध है? हाँ, हमरी बातें तकलीफदेह हो सकती हैं और हमेशा रहेंगी. लेकिन क्या आप ऐसे किसी व्यक्ति को पार्टी में नहीं रखना चाहते जो आपकी आँखों में आँखें डालकर सच बोल सके?
यूं भी अरविन्द भाई, जैसा कि आप जानते हैं, हमने खुद इस बातचीत के लिए लिखित नोट में अपने इस्तीफे की पेशकश की थी, बशर्ते :
· पंचायत और म्युनिसिपेलिटी चुनाव में भागीदारी का अंतिम फैसला राज्य इकाई के हाथ में देने की घोषणा हो
· हाल में पार्टी से जुड़े चारों बड़े आरोपों की जांच एकदम राष्ट्रीय लोकपाल को सौंप दी जाय
· सभी राज्यों में लोकायुक्त को राष्ट्रीय लोकपाल की राय से तत्काल नियुक्त किया जाय
· नीति, कार्यक्रम और चुनाव के हर बड़े फैसले पर कार्यकर्ता की राय और जरूरत पड़ने पर वोट दर्ज़ करना शुरू किया जाय
· पार्टी CIC के आर्डर के मुताबिक RTI स्वीकार करने की घोषणा करे
· राष्ट्रीय कार्यकारिणी के रिक्त पदों को संविधान के अनुसार राष्ट्रीय परिषद द्वारा गुप्त मतदान से भरा जाय
हम अपने प्रस्ताव पर आज भी कायम हैं. अगर हमारे इस्तीफ़ा देने भर से पार्टी में इतने बड़े सुधार एक बार में हो सकते हैं, तो हमें बहुत खुशी होगी. हमारे लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बने रहना अहम् का मुद्दा नहीं है. असली बात यह है कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कुछ स्वतंत्र आवाजों का बचे रहना संगठन और खुद आपके लिए बेहद जरूरी है.
अरविन्द भाई, आज देश में वैकल्पिक राजनीति की सम्भावना बहुत नाजुक मोड़ पर है. आम आदमी पार्टी सिर्फ दिल्ली नहीं, पूरे देश के लिए नयी राजनीति की आशा बनकर उभरी है. हमारी एक छोटी सी गलती इस आंदोलन को गहरा नुक्सान पहुँचा सकती है. आज देश और दुनिया में न जाने कितने भारतीयों ने इस पार्टी से बड़ी बड़ी उम्मीदें बाँधी हैं.
पिछले हफ़्तों में हमें हज़ारों वॉलंटियर सन्देश मिले हैं. उन्हें पार्टी में जो कुछ हो रहा है, उससे धक्का लगा है. वो सब यही चाहते हैं कि किसी तरह से पार्टी के नेता मिल—जुलकर काम करें, पार्टी के एकता बनी रहे और साथ ही साथ उसकी आत्मा भी बची रहे. किसी भी चीज़ को तोड़ना आसान है, बनाना बहुत मुश्किल है. आपके नेतृत्व में दिल्ली की ऐतिहासिक विजय के बाद आज वक्त बड़े मन से कुछ बड़े काम करने का है. सारा देश हमें देख रहा है, ख़ास तौर पर आपको. हमें उम्मीद है की आप इस ऐतिहासिक अवसर को नहीं गंवाएंगे.
राष्ट्रीय परिषद की बैठक में बस एक दिन बाकी है. उम्मीद है इस अवसर पर एक बड़ी सोच रखते हुए आप पार्टी की एकता और उसकी आत्मा बचाये रखने का कोई रास्ता निकालेंगे. ऐसे किसी भी प्रयास में आप 

केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः

केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः

मंगलवार, 24 मार्च 2015

केदारनाथ त्रासदी-एक सच



केदारघाटी विस्थापन एवं पुनर्वास संघर्ष समिति के अध्यक्ष डॉ. अजेंद्र अजय ने उसे सोमवार को बेस अस्पताल में दाखिल कराया, जहां मनोविज्ञानी ने उसका परीक्षण किया। बताया कि इसका लंबा इलाज चलेगा। 15-15 दिन बाद उसे दिखाना पड़ेगा। इसके बाद उसके परिजन उसे अपने साथ ले गए। चमोली के नागनाथ पोखरी के सिमतोली गांव निवासी 46 वर्षीय पुष्कर सिंह मुम्बई में नौकरी करता था। 14 जून 2013 को वह अगस्त्यमुनि स्थित अपने भाई की दुकान पर पहुंचा। जहां से वह अपने एक अन्य रिश्तेदार के यहां तिलवाड़ा गया। 15 जून 2013 को बाइक से वह तिलवाड़ा से सोनप्रयाग की ओर गया। इसके बाद वह आपदा में लापता हो गया। उसके परिजनों ने अगस्त्यमुनि पुलिस चौकी में उसकी रिपोर्ट भी लिखाई। डा. अजेंद्र अजय के अनुसार बाद में शासन ने इसे मृत भी घोषित कर दिया गया था। बीते 21 मार्च को पुष्कर सिंह के ममेरे भाई संतोष कुंवर को वह रुद्रप्रयाग के पास दीनहीन हालत में घूमता मिला। उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति बहुत खराब थी। चोट के कारण उसका एक पैर भी खराब हो चुका था। अजय ने बताया कि वह जून 2013 के बाद से अब तक के समय को लेकर अपने बारे में कुछ भी नहीं बता पा रहा है। मानसिक रूप से भी अस्वस्थ लग रहा है। सोमवार को उसके परिजन उसे इलाज के लिए बेस अस्पताल लाए, जहां मनोविज्ञानी ने उसका परीक्षण कर लंबे समय तक इलाज की बात कही। अजेंद्र अजय ने प्रदेश सरकार से आपदा प्रभावित पुष्कर सिंह का सरकारी खर्च पर उपचार कराने की मांग की। साथ ही लापता लोगों को भी तलाश करने की मांग उठाई ताकि अन्य लोगों को इस तरह न भटकना पड़े।जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: सरकार ने भले ही आपदा को बुरे ख्वाब की तरह भुला दिया हो लेकिन अब भी लोग अपनों की तलाश में उत्तराखंड आ रहे हैं। यही नहीं, आपदा में लापता लोग भी भटकते हुए मिल जा रहे हैं। 46 वर्षीय एक आपदा प्रभावित तीन दिन पहले रुद्रप्रयाग में मिला, जबकि सरकार उसे मृत घोषित कर चुकी थी। इस युवक की हालत बेहद खराब है। केदारघाटी विस्थापन एवं पुनर्वास संघर्ष समिति के अध्यक्ष डॉ. अजेंद्र अजय ने उसे सोमवार को बेस अस्पताल में दाखिल कराया, जहां मनोविज्ञानी ने उसका परीक्षण किया। बताया कि इसका लंबा इलाज चलेगा। 15-15 दिन बाद उसे दिखाना पड़ेगा। इसके बाद उसके परिजन उसे अपने साथ ले गए। चमोली के नागनाथ पोखरी के सिमतोली गांव निवासी 46 वर्षीय पुष्कर सिंह मुम्बई में नौकरी करता था। 14 जून 2013 को वह अगस्त्यमुनि स्थित अपने भाई की दुकान पर पहुंचा। जहां से वह अपने एक अन्य रिश्तेदार के यहां तिलवाड़ा गया। 15 जून 2013 को बाइक से वह तिलवाड़ा से सोनप्रयाग की ओर गया। इसके बाद वह आपदा में लापता हो गया। उसके परिजनों ने अगस्त्यमुनि पुलिस चौकी में उसकी रिपोर्ट भी लिखाई। डा. अजेंद्र अजय के अनुसार बाद में शासन ने इसे मृत भी घोषित कर दिया गया था। बीते 21 मार्च को पुष्कर सिंह के ममेरे भाई संतोष कुंवर को वह रुद्रप्रयाग के पास दीनहीन हालत में घूमता मिला। उसकी शारीरिक और मानसिक स्थिति बहुत खराब थी। चोट के कारण उसका एक पैर भी खराब हो चुका था। अजय ने बताया कि वह जून 2013 के बाद से अब तक के समय को लेकर अपने बारे में कुछ भी नहीं बता पा रहा है। मानसिक रूप से भी अस्वस्थ लग रहा है। सोमवार को उसके परिजन उसे इलाज के लिए बेस अस्पताल लाए, जहां मनोविज्ञानी ने उसका परीक्षण कर लंबे समय तक इलाज की बात कही। अजेंद्र अजय ने प्रदेश सरकार से आपदा प्रभावित पुष्कर सिंह का सरकारी खर्च पर उपचार कराने की मांग की। साथ ही लापता लोगों को भी तलाश करने की मांग उठाई ताकि अन्य लोगों को इस तरह न भटकना पड़े।
कुछ दिन पहले भी चमोली जिले के घाट ब्लाक में विक्षिप्त हालत में मिली महिला के केदारनाथ आपदा के दौरान अपनों से बिछुडऩे की बात बताई गई। घाट बाजार में कंबल ओढ़े एक विक्षिप्त महिला को देखकर लोगों ने उससे जानकारी लेनी चाही तो वह सकपका गई। लोगों की सूचना पर पुलिस ने वहां पहुंचकर महिला से उसके घर परिवार के बारे में जानकारी जुटाई। महिला ने पुलिस को बताया कि केदारनाथ आपदा में वह अपनों से बिछुड़ गई थी। तब से वह इसी तरह भटक रही है। यह महिला बोल कुछ नहीं पा रही है, उसने पुलिस का एक कागज पर लिखकर अपने बारे में जानकारी दी।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों उत्तरकाशी जनपद में भी राजस्थान की एक महिला भी ऐसी हालत में मिली थी। वह भी केदारनाथ आपदा में अपनों से बिछुड़ गई थी। पता चलने पर परिजन उसे साथ ले गए थे।

सोमवार, 23 मार्च 2015

हम ठगने का ‘लाइसेंस’ देते हैं!

बीएड पाठ्यक्रम को 2 वर्षीय किया जा रहा है और शुल्क में भी बेतहाशा वृ(ि की जायेगी, किन्तु इससे सरकार और 600 संचालकों को फायदा है इसलिए इस सुनियोजित ढंग से लूट के व्यवसाय को चालू रखा जा रहा है. कल्याणकारी सरकार के नाम पर सरकारें लुटेरे संगठनों द्वारा संचालित हैं और वे लूट का लाइसेंस दे रही हैं। देश के अलग-अलग भागों में कुकुरमुत्तों की तरह खुले बीएड कालेजों पर मनीराम शर्मा का यह खास आलेख।      संपादक

विश्वविद्यालय और बोर्ड भी प्रायोगिक परीक्षा शुल्क का मद महाविद्यालयों और विद्यालयों के लिए खुला छोड़ देते हैं, ताकि वे मनमानी वसूली कर सकें और प्रायोगिक परीक्षा के वीक्षक का स्वागत सत्कार कर सकें जोकि फलदायी होती है। बोर्ड और विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे प्रायोगिक परीक्षा के लिए शुल्क भी नियमित परीक्षा के साथ ही वसूल कर लें और परीक्षा केंद्र को प्रतिपूर्ति अपने स्तर पर ही करें, न की महाविद्यालयों और विद्यालयों को इसके लिए खुला छोड़ें। महाविद्यालयों को यह भी निर्देश दिया जाय कि वे ड्रेस या अन्य किसी सामग्री का विक्रय नहीं करें और छात्रों से कोई वसूली सरकार से अनुमोदन के बिना नहीं करें।
नागरिकों को सामान्य और व्यावसायिक शिक्षा देना तथा रोजगार उपलब्ध करवाना कल्याणकारी सरकार का संवैधानिक धर्म है। इसलिए शैक्षणिक गतिविधियों से कोई वसूली करना स्पष्टः संविधान विरु( है, किन्तु शिक्षा जगत का क्या हाल है और सरकार इसकी किस तरह दुर्गति कर रही है इसका शायद आम नागरिक को कोई अनुमान नहीं है। उदारीकरण, जो कि संविधान की समाजवाद की मूल भावना के सर्वथा विपरीत है, का लाभ धनपतियों और कुबेरों को मुक्तहस्त दिया जा रहा है। यही कारण है कि पंचवर्षीय योजनाओं को ठेंगा दिखाती हुई गरीब और अमीर के बीच की खाई स्वतन्त्रता के बाद बढ़ती ही जा रही है। शायद इस अधोगति के रुकने के कोई आसार दिखाई भी नहीं देते।
शिक्षक भर्ती के लिए आवश्यक बीएड पाठ्यक्रम और निजी संस्थानों की भागीदारी इस दुर्भि संधि को प्रकट करती है। उदारीकरण से पूर्व इस पाठ्यक्रम का संचालन मुख्यतया राज्य क्षेत्र में ही था और वांछित शिक्षकों की पूर्ति सामान्य रूप से हो रही थी। राजस्थान में राज्य एवं निजी क्षेत्र को मिलाकर वर्षभर में सामान्यतया 20000 अतिरिक्त शिक्षकों की आवश्यकता होती है। किन्तु सरकार ने लगभग एक लाख अभ्यर्थियों के लिए बीएड पद सृजित कर दिये हैं। ऐसी स्थिति में काफी व्ययभार उठाकर यह बेरोजगारों की एक फौज प्रतिवर्ष तैयार हो रही है, जो अपना समय और धन लगाकर भी निश्चित रूप से आखिर बेरोजगार ही रहनी है। बीएड पाठ्यक्रम में आगामी वर्ष से परिवर्तन कर सरकार इस कोढ़ में खाज और करने जा रही है। बीएड के अभ्यर्थी से इस विद्यमान एकवर्षीय पाठ्यक्रम के लिए 25 हजार रुपये वार्षिक शुल्क लिया जाता है, जो की पूर्व में मात्र दस हजार रुपये था। अब बीएड पाठ्यक्रम को 2 वर्षीय किया जा रहा है और शुल्क में भी बेतहाशा वृ(ि की जायेगी, किन्तु इससे सरकार और 600 संचालकों को फायदा है इसलिए इस सुनियोजित ढंग से लूट के व्यवसाय को चालू रखा जा रहा है। पहले एक बीएड महाविद्यालय से मान्यता के नाम पर दस लाख रुपये से अधिक शुल्क सरकार और विश्वविद्यालयों द्वारा लिया जाता था और अब दो वर्षीय पाठ्यक्रम के लिए सरकार द्वारा सोलह लाख रुपये और अतिरिक्त लिए जा रहे हैं। निश्चित रूप से इतनी राशि का सरकार को भुगतान करके इस निवेश पर कोई भी व्यक्ति अच्छा मुनाफा कमाना चाहेगा। सेवा के नाम पर कोई भी इतना बड़ा निवेश नहीं करना चाहेगा। इस आकर्षक व्यवसाय के कारण कई संचालकों ने तो अपने विद्यालय बंद करके महाविद्यालय प्रारम्भ कर दिए हैं।विश्वविद्यालय और बोर्ड भी प्रायोगिक परीक्षा शुल्क का मद महाविद्यालयों और विद्यालयों के लिए खुला छोड़ देते हैं, ताकि वे मनमानी वसूली कर सकें और प्रायोगिक परीक्षा के वीक्षक का स्वागत सत्कार कर सकें जोकि फलदायी होती है। बोर्ड और विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे प्रायोगिक परीक्षा के लिए शुल्क भी नियमित परीक्षा के साथ ही वसूल कर लें और परीक्षा केंद्र को प्रतिपूर्ति अपने स्तर पर ही करें, न की महाविद्यालयों और विद्यालयों को इसके लिए खुला छोड़ें। महाविद्यालयों को यह भी निर्देश दिया जाना अति आवश्यक है कि वे ड्रेस या अन्य किसी सामग्री का विक्रय नहीं करें और छात्रों से कोई वसूली सरकार से अनुमोदन के बिना नहीं करें। आश्चर्य होता है कि सरकार को महाविद्यालय और विद्यालय संचालकों की तो चिंता है और उनके द्वारा वसूली जाने वाले शुल्क तय कर दिया है, किन्तु उनके द्वारा दी जाने वाली सेवाओं के मानक और सम्ब( बातों को न तो तय किया जाता, न उनकी निगरानी और न ही नियमन है। और तो और इन महाविद्यालयों व विद्यालयों में कार्यरत कार्मिकों के हितों का कोई नियमन नहीं किया जाता और वे सभी पसीना बहाने वाले शोषण का शिकार होते हैं। उन्हें नियमानुसार अवकाश, भविष्यनिधि और अन्य कोई परिलाभ तक नहीं दिया जाता है।कई मामलों में तो उन्हें दिया जाने वाला वेतन न्यूनतम मजदूरी से भी कम होता है। सरकार इस कुतर्क का सहारा ले सकती है कि जिसे करना हो वह बीएड करे या इस नौकरी के लिए वह किसी को विवश नहीं कर रही है। किन्तु जनता को इस बात का ज्ञान नहीं है कि बीएड के बाद भी रोजगार दुर्लभ है। कीट पतंगे युगोंकृयुगों और पीढ़ियों से आग में जलकर मर रहे हैं दृउन्हें आजतक ज्ञान नहीं हुआ है और यह सिलिसिला आज तक नहीं थमा है। नागरिक हितों की हरसंभव रक्षा करना और मार्गदर्शन सरकार का दायित्व है। फिर यही बात सरकार चिकित्सा महाविद्यालयों के सन्दर्भ में क्यों नहीं करती, जिससे प्रतिस्पर्द्धी वातावरण में जनता को सस्ती चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हो सकें।आधारभूत संरचना के नाम पर इन बीएड कालेजों के पास मात्र कागजी खानापूर्ति है और छात्रों से महाविद्यालय संचालक प्रायोगिक परीक्षा और अन्य खर्चों के नाम पर अतिरिक्त अवैध वसूली भी कर रहे हैं। छात्रों को महाविद्यालय न आने की भी सुविधा भी अतिरिक्त अवैध शुल्क से दे दी जाती है। अर्थात बीएड शिक्षण एक औपचारिक पाठ्यक्रम है। जिस तकनीक एवं विधि से बीएड में पढ़ाना सिखाया जाता है वह भी व्यावहारिक रूप से बहुत उपयोगी नहीं है। अन्य राज्यों की स्थिति भी लगभग राजस्थान के समान ही है। निष्कर्ष यही है कि कल्याणकारी सरकार के नाम पर सरकारें लुटेरे संगठनों द्वारा संचालित हैं और वे लूट का लाइसेंस दे रही हैं। अब जनता सावधान रहे। शायद आने वाले 20-30 वर्षों में आम नागरिक का पूर्ण रक्तपान हो जाएगा तथा गरीब बचेंगे ही नहीं। संपन्न तथा सत्ता के दलाल और अधिक संपन्न जरूर हो जायेंगे।